
डेजा वू एक राज़ – 24
जॉन की हालत देखने के बाद अनिकेत का मन बिलकुल भी होटल वापस जाने का नही किया| वह जॉन को कतई अकेला नही छोड़ना चाहता था| उसने जॉन को किसी तरह से अपने हाथ से खाना खिलाया फिर उसके सोने के बाद वह वही हॉस्पिटल के गलियारे में टहलता रहा|
उसका मन अब हर बिखरी कड़ी को आपस में गूंथकर कुछ समझने का प्रयास कर रहा था| तभी अचानक उसके मस्तिष्क में इन्स्पेक्टर की कही एक बात याद आई| एक मात्र एक नंबर जिसपर जॉन ने गोवा में रहते हुए उसमे संपर्क किया था| मेरठ का ओर्फेनेज !! आखिर जॉन ने वहां क्यों मिलाया !! इसमें जरुर कुछ ख़ास बात छुपी होगी| सुबह वहां फोन मिलाने का सोचकर अनिकेत वही जॉन के पास की बैंच पर ही लेट जाता है| यूँ तो उसकी आँखों में नींद का एक कतरा भी नही था इसलिए दिमाग जैसे समस्त ब्रह्माण्ड में घूम रहा था| जॉन की फ़िक्र के साथ वह पलक की भावना भी समझ रहा था पर हालातों ने उसे इस कदर मजबूर कर रखा था कि उसके प्रति वह कोई प्रतिक्रिया नही कर पा रहा था| उसे अहसास था कि जब उसे पलक के सबसे ज्यादा पास होना चाहिए था तभी वह उससे कितना दूर है !! एक गहरी श्वांस खींचते हुए वह तय करता है कि वह सुबह सबसे पहले पलक से बात करेगा ये सोचते हुए वह धीरे से अपनी आंख बंद कर लेता है|
अलसुबह ही पलक उठकर अपने मम्मी पापा को केदारनाथ की यात्रा के लिए विदा करती है| वहां जाने वाली बस उन्हें घर से पिक कर लेती है| अब घर पर बस पलक अकेली रह गई थी| वह मोबाईल उठाकर अनमनी सी बिस्तर पर फिर लेट जाती है और तभी उसका मोबाईल बज उठता है|
उस पार अनिकेत था ये देखते उस पल हर्ष से उसकी आंखे चमक उठी थी|
“कैसी हो – कल थोड़ा व्यस्त रहा इसलिए सुबह सबसे पहले तुमसे बात करने का तय कर लिया|”
इस बात पर पलक मुस्करा उठी पर फिर भी अपने शब्दों में बनावटी सख्ती लाती हुई कहती है – “कोई बात नही आखिर जिस काम के लिए गए है वो ज्यादा जरुरी है न |”
पलक की नाराजगी उसके शब्दों से कही ज्यादा उसके अहसासों में प्रगट हो रही थी| जिसपर अनिकेत हलके से मुस्कराते हुए कहता है –
“हाँ जरुरी तो है |” अनिकेत के इतना कहते पलक का मन तल्खी से मोबाईल कसकर पकड लेता है पर अनिकेत आगे कहता रहा – “और तुम भी उतनी ही जरुरी हो |”
पलक बिन शब्दों के मुस्करा उठी फिर जल्दी से संभलती हुई पूछती है – “अच्छा जॉन का कुछ पता चला क्या ?”
अनिकेत कहना तो सब चाहता था पर इतना कुछ यहाँ उलझा था कि पलक को कुछ न कहते बस यही बोलकर रह गया – “हाँ जॉन मिल गया इसलिए एक दो दिन और लगेंगे – बस जल्दी ही आता हूँ – और घर पर सब कैसे है ?”
“हाँ सब ठीक है |” पलक भी अपनी उदासी अनिकेत से नही कहना चाहती थी इसलिए चुने हुए शब्द कहकर चुप हो गई|
उनके बीच की अनकही ख़ामोशी में वे कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर सब अपने अपने मन में जब्त करते वे ऊपरी तौर पर बात करके कॉल कट कर देते है|
जहाँ कॉल कटने के बाद पलक उदासी से दुबारा लेट जाती है तो वही अनिकेत अब मेरठ के ओर्फेनेज में कॉल लगाने लगता है|
फोन रिसीव होते वह तुरंत कंफर्म करते पूछता है जिससे जवाब मिलता है – “हाँ कहिए – मैं यहाँ का मैनेजर सतीश नागर बोल रहा हूँ |”
“क्या आप जॉन को जानते है ?” अनिकेत तुरंत पूछ लेता है|
“हाँ – हाँ – पर आप कौन बोल रहे है – कहाँ है जॉन – वह ठीक तो हैं न ?” उस पार से उनकी घबराई हुई आवाज आती है|
“मैं जॉन का दोस्त अनिकेत बोल रहा हूँ – वह इस समय गोवा में है और बीमार है |”
“हाँ गोवा में तो है – यही बताया था उसने पर बीमार कैसे – क्या हुआ है उसे ?”
