
डेजा वू एक राज़ – 2
असम की सबसे बड़ी नदी इतनी बड़ी कि पहली नज़र में ये समुद्र का आभास देती है असम में नाम है ब्रह्मपुत्र| उसके किनारे को छूते शहर तेजपुर के एक घर में कुछ अलग ही कोहराम मचा था| माँ अपने बेटे को सारी स्थिति समझाती हुई कह रही थी –
“मेरो को क्या पता कि जाएगी तो लौट कर ही नही आएगी – नही तो रोक न लेती जाने ही नही देती -|” बेटे की गहन चुप्पी पर वे अपनी बात आगे कहती रही – “बकुल – मोय पहले ही बोला था इससे सादी मत कर – ये तेरे लिए बिलकुल सही नही है पर तुझे तो दुनिया बदलनी थी न इसलिए एक अकेली बिचारी विधवा से विवाह कर समाज में उदाहरण बना दिया और हुआ क्या – चली गई न – तुझे बताया भी नही कि कहाँ जा रही है – कब लौटेगी – अब कहाँ ढूंढेगा भी तू उसे – पहले भी उसका क्या ठिकाना था – विधवाआश्रम – जहाँ से निकालकर तूने उसका जीवन बनाने की सोची और बदले में उसने क्या दिया – धोखा – अभी दो महीना नही गुजरे सादी को और सब छोड़छाड़ कर भाग गई – देख बकुल – हमारी समाज में बड़ी इज्जत है – हमारा पूरा समाज है – तुमार सरकारी अध्यापकी की नौकरी है उसपर अगर समाज में ये खबर फैलेगी तो बता क्या इज्जत रह जाएगी हमारी – सब तरफ बस थू थू ही होगी – मैं तो कहती हूँ – तू भूल जा उसे – जाने दे आखिर अपने मन से गई है न – तूने तो नही छोड़ा उसे फिर तू थोड़े ही दोषी होगा – ये सोच शायद यही भाग्य को मंजूर हो – अब सब कुछ भूलकर अपनी नई जिंदगी की शुरुवात कर – अब तो मेरी बात मान जा – तब तूने कर ली थी न अपने मन की – मैंने तब कुछ कहाँ तुझे ?” वे धाराप्रवाह बोलते बोलते बेटे की निगाहों में देखती है जहाँ उनके प्रश्न का उत्तर साफ़ झलक आया कि कभी रोका मैंने !! उस पल उसकी निगाह साफ़ साफ़ कह गई कि हेमा से शादी करने के लिए कितना रोका था पर वही था जो अपनी जिद्द पर कायम रहा और विधवा हेमा से शादी कर के माना| लगा था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा हेमा उसके जीवन में पानी में रंग सी घुल जाएगी फिर अचानक क्या हुआ कि बिना कुछ कहे वह चली गई| आखिर क्या कमी रह गई थी उसके प्यार और विश्वास में जो हेमा को रोक नही पाया !!
वे बेटे के मन में घुमड़ते विचार नही पढ़ पाई इसलिए उसकी चुप्पी देख आगे कहने लगी – “देख बकुल अगर पुलिस में बोलेगा या सबको बताएगा कि तेरी बीवी चली गई तो सब तुमि पर ही आरोप लगाएँगे – क्या पता पुलिस क्या बर्ताव करे तेरे संग तो समझ कि वह अबसे तेरे जीवन में कभी थी भी नही और कौन सा उसका कोई आगा पीछा था जो उसके बारे में पता करने आएगा इसलिए बस यहाँ से ट्रांसफर ले और किसी ओर शहर चले चलते है|”
बकुल के जीवन में अचानक ऐसा कुछ घट गया जिसके बारे में उसने कुछ सोचा ही नही था इससे अब उसकी बुद्धि ने आगे के बारे में विचारना ही छोड़ दिया| वह अपनी माँ की ओर यूँ देखने लगा जैसे उनकी कही हर बात को वह मानने को तैयार है| सोचता हुआ वह हतोसाहित होता अपना सर झुका लेता है|
रात के अधियारे में आसमान का अकेला चाँद एक जगह टिका जैसे उस निरीह काया को देखता अपने में गुमसुम था| वह काया घुटनों पर सर दिए कबसे रो रही थी पर उसके रोने की हर हिल्की सामने की नदी की लहर के शोर में बार बार गडमड हो जाती थी| बहुत देर बिसुरने के बाद अब उसका सारा ध्यान सामने नदी की ओर था| ब्रह्मपुत्र नदी अपने वेग में आधी रात में बार बार रेतीला किनारा छूती वापस हो लेती| इसी बीच दूर कोई चमक लहरों तक उमड़ती पानी से थोड़ा ऊपर उठती फिर वापस नदी में गुम हो जाती ये नदी की डोल्फिन थी जिसे देखती वह अब बिसूरना छोड़कर जैसे यादों में पीछे चली गई|
जब वह और बकुल साथ में यहाँ घंटो बैठते अपने जीवन का हर ग़म भूल जाया करते कि उनके जीवन में कितना अकेलापन है| आखिर यही सोचकर तो साथ रहने का फैसला किया था| लेकिन सोचा हुआ कहाँ हुआ सब तो बकुल की माँ के अनुसार होता गया अपने बेटे की जिद्द को उसे घर में जगह दी पर अपनाया कभी नही| हर रोज बकुल के पीछे वह उस त्रासदी से गुजरती रही जो शायद कभी किसी आदमी को समझ नही आई या कभी बहुत बेमतलब की लगी लेकिन एक औरत द्वारा दूसरी औरत को सताना किसी भी शब्द में बताया नही जा सकता था| जब बकुल के लिए वह नाज़ से टिफिन बनाती तो उसकी माँ ‘वह खाएगा नही फेंक देगा’ कहकर उसका मनोबल तोड़ देती, कभी ‘मेरे बेटे को पता नही इस बासी औरत में क्या दिखा जरुर फसा लिया होगा’ कभी बासी बचा खाना खुद अपने खाने के लिए रखा लेती और बाद में बेटे के सामने रोती बिलखती हुई वही खाना दिखाती और भी जाने कितने शूल वह चुपचाप अंतर्मन से गुजर जाने देती पर जब अस्तित्व पर गहरी चोट के निशान और गहरे होते गए तब हेमा के लिए सिवाय वापसी के और क्या रास्ता था..! अब न उस घर में वापस जाने की उसकी कोई इच्छा है और न आश्रम लौटने की हिम्मत| सोचती हुई वह नदी की काली परछाई की ओर बेरोक बढ़ने लगी| हवा संग उसके आंसू वातावरण में घुलते गए और उसी रफ़्तार में वह नदी की ओर बढ़ती गई| अचानक उसके मन ने उसे रोक दिया और वह पलटकर वापस चल दी| वह अपने जीवन को एक और मौका देना चाहती थी पर शायद अब बहुत देर हो गई थी| वह चाहकर भी वापसी के लिए अपना कदम पीछे न कर सकी| कोई हाथ उसे नदी के भीतर खींच रहे थे और एक झटके में उसकी किसी प्रतिक्रिया के बिना वह सम्पूर्ण उस नदी में समा गई तभी नदी पर तेज हलचल मचती रही जैसे कोई बवंडर आया हो| पानी गोल गोल लहरें बनाते जल्दी ही शांत हो गया| अब शेष हवा और रात के अँधेरे के सिवा वहां कोई नही था|
क्रमशः……