
डेजा वू एक राज़ – 25
वे दोनों सखियाँ साथ में बैठी अपना गुजरा वक़्त खंगालने लगी| जहाँ पलक ने उसे अनिकेत और उसका यूके से लौटना फिर दिल्ली में उसकी नौकरी और अब गोवा किसी काम से जाना बताया वहीँ अनामिका भी उसे अपने घर का हाल देने लगी| उसने बताया कि वे सभी अब सोन महल में ही रहते है सिवाय शौर्य के वह वैजयंती संग पैरिस में रहते अपना कारोबार देखता है और कभी कभार ही जैसल आता है| पलक सब सुनती मन ही मन सोच रही थी कि इन तीन सालों में उन सबके जीवन कितने बदल चुके थे| जैसे वक़्त लम्बे लम्बे डग भरता हुआ चुपचाप उनके पास से गुजर गया| नवल और नंदनी का बेबी बॉय हो गया था तो वही अनामिका का बेबी बॉय भी अब दो साल का हो रहा था जिसका उसे अभी अभी उस कार्ड से पता चला जो उसकी ओर बढ़ाती हुई वह कह रही थी –
“इसी लिए लखनऊ आई थी – हमारे कुंवर अबकी दो साल के होने जा रहे है जिससे उनके नामकरण संस्कार के साथ उनका जन्मदिवस का भी उत्सव रखा गया है – उसमें तू जैसल आएगी न पलक !” गहरे प्रश्नचिन्ह के साथ वह पलक की ओर देखती है जो उस कार्ड को हाथ में ले चुकी थी और उसे देखती हुई उत्साह से कह उठी –
“बहुत प्यारा कार्ड है –!” वह कार्ड एक बॉक्सनुमा था जिसमे कुछ छोटे छोटे चोकोलेट के गिफ्ट के साथ एक नन्हा बेबी डमी भी था जो उस कार्ड का मुख्य आकर्षण था जिसे हाथ में लेती पलक मन ही मन मुस्करा उठी थी|
“तू बेबी को क्यों नही लाई – देख तो पाती मैं !”
पलक के शिकायती लहजे पर अनामिका मुस्कराती हुई कहती है – “बस दो दिन के लिए लखनऊ आई थी तो माँ सा ने उनके सफ़र में परेशान होने के डर से लाने नही दिया – बस अब कल वापस चली जाउंगी |”
“वाह तो अच्छा ही हुआ जो मैंने तुझे फोन कर लिया |”
“तभी तो कहते है दिल को दिल की राह होती है|”
वे साथ में समवेत स्वर में खिलखिला उठी थी|
तभी तेज डोरबेल की आवाज ने उन दोनों का ध्यान साथ में बाहर की ओर खींचा| डोर बैल लगातार बज रही थी पलक सोचती हुई जल्दी से उठी कि जाने कौन इतने अग्रेसिव तरीके से बेल की ऐसी तैसी कर रहा है| पलक तेज कदम से बाहर की ओर निकली तो अनामिका भी धीरे से उठती हुई उसके पीछे चल दी|
पलक मुख्य गेट को खोलती हुई सामने आश्चर्य से देखती हुई बोल उठी – “झलक !!”
उसकी नज़रो के सामने झलक और उसके पीछे खड़ा रचित था जो उसे मनाता हुआ दिख रहा था| पलक उस पल ठहरी उन दोनों को देखती रही|
रचित एक तरह से मिन्नत करते हुए कह रहा था – “झलक बस गिन कर दो दिन की ही तो बात है – आता हूँ न वापस मैं – वादा है मेरा |”
“अगर ऑफिस का ही काम देखना था तो क्यों प्रोग्राम बनाया – तुमने ही तो कहा था – साथ में बाहर चलेंगे और बस एक दिन हुआ नहीं कि चल दिए ऑफिस के काम से |”
“अरे तो बेंगलुरु थोड़े जा रहा हूँ – बस दिल्ली ही जाना है – अब क्या करूँ मैं यहाँ हूँ उन्हें पता था इसलिए एक छोटे असाइंमेंट के लिए खुद बॉस ने रिक्वेस्ट की तो बताओ कैसे मना कर देता – बस दो दिन की ही तो बात है !”
