
डेजा वू एक राज़ – 30
जॉन इस हैरानगी से उसे देखेगा इस बात का अंदाजा था उसे इसलिए बड़ी तस्सली से उसका हाथ पकडे उसे भरोसा दिलाता है| जॉन अभी अभी उठकर उसे अजीब निगाह से देख रहा था मानो सदियों बाद उसे देखा हो| उसके चेहरे पर अभी भी परेशानी भरे भाव थे|
वह किसी तरह से अपने शब्दों को जोड़ता हुआ पूछता है – “तुम कब आए और मैं हूँ कहाँ ?”
इसपर अनिकेत हलके से मुस्कराते हुए कहता है – “बस समझो अभी अभी ही आया |”
“उफ़ मेरा सर |” अनिकेत की बात पर से अब उसका ध्यान अपने सिर की ओर हो गया जिसे दोनों हथेली के बीच दबाए वह दांत पीसता हुआ कह उठा|
ये देख अनिकेत उसे सहारा देकर आराम से लेटाते हुए कहता है – “अभी तुम्हें आराम करना चाहिए |”
जॉन भी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी बात मानता लेट जाता है जिससे अनिकेत उसका सर सहलाते उसे आराम से लेटे रहने देता है| कुछ देर तक यूँही उसके पास बैठे रहने के बाद अनिकेत उठकर कमरे की खिड़की से बाहर देखता है अब शाम से रात होने जा रही थी| ये देखते उसके चेहरे पर कुछ चिंता की लकीरे उभर आती है फिर वह जॉन को एक नज़र देखता जब संतुष्ट हो जाता है कि अब वह नही उठेगा तो वह अगले कमरे में चला जाता है|
अगले ही क्षण वह ध्यान की तैयारी करने लगता है| हाथ मुंह धोकर वस्त्र बदलकर वह साफ़ स्थान पर आसन बिछाकर बैठ जाता है| इस वक़्त वह खाली बदन हाथ में माला लिए ध्यान की योगी जैसी मुद्रा में बैठा था| उसके गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला अब उसकी उंगलियो के बीच थी| उसे देखकर लग रहा था मानो वह अब किसी अन्य दुनिया में प्रवेश की तैयारी कर रहा था जिससे उसके चेहरे की ऊर्जा दमक उठी थी|
पलक के मन की ये हालत थी कि वह टीवी ऑन किए किए उसके सामने के सोफे पर धसी बैठी रही न वह खुद उठकर कही गई और न टीवी ही बंद किया| पूरा दिन पापा मम्मी के फोन के इंतजार में उसका वक़्त चला गया| गहराती शाम में अब वह पूरा घर अँधेरे में डूब चुका था और कमरे में चलते टीवी की चलती स्क्रीन भर से उस कमरे में रौशनी थी| वही सोफे पर कबसे उकडू लेटी पड़ी थी पलक|
तभी कुछ लगातार की आवाजे पलक को जैसे झंझोड़कर उठा देती है| अचानक की नींद खुलने से वह हडबडाहट में अपने पैर सोफे के नीचे रखती है तब उसे कुछ अलग सा अनुभव होता है| गहरी नींद से उठने की वजह से कुछ पल तक वह इस अलगपने को समझ नही पाती फिर जैसे मन में वह बुदबुदाती है – ‘पानी..!!’
