
डेजा वू एक राज़ – 28
अधकचरी सी रात यूँही आँखों आँखों में कट गई हो जैसे| न अनिकेत से बात हो पाई थी और न ही रचित ने ही फोन रिसीव किया पर एकदूसरे को सुबह का दिलासा देती वे बेमन से लेट गई| पलक और झलक एक ही बेड पर विपरीत करवट लिए अपनी सोच की गहराई में डूबी थी और इसी रात के गुजरते कब अलसुबह वे नींद की आगोश में समां गई उन्हें पता भी नही चला|
उधर होटल में कुछ अलग ही मंजर था| अनिकेत के रूम के बाहर खड़ा इन्स्पेक्टर और उसके पीछे खड़े सिपाही के हाथ में सभी गेजेट थे जिन्हें पिछली रात वे यहाँ से ले गए थे|
“साहब बोल रहा था न मैं – कि कब से दरवाजा खटखटा रहा हूँ पर खुला ही नही |”
पीछे खड़ा सिपाही इन्स्पेक्टर को अपने हाथ में पकडे डंडे से खटखटाते देख उसे टोकता हुआ कहता है|
“तो हमारे पास और भी तरीके है दरवाजा खोलने के |” इन्स्पेक्टर कहता हुआ किसी दूसरे सिपाही को रिसेप्शन से दूसरी चाभी लाने को बोलता है|
“साहब कुछ गड़बड़ लगती है |”
“गड़बड़ !!” सिपाही की बात पर फिर से पलटकर उसका चेहरा गौर से देखता है इन्स्पेक्टर|
“हाँ साहब – तब से दरवाजा क्यों नही खुला – कही मर मरा न गया हो – वो क्या है हम मोबाईल ले लिए न उससे तो आज कल तो लोग बिना मोबाईल के रह ही नही पाते – कहते है किसी की किडनी मांग लो पर मोबाईल न मांगो वरना हार्ट अटैक ही आ जाएगा – सच्ची साहब – यही लगता है हमको तो |”
सिपाही के गूढ़ ज्ञान पर इन्स्पेक्टर उसकी खबर लेने ही वाला था तभी दूसरा सिपाही दौड़ता भागता हुआ चाभी लाता हुआ इन्स्पेक्टर के सामने करता है| चाभी लेकर वह तुरंत ही दरवाजे पर लगाने ही वाला था कि दरवाजा खुल गया और सभी उस पार दिखते शख्स को यूँ हैरानगी से देखने लगे मानो कोई मुर्दा अचानक जिन्दा हो उठा हो|
“ओह इन्स्पेक्टर – कहिए – अब क्या आपकी हेल्प कर सकता हूँ मैं !” इन्स्पेक्टर के ठीक सामने खड़ा अनिकेत कुछ ज्यादा ही मुस्कराते हुए अपनी बात कहता है जिससे इन्स्पेक्टर के साथ साथ सबके चेहरे के भाव सन्न रह जाते है|
अनिकेत सभी को लगातार अपनी ओर घूरते देख भौं उठाकर अब मौन ही पूछता है तो इन्स्पेक्टर के पीछे खड़ा सिपाही उसकी ओर उसके सभी गेजेट जिसमे जॉन का लैपटॉप भी था बढ़ाते हुए कहता है –
“ये आपको देने थे पर आप तब से दरवाजा क्यों नही खोल रहे थे ?” सिपाही से आखिर नही रहा गया तो वह पूछ बैठा|
“ओह शायद मैं वाशरूम में था – सॉरी |”
“नही नही कोई बात नही वो हमको लगा…|” सिपाही की बात मुंह के अन्दर अधूरी रह गई क्योंकि इन्स्पेक्टर तुरंत पलटकर उसको घूर कर उसे बकवास करने से पहले चुप करा देता है|
“ओके थैंक्स फॉर योर कॉपरेशन |” इन्स्पेक्टर औपचारिकता से कहता है|
“अच्छा है आपकी इन्क्वारी पूरी तो हो गई|”
