Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 32

पलक काफी हद तक अपने सपने के सच को समझ चुकी थी इसलिए एक राहत का गहरा श्वांस खींचती वह तुरंत ही घर से निकलने को तैयार हो जाती है उसका गंतव्य जॉन का घर था| अगले कुछ समय बाद वह जॉन के घर पहुँच कर उसके घर का दरवाजा ज्योंही खटखटाने जाती है दरवाजा अपने आप खुल जाता है और उस पार अनिकेत को देखते उसके दिल मे जो खुशी महसूस हुई ये सिर्फ वही उस समय समझ सकती थी|

वह खुद को अनिकेत को स्पर्श करने से नहीं रोक पायी और उससे लिपट गई| अनिकेत भी उसे अपनी बाँहों में भरे अपने इंतजार को उस गर्माहट में पिघला देना चाहता था| अब दो दिल एक ही रिदम में धड़कने लगे थे|

“आपका मेसेज मिलते मैं तुरंत चली आई पर आप पहले घर क्यों नही आए ?” पलक हलके रोष से पूछती है|

“मैं कही भी चला जाऊं तभी भी तुमसे कहाँ दूर होता हूँ – हमेशा मैं तुम्हारे इर्द गिर्द ही तो रहता हूँ –|”

“इसमें मुझे जरा भी शक नही – अगर आप न होते तो मैं अपने सपनो से बाहर ही नही आ पाती|”

“तुम अपने सपने से अपने हौसले से बाहर आई हो – तुम स्वयसिद्धा हो|”

“हाँ क्योंकि आप मेरे मन की आवाज है – अगर आप मुझे मानसिक संकेत नही देते तो मैं पता नही कब तक इस भ्रम जाल में फंसी रह जाती पर मुझे समझ नही आया कि ऐसा हो क्यों रहा है – क्या महामाया दुबारा आ गई ?” पलक के स्वर में चिंता का पुट था|

“आओ अंदर सब बताता हूँ |”वह अनिकेत के साथ चलती अंदर आती है|

वे एक कमरे में एकदूसरे के सामने बैठे थे| अनिकेत पलक का हाथ थामे हुए कहता है – “मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु पता है कौन है ?”

“कौन ?”

“वह स्वयं – उसका स्वाहित होना ही उसे दूसरो के प्रति बुरा बना देता है –|”

“आप नंदनी की बात कर रहे है न – मुझे उसके इस काम को जानने के बाद बहुत बुरा लगा – पता नही क्यों वह मेरा बुरा चाहती है जबकि मैं तो उसके प्रति कोई ऐसी भावना नही रखती |”

“तभी तो मैंने कहा और ऐसे लोगो की वजह से नकारात्मक ऊर्जा बढती जाती है और महामाया का आभास भी इसी कारण हुआ |”

“आभास मतलब !!”

अनिकेत अब उठकर टहलते हुए कहता रहा – “पहली बात ये कि इस बात की अभी तसल्ली है कि महामाया को अभी कोई शरीर नही मिला है नही तो वह कबकी अपनी तबाही का तांडव शुरू कर चुकी होती – वह अभी सिर्फ आभास के रूप में है और उस तंत्र के प्रभाव की वजह से उसी ने घर के सभी सदस्यों पर भ्रम का जाल बिछाया हुआ है |”

“ओह्ह – क्या तभी मम्मी पापा का पता नही चल रहा ?”

“वे कहाँ है ?” अचानक अनिकेत पूछता है|

“ओह मुझे लगा आपको ये भी पता होगा – जब आप इतना सब जानते है तो |”

“मैं इतना सब तुमसे साधना के जरिए जुड़ने से जान पाया – जब तुम समय के पार नंदनी को देख रही थी तब मैं तुमसे मानसिक ऊर्जा से जुड़ चुका था और जो दृश्य तुमने देखे वही मैं भी देख पा रहा था पर पापा मम्मी कहाँ है ये मुझे नही पता – क्या वे किसी मुश्किल में है !!”

“हाँ और झलक रचित भी |” कहती हुई पलक सविस्तार दोनों के जाने और उनके कोई संपर्क न होने की बात बता देती है|

ये सुनते कुछ पल शांत होकर सोचते हुए अनिकेत कहता है – “मेरी अन्ताचेतना कहती है कि उन्हें कुछ नही हुआ होगा बल्कि ये सब भ्रम भर है ताकि उनकी परेशानी से परेशान होकर तुम्हारे आस पास भी नकारात्मक ऊर्जा बने |”

“तो इससे क्या होगा – |” पलक परेशान होकर पूछती है|

“यही तो सारी समस्या की जड़ है |”

अचानक कमरे में किसी अन्य की आवाज से दोनों का ध्यान आवाज की दिशा की ओर जाता है| वहां जॉन खड़ा था और उसी अंदाज में जिसमे वह हमेशा उनके बीच मौजूद रहता था|

जॉन को देखकर पलक अब मुस्करा कर उसका अभिनन्दन करती है|

“आओ जॉन – मुझे लगा तुम अभी सो रहे हो |” अनिकेत भी उसकी ओर देखता हुआ कहता है|

“हाँ थोड़ा ज्यादा सो गया था और अगर तुम नही होते तो पता नही कबतक ऐसे रहता |” जॉन के द्विअर्थी वाक्य को जहाँ अनिकेत समझता हुआ अनुमोदन में मुस्करा दिया वही पलक के हाव भाव अनजान बने रहे|

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा आखिर किस बारे में बात हो रही है |”

“बहुत लम्बी कहानी है पलक – बस इनशोर्ट यही समझ लो कि इसी भ्रम जाल में मैं भी फंसा था और अगर अनिकेत सही समय पर मुझे सहायता नही पहुंचाता तो पता नही मैं कभी इस डिप्रेस मोड से बाहर भी आ पाता |”जॉन की बात सुनती हुई पलक उसकी कही बात को समझने की कोशिश कर रही थी और जॉन अपनी बात कहे जा रहा था – “अभी ये सब छोड़ो और ये बताओ कि क्या झलक और रचित किसी बात पर डिप्रेस तो नही हो रहे थे ?”