वह अब दूसरा पैर भी सोफे के नीचे उतार देती है| टीवी की रौशनी अभी भी कमरे में पड़ रही थी जिससे कमरे में हल्का उजाला बना हुआ था| उसी हलकी रौशनी में वह कमरे का हाल देखती चौंक जाती है| कमरे के फर्श पर हर जगह पानी ही पानी मौजूद था| टेबल के पैर से लेकर कोर्नर का निचला हिस्सा पानी में डूबा था| वह औचक इस नज़ारे को देखती हुई कमरे से बाहर निकलने लगती है|
कमरे से बाहर निकलते वह गलियारे में आती है जिसके दोनों ओर कमरे बने थे| जहाँ वह हर जगह पानी पानी ही पाती है| किचेन के बाहर की भरी चौखट, गलियारे से लेकर कमरे तक, जमीं पर बिछा कापरेट से लेकर देहरी का पायदान अब पानी में उतरा रहा था| वह उसी पानी से होती हुई लगभग हर कमरे के बाहर से गुजरती है| सब जगह पानी ही पानी था| ये देख पलक हडबडाती हुई कुछ सामान को ऊपर रखने लगती है| छोटे मोटे सामान को ऊपर रखती हुई वह जल्दी जल्दी बाहर बरामदे तक आती है| बरामदे का गेट सरकाते हुए पता चलता है कि बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है और इस लगातार की तेज बारिश का पानी की घर में भर आया है| ये देखते वह तुरंत आनन फानन में बरामदे की नाली चेक करती है क्योंकि सारा पानी बरामदे से होता हुआ ही कमरों के अंदर प्रवेश किया था|
पलक पानी से होती टटोलती हुई बरामदे की ओर बढ़ रही थी| चारो ओर अभी भी अँधेरा मौजूद था, पानी भरने के कारण पलक का ध्यान अभी तक लाईट जलाने की ओर गया ही नही था| वह उसी अँधेरे में बरामदे के कोने में बनी नाली की ओर हाथ बढ़ाती हुई उसका निकास टटोलने लगती है| पानी उसकी कोहनी तक आ गया था| नीचे पानी था तो ऊपर से भी पलक भीग रही थी| अजीब स्थिति में वह फसी थी पर किसी तरह से उसे निकास साफ़ करना ही था ताकि कमरों से पानी निकल सके|
वह निकास में फंसी चीज को अपनी ओर खींचती है| वह कोई कपड़ा था जो बुरी तरह से नाली में गुमड कर रह गया था| उसे जोर लगाकर वह किसी तरह से अपनी ओर खींचने लगती है जिसके अगले ही पल उसे हाथ में लिए वह पीछे हटने लगी| अब पानी निकास से एक भंवर के रूप में निकलने लगा| पलक उस कपड़े को लिए लिए अन्दर की ओर आती है जहाँ कमरे से आती हलकी रौशनी फैली थी| इस समय पलक भी बुरी तरह से भीग चुकी थी इस कारण वह रौशनी के लिए स्विच ऑन न कर सकी| अब वह उस कपड़े को हाथ में लिए रौशनी के टुकडे में उसे देखती है तो हैरानगी से उसकी ऑंखें फटी की फटी रह जाती है वह कोई लहररिया दुपट्टा था|
पता नही पर उस दुपट्टे को देखते उसका मन सिहर उठता है और वह उसे हाथ से यूँ झिड़क देती है मानो वह कोई सांप हो| दुपट्टे को फेककर पलक अंदर कमरे की ओर जाने लगती है पर दुपट्टा पानी में उतराता हुआ मानो उसके पीछे पीछे बहता चला आ रहा था| पानी की धार के विपरीत वह दुपट्टा बिलकुल उसके पीछे था| पलक तेजी से पानी में पैर रखती हुई आगे आगे बढ़ी जा रही थी|
एक पल रूककर वह पलटकर अपने पीछे देखती वह दुपट्टा अभी भी उसके पीछे बहा चला रहा था इससे पलक डरती हुई और तेजी से कमरे के अन्दर आती कमरा झटके से बंद कर लेती है|