“अब ज्यादा कुछ तो मैं फोन पर आपको नही बता सकता और जॉन अभी आपसे बात करने की हालत में भी नही है इसलिए मैं जानना चाहता हूँ कि पिछली बार उसकी आपसे क्या बात हुई और किस सिलसिले में – |” उस पार की चुप्पी से अनिकेत अपनी बात कहना जारी रखता है – “देखिए अभी आपका ये बताना बहुत जरुरी है ताकि मैं जॉन की कुछ मदद कर सकूँ |”
“मुझे नही पता तुम ऐसा क्यों कह रहे हो – पर हाँ जॉन के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ क्योंकि वो मेरे बेटे समान है – उसने बरसो बाद मुझे कॉल किया था और अपने जन्म से जुड़े राज़ वह जानना चाहता था जिसके लिए मैंने उसे मेरठ आने को कहा था – अब तुम बताओ कि जॉन को हुआ क्या है और वह खुद क्यों नही बात कर सकता ?”
“आप उसकी फ़िक्र मत करिए – मैं उसका दोस्त उसके साथ हूँ और अगर ऐसा है तो बहुत जल्दी मैं उसे मेरठ लेकर आता हूँ आपसे मिलाने |”
“मुझे इंतजार रहेगा – उसका ख्याल रखना |”
अनिकेत उनकी नम आवाज से जॉन और उनके बीच के रिश्ते की नमी को अच्छे से समझ गया जिससे संतुष्ट होता वह उन्हें आने का वादा करता कॉल कट कर देता है| पर असंतुष्टि इस बात की थी कि अबभी वह उसके गायब होने का राज़ नही समझ पाया था और न ही फेनी का कोई सुराग ही लगा पाया था|
जैसे तैसे बीतीरात और उबाऊ सुबह में पलक अकेली बैठी और भी उदास हो उठी| माँ से भी हाल चला ले चुकी थी वे अभी रास्ते में थी और अपने ग्रुप के साथ वे बहुत खुश थे जिससे जल्दी ही उनसे बात करते वह फोन काट देती है| फिर झलक को मिलाने का सोचती सोचती रह जाती है कि क्यों बेवजह उसे परेशान करे और कही उसे महसूस हो गया कि वह अकेली परेशान हो रही है तो पक्का सब छोड़ छाड़ कर उसके पास आ जाएगी और उनकी ट्रिप उसकी वजह से बर्बाद हो जाएगी| ये सोचती वह बेमन से कांफ्लेक्स दूध का नाश्ता करके गार्डन में बैठी यूँही मोबाईल की एड्रेस बुक स्क्रोल कर रही थी कि सहसा एक नाम पर उसका ध्यान अटक गया| वह यूँ स्थिर होकर उस नंबर को देखने लगी कि उसे क्रोस करके आगे न बढ़ सकी| वह नम्बर अनामिका का था| इन पिछले तीन सालों से उसने और न ही अनामिका से ही उससे कोई सम्पर्क रखा था| अचानक उनके बीच की दुनिया इतनी बड़ी ही गई कि वे सहेलियाँ इस संसार में खो सी गई|
आखिर उसकी गलती क्या थी जो उसने उससे संपर्क नही किया अब पलक ज्यादा कुछ न सोचकर तुरंत ही उसे कॉल लगा लेती है| रिंग लगातार जाती रही| पलक हर रिंग पर अपने मन में ये सोचती हुई खंगालने लगी कि आखिर वह उससे बात क्या करेगी ? कैसे हाल चाल लेगी ? और अगर इस रिंग में फोन नही उठा तो पक्का वह उसे फिर कॉल नही करेगी| इन्सान का अहम उसे बहुत कम दायरा देता है अपने रिश्तो को सँभालने का| और यही कुछ उस समय पलक के साथ भी हो रहा था|
कॉल बस कटने ही वाली थी कि दूसरी ओर से फोन उठा लिया जाता है|
“पलक !!”
“अनु.!!”