अनिकेत के कहते वे सभी दरवाजा बंद होते अपने रास्ते चल देते है| अन्दर आते अनिकेत उन सारे गेजेट को यूँही बिस्तर पर उझेलकर मोबाईल लेकर कोई परिचित नंबर डायल करने लगता है|
पलक और झलक की नींद मोबाईल की बेल से टूटती है| मोबाईल पलक का बजा था इससे वह तुरंत ही उसे उठाती हेलो बोली ही थी कि एक ठंडी आह छोड़ती हुई कहने लगी –
“हाँ माँ – मैं ठीक हूँ – क्या आप लोग पहुँच गए – चलिए अब मेरी चिंता छोड़कर आराम से यात्रा करिए और हाँ झलक मेरे पास आ गई है तो अब मैं अकेली नही हूँ – ओके पापा को भी बोलना मेरी फ़िक्र न करे – मैं बिलकुल ठीक हूँ – बाय -|”
“तूने मैं क्यों बोला – बोलती हम ठीक है |” पलक को मोबाईल रखते देख उसकी ओर झुकती हुई झलक थोड़े नाराजगी भरे स्वर में कहती है|
“माँ ने तेरा आने का सुनकर कहा कि अबसे और अपना ध्यान रखना और लापरवाह झलक का भी |”
हँसती हुई पलक कहती है तो झलक बुरा सा मुंह बनाती हुई कहती है – “तुम सब बहुत बुरे हो – जाओ अब से तेरा एक काम नही करने वाली |”
रूठी हुई झलक उठकर तुरंत बाहर की ओर जाने लगी| उसकी ऐसी हालत पर पलक हँसती हुई कहने लगी – “हाँ हाँ बड़ा काम करती है – सारा काम खड़े होकर मुझसे कराती है |”
“तो तेरे साथ तो रहती हूँ न – अबसे वो भी नही रहूंगी |”
बाहर से झलक की आवाज सुनते पलक खिलखिलाकर हँस दी थी|
झलक बाहर गार्डन की ओर जाती हुई मुख्य गेट के सामने से गुजरती है तो ये देखकर हैरान रह जाती है कि मुख्य गेट के बाहर रचित की कार खड़ी थी| ये देख वह तुरंत ही बाहर की ओर भागती हुई आती है| मुख्य गेट खोलकर बाहर आती हुई वह आगे की सीट की ओर देखती है जहाँ रचित को बैठा वह पाती है|
“रचित !!! कब आए !!”
झलक की आवाज पर रचित की जैसे कोई तन्द्रा टूटती है और वह अजीब निगाह से झलक की ओर देखने लगता है|
“क्या हुआ – ऐसे क्यों देख रहे हो – ओके बाबा नाराज़ नही हूँ मैं – अब बाहर मत खड़े रहो – चलो अन्दर आओ |”
झलक के कहते रचित किसी आज्ञाकारी की तरह अपनी साइड का डोर खोलकर झलक के पीछे पीछे अन्दर की ओर चल देता है| उसके अंदर आते मुख्य गेट बंद करती हुई उसकी बांह पकड़े पकड़े अंदर की ओर चलती हुई कहती रही – “अब मैं बात कर रही हूँ न तो तुम भी यूँ बोर मुंह बनाना छोड़ो – और आए कब बताया क्यों नही – पता है कल रात कितना तुम्हे कॉल किया पर तुमने कॉल रिसीव ही नही की – अब ऐसे भी कोई गहरी नींद सोता है क्या – |” कहती कहती वह उसे किसी अन्य रूम में लाती हुई कहती है – “चलो बैठो यहाँ – मैं पानी लाती हूँ |”
रचित को उस कमरे में छोड़कर झलक कमरे से बाहर हो जाती है|
“झलक कौन है ?” तब तक झलक की आवाज सुन उसकी ओर आती हुई पलक पूछती है – “कौन आया है ?”
