
डेजा वू एक राज़ – 22
झलक हैरानगी से रचित का डरा सहमा चेहरा देख रही थी उसे समझ नही आ रहा था कि केवल एक वाल साइड लैंप गिरने भर से रचित के मन में कौन सा भूचाल उठ खड़ा हुआ| वह उसका चेहरा सहलाती उससे पूछती है – “क्या हुआ रचित – ये सिर्फ एक लैंप ही तो था – अचानक से गिर गया बस !”
“लेकिन ये टूटा बिखरा कांच आज भी मेरे जेहन में बिलकुल वैसा ही ताजा है जब सालो पहले के होटल के एक रूम में मैं अपने माँ बाबा के साथ था – एक पल में सब कुछ तबाह हो गया जब भुज के भूकंप का असर उसके आस पास के शहरों को भी लील गया – अपने माँ बाबा को अपनी आँखों के सामने मरते देखा पर सामान के बीच फंसा मैं कुछ नही कर पाया – तब का अकेलापन जैसे आज भी मेरे जेहन में किसी नासूर सा जिन्दा है|”
उस दर्द की तीव्र बेचैनी रचित के चेहरे पर उमड़ आई जिससे उसे सँभालने झलक रचित को अपनी बाँहों के बीच लेती हुई कहने लगी – “वो गुजरा वक़्त है रचित – अब मैं हूँ न तुम्हारे पास |” कहती हुई झलक रचित का चेहरा अपनी हथेली के बीच लेती उसकी भर आई पलके चूम लेती है|
“तुम्ही तो हरदम मुझे समझाते हो कि बीते वक़्त को कल की तरह भूल जाना चाहिए और आज खुद तुम ऐसा कर रहे हो |”
रचित परेशान सा झलक के दोनों हाथो को पकड़ते हुए कहता है – “तुम नहीं समझ सकती कि एक सात साल के बच्चे के मन में उस समय क्या गुजरी होगी !”
झलक अवाक रह गई आखिर इतने समय में उसने रचित को कभी इतना टूटता हुआ नही देखा था| उसे जब कुछ समझ नही आया तो रचित को आराम से टेक लगाकर लेटाती हुआ कहने लगी –
“तुम थके हो न इसलिए ऐसा लग रहा है चलो अब थोड़ी देर आराम करो तब तक मैं इसे साफ़ करती हूँ |”
रचित के बालो को सहलाती वह उसे वही लेटा देती है और खुद कमरे से बाहर निकल जाती है|
अगले ही क्षण वह फर्श को साफ़ करके रचित के पास आती है| वह आंख बंद किए लेटा था| उसके पास आती उसके माथे को सहलाती हुई पूछती है – “अब कैसा लग रहा है ?”
रचित भी जैसे एक झपकी लेकर तुरंत आँख खोलते झलक से बच्चो सा लिपटता हुआ कहता है – “तुम मुझे छोड़कर मत जाया करो – बहुत अकेला हो जाता हूँ |”
इसपर झलक हलके से हंसती हुई कहती है – “छोड़कर नही जाती तो आज कैसे मालूम पड़ता कि मेरी क्या अहमियत है !”
“बहुत है|” वह उससे लिपटे लिपटे उसके जिस्म में समाता हुआ कहता है जिससे गुदगुदी से झलक को हँसी आ जाती है|
वह उसके बगल में लेटे लेटे उसके बालो में उंगलियाँ फिराती हुई पूछती है – “अच्छा ये बताओ कि तुम अन्दर कैसे आए ?”
“मेन गेट से !”
ये सुनते झलक तुरंत उठती हुई घबराए स्वर में कहती है – “अरे बाप रे माँ ने मुझे गेट बंद करने को बोला था – प्लीज़ रचित ये न माँ को मत बोलना वरना पक्का मेरी अच्छी वाली क्लास ले ली जाएगी |”
इस बात पर रचित हलके से मुस्करा देता है|
तभी बाहर गेट पर कार के रुकने की आहट हुई जिसे सुनते वे दोनों बाहर देखने बाहर की ओर निकलते है|
पलक अपने मम्मी पापा के साथ मंदिर से वापस आ गई थी पर कार से निकलते उनमे अलग ही बहस छिड़ी हुई थी| पलक उन्हें समझती हुई कह रही थी –
“ओह माँ सच में मैं चाहती हूँ कि आप दोनों उस टूर में जाए और सिर्फ एक हफ्ते की तो बात है – अब चाहे आप बाद में कितना भी प्रोग्राम बना लो पर आपको ये वाला ग्रुप तो नही मिलेगा न – माँ पापा प्लीज़ आप दोनों आज ही केदारनाथ के लिए रजिस्ट्रेशन करा लीजिए – हर बार मौका नही मिलता ऐसे टूर का और फिर घर पर झलक तो है न !”
