
डेजा वू एक राज़ – 23
अनिकेत देख नही पाया कि इन्स्पेक्टर जिस खुले दरवाजे से जा रहा था उसी वक़्त वही से मयंक अंदर आ रहा था| एक पल को दोनों की निगाह आपस में मिली और इन्स्पेक्टर बाहर हो गया और मयंक अन्दर आ गया|
मयंक के अभिनन्दन करने से अनिकेत का ध्यान उसकी ओर गया जिससे वह उसका मुस्कराते हुए स्वागत करते हुए कहता है – “आओ मयंक कैसे हो ?”
“सर फिर से आपको परेशान करने आ गया पर क्या करूँ आपसे मिले बिना रहा नही जाता और फिर अब आपको मेरी जरुरत भी नही इसलिए सोचा खुद ही आपसे मिलने चलू |”
“मैंने कहा न यू कैन कम एनी टाइम – वैसे मैं हॉस्पिटल निकलने वाला था|”
वह अंदर आते हुए कहता है – “हाँ सर सुबह बताया था आपने इसलिए सोचा कि मैं भी मिल लूँगा जॉन सर से – वैसे भी क्या कमाल का काम है उनका – मैं तो ये सुनकर ही उनका मुरीद हो गया कि उन्होंने ऐसा कोई सोफ्टवेअर बनाया है |”
इस बार अनिकेत कुछ न कहता बस हामी में सर हिला देता है|
पर वाचाल मयंक बोलना जारी रखता है – “वैसे मुझे सर कहना तो नही चाहिए पर इन इन्स्पेक्टर साहब की मंशा सही नही लगती – वे बार बार इस सोफ्टवेअर के पीछे क्यों पड़े है – अगर किसी तरह से वह उनके हाथ लग गया तो !”
“तो कुछ नही होगा |” सपाट भाव से अनिकेत कहता है – “जॉन ने बहुत इंटेलिजेंटली काम किया है जब तब उसे ख़ास पासवर्ड नही मिलेगा तब तक वह सोफ्टवेअर ओपन ही नही होगा|”
“ख़ास पासवर्ड सर !!” अपनी रूचि जाहिर करता वह अनिकेत की ओर झुकता हुआ कहता है|
“हाँ हिमस साउंड – एक तरह की ख़ास साउंड जब तक पैदा नही होगी तब तक ये सोफ्टवेअर अपना काम नही करेगा|”
“वाह सर – फिर तो आपको पता होगा न उसका पासवर्ड ?”
“नही – मैंने ही कहा था कि इस पासवर्ड को वह सिर्फ अपने तक सीमित रखे तभी वह ज्यादा सुरक्षित होगा |”
ख़ुशी से ताली पीटता हुआ मयंक कहता है – “वाह ग्रेट सर – आखिर यूँही मैं आपको ग्रेट नही कहता – बिलकुल सही किया आपने |”
इस पर बस हलके से मुस्करा कर अनिकेत उठता हुआ कहता है – “चले हॉस्पिटल !”
“बिलकुल सर |” मयंक भी उसी उत्साह से खड़ा होता हुआ कहता है| अब दोनों साथ में बाहर की ओर निकल जाते है|
मयंक बुलेट से था जिससे अनिकेत के साथ कुछ ही पल में वह हॉस्पिटल पहुँच जाता है| हस्पिटल पहुँचते वे ज्योंही अंदर जाने वाले थे तभी मयंक का मोबाईल बजता है जिसपर बात करते ही अगले ही पल वह अनिकेत से माफ़ी मांगते हुए कहता है – “सॉरी सर – बहुत जरुरी कॉल आ गई – मुझे निकलना पड़ेगा |”
“यस ओफ्कोर्स यू डू योर वर्क कम्फटेबली |”
अनिकेत से विदा लेता मयंक तुरंत ही हॉस्पिटल के बाहर से निकल जाता है जबकि अनिकेत अपने तेज कदमो से हॉस्पिटल के अंदर जाता सुनिश्चित वार्ड की ओर बढ़ जाता है|
झलक जा चुकी और पलक इस तरह अकेली रह गई| इस तरह अकेला रहना उसे खल रहा था पर वक़्त की नजाकत को देखते वह इसे अपने हाव भाव से प्रदर्शित भी नही कर सकती थी| वह सारा समय माँ पापा के जाने की तैयारी कराती रही फिर थककर कमरे में आराम करके उठी तो माँ को अपने पास बैठा पाती है| वे हौले हौले उसका सर सहलाती उसके चेहरे को गौर से देख रही थी|
इसपर पलक उनकी ओर करवट लेती हुई उनका हाथ पकड़ती हुई कहती है – “माँ आपको भी आराम करना चाहिए – कल सुबह ही तो आपको निकलना है|”
“पता है और इसलिए तो तुम्हारी चिंता हो रही है कि कैसे अकेली रहोगी !”