“रचित |” पलक की नज़रो के ठीक सामने आती हुई अपनी भरपूर मुस्कान से वह कहती है|
“अच्छा – कब – पता ही नही चला – बेल भी नही बजी – मैं तो तेरी आवाज सुनकर चली आई |”
“रचित के आने से – मैं गेम में जीत गई |” बच्चो सी उछलती हुई झलक कहती है|
पर अगले ही पल उसका मुंह खुला रह जाता है ये देखकर कि उसकी बात सुनकर भी पलक के चेहरे पर कुछ ज्यादा वाली मुस्कान अभी भी बनी हुई थी|
“तेरी मुस्कान देखकर तो लग रहा है – पंडित जी का फोन आया था !!” झलक औचक पूछती है|
इसपर पलक अपनी मुस्कान होंठो के बीच दबाती हुई बस हाँ में सर हिलाती है|
“चल न तेरी न मेरी हम जीते |” कहती हुई हवा में दोनों ताली मारती एकसाथ हँस पड़ती है|
“तो क्या कहा हमारे पंडित जी ने ?”
“जल्दी वापस आ रहे है |” पलक होठ के किनारे दांत से दबाती हुई कहती है|
“ओहो – तभी ये गुडी गुडी वाली इस्माइल छाई है – |” कोहनी मारती हुई झलक कहती है|
“अच्छा अच्छा छोड़ – रचित कहाँ है ये बता |” पलक झलक की आँखों के इशारे से उसी दिशा में कमरे की ओर बढ़ गई जहाँ रचित को झलक ने छोड़ा था|
दोनों साथ में उस कमरे में पहुंची तो ये देखते हैरान रह गई कि रचित बिस्तर पर लेटकर सो चुका था| ये देखते झलक उसे उठाने उसकी ओर बढ़ी ही थी उससे पहले ही पलक उसे अपनी ओर खींचती हुई बाहर ले जाती हुई धीरे से कहती है – “अरे क्यों परेशान कर रही हो उसे – सोने दे न – हो सकता है सारी रात ड्राइव करके आया हो |”
“परर ..|”
“उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो और मेरे साथ किचेन में चलो – अब तो रचित भी आ गया तो चलो कुछ बनाते है |”
“अरे यार सुबह सुबह बोरिंग काम कराती है – मैं कमरा ठीक करती हूँ जाके |”
“हाँ हाँ पता है कैसे कमरा ठीक करेगी जाकर लेट जाएगी बस – चलो मेरे साथ |” झलक की लाख नौटंकी के बावजूद पलक उसे अपने साथ किचेन में ले आती है|
अनिकेत जिस रूम में ठहरा था उस रूम के चेक इन के लिए एक वेटर ज्योंही दरवाजे को दस्तख देता है वह अपने आप खुल जाता है| ये देख वह एस्क्युज मी कहता हुआ धीरे से अंदर झांकता है तो कमरे में किसी को ना पाकर हिम्मत करता थोड़ा और अन्दर गर्दन करते सर सर की आवाज लगाता है| इस पर भी किसी को न पाकर वह अब रूम के अन्दर चल देता है| जिसके तुरंत बाद ही वह रिसेप्शन की ओर भागता हुआ आता सेठ को बोलता है –
“सेठ जिस रूम में आपने चेक इन करने के लिए बोला था वो रूम तो खाली है|”
“क्या – कौन सा रूम – मैंने तो तीन सौ तीन रूम में भेजा था |”
“हाँ उसी में गया था पर वो तो खाली है – कोई सामान नही है वहां |”
“अच्छा रुको देखता हूँ |” कहता हुआ सेठ तुरंत रजिस्टर को जल्दी जल्दी अलटते पलटते हुए कहता है – “पर एक और दिन का पैसा तो एडवांस में जमा है फिर बिना बताए कैसे रूम खाली किया ?”
अब दोनों दो पल तक एकदूसरे का मुंह देखते रहे फिर जल्दी ही बात समझते सेठ सर झटकते हुए कहता है – “एक्स्ट्रा ही दे कर गया ग्राहक तो जा रूम को साफ़ करा के लॉक कर दे – अपने तो पैसा मिला गया फिर कोई कही भी जाए |” अपना आखिर वक़्त होंठो के अन्दर बुदबुदाते हुए वह फिर से अपने काम में लग जाता है|
पलक झलक किचेन में साथ में मौजूद थी| पलक काम करते करते देखती है कि झलक बार बार अपने पीछे देख रही थी ये देख पलक उसे टोकती हुई पूछती है –
“क्या हुआ !! कही जाने की जल्दी है तुझे !!”