मनाता हुआ रचित उसका हाथ पकड़कर रोकना चाहता था पर गुस्से में मुंह बनाती झलक उसकी बात अधूरी सुने ही दरवाजा खुलते तेजी से अंदर की ओर चल दी| पलक भी उसे रोक न पाई|
अब बेचारा सा चेहरा लिए रचित पलक की ओर देखने लगा जिसपर पलक हलके से मुस्कराती हुई कह उठी – “तुम्हारी आधी उम्र लगता है उसे मनाने में निकल जाएगी !”
“और बाकी आधी !!” अवाक् रचित यूँही पूछ बैठा|
“बाकी आधी उसकी रूठने में |” कहती हुई पलक बिन आवाज के हँस पड़ी जबकि रचित झेंपा सा खड़ा रह गया|
झलक जिस तेजी से अन्दर की ओर गई अचानक अनामिका को देख अचकचा गई| उसका वहां होना उसने उम्मीद ही नही किया था| वह एक सरसरी हलकी नज़र अनामिका पर डालती है जबकि अनामिका अपनी भरपूर नज़र से उसे देखने लगी| ऐसा लग रहा था उस पल वह पलक की तरह उससे गले मिलना चाह रही थी जैसा वे सखियाँ हमेशा मिलकर करती थी पर झलक के रूखे हाव भाव से अनामिका अपनी जगह बुत बनी रह गई और झलक उसे जानकर अनदेखा करती आगे बढ़ गई| अनामिका समझ गई कि उनके बीच की गहरी खाई अब शायद ही कभी भरे|
झलक चली गई और अनामिका वही खड़ी रह गई पर रचित की निगाह उस पर पड़ते वह उसकी ओर देखने लगा| उस पल दोनों की निगाह मिली और रचित अपनी जगह खड़े खड़े सम्मान से उसका अभिवादन करता कह उठा –
“खम्बा घणी बाई सा – हुकुम थे किया हो ?”
जवाब में अनामिका भी मुस्करा कर कहती है – “घणी घणी खम्बा – मैं नीके हूँ – बहुत दिन बाद दिखे रचित – थाई तो जैसल भूल ही बैठे – कभी आए ही नहीं बस थारा हाल दिग्विजय जी से मिल जाता है |”
इस पर बस रचित हलके से मुस्करा देता है| तभी घर के अन्दर से कुछ तेजी से गिरने की आवाज आती है जिसे सुनते रचित और पलक एकदूसरे को देखते अच्छे से समझ गए कि ये झलक के गुस्से का इंडिकेशन है इसपर पलक रचित की ओर देखती हुई कहती है जिसके चेहरे पर अब कुछ परेशानी के हाव भाव उतर आए थे|
“तुम न उसकी फ़िक्र मत करो उसे मैं संभाल लुंगी – तुम आराम से अपने काम पर जाओ – बिलीव मी – हजारो बार से देखती आ रही हूँ उसका ज्वालामुखी विस्फोट |”
इस पर रचित के चेहरे पर अब हल्का सुकून तैर गया जिससे वह दोनों से विदा लेता तुरंत अपनी कार की ओर बढ़ गया|
पलक अब गेट बंद करके अनामिका की ओर आती है जो भरे संकोच से खड़ी थी जैसे उसे अहसास हो रहा था कि इस वक़्त उसे वहां नही होना चाहिए जबकि पलक उतने ही सहज भाव से उसकी तरफ आती हुई कह रही थी –
“चलो न अनु अंदर चलते है |”
पलक आगे कदम बढ़ाना चाहती थी पर अनामिका वही खड़ी आँखों के भाव से झलक की ओर इशारा करती है जिसे पलक समझ गई|
“झल्लो की बात का बुरा मान गई – क्या इतने समय बाद भी अपनी सखी को नही पहचानती – उसका गुस्सा उबलते दूध सा है – ज्यो चढ़ता है त्यों उतर भी जाता है -|”
“नही पलक उसकी आँखों में सिर्फ गुस्सा नही था – कोई शिकायत भी थी |”
अनामिका के आद्र स्वर पर पलक उसके कंधे पर हाथ फैलाती हुई कहती है – “अनु – क्या सोच रही है – सब गुजरी बात हो गई और फिर तू किस बात की कसूरवार है – छोड़ न – वो सब बीता हुआ कल था और अब तो उससे बहुत आगे सब निकल गए है – उन बातो का तो अब कोई औचित्य ही नही बनता – चलो – आओ अन्दर बैठते है|”
पलक उसे अन्दर चलने को कह ही रही थी कि गेट के पार कोई कार रुकने की आवाज से फिर से उन दोनों का ध्यान बाहर की ओर जाता है| अनामिका अपनी कार पहचानती हुई कहती है –
“पल्लो गाडी आ गई – अब नही रुक सकती वरना ये कार्ड देने का काम अधूरा ही रह जाएगा फिर कल वापसी भी है न |”
“पर अनु – तुम अभी तो आई थी !”