“उफ्फो माँ – आप फिर से वही सब सोच रही है – अब दिल्ली में भी तो अकेले ही रहना होगा न मुझे !”
“अकेली कैसी – अनिकेत होंगे तुम्हारे साथ – जब वापस आएँगे तभी जाने दूंगी तुम्हे मैं |”
“फायदा क्या माँ ! अब बहुत व्यस्त रहने लगे है |”
“पलक !!” माँ उस पल परेशान सी उसका चेहरा अपनी ओर उठाती हुई हुलस उठी|
“मतलब सारी दुनिया की बहुत फ़िक्र है बस लगता है उन्हें मैं ही सबसे मजबूत दिखती हूँ |” शिकायती लहजे में पलक कहती है|
“हाँ तो मेरी बच्ची बहुत बहादुर है न इसलिए बहुत भरोसा करते है तुमपर कि तुम अपना ध्यान रख सकती हो –|”
इस पर पलक कुछ नही कहती बस मौन ही मन की गुत्थी सुलझाती रहती है पर माँ उसके बालो पर उंगलियाँ फिराती फिराती उसे समझाती रहती है – “कोई कितना भी व्यस्त रहे पर जब कोई अपना हमारा मन से ख्याल करता है तो वह कभी मन से दूर नही होता – तुम दोनों भलेही मुझसे दूर रही पर मेरा मन हमेशा अपनी ही बेटियों के इर्द गिर्द रहा ये मन का वो अनदेखा घेरा है जिसकी सुरक्षा मन महसूस कर सकता है पर आंखे देख नही सकती – पता है लोग जितने अकेले नही होते उससे कही ज्यादा वे खुद को अकेला समझने से अकेले हो जाते है और यही मानसिक स्थिति मन को दुखी करती है – अरे इतने लोगो से भरी हुई है दुनिया – जहाँ देखो लोग ही लोग है – बस उनसे मन का रिश्ता बनाना जरुरी है फिर कैसा अकेलपन !! इसलिए खुद को कभी अकेला नही समझो – समझी न |”
“वाह माँ – आप तो बड़ी फिलोसिफ़कल बात करने लगी है |”
“अब इसे तुम फिलोसिफ़ी कहो या जिंदगी का फ़लसफ़ा – बात तो एक ही है – मैंने अपने जीवन में यही देखा है लोग दैहिक रूप से कम मानसिक रूप से ज्यादा अकेले होते है |”
पलक माँ की बात पर हलके से मुस्करा देती है|
“चलो खाना लगाती हूँ – जल्दी सोएंगे तभी तो सुबह जल्दी उठ पाएँगे |”
माँ पलक को साथ में लिए कमरे से बाहर निकलकर रसोई में चल देती है|
बहुत देर से अनिकेत डॉक्टर से जॉन की स्थिति समझता रहा पर उसे अब तक ये समझ नही आया कि आखिर इतने कम समय में उसकी ऐसी मानसिक हालत कैसे हो गई !!
“इनके ब्लड रिपोर्ट में एलप्रेक्स ट्राइका दवाई का उपयोग सामने आया है |”
डॉक्टर की बात पर अनिकेत आश्चर्य से पूछता है – “ये क्या दवाई है ?”
“ये दवाई डिप्रेशन में दी जाती है पर इसके अतिधिक प्रयोग से मरीज में हैलिस्युशन बनने लगते है तब उस स्थिति में मरीज को बहुत तरह के भ्रम होते है तो कोई मरीज अपनी दुनिया में सिमट जाता है और अगर लम्बे समय तक बिना जाने इसका प्रयोग किया जाए तो इसके और भी दुष्परिणाम हो सकते है – मरीज में सुसाइडल टेनडेंसी बनने लगती है |”
डॉक्टर की बात पर अनिकेत चिंतित स्वर में पूछता है – “तो क्या इसके ब्लड सैम्पल में इसका अतिधिक प्रयोग मिला है ?”