वह बेहद डरी हुई थी और बुरी तरह हांफती हुई गहरी गहरी साँस ले रही थी| तभी उसे फिर अपने पैरो के पास कुछ रेंगता हुआ महसूस होता है| वह उस समय टीवी वाले रूम में थी और टीवी साइलेंट मोड़ में आ चुका था पर उसकी कुछ रौशनी कमरे में अभी भी मौजूद थी| उस अनजान चीज के स्पर्श से वह ज्योंही नीचे देखती है डर से उसको चीख ही निकल जाती है| वह दुपट्टा अब उसके पैरो के इर्द गिर्द लिपटा हुआ था| घबराहट और डर से उसकी साँसे और तेज हो जाती है और बदहवासी में वह दरवाजा पीटती हुई बचाओ बचाओ की आवाज लगाने लगती है| वह अपनी बदहवासी में ये भी भूल जाती है कि दरवाजा तो उसी ने बंद बाद किया था|
वह डरकर दरवाजा बुरी तरह पीट रही थी और वह दुपट्टा अभी भी उसके पैरो में लिपटा उसके आस पास ही रेंग रहा था| तभी उसे अहसास हुआ कि उसके आस पास और भी आवाजो का सम्मिश्रण हो गया है जो जानी पहचानी लग रही थी…हाँ वो डमरू की आवाज और किसी के तेज तेज चलने की आवाज थी मानो कोई डमरू बजाता हुआ उसके पास आता जा रहा है| वह इसी घबराहट में दरवाजे से हटकर अब सोफे पर उचक कर बैठ गई| उस पल वही जानती थी कि किस तरह का डर उसके रगों में सनसनी सा दौड़ रहा था| जिससे उसका शरीर तेज झुरझुरी लेता है|
ऐसा करते उसकी नज़र सोफे से नीचे जाती है जहाँ उस दुपट्टे के साथ और भी कुछ था| कोई गहरा गड्डा…वह ये देखते अंतरस कांप गई कि वह तो कब्र थी जिसमे नटनी का निस्तेज शरीर पड़ा था और उसके आस पास वही लहरिया दुपट्टा लहरहा रहा था| ये दृश्य पलक की रूह तक को थरथरा गया जिससे खुद को पीछे करती वह अपनी देह को खुद में समेटने लगती है| ऐसा करते उसका हाथ अपने गले से टकराता है जहाँ उसके गले में पड़ा मंगलसूत्र था| उसका आभास होते वह मंगलसूत्र को और अच्छे से पकड लेती है जिसमे लॉकेट की जगह एकमुखी रुद्राक्ष था|
एक गहरे झटके से झलक की नींद उचटती है और वह झट से आँख खोलकर अपने चारों और देखने लगती है| उसके आस पास गहन अँधेरा था| वह नींद से उठी थी इसलिए खुद को चेतन में लाने के लिए सर को एक झटका देती याद करती है कि वह तो रचित के साथ कार में थी फिर क्या उसे रास्ते में नींद आ गई| रचित का ख्याल आते वह तुरंत रचित को देखने अपने बगल में देखती है| बगल में रचित बैठा था वो भी किसी बुत की तरह| उसे स्पर्श करती हुई झलक धीरे से पूछती है –
“यहाँ क्यों कार रोकी रचित – हम है कहाँ ?”
रचित कुछ नही कहता इस पर झलक अब अपने आस पास नज़र करती हुई अपनी स्थिति का पता करती है| कार किसी सुनसान निर्जन स्थान पर रुकी थी| शायद कोई अकथित जंगल होगा| शाम से रात हो आई थी जिससे आस पास घना अँधेरा छाया हुआ था जिससे वे कहाँ है वहां से बैठे बैठे ठीक ठीक पता करना मुश्किल था| अबकी बार झलक का मन कुछ घबरा जाता है| न रचित ही कुछ कह रह था और न उसे ही जगह कुछ समझ आ रही थी इससे उसमे एक खीज सी भर उठती है और वह रचित की ओर हाथ करती झटके से उसका चेहरा अपनी ओर करती है| जो दृश्य उसकी आँखों से देखा उससे उसकी रूह तक कांप गई| पहली बार उसने इतना डर का अनुभव किया| वह किसी तरह से थूक से गला तर करती रचित के ठीक पीछे के शीशे पर नज़र करती देखती है जहाँ कोई था बेहद डरावना जो बंद शीशे से अन्दर की ओर झांक रहा था इससे घबरा कर वह रचित की ओर नज़र करती है तो काटो तो खून नही रचित बंद आँखों से सपाट भाव लिए उसकी ओर देख रहा था|
“र रचित – त तुम तुम सो रहे हो..या….!”
