
डेजा वू एक राज़ – 31
मंगलसूत्र को अब पलक दोनों हाथ से थामे जैसे खुद को होश में लाती है| ऐसा करते उसमे अलग ही ऊर्जा का संचार होता है| वह अब मन के भीतर से आती आवाज सुन पा रही थी| ‘ये सब भ्रम है….कुछ भी सच नही है….तुम्हे खुद को जगाना होगा…और इस भ्रमजाल को तोड़ना होगा…ये सब तुम्हारे मन का डर है क्योंकि ये सब सच नही है…|’ आवाज उसके भीतर से उगती रही और क्रमशा वह खुद पर नियंत्रण करती गई| उस पल ये आवाज उसके लिए दिशा निर्देश बन गई जिसके छोर को पकड़े वह अपने गिरते मनोबल को उठा पाई| वह साहस भरी साँसे अपने भीतर उदोलित होती साफ़ साफ महसूस कर पा रही थी| ‘सब मायाजाल है…तुम्हे इससे खुद को निकालना होगा…तुम निकल सकती हो इससे…बस आंख बंद करो और गहरा श्वांस भीतर खींचो…और सारी नकारात्मक को बाहर उझेल दो…सारी ताकत तुम्हारे भीतर ही है बस उसे महसूस करो अपनी अंतरात्मा से…तुम खुद की सबसे बड़ी सहायक हो..फिर किसे सहायता के लिए पुकारना…तुम स्वयंसिद्धा हो..|’
एक एक शब्द जैसे उसमे गहन ऊर्जा का संचार करता गया| पलक अब उसी निर्देश को पालन करती सांस को भीतर से खींचती हुई अपनी आंखे बंद कर लेती है| ऐसा करते सच में एक राहत उसके चेहरे पर दमक आई थी| एक आत्मिक ऊर्जा जिसका ओर और छोर वही थी| वही उत्पति वही सम्प्रति बन गई| मानो ऐसा करते उसके भीतर की कोई राह खुल गई और हथेली में लिए रुद्राक्ष का ओजस उसे अपने भीतर सम्पूर्णता से खींच लेता है|
पलक शांत भाव से आंखे खोलती है| वह मुस्करा रही थी| वह अकेली होकर भी अकेली नही थी| अलग ही ऊर्जा का संचार उसमे हो चुका था| वह खुली आँखों से अब अपने आस पास देखती स्वयं की स्थिति का भी पता करती है| कमरे में अभी भी हलकी रौशनी थी जिसमे वह कमरे का जायजा लेती है| कही तो बारिश का नामोनिशान नही था, न वो दुपट्टा था और न अजीब डरावनी भयभीत कर देने वाली आवाजे ही थी| वह खुद को उसी कमरे में पाती है जहाँ अभी भी टीवी साइलेंट मोड़ में ऑन था| पलक उठकर टीवी बन्द करती हुई कमरे का स्विच ऑन कर देती है|
एक ही पल में कमरा पूर्ण प्रकाशमय हो जाता है| इस रौशनी में वह दिवार घड़ी की ओर नज़र डालती है चार बजने ही वाले थे| अनिकेत हमेशा कहते है कि ये समय सबसे उत्तम काल है और सारी दुर्भावनाए इस समय अपने आप कम हो जाती है बस मन को एकाग्र करने की जरुरत है|
पलक मन में सब चीजो को अब क्रमशः मथने लगती है कि आखिर इन सब दृश्यों का मतलब क्या था !! क्यों उसे ये सब स्वप्न के रूप में इतने यथार्थ की तरह दिखे !! क्या ये कोई संकेत है या कोई पूर्वाआभास !! आखिर इतने समय बाद उसे ऐसे दृश्य क्यों दिखाई दिए !! कुछ तो अर्थ होगा उनका क्योंकि पर्यावरण में कुछ भी बिनअर्थ नही होता तो क्या मतलब हो सकता है नटनी का दिखना और वह लहरिया दुपट्टा !! वह उसका तो नही था फिर उसे क्यों दिखा !!
