
डेजा वू एक राज़ – 27
कुछ सोचकर अनिकेत डॉक्टर से कहकर जॉन को सेमी प्राइवेट से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करा लेता है| इस समय रात का समय था इसलिए वह निश्चिंत था कि होटल में उसे कोई चेक करने नही आएगा इसलिए अभी उसने यही रुकने की सोची ताकि आगे क्या करना है वह तय कर सके|
झलक तब से समझ नही पा रही थी कि उसने जो देखा वो उसका कोई भ्रम था या सच में उसने महामाया का साया देखा| और वैसे भी वो कहाँ उस साए को आसानी से भूल सकती थी| वह खौफनाक चेहरा जिसकी हर आहट में डर, दहशत और जुगुप्सा भरी थी|
“अरे क्या सोचने लगी – कही तुझे ये तो नही लगने लगा कि मैंने मैंगी ज्यादा लेली जैसा तू हमेशा लड़ते वक़्त मुझसे कहती थी|” अपनी बात पर ही हँसती हुई पलक बोलती रही – “सच्ची मैंने बिलकुल आधा आधा नाप कर दिया है|”
पलक की बात का झलक पर न के बराबर असर हुआ| वह अभी भी अपने विचार में गुम थी| जिससे पलक मजाक में उसकी बांह में चुटकी भरती हुई कहती है – “ऐसे बैठी है जैसे सच में महामाया देख ली |”
झलक अवाक् पलक का चेहरा देखती रह गई पर इसके विपरीत पलक हँसे जा रही थी|
“और अगर देख लिया हो तो !!” झलक सधे भाव से कहती है|
“अब न बहुत हो गया – जब तक मैं डर कर चिल्लाने न लगूं तब तक तुझे चैन नही मिलेगा क्या !! हमेशा ऐसा ही करती है|” झलक के बदले हाव भाव पर ज्यादा ध्यान न देती हुई पलक खाते खाते अपनी बात कहती रही – “लेकिन जान ले अच्छे से मैं अब आसानी से नही डरने वाली क्योंकि मुझे अच्छे से पता है वो महामाया मैडम नही आने वाली – जब तक उसका आवाहन नही किया जाएगा तब तक वो दुबारा नही जागने वाली और फिर बिना शरीर के उसकी शक्तियां भी बेकार रहेंगी इसलिए ऐसा होगा ही नही क्योंकि राजगुरु तो अपनी ही भूलभुलैया में खोया है – उसे न समय का पता होगा न काल का – समझी न – |”
अबकी पलक की बात पर झलक मुस्करा दी शायद उसने भी अपने मन को समझा लिया कि वो उसका भ्रम होगा|
“हाँ समझ गई – अब बहन थोड़ी मैगी और दे न |” कहती हुई शरारत में उसकी प्लेट से मैगी लेने लगी जिससे पलक तुरंत चिहुंक पड़ी|
वे उस पल इस बात पर वैसे ही हँस पड़ी जैसे शादी से पहले वे आपस में शरारत करती हुई खिलखिलाती थी|
अनिकेत हॉस्पिटल से इस तरह बाहर निकला कि किसी ने उसे बाहर आते नही देखा अब वह हॉस्पिटल से सीधा मेंटल हॉस्पिटल की ओर चल दिया था जहाँ उसे जॉन मिला था अब उस जगह से ही उसे कोई क्लू मिलने की उम्मीद थी पर इस बार वह सामने से नही बल्कि छुपकर उस हॉस्पिटल ने जाना चाहता था|
हॉस्पिटल पहुंचकर वह वाइट अप्रेन और गले में इस्थेसोकोप डाले सामने से प्रवेश करता है जिसका इंतजाम उसने हॉस्पिटल में ही कर लिया था| वह इस आत्मविश्वास से सामने से अंदर की ओर गया उससे वहां मौजूद किसी भी वार्ड बॉय को उसपर जरा भी शक नही हुआ कि वह यहाँ का डॉक्टर नही है|