पलक की बात पर दोनों एतराज करते है पर वह उनकी कुछ न सुनते कहती है – “बस ये तय हो गया – पापा आप अभी जाकर रजिस्ट्रेशन करा आईऐ |”
पापा जल्दी सी कहते है – “इतनी जल्दी तैयारी कैसे होगी ?”
“वो सब आप मुझपर छोड़ दीजिए – मैं कर दूंगी – आप बस कल निकलने का टिकट बुक कर लीजिए और देखिए लक्ली दो सीट ही खाली है अभी |”
पलक की जिद्द के आगे किसी की कुछ नही चलती और पापा को गेट से ही बाहर जाना पड़ता है| उनके जाते माँ चिंतित स्वर में कहती है – “पलक ऐसी हालत में तुझे अकेला छोड़कर बिलकुल जाने का मन नही है – हम फिर कभी भी तो जा सकते है !”
“यही कहते कहते क्या अभी तक आप जा पाई – माँ पापा को घूमना पसंद है पर अरसा हो गया उन्हें कही बाहर जाते देखते इसलिए आपको जाना चाहिए और रही मेरी बात तो अभी तो तीन महीने भी नही हुए मेरे अभी से किस बात की चिंता |” हँसती हँसती पलक माँ के साथ अन्दर जाने लगी| तभी सामने से झलक संग रचित को देख वे चौंक जाती है|
“रचित बेटा – कब आए ?”
“अभी कुछ देर पहले ही आया जब आप लोग बाहर थे |” रचित हाथ जोड़कर नमस्ते करता हुआ कहता है|
“गेट खोल दिया इसने !! ये तो गधे घोड़े बेचकर सो रही थी|” पलक हँसती हुई झलक को देखती हुई कहती है|
इस पर पूरे आत्मविश्वास से झलक बोलती है – “हाँ हाँ क्यों नही – एक ही बार में – और अभी भी तो खुला रखा गेट – क्यों रचित मैं सच कह रही हूँ !”
इस पर रचित हलकी मुस्कान से मुस्करा देता है|
“और रचित कैसा कटा रास्ता – वैसे बहुत देर लगा दी आने में |”
पलक के कहते झलक तुरंत बीच में उछलती हुई बोल पड़ी – “तुझे पता था रचित के आने का |” कहती हुई झलक बारी बारी से रचित और पलक का मुस्कराता हुआ चेहरा देखती हुई गुस्से में मुंह बनाती हुई पलक से कहती है – “सच्ची विभीषण अपने घर में ही होते है – मुझे क्यों नही बताया ?”
“क्यों सरप्राइज अच्छा नही लगा !” पलक उसे छेड़ती हुई कहती है|
उन दोनों को आपस में उलझते देख अब माँ बीच में बोल उठती है – “उसको छोड़ो मुझे बताना था न – यहाँ दामाद घर पर आए खड़े है और घर पर कुछ भी ख़ास नही बना – तुम सब आपस में उलझो मैं तो चली किचेन में – रचित बैठो बेटा – मैं आती हूँ अभी |”
माँ जाने को व्यग्र हो उठी तो झट से झलक उन्हें रोकती हुई बोलती है – “अरे माँ आप बात तो सुनो – हम कही बाहर जा रहे है |”
वे तुरंत उनकी तरफ पलटती हुई कहती है – “अचानक से कहाँ !!”
“वो क्या है रचित के दोस्त की शादी है इसलिए तो अचानक से आया – |”
अब रचित हैरानगी से झलक को देखने लगा|
“कब !!”
“कल रात – तो हमे आज ही निकलना होगा न उसके लिए – क्यों रचित – तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड है न !” झलक झट से रचित की ओर देखती हुई पूछती है तो वह सकपकाते हुए बस सहमति में हाँ में ही सर हिला पाता है|
“ओहो – तो पलक जल्दी से पापा को टूर कैंसिल करने को बोल |”
माँ पलक को देखती हुई कहती है जिससे पलक उनके पास आती हुई कहती है – “डोंट वरी माँ – आप भी जाओ और इनको भी जाने दो – मुझे घर पर अकेले रहने पर कोई प्रॉब्लम नही – बस एक हफ्ते की तो बात है |”
“पर…!”