“जी हाँ और इसी कारण इनकी ये हालत हो गई है वैसे मैंने एंटिकनवल्संट मेडिसिन दी है जिसका असर कल तक दिखेगा |”
“ओके थैंकू डॉक्टर – और मैं डिस्चार्ज कब करा सकता हूँ |”
“कल तक नार्मल रिपोर्ट आती है तो आप डिस्चार्ज करा ले|”
“थैंक्स डॉक्टर |” अनिकेत डॉक्टर का शुक्रिया अदा करता है|
डॉक्टर आँखों से सहमती देता अपने राउंड पर निकल जाता है|
डॉक्टर के जाते अनिकेत जॉन के पास आता है| वह अभी भी अपने में सिमटा गुदड़ी बना बिस्तर पर एक ओर पड़ा था| अनिकेत के लिए जॉन को इस तरह देख पाना बहुत ही दुखदाई था इससे उसके मन में उस हॉस्पिटल में प्रति शंका पनपने लगी कि आखिर उसकी इस हालत से उनका क्या फायदा !! क्यों जॉन को इतनी हैवी डोज दी गई !! कही फेनी, हॉस्पिटल और जॉन की इस हालत के बीच कोई गहरा सम्बन्ध तो नही !! आखिर क्यों जॉन को कोई ऐसे बीमार करना चाहेगा !! इसी तरह के बहुत से प्रश्न अनिकेत के दिमाग में उमड़ने लगे पर जवाब किसी का नही मिला| इसी वक़्त उसकी पॉकेट में रखा मोबाईल घनघना कर बज उठा| अनिकेत बेमन से मोबाईल की स्क्रीन में नंबर देखता रहा पर कॉल रिसीव नही की| कॉल पलक की थी जिसे अनिकेत ने बार बार आने पर भी रिसीव नही किया क्योंकि इस वक़्त कुछ अजीब सी उथल उथल उसके दिमाग में मची थी| उसे डर था कि इस वक़्त अगर बात की तो जरुर वह अपनी परेशानी पलक को कह देगा जो वह नही करना चाहता था| इसलिए बाद में उससे बात करनी की सोचकर वह मोबाईल साइलेंट में करके दुबारा अपनी पॉकेट में डाल लेता है|
इस वक़्त अनिकेत का मन बस यही कह रहा था कि ये उसकी सोची मुसीबत से कही बड़ी मुसीबत है !!
अनिकेत के फोन न उठाने से ऐसे वक़्त जब वह उससे बात करना चाहती थी उसके मन में खीज समा गई| उसने भी फोन साइलेंट में डालकर किनारे पटक दिया और तकिया में मुंह ढांपे सोने का उपक्रम करने लगी|
अनमनी सी सोयी पलक सोते वक़्त अपनी अर्धचेतन स्थिति में अजीब सा सपना देखने लगी| वह खुद को अनिकेत संग समंदर किनारे पाती है| उसकी नज़रो के सामने ढेरो फेनिली समंदर की उमड़ती हुई लहरें थी तो उसके साथ में बैठा अनिकेत निकट था| वह खुद को बहुत खुश महसूस कर रही थी| कहते है जब इन्सान सबसे दुखी होकर सोता है तब सबसे सुखद पल वह अपने सपने में देखता है और यही मानसिक रूप से खुद को सुरक्षित रखने का उसके पास उपाय होता है|
पलक सपने में भी मुस्करा उठती है| वह अभी इस ख़ुशी को महसूस ही कर रही थी कि एकाएक उसे कुछ ऐसा दिखा जिससे वह अपनी नज़र नही हटा पाई| अनिकेत की पीठ के पीछे दिखते समंदर के कतरे से वह कई सायो को समंदर से निकलता हुआ देखती है| कई सारे इतने कि वह गिन भी नही पाती| बहुत सारे अनजाने चेहरे उनकी नज़रो के सामने से गुजरने लगे| सभी समन्दर से निकलकर रेत से होते हुए कही जा रहे थे| जैसे शहर की ओर जाकर वे फ़ैल जा रहे हो| उन्हें देखकर उसे अजीब सा महसूस होने लगा| साथ ही उसके हाव भाव में घबराहट मिश्रित डर प्रदर्शित होने लगा| उसे समझ नही आ रहा था कि वे सभी अनजाने चेहरे इतने अजीब से क्यों दिख रहे है जैसे उनके चेहरे पर कोई हाव भाव ही न हो| पलक बुरी तरह घबरा जाती है जबकि उन सबकी तरफ पीठ करे अनिकेत को इस बात की जरा भी भनक नही लगती| पलक घबराकर अनिकेत को कहना चाहती है उसे हिलाकर पीछे देखने को कहना चाहती थी पर न उसकी आवाज अनिकेत तक पहुंच रही थी और न वह उसे छू पा रही थी| उसे समझ नही आ रहा था कि इतने पास होते हुए भी वह अनिकेत तक क्यों नही पहुँच पा रही थी|
वह बुरी तरह डर कर चिहुंक पड़ी| वह उठकर गहरी गहरी साँसे भर रही थी| अपने सपने से वह बुरी तरह घबरा गई थी पर अपना डर बताए किए| इस वक़्त कोई भी नही था उसके पास| ये सोचते उसका मन भर आता और भरी आँखों से वह दुबारा अपने में सिमटी तकिया सीने से लगाए फिर से लेट जाती है| पर अब उसकी आँखों में नींद की जगह तन्हाई का साया स्पष्ट दिख रहा था|
क्रमशः…….