झलक अपनी सांसो को किसी तरह से संभाले कभी रचित को तो कभी शीशे के पार दिखती उस भयावह आकृति को देखती है| उसने आज से पहले कभी इतना डर महसूस नही किया था| उसकी धड़कने धौकनी की तरह उसके सीने में ड्रम बजा रही थी|
तभी रचित बेहद यांत्रिक भाव से कहता है – “मुझसे गलती हुई थी इसलिए ये सब मुझे लेने आए है – |”
“गलती !!!” झलक होंठ कसती हुई किसी तरह से बोली|
“माँ बाबा सो रहे थे मैंने उन्हें नही जगाया – वो भूकंप का पहला झटका था अगर जगा देता तो वे भाग सकते थे पर नही जगाया और वे सोते में ही चले गए – अब उन सबकी आत्माए मुझे लेने आई है – चलो हमे साथ में चलना होगा |” कहते हुए तुरंत रचित झलक की कलाई अपने हाथ में भर लेता है जिससे वह कसकर चीख पड़ती है|
“रचित र रचित – क्या हुआ है – तुम ऐसे क्यों कर रहे हो – देखो मुझे ऐसा मजाक नही पसंद – मैं सच में बहुत डर रही हूँ – प्लीज़ स्टॉप दिस नोंसेंस |” झलक कसकर चीखी पर रचित उसकी कलाई पकडे रहा|
अब झलक उससे अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश करने लगी|
“छोड़ो मुझे |” एक तेज झटके से अपनी कलाई छुड़ाती हुई झलक तुरंत दुसरे हाथ से अपनी तरफ का दरवाजा खोलती हुई बाहर की ओर निकल गई|
डर उसमे अभी भी हावी था जिससे उसकी साँसे बहुत तेज हो गई थी पर उस वक़्त उसे वहां से भागने से सिवा कुछ नही सूझा और वह दम लगाकर बस भागने लगी| उस अथाह जंगल में वह बस भागे जा रही थी ये सोचे बिना कि आखिर उसे किससे और कहाँ भागना है| ऐसा करते वह बार बार पीछे पलटकर देख रही थी कि तभी वह किसी से टकराई और एक ओर को लुढ़क गई| उसका बदन झाडी की ओर लुढकने से बुरी तरह छील गया था| वह फिर से खुद को संभालती हुई अब ये देखने का प्रयास करती है कि वह आखिर टकराई किससे थी| वहां कोई था जिसे आंखे फाड़कर वह देख ही रही थी तभी उस साए से आवाज आई|
“दीदी मुझे बचा लो – मैं भाग कर आया हूँ – वो सब दुबारा मुझे पकड लेंगे |”
“क कौन हो तुम ?” झलक नीचे पड़ी पड़ी उस ओर गौर से देखती हुई पूछती है|
“हमीदा |” जैसे गहरी गुफा से कोई आवाज बाहर की ओर आई हो|
ये सुनते झलक एकदम से चिहुंक पड़ी| अब वह साया उसकी ओर बढ़ता हुआ कहता है – “मुझे बचा लो..|”
“प पर किससे !! कौन तुम्हारे पीछे पड़ा है ?” झलक किसी तरह से हिम्मत करती हुई पूछती है|
“वो….|” वह झलक के पीछे की ओर इशारा करता है जिससे वह तुरंत पीछे पलटकर देखती है तो बस उसकी सांस थमते थमते बची|
उसके पीछे कई सारे लोग साए की तरह उसकी तरफ बढ़ रहे थे| वह उन सबको स्पष्ट देख पा रही थी जिससे उसका चेहरे के सपाट भाव के पीछे के भयावह रूप से वह डर कर घिसटती हुई किसी तरह से खुद को पीछे करती है| वे सारे जाने पहचाने चेहरे थे| ये सोचती हुई झलक याद करती करती लगातार पीछे होती रही फिर एक झटके से याद आया कि ये वो सारे उसके ब्लॉग वाले चेहरे है पर वे सभी यहाँ कैसे !! और क्यों उसकी ओर ऐसे आ रहे है !! अब ज्यादा कुछ सोचने का समय नही था इससे झलक बस उठी और उनके विपरीत भागने लगी|
एक बार फिर से वह वहां थी जहाँ रचित कार में बैठा हुआ अभी भी उसकी ओर गर्दन किए घूर रहा था|
क्रमशः