“डिप्रेस..!!” कुछ पल सोचती हुई पलक तुरंत ही कह उठती है – “हाँ झलक ने बताया था कि 2001 में जो भुज में भूकंप आया था उसमे रचित ने अपने पेरेंट्स को खो दिया था और कुछ दिन से इसी बात पर वह थोड़ा चिंतित बना हुआ था लेकिन इस बात का इन सबसे क्या ताल्लुक ?”

“ताल्लुक ही तो है और वो भी सीधा – |”जॉन कहता है|

उनकी बात के बीच अनिकेत जो कुछ सोच में डूबा था तुरंत खड़ा होता हुआ कहता है – “तो इसका मतलब रचित मुश्किल में है – जॉन हमे सबसे पहले उसकी मदद  करनी चाहिए – कही ऐसा न हो कि हमे देर हो जाए |”

अनिकेत की बात पर पलक उड़े उड़े होश के साथ उन्हें देखती रही|

जॉन अनिकेत का समर्थन करता हुआ कहता है – “सही कह रहे हो – अभी उन्हें बचाना सबसे बड़ा काम है |”

पलक ये सब से अभी भी हैरान बनी हुई थी जॉन कमरे से बाहर चला गया जबकि अनिकेत जल्दी करने को कह रहे आखिर है क्या ये मुसीबत !!

“बहुत बड़ी मुसीबत – हमारी सोच से भी बड़ी मुसीबत !” अनिकेत पलक को कंधे पकड़े हुए कहता है – “लौटकर सब बताते है कि आखिर ये है क्या मुसीबत तब तक तुम अपना ख्याल रखना और सकारात्मक ऊर्जा को खत्म मत होने देना – |”

पलक अपनी सोच में ही पड़ी रही और अनिकेत जॉन के साथ निकल गया|

वे साथ में एक कार में थे और कार अनिकेत ड्राइव कर रहा था जबकि जॉन अपने डिवाइस में रचित की लोकेशन ढूंढने की कोशिश कर रहा था|

“अनिकेत क्या हम इस तरह से उन्हें ढूंढ पाएँगे ?” जॉन संशय से पूछता है|

“कोशिश करते है पर मुझे डर है अगर रचित भी समय के पार फंस गया तो सोचना पड़ेगा कि उन्हें कैसे वापस लाया जाए क्योंकि उनके समय की परिधि को मैं अभी जानता भी नही हूँ |” अनिकेत सामने की ओर देखते हुए फ़िक्र से बोला|

कार सड़क पर चली जा रही और जॉन फिर से रचित की लोकेशन ट्रैक करने में लग गया था|

इन सबसे अलग झलक बड़ी बेचारगी भरी नज़र से अपने आस पास देखती है| बड़ी अजीब सी जगह थी वह| जंगल तो था पर जंगल वाले अहसास से अलग था बल्कि वह खुद को किसी अंधी सुरंग में महसूस कर रही थी| वह जहाँ खड़ी थी वही से रचित को कार में अभी भी बैठा हुआ देख रही थी| उसे देखते उसकी ऑंखें डबडबा आई|

“रचित – क्या हो गया तुम्हे – अन्दर से भलेही तुम ये नही हो पर मेरे लिए तो मेरे रचित ही हो और मैं तुम्हे छोड़कर कैसे जा सकती हूँ – हाँ मैं तुम्हे ऐसे हालत में बिलकुल नही छोड़ सकती – उफ्फ जाने ये कैसी मुसीबत है और ऊपर से ये रात जैसे रबड़ की तरह खिच गई है |” सोचती हुई झलक कलाई में बढ़ी घड़ी की ओर दृष्टि करती है| घडी इस समय बंद थी|

झलक एक बार फिर अपनी नज़र की सीध में रचित को देखती है जो कार की ड्राइविंग सीट में किसी बुत की तरह अभी भी बैठा हुआ था| झलक अब अपने आस पास देखती हुई जब सुनिश्चित हो जाती है कि वहां और कोई नही है तो वह सहमे भाव से उसकी ओर बढ़ जाती है|

वह कार की ड्राइविंग सीट के शीशे के पार से रचित को देखती है| कितनी सूनी और बुझी हुई उसकी नज़र थी| आखिर क्यों हो गया ऐसा वह ??

“रचित !!” वह उसे पुकारती है पर रचित उसकी ओर नही देखता जिससे झलक थोड़ा गुस्से भरे स्वर में कहती है – “रचित !! प्लीज़ इन सबसे वापस आओ – तुम जो सोच रहे वो सब सिर्फ तुम्हारी सोच है – तुम उन्हें नही बचा सकते थे – वो भूकंप था और अन्यास आया था – तुम्हारे पेरेंट्स ही नही जाने कितनो ने अपनों को खो दिया तब तुम क्या अकेले प्रकृति से लड़ोगे इसलिए प्लीज़ इस तरह से सोचना बंद करो – तुम खुद को बीमार कर रहे हो – रचित प्लीज़..|” कहते कहते झलक की आवाज भरभरा उठी थी|

पर और भी कुछ अजीब था जो उसने देखा कि रचित सच में उसकी ओर देखने लगा जैसे वह किसी तन्द्रा से धीरे धीरे वापस आ रहा था…..|

क्रमशः………………………….

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