उफ्फ !! काश अनिकेत आप यहाँ होते तो मुझे अपने स्वप्न समझ आते तो कुछ तो रास्ता मिलता क्योंकि कुछ तो है इन सबके पीछे…!! हाँ मेरे सवालों का जवाब मेरी ही मानसिक एनर्जी में है| यही तो कहते है अनिकेत… कि जब मैं किसी मानसिक उलझन में उलझ जाऊं तब अगर मैं कॉस्मिक एनर्जी में अपने इनर वर्ड पर ध्यान लगाऊ तो मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल जाएँगे और यही तो वो ब्रम्ह्मुह्रत का काल है जिस समय में सबसे ज्यादा एनर्जी होती है..तब मैं आसानी से अपने इनर वर्ड की यात्रा कर सकती हूँ…
ये सोचते पलक में कुछ अलग ही ऊर्जा समां जाती है और वह मन ही मन सब तय करती तुरंत स्नान करके ध्यान की तैयारी करने लगती है| अनिकेत के साथ रहते उसे अपनी आन्तरिक उर्जा का आभास हो चुका था कि उसमे कुछ तो ऐसा ख़ास है जिसमे वह या तो भविष्य या अतीत सपने में देखती हुई समय यात्रा कर सकती है|
यही तय करती वह ध्यान मुद्रा में बैठती हुई अब सारा ध्यान उस दुपट्टे की ओर लगाती है और अपने इनर वर्ड की यात्रा करती हुई वह उस समय में पहुँच जाती है जब नटनी को जलाकर वे सभी अभी अभी उस महामाया की आफत से मुक्त हुए थे|
तीन वर्ष पूर्व स्थान जैसलमेर का सोन किला… रात्रि का अंतिम पहर जब अनिकेत की साधना से सभी को नटनी और महामाया से मुक्ति मिल चुकी थी| सभी खुश थे और अपने बचे रहने पर ईश्वर को धन्यवाद् अर्पित कर रहे थे|
सभी जाने की तैयारी कर रहे थे|
जॉन तब से संशय में पड़ा था सब कुछ समझ आ गया पर राजा साहब की कही एक बात तब से उसके दिमाग में चिक्करघिन्नी की तरह दौड़ रही थी क्योंकि उसे अच्छे से याद था कि उसने आखिरी समय वह चमत्कारी पत्थर अनिकेत को दिया था फिर उसके बाद उसका क्या हुआ क्या सच में वह कोई और ले गया या नष्ट हो गया| अनिकेत जैसे ही रूम में वापस आया जॉन को सोच में डूबा देख उसे टोकते हुए पूछता है –
“किस सोच में डूबे हो जॉन ?”
“यही कि आखिर वह पत्थर गया कहाँ !!”
इस पर अनिकेत हौले से होंठ पर विस्तार लाते ठीक जॉन के सामने आता हुआ खड़ा रहा| जॉन जो खिड़की के किनारे का टेक लिए सच में बहुत उलझा हुआ लग रहा था|
“वह तो मेरे पास है |” कहते हुए अनिकेत अपनी जेब से कोई चीज निकालकर उसकी तरफ दिखाता हुआ कहता है|
पर चौंकता हुआ जॉन तो लगभग अपने स्थान से उछल ही पड़ता है – “तुम्हारे पास !! तो उस समय राजा साहब ने पूछा तो क्यों नही दिखा दिया |”
“अब पारस की जगह ये महल ने इसकी अपनी असली जगह है |”
कहता हुआ आनिकेत उसे वापस उसी लाल कपड़े में लपेट कर अपनी जेब में संभाल कर रख लेता है और जॉन हैरान नज़रों से उसे देखता रहता है पर उसे यकीन भी था कि ये फैसला अनिकेत से बेहतर और कोई नही ले सकता|
“जॉन अब उस जली हुई तंत्र क्रिया को भी नष्ट करना जरुरी है|”
“उससे क्या होगा – महामाया जला शरीर थोड़े लेती है|”
“वह नटनी इतनी भी आसान चीज नही थी जितना सब उसे समझ रहे है इसलिए उस जले सामान में भी तंत्र का प्रभाव कुछ हद तक है – यही वजह है कि उस सामान को हटाना बहुत आवश्यक है – तुम ऐसा करो रूद्र को कह दो कि वह उस स्थान पर कुछ ऐसा बनवा दे ताकि उसे खोदकर कोई उसतक न पहुँच सके – बस यही इससे बचने का एकमात्र उपाय है|”
“ठीक है अनिकेत |” अपनी सहमति देता जॉन कमरे से बाहर निकलकर रूद्र के पास चल देता है|
इधर इन सबमे कोई था जिसका मन भी शंका से भरा हुआ था|
अब जब सबको पता चला चुका था कि नंदनी ही नवल की ब्याहता है तो उसमे इसका अलग ही दंभ उछाल मार बैठा| उसकी तबियत के कारण सभी उसे आराम करने को छोड़कर वैभव के परिवार और अनिकेत को विदा दे रहे थे तब नंदनी के मन में कुछ अलग ही उथल पुथल मची थी|