कुछ पल उनके बीच मौन गुनगुनाता रहा जैसे हर अगला शब्द उबरते हुए खुद में सांस भर रहा हो|
“कैसी है तू और तेरा….|” पलक अपनी बात अधूरी छोड़ देती है|
“बेबी बॉय अच्छा है |” अनामिका इतने समय बाद भी अपनी सहेली की अधूरी बात समझ गई| आखिर डिलवरी के बाद चाहकर भी उनमे संपर्क नही हो पाया था|
“और तू बता तू कैसी है और हमारे जीजा सा कैसे है और झ….|” अनामिका कहते कहते रुक गई|
पलक भी उसकी अधूरी बात समझती हुई कह उठी – “अच्छे है अनिकेत और झलक भी – |”
इस पर अनामिका मुस्करती हुई कहती है – “देख न इतने समय बाद भी हम एकदूसरे की मन की थाह समझते है |”
इस पर दोनों एकसाथ मुस्करा उठती है|
“बहुत याद करती थी तुम दोनों को पर जब तूने ही कोई संपर्क नही किया तो मेरी भी हिम्मत नही हुई कि शायद झलक की वजह से तू मुझसे नाराज़ हो |”
“रात गई बात गई – जाने दे न – हम आगे की बात करे तो अच्छा है – |”
पलक की बात पर वह भी खुश होती हुई कहती है – “सच्ची – दिल को दिल की राह है – पता है काफी समय बाद आज सुबह ही हम लखनऊ आए है और इधर तेरा फोन आ गया |”
“क्या सच्ची !! – तो आजा न मिलने |”
“मिलने !!” अनामिका थोड़ा अचकचा गई|
“हाँ मिलने – अब कोई बहाना मत बनाने लगना – बस जल्दी से आजा |”
इसके बाद सच में अनामिका बहाना खोजती रही पर उसकी एक न चली या वह खुद भी यही चाहती थी कि आज उसका कोई बहाना काश काम न करे और वह अपनी सखी से मिल सके|
इसी के साथ पलक को हामी भरती वह आने का वादा कर देती है उससे|
अनामिका के आने का सुनकर पलक में कुछ अगल ही पहले वाला जोश सा आ जाता है जिससे वह जल्दी जल्दी नहाकर अब किचेन में कुछ बनाने में लगी थी कि उसी पल दरवाजे की घंटी बजी तो बस वह असब्र होती दरवाजे की ओर दौड़ लगा देती है फिर अपनी हालत को याद करती जल्दी ही अपने कदम छोटे करती हौले से दरवाजा खोलती है| मुख्य गेट पर अनामिका खड़ी थी| बिलकुल वैसी ही जैसी तीन साल वह उसे छोड़कर गई थी| वही मुस्कराता चेहरा जो उनकी दोस्ती की जान था| कुछ पल को दोनों दरवाजे पर खड़ी एकदूसरे को देखती रही फिर अगली सांस में होश में आती हुई झट से एकदूसरे के गले लग जाती है|
“ओह पलक कितनी प्यारी लगने लगी है तू |”
अनामिका से गले लगती उसका चेहरा बाहर की ओर था जहाँ उसकी नज़र एक अप्रत्याशित दृश्य पर ठहर कर रह गई| वह दृश्य वहां क्यों था नही पता पर उसका वहां होना पलक के चेहरे की मुस्कान गायब कर गया| वह लगातार उसी की ओर देख रहा था| पर आँखों में चढ़े काले चश्मे से उसकी आँखों के भाव को पढ़ पाना मुश्किल था लेकिन उसकी उसके ओर मुड़ी गर्दन उसे हिचकिचाहट से भर गई|
मुख्य गेट पर एक एसयूवी की ड्राइविंग सीट पर बैठा नवल उन्ही की ओर देख रहा था| वह वहां क्यों आया !!
पलक से हटते तभी अनामिका का ध्यान भी उस ओर गया और वह हिचकिचाती हुई जल्दी से नवल की ओर देखती हुई कह उठी – “बन्ना सा हमे यहाँ देर लगेगी आप गाड़ी भिजवा दीजिएगा – हो सकता है यहाँ से हम बाज़ार चले जाए |”
“जैसा आप चाहे भाभी सा |” एक ठन्डे से स्वर में कहता नवल तुरंत ही अपना चेहरा सामने की ओर करता कार आगे बढ़ा लेता है|
उस पल अनामिका भरी अफ़सोस से कह उठी – “वो हम यहाँ के लिए निकल रहे थे तो हमारी कार आने में देर थी तो कुंवर सा हमे छोड़ने चले आए |”
उस पल अनामिका को बहुत अजीब लगने लगा लेकिन पलक उतने ही हलके भाव में कह उठी – “चल छोड़ न – कैसे भी आई पर आई तो – नही तो कार न होने का बहाना मार कर बैठ जाती|”
इस बात पर दोनों सखियाँ कसकर हँस पड़ी| इसके अगले ही पल वे इतनी सारी बातें करने लगी मानो उनके बीच के तीन साल कही हवा हो गए हो| वे कभी दूर हुई ही नही था|
आने वाला पल क्या बदलेगा उनके जीवन में जानने के पढ़ते रहे….
क्रमशः…..