
डेजा वू एक राज़ – 34
दिन का उजाला उसकी आँखों के सामने था पर अभी अभी वह जिस अँधेरे से निकल आई थी ये सिर्फ उसका दिल ही जानता था| ये बात अभी दीगर थी कि वह अभी भी किसी बीहड़ में खड़ी थी| न वहां कोई साइन बोर्ड या मील का पत्थर ही था जिससे वह उस जगह को जान पाती| तभी उसे अपने विपरीत से एक कार आती हुई दिखी तो उसके बुझते मन को कुछ उम्मीद बंधती हुई लगी|
वह तुरंत और सड़क के नजदीक जाकर खड़ी होती कार को रुकने का इशारा करती है| उसे उम्मीद भी नही थी कि कार इतनी आसानी से उसके हाथ दिखाते रुक जाएगी| सुबह की हलकी रौशनी में उस कार के अंदर कौन है ये तो स्पष्ट नही हुआ पर उसका रुकना कुछ हद तक झलक के मन को सुकून दे गया| कार अब उसकी साइड की ओर आती हुई रुक गई ये देखते झलक तुरंत उस कार की ओर भागती हुई गई तब तक कार के एक ओर का डोर खोलता हुआ एक शख्स उसकी आँखों के परिदृश्य में आया जिसे देखते झलक की आंखे ख़ुशी से दमक उठी