अनिकेत उस दिन मेंटल हॉस्पिटल का रास्ता देख चुका था इसलिए सीधे अन्दर परिचित की तरह जाता गया| हाँ ज्योंही कोई अन्य डॉक्टर दिखता वह तुरंत खुद को छुपा लेता| आधी रात का समय था जिससे कम ही डॉक्टर राउंड पर थे और वार्ड बॉय भी उंघते नज़र आ रहे थे| जिससे बिना बाधा के वह हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट के केबिन से गुजरा और एक बार फिर उसकी नज़र डॉक्टर के नेम बोर्ड पर गई| जिसे दो पल रूककर ध्यान से देखता हुआ अनिकेत अब अंदर के क्रिटिकल वार्ड की ओर बढ़ने लगा| तभी विपरीत दिशा से उसे किसी के आने की आहट मिली जिससे गलियारे के कम रौशनी वाले स्थान पर वह खुद को छुपा लेता है|
वह छुपकर देखता है कि दो वार्ड बॉय आपस में बात करते हुए आ रहे थे| अनिकेत अब उनकी बात ध्यान से सुनने लगता है|
पहला उबासी लेता हुआ कह रहा था – “चलो झंझट ही खत्म सारे अपने आप ही चले गए – नहीं तो फालतू की उन पागलो की ड्यूटी बजाते रहो – मन वायट आशिल्लें(मेरा दिमाग खराब होता था) आई शपत |” वह गर्दन झटकते हुए कहता है|
“बस तेरा दिमाग खराब होता था अपन को लगता है साला फ़ोकट में दिमाग का भजिया बनता था|” दूसरा भी उसके सुर में सुर मिलाता हुआ कहता है|
ये सब छुपकर सुन रहा अनिकेत उलझ जाता है कि ये जाने किसकी बात कर रहे है आखिर कौन चला गया !! इस उत्सुकता को शांत किए बिना अब उससे नही रहा गया जिससे उनकी बात सुनने वह उनके पीछे पीछे छिपकर चलने लगा|
“पण तुझे ये अजीब नही लगता कि अचानक से बीस तीस आदमी अचानक से गायब हो गए और किसी के कान में जू तक नही रेंगी – आइसा होता है क्या भला आखिर वो यहीच के तो पेशेंट थे|”
“यहीच के कैसे |” वह तुनकता हुआ अब रूककर उसकी तरफ देखता हुआ कहता है – “बिना नाम पता यहाँ एड्मिड थे – कहाँ से आए या कौन उन्हें यहाँ छोड़ गया किसी को कुछ नही पता और अचानक एक दिन गायब भी हो गए – वो भी सारे के सारे – किसी को इसका भी कोई फरक नही पड़ा – जैसे यहाँ के पेशेंट लोग थे ही नही !”
“मुझे न लगता है कुछ तो झोल जरुर ही होगा – और तुझे नही लगता ये – जब से नया इंचार्ज डॉक्टर साहब आया है तभी से यही हो रहा…|”
“चुप चुप साले – नौकरी से निकलवाएगा |” पहला वार्ड बॉय दूसरे को रोकता हुआ घबराकर अपने आस पास देखते हुए कहने लगा – “ये बात जबान पर भी नही लाने का – चाहे नया आए या पुराना निकाला जाए – सब बड़ा लोग बड़ी बात – अपन लोग तो छोटी मछली है जो फ़ोकट में बड़ी के चक्कर में कुचल दी जाती है – चुप रहने का समझा|”
वह भी घबराहट में हाँ मे सर हिलाता हुआ कहता है – “हाँ अपने को क्या – अब सारे मरीज गए तो अपना भी यहाँ का काम खत्म – चल |” कहते हुए अंगूठे से मुंह पर इशारा करता है जिसे समझते दूसरा भी मुस्करा कर उसके साथ चल देता है| दोनों हॉस्पिटल के पिछले दरवाजे से निकल कर जाने लगे| अनिकेत उनके इशारे से समझ गया था कि दोनों पीने के इरादे से गए है इसलिए वह उनके विपरीत चल देता है| ऐसा करते वह अपने कंधे का इस्थेसिकोप हिलाकर ठीक करता हुआ किसी निश्चित दिशा में देख रहा था जैसे वह समझ गया हो कि अब उसे आगे क्या करना है|
आधी रात हो चुकी थी पर पलक झलक की आँखों में नींद का कतरा भी नही था| वे दुनिया जहाँ की बाते कर रही थी पर किस्से थे कि खत्म ही नही हो रहे थे और न ही नींद आ रही थी| जिससे उबते हुए झलक पेट बल लेटी लेटी हवा में पैर हिलाती हुई अपना मोबाईल चलाने लगती है| पलक जो लेटी हुई ऊपर छत को घूर रही थी अचानक झलक को हिलाती हुई कहती है –
“ये तू तब से क्या कर रही है मोबाईल में – !”