“हम जल्दी फिर मिलेंगे और फिर तुम आओगी न जीजा सा के साथ जैसल !”
अनामिका की बात पर आँखों से हाँ कहती पलक अब गले लगती उसे मुस्कराकर विदा कर देती है|
अनामिका भी उससे भरे मन से विदा लेती चली जाती है| अनामिका के जाते पलक फिर अंदर की ओर आती है जहाँ झलक बिस्तर पर औंधे लेटी तेजी से अपने पैर हिला रही थी|
ये देख पलक उसके पैर पकड़कर रोकती हुई कहती है – “दिमाग के साथ पैर भी कितना तेज चलता है – कितनी बार मना किया है कि ऐसे मत हिलाया कर पैर – घर में अशांति फैलती है|”
“हाँ तो पहले से बहुत शांति है न !” एकदम से भमकती हुई झलक उठती हुई कहती है|
“ओहो ऐसी क्या अशांति छा गई – रचित ने बोला न बस दो दिन की बात है |”
“ये अनामिका क्यों आई थी यहाँ ?”
अनु को अनामिका कहने से ही पलक झलक के तेवर से वाकिफ हो गई जिससे उसे समझाती हुई कह उठी – “मैंने बुलाया था तभी मिलने आई थी और आ भी गई तो कौन सी आफत हो गई – जो कुछ हुआ उसमे उसकी क्या गलती थी और गुजरे वक़्त को यूँही लेकर बैठे रहेंगे तो हम कभी अपने जीवन में आगे नही बढ़ पाएँगे – तुमने देखा रचित को उसने कितने बड़प्पन से उसका अभिवादन किया और यही शिष्टाचार की मांग है – झल्लो हरदम छोटी छोटी बात को लेकर यूँ बचपना नही करते |”
पलक उसे समझाती उसके पास बैठती हुई कह रही थी|
“वो तुम्हे देखकर बहुत खुश हुई – हाल चाल भी पूछ रही थी तुम्हारा इसमें क्या गलत था !”