“म्हारी छोरी का तो भाग ही चमक गयो – थे तो राणी बनेगी |” भुवन ख़ुशी से हाथ मलता हुआ कहता है तो वही बैठी शारदा जो नंदनी की पट्टी बदल रही थी उसे घूर कर देखती है|
“कहवे को कहते है घोड़ा कीजे काठ का,पग कीजे पाषाण,
अख्तर कीजे लोहे का,तब पहुँचे जैसाण पण म्हारी लाडो थे तो कागज के घोड़े से पहुँच गई सोन किलार |”
“राणी तो बड़े कुंवर की बिन्दनी होवेगी और नंदनी कुंवर सा की बिन्दानी बनी है समझे न – भुवन थे म्हारी लाडो का दिमाग न खराब कर – अभी सब निपटा है तो सबको संभलने दे |” झिड़कती हुई शारदा बची पट्टी उठाती हुई बाहर को निकल जाती है|
शारदा की बात से भुवन का मुंह बन आया पर शारदा के जाते देख वह नंदनी के पास आता हुआ कहता है – “लाडो थे न अपनी माँ की बात का मलाल न लेना पण इतना जान ले जो सौभाग्य से मिलता है पर सौभाग्य से टिकता नही है – उसके लिए प्रयास करने पड़े है|”
अपने बापू की बात पर नंदनी हैरानगी भरी दृष्टि से उसे देखने लगी| तब अपनी बात और समझाते हुए वह आगे कहता है – “तू बस ये ख्याल रख कि कुंवर थारे है और जो थारा है थे कोई थारे से थारा अधिकार और कोई न लेने पाए |”
भुवन नंदनी के मन में शंका का बीजारोपण कर चुका था यूँ तो नंदनी खुद भी नवल को लेकर पजेसिव हो रही थी क्योंकि नवल का पलक के प्रति जूनून वह खुद देख चुकी थी| वह ये भी नही भूली थी कि शादी की जिस रात वह महल के बार में नवल के पास थी और वह जिस तरह से उसे छू रहा था वो नंदनी नही उसे पलक समझ रहा था| आखिर कैसे वह ये सबकुछ इतनी आसानी से भूल जाए| अब एक बार नवल को पा लेने के बाद वह उसे किसी भी हाल में खोना नही चाहती थी| चाहे इसकी उसे कितनी भी कीमत चुकानी पड़े|
यही सारे विचार नंदनी को वो सब करने पर मजबूर कर देते है जो करने की उसने ही कभी नही सोची थी|
जब सब का ध्यान नटनी की जली लाश से हट गया तब नंदनी सबसे नज़रे बचाकर उसकी तांत्रिक क्रिया के कुछ जले चावल ले आई जिसे उसने अपने लहरिया दुपट्टे में बाँध लिया| हर गांठ पर वह मन से नवल का पलक से दूर होना मांगती रही| उसके शंकालू मन ने उससे वह कर्म करा लिया जो उसकी भी कल्पना से परे था| उसे नही पता कि इसका क्या कितना कैसा असर होगा पर अंधे जूनून ने उसे ज्यादा कुछ सोचने का अवसर ही कहाँ दिया और नंदनी ने उस गांठ लगे दुपट्टे को लेकर पलक के बैग में रखने का सोचती उस कमरे तक आई जहाँ सेविका अनामिका के कहने पर पलक और झलक की वापसी के लिए उनका बैग तैयार कर रही थी|
“थे यहाँ क्या करे हो – उधर जाकर रसोई देखो |”
नंदनी सेविका को बैग में सामान रखते देख टोकती है तो सेविका तुरंत उसकी बात मानती बाहर निकल जाती है और यही मौका था जब पलक के एक बैग में वह तंत्र वाला जले चावल वाला दुपट्टा वह उसके बैग में पहुंचा देती है|
और यही बैग पलक वापस लखनऊ ले आई पर महल के प्रति अनासक्ति के कारण पलक से उस बैग को पलंग के नीचे सरका दिया पर उसमे से कोई सामान नही निकाला| लेकिन नीतू उस बैग को तीन साल बाद खाली करने का सोचते उसकी सारी गांठ खोल देती है| होने वाली अनहोनी को सोचे बिना अनजाने में ही उन्होंने ये किया| उसके बाद रचित के जूते से वे चावल कुचल गए इसके बाद से ही सारा मायाजाल शुरू हो गया|
पलक समय यात्रा से अबतक का सारा सच जान चुकी थी जिससे अब उसकी चिंता बहुत बढ़ गई| वह तुरंत उठकर मोबाईल से झलक को फोन लगाती है पर फोन नही उठता फिर रचित को भी लगाती है पर दोनों में से कोई भी उसका फोन रिसीव नही करते इससे उसकी चिंता और गहरा जाती है|
तभी एक मेसेज पर उसका ध्यान जाता है जो कुछ समय पहले ही आया था|
क्रमशः………..