“तू अब सो जा न |’ झलक उसका हाथ वापस करती हुई कहती है|
“ये बता तू कर क्या रही है मोबाईल में ?’ उसकी तरफ करवट लेती हुई उसके मोबाईल में झांकती हुई कहती है – “क्या है ये ?”
“अरे दिमाग खराब हो रहा है तब से मेरा ब्लॉग ही नही खुल रहा – कब से कोशिश कर रही हूँ |”
“बाहर बारिश हो रही है तो खराब मौसम में नेट तो स्लो हो ही जाता है |”
“नही न बात नेट ही नहीं – पासवर्ड की है – मैंने चेंज भी नही किया और ये बता रहा है यू हैव चेंजड योर पासवर्ड टू डेज एगो |”
“तो किया होगा तूने और तुझे याद नही होगा|”
“मुझे अच्छे से याद है मैंने पिछली बार पासवर्ड तेरे दिल्ली आने के टाइम चेंज किया था जब मैं असम में थी|”
“अच्छा तो रचित ने किया होगा !”
“नही न – उसे भी इसका पासवर्ड नही पता |”
“तो ऐसा है आप मान ले कि आपका ब्लॉग हैक किया जा चुका है |” कहती हुई पलक हँसी उड़ाती हुई हँस रही थी|
पर ये बात सुनते झलक का चेहरा सपाट बना रहा जबकि पलक होंठ दबाकर अपनी हँसी किसी तरह रोकती हुई बोलती है – “सोच तेरा ब्लॉग कितना इम्पोर्टेंट हो गया कि किसी ने हैक भी कर लिया !”
“ये हँसी की बात नही है पल्लो – सच में मुझे ऐसा ही लगता है|”
“हट पागल – कोई क्यों करेगा ऐसा ब्लॉग हैक जिसमे बस गुमशुदा लोगो की इन्फोर्मेशन है |”
“मुझे क्या पता पर संभावना तो यही बनती है न – मैं रचित को कॉल करती हूँ – वो आईटी एक्सपर्ट है |”
कहती हुई झलक तुरंत फोन बुक खोलकर नंबर सर्च करने लगी तो पलक झट से मोबाईल की स्क्रीन पर हाथ रखती हुई कहती है –
“पागल है क्या – आधी रात को क्यों फोन कर रही है – बेचारा सो रहा होगा |”
“तो क्या उठ जाएगा – मैं बीवी हूँ और कभी भी तंग कर सकती हूँ |”
“फिर भी झल्लो – ये कोई वक़्त है कॉल करने का – तुझे नींद नही आ रही तो उसकी नींद क्यों उड़ा रही है|”
तभी झलक के चेहरे पर कोई शरारती चमक खिल उठी और वह पलक की ओर मुड़ती हुई कहने लगी –
“ऐसा कर तू अपने पंडित जी कॉल लगा और मैं रचित को – देखते है कौन पहले कॉल उठाता है – वही जीता|”
“मतलब ये आधी रात को कैसा गेम खेलने की सूझी तुझे |”
“प्यार का गेम – सोच न जिसने पहले रिसीव किया वही सच्चा वाला बड़ा प्रेमी |”
“नहीं मैं ऐसा नही करने वाली |”
“डरती है तू |”
“डरना क्या इसमें – मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है |”
“तो मिला फोन और उड़ा दे उनकी नींद |”
“पर ..|”
“यार पल्लो – प्यार में पर वर नही चलता – बस प्यार ही चलता है -|”
“क्या सच्ची – मुझे ऐसा करना चाहिए !”