माँ की न सुनते पलक उन्हें किचेन में चलने को कहती है|
माँ सच में हडबडाती हुई किचेन में चल देती है| पलक उनके पीछे चलती चलती झलक के पास से गुजरती उसके कानो में फुसफुसाती हुई कहती है – ‘झूठ में आज भी तेरा कोई हाथ नही पकड़ सकता |’
इस पर वह बस दांत दिखाती रह जाती है| झलक जानती थी अगर वह ये झूठ न बोलती तो माँ उन्हें पक्का कहीं नही जाने देती|
झलक दोपहर से ही रचित के संग निकल गई| न चाहते हुए भी पलक के माँ पापा को अपने निकलने की तैयारी करनी पड़ती है| उनका मन नही था फिर भी पलक की जिद्द के आगे उनकी एक न चली| फिर सोचा एक हफ्ते की ही तो बात है और हो सकता है तब तक अनिकेत भी वापस आ जाए|
मयंक जा चुका था और हॉस्पिटल में जाने से पहले अनिकेत इन्स्पेक्टर का वेट कर था| शायद उससे भी ज्यादा उसे अनिकेत से मिलने का इंतजार था इसलिए वह समय से पांच मिनट पहले ही उसके दरवाजे पर दस्तक दे देता है|
अगले क्षण वे दोनों आमने सामने बैठे थे और इन्स्पेक्टर के हाव भाव में अपने प्रश्न की गहरी उत्सुकता दिखाई दे रही थी|
“तुम्हारी जिंदगी की कहानी सुनने के बाद सच में मुझे तुमसे बहुत हमदर्दी है – उस वक़्त तुमपर क्या बीती होगी शायद कोई कल्पना भी नही कर सकता पर जो तुमने सोचा है क्या वो सही होगा !”
“मतलब !!”
“मेरा मतलब है कि जो जा चुके है उस आत्मा को बुलाना क्या सही होगा ?”
इस बात पर उसके हाव भाव रुष्ट हो जाते है और वह नाराजगी भरे स्वर में कहता है – “एक तरफ आप मुझसे हमदर्दी भी रखते है दूसरी तरफ मेरी बात पर आपको शंका भी है – आखिर आप कहना क्या चाहते है ?”
इस पर अनिकेत उठकर उसके पास आते उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “तुम्हारी कहानी ने सच में मेरे मन को द्रवित कर दिया पर इस शर्त पर विधाता का विधान तो नही बदल सकता|” वह मुड़कर अनिकेत की ओर देखता रहा पर बोला कुछ नही |
“हर धर्म में आत्मा को शांति पहुँचाने का संस्कार है क्योंकि शरीर से मुक्त आत्मा को अगर शांत न किया जाए तो वह भटकती रहती है – तुम्हारी बहन की आकस्मिक मृत्यु पर मुझे सच में बहुत दुःख है पर उसकी आत्मा को बुलाना बिलकुल तार्किक नही होगा – सोचो सिर्फ उसके साथ क्या हुआ ये जानने के लिए हम आत्मा का आवाहन कर भी लेते है पर उसके बाद आत्मा को वापस न भेज पाए तब क्या होगा – क्या इसके बारे में कुछ सोचा तुमने – नही – पर मैं तुम्हे बताता हूँ तब क्या क्या संभावना होगी – तब एक मुक्त आत्मा हो सकता है किसी शरीर को पाने की चाह में किसी के साथ कोई दुर्घटना करे या उसके आने जाने का मार्ग खुल जाए तब उस हालात में और भी आत्माओ को आने से हम नही रोक पाएँगे और सारी शरीर से मुक्त आत्मा का व्यवहार कैसा होगा ये तुम तय नही कर सकते भलेहि वह तुम्हारी बहन की आत्मा ही क्यों न हो – देखो ये काम बहुत जिम्मेदारी भरा है इसलिए मैं आत्मा की मुक्ति पर विश्वास रखता हूँ और यही मैं तुमसे भी करने को कहूँगा कि तुम्हे अपने धार्मिक अनुष्ठान करके उसकी आत्मा को शांत करना चाहिए |”
कहते कहते अनिकेत टहलता हुआ उसके सामने आया जाता है और उसके चेहरे पर आते हाव भाव को गौर से देखने लगता है| ऐसा करते कुछ पल तक कमरे में शांति छाई रहती है फिर उसके अगले पल इन्स्पेक्टर धीरे से कहता हुआ खड़ा हो जाता है –
“ठीक है – मैं आपकी बात और फैसला दोनों समझ गया – मैं चलता हूँ |”
कहते हुए इन्स्पेक्टर बिना रुके बाहर की ओर चला गया|
अनिकेत उसके अजीब व्यवहार को देखता रह गया पर उसे जाते हुए रोका नही|
क्रमशः…….