“गलत !!” झलक अब अपने मन का उबलता वेग और नही रोक सकी| बिफरती हुई कह उठी – “अनु का आना बुरा नही था पर उसे देखते जैसे सब कुछ किसी आंधी सा मेरे मस्तिष्क में कौंध गया – वो सब बुरी यादें पल में मेरी आँखों के आगे जीवन हो उठी जिन्हें सिरे से मैं भूल जाना चाहती हूँ |”
“ऐसी क्या बुरी यादें !! अब रचित है न तुम्हारे पास |” पलक अपनी बातों से उसे संभालना चाहती थी|
“तुझे क्या पता तू तो एक तरह से वहां थी ही नहीं तो क्या पता तुझे कि उस पल मुझपर क्या क्या गुजरा – हर पल लगता जैसे मैं छली जा रही हूँ पर सब बेबसी से देखती रही – कितनी अकेली हो गई थी मैं वहां – अन्दर ही अन्दर घुटती जा रही थी – क्या इतनी आसानी से सब भूल पाऊँगी मैं !! बस इसलिए नही चाहती मैं उसे या उससे जुडी किसी भी याद को देखना |”
“झल्लो….!!” झलक को बिखरते देख पलक उसे अपनी बाँहों के बीच समेटती हुई पुचकारने लगती है – “अच्छा ठीक है अब ऐसे अपना मूड मत खराब कर |”
दोनों बहने यूँही देर तक एकदूसरे के गले लगी एकदूसरे की मौजूदगी को महसूसती रही|
“वैसे जो होता है अच्छा के लिए ही होता है – पता है सबके जाने से मैं बहुत अकेलापन फील कर रही थी – अच्छा ही हुआ जो तू वापस आ गई|” पलक उसके बालो को संभालती हुई उसके कानो के पीछे करती हुई कहती है|
ये सुन झलक एकदम से उससे अलग होती उसका चेहरा देखती हुई कहने लगी – “ऐसा था तो बताया क्यों नही – मैं कही नही जाती |”
“और तेरी ट्रिप जो खराब होती वो !! तब तो तुम दोनों ही बैठे मुझे घूरते रहते |”
“हूँअ रचित की तो बात ही मत करो – उसे तो अपना ऑफिस मुझसे ज्यादा प्यारा है – ये जो प्रेमी होते है न पता नही हसबैंड बनते न इनका प्रेमीपना बस हवा ही हो जाता है – इससे तो कल का प्रेमी रचित ही अच्छा था जो एक फोन पर दौड़ा चला आता था |”
झलक की उदास आवाज पर पलक भी गहरा श्वास छोड़ती हुई कहती है –“सच्ची कहती है – मुझे भी बिलकुल यही लगता है – ये प्रेमी ही अच्छे होते है – हस्बैंड बनते जाने क्या हो जाता है इन्हें |”
इस बात पर दोनों नज़र उठाकर एकदूसरे को देखती है फिर आपस में ताली मारती कसकर ठहाका मारकर हँस पड़ती है|
अब उन दोनों को एकदूसरे का साथ मिलते वे सारी उदासी भुला चुकी थी जिससे अब उनके चेहरे पर बड़ी वाली मुस्कान खेल रही थी|
अब धीरेधीरे शाम होने जा रही थी और अब दोनों का भूख से बुरा हाल होने लगा था जिससे झलक पलक के कंधे पर झूलती हुई कहने लगी –
“पल्लो अब बहुत जोरो की भूख लगी है – |”
“तो बता क्या बनाऊ –?”
“कुछ भी – गुस्से में तो बाहर कुछ खाया ही नहीं – रचित कितना कहता रहा पर अब अगर जल्दी कुछ नही मिला न तो मैं दरवाजे खिड़की सब खा जाउंगी |”
झलक की बात पर हँसती हुई पलक कहने लगी – “न बाबा ऐसा न करना – चल बता तो क्या खाएगी ?”
“कुछ भी जो जल्दी बन जाए और तीखा जबरदस्त हो और झट से मुंह में आते घुल जाए |”
“टू मिनट मैगी !!” दोनों एकसाथ बोलती कसकर खिलखिला उठी|
अब दोनों के चेहरे पर बेमियादी हँसी थिरक रही थी| वे साथ में किचेन की ओर बढ़ गई| पलक तुरंत किचेन में मैंगी ढूंढती हुई उसे बनाने का उपक्रम करने लगी जिसपर झलक तुरंत बोल उठी –
“अब तू न इसमें सब्जी वब्जी डालकर मम्मी वाला नाटक मत करियो – बता दे रही हूँ – मुझे न बस ओरिजनल मसाला वाली खानी है |”
“अरे थोड़ा बहुत तो डालने दे |”
“न बिलकुल भी नही – तू भी न बस मम्मी जैसी होती जा रही है – बस किसी न किसी बहाने से सब्जी खिलाने का तिग्दम करने लगती है पर मुझे न बस मसाला मार के खानी है|”
इस पर पलक हंसती हुई सच में सारी सब्जी हटाकर उबलते पानी में पैकेट खोलकर डालती हुई कहती है – “ले अपनी पूरी अन्हेल्दी मैगी |”
इस पर दोनों साथ में हँस पड़ती है|
“पता है ऐसा लग रहा है जैसे ये सब पहले भी हो चुका है – क्या तुझे नही लग रहा !”