झलक अबकी अपनी मुस्कान को होंठ के बीच करती बस हाँ में सर हिलाती है|
अबकी पलक भी अपने होंठ के किनारे दबाती शरारत में अपना मोबाईल उठा लेती है| दोनों अब उठकर एकदूसरे के सामने बैठी अपने अपने मोबाईल की स्क्रीन एकदूसरे की निगाह के सामने किए साथ में कॉल लगाती है| इस वक़्त दोनों के चेहरे पर शरारती भरी मुस्कान खिल रही थी| एक बार दो बार रिंग जाती रही और उसी क्रम में दोनों के चेहरे की मुस्कान भी हलकी होती गई| एक बार की पूरी कॉल जाकर कट गई और उन दोनों के चेहरे पर निराशा छोड़ गई|
पर झलक फिर से कॉल लगाती हुई पलक के मोबाईल के स्क्रीन पर भी उगंली से उसकी कॉल लगा देती है| पलक उसे ऐसा करने से नही रोकती| सच में वह अब चाहती थी कि उसकी कॉल रिसीव कर ली जाए पर दूसरी बार भी दोनों मोबाईल में पूरी पूरी कॉल जाकर कट जाती है| अब दोनों के चेहरे पर हताशा के साथ कुछ और भाव भी उमड़ आया था|
अबकी तुरंत ही अगले सेकण्ड में वे तीसरी फिर चौथी बार कॉल लगाती हुई साथ में मोबाईल को दहशत में घूरने लगी|
“झल्लो इनका मोबाईल हो सकता है साइलेंट में होगा !”
“पर रचित क्यों नही उठा रहा – वह तो कभी अपना मोबाईल साइलेंट में नही रखता |”
दोनों दहशत में एकदूसरे की ओर देख रही थी| पलक जानती थी कि अनिकेत कभी अपना मोबाईल साइलेंट पर नहीं रखते फिर आखिर क्यों उसकी कॉल उनतक नही पहुँच रही !! क्या कुछ और बात है !!
झलक भी उदासी से रचित का नंबर डिस्प्ले पर देखती सोचने लगी – ‘ऐसा नही कि वह पहली बार आधी रात को रचित को कॉल लगा रही है पर ये जरुर पहली बार है कि आज रचित ने उसका कॉल नही उठाया तो क्या हो सकता है कारण !!’
मन ही मन खुद को खंगालती वे दोनों बुत बनी एकदूसरे को देखती रही|
जबकि गोवा के हॉस्पिटल में कुछ और ही हंगामा मचा था| नाईट ड्यूटी का वार्ड बॉय डॉक्टर को खबर करता है कि 31 नम्बर के कमरे का पेशेंट अपने कमरे में नहीं है और उसके साथ रुका अटेंडेंट भी वहां नही है| डॉक्टर हैरानगी से उसकी ओर देखता हुआ पूछता है – “तुमने ठीक से देखा – या यूँही भागते चले आए !”
“हाँ सही से देखा डॉक्टर साहब – दोनों वहां नही है – मैं दूसरी बार गया – पहली बार तो मुझे लगा शायद बाथरूम में होंगे अबकी तो अच्छे से कमरे को देखने के बाद आपको सूचना दे रहा हूँ – मैंने तो बाहर भी पूछ लिया पर रिसेप्शन पर भी किसी को कुछ खबर नही|”
डॉक्टर हैरानगी से उसकी ओर देखता हुआ सोच में पड़ गया कि आखिर वे दोनों आधी रात को कहाँ जाएँगे !! शाम ही तो वार्ड चेंज कराया था| वह डॉक्टर जॉन और अनिकेत के बारे में सोचता हुआ अभी भी हैरान खड़ा था|
………………. क्रमशः…………………………….