“रचित…!!” बेचनी से रचित का नाम लेकर वह चुप हो जाती है|
“ओहो – बेचारा चैन से सोया है तो क्यों हमेशा चोंच मारने को बेचैन रहती है|”
“नही – मैं कुछ और सोच रही हूँ |”
झलक की परेशान आवाज सुनकर पलक अब अपना कम छोड़कर आश्चर्य से उसकी ओर देखती हुई खड़ी हो गई|
“जब आया था तो अजीब सा व्यव्हार था उसका जैसे वह यहाँ है ही नही बल्कि कही और ही है |”
“मतलब !!”
“मतलब कि उस वक़्त भी ऐसा ही हो गया था जब हमारे ऊपर लैम्प का ग्लास बस गिरते गिरते बचा – |” पलक की अनबुझी आँखों को समझते झलक उसे ठीक से बात समझाती हुई कहती है – “अरे जिस कमरे में रचित लेटा है वही दरवाजे के पास वाला लैम्प तूने देखा !! कहाँ गया उसका ग्लास !!”
“हाँ – वो तो मैं खुद पूछने वाले थी तो कहाँ गया ग्लास ?”
“टूट कर फर्श पर बिखर गया – यही तो बता रही हूँ कि उस दिन जब हम उस लैम्प के ठीक नीचे थे तभी अचानक से जाने कैसे वह ग्लास बस हमारे सर पर गिरने ही वाला था वो तो कहो बस मेरी नज़र उस पर पड़ गई और हम दोनों बच गए |”
“पर उस लैम्प के नीचे तो कोई भी जगह नही बैठने की तो वहां तुम दोनों क्या कर रहे थे ?”
“उफ़ पागल लड़की जहाँ दिमाग लगाना होगा बस वही नही लगाएगी – अरे कुछ भी कर रहे थे नीचे – तू बस इस बात पर ध्यान दे कि वो हमारे ऊपर गिरने वाला था जो सालो से कभी अपनी जगह से नही हिला |”
“ओह्ह |”
“हाँ अब समझी न |”
“तो उसके अजीब व्यव्हार की क्या बात कर रही थी ?”
अब स्लेप पर आराम से बैठती हुई कहती है – “अजीब ये कि उस वक़्त वह बहुत खुश था मूड भी अच्छा था पर अचानक उस टूटे कांच को देखते वह अजीब अजीब सी बात करने लगा – मानो वह कही दूसरी दुनिया में पहुँच गया हो – 2001 में जो भुज में भूकंप आया था उसकी बात करने लगा – हाँ उसमे उसके पैरेंट नही रहे थे पर उस वक़्त ऐसे कह रहा था जैसे वो घटना बस अभी थोड़ी देर पहले ही घटी हो – क्या ये अजीब बात नही थी !!”
“अच्छा ऐसा क्यों ?”
“अब मुझे क्या पता – तभी तो मुझे अजीब लगा और अभी भी बिलकुल अजनबी की तरह उसका चेहरा नज़र आ रहा था – पता नही क्या हो गया है ?”
अब पलक भी थकन से स्लेप पर बैठती हुई कहती है – “च्च – छोड़ न – तू तो हर बात पर सीरियस नही होती है फिर इतनी सी बात को क्यों तूल दे रही है – जब उठेगा तभी पूछ लेना उससे – समझी न !”
“हाँ ठीक है |” गहरी सांस छोड़ती हुई झलक कहती है|
तभी दोनों की नज़र फर्श पर एक साथ जाती है जहाँ उन्हें एक बड़ा सा खनखजूरा रेंगता हुआ दिखता है जिसे देखते पलक की तो मानो सांस ही गले में अटक जाती है वह डर कर चीख भी नही पाती| और इस बार तो झलक भी थोड़ा डर गई थी क्योंकि आकार में वह काफी बड़ा था जिसे देखते दोनों डरकर एकदूसरे का चेहरा यूँ देखती है मानो शुक्र मना रही थी कि सही समय पर वे दोनों स्लेप पर बैठ गई|
क्रमश………………………