झलक की बात पर पलक भी उसकी हाँ में हाँ मिलाती हुई कह उठी – “हाँ सच में – बिलकुल यही लग रहा है मुझे और पता है इस चीज को क्या कहता है|”
पलक पैन में चम्मच डालकर हिलाती हुई कहती रही – “इसे डेजा वू इफेक्ट कहते है – ऐसे ही जाने कितने अजीब अजीब तरह के फैक्ट्स है जिनके बारे में तुझे पता भी नही होगा…|”
“और ये सारा ज्ञान हमारे परम ज्ञानी पंडित जी से तुझे मिला है – पता है पता है – तेरे दिमाग के वही आईसी है |”
झलक की बात पर पलक को हँसी आ जाती है| तभी हँसते हँसते पलक का ध्यान झलक के पीछे के झरोखे से बाहर के मौसम पर जाता है| जहाँ अब अँधेरा सा दिखने लगा था|
“अरे झल्लो देख न अचानक मौसम कैसा बदल गया – शाम को ही रात हो गई जैसे |”
झलक जो स्लैप पर बैठी थी अब पीछे मुड़कर देखती हुई कह उठी – “हाँ सच में |” अब वह बाहर ही देख रही थी जबकि पलक पैन पर अपना ध्यान लगाए थी|
“आज न लग रहा है बड़ी जोर की बारिश होगी – अच्छा हुआ जो तू आ गई नही तो अकेले कैसे रहती ?”
“तो क्या आज भी तू डरती है मेरी डरपोक्की |” इस बार पलक के पास आती उसके कंधे पर झूलती हँसती हुई कह उठी|
इस पर पलक झूठ मुठ का मुंह बनाती हुई मैगी दो अलग अलग बाउल में परोसने लगी |
“मुझे लगा था पंडित जी के साथ रहते हमारी पल्लो थोड़ी बहादुर हो गई होगी पर तू तो…|” अपनी बात अधूरी छोड़कर झलक कसकर हँस पड़ी थी|
“अच्छा जब तू अकेली हो और ऐसे मौसम में लाईट चली जाए तो…!” पलक ने ऐसा कहा और उसी वक़्त अचानक से सब तरफ अँधेरा हो गया|
उस पल बाहर से लेकर घर के अंदर तक अँधेरा छा गया जिसमें अजीब सी ख़ामोशी के साथ मौन सरसराहट वातावरण में सनसना गया| दोनों समझ ही नही पाई और एकदूसरे का हाथ पकडे खड़ी रह गई कि पलक झपकाते तुरंत ही लाईट आ गई जिससे दोनों अपनी हालत पर फिर एकसाथ कसकर हँस पड़ी|
पलक अब बाउल को ट्रे पर रखने लगी थी तो झलक का ध्यान उसकी पीठ की ओर के बाहर के झरोखे पर था जहाँ गुमसुम मौसम में बिजली सी चमक गई और उस एक क्षण में झलक की आँखों ने कुछ अप्रत्याशित सा देखा जिससे उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया और वह धीरे से बोल उठी – “महामाया !!”
झलक जहाँ सहमें भाव से खड़ी थी वही पलक हँसती हुई कह रही थी – “बस बस आज के लिए बहुत हो गया डराना – अब नही डरने वाली तेरी बातों से |”
पलक अभी भी हँस रही थी जबकि झलक मन ही मन फिर बुदबुदा उठी. ‘महामाया !!!’
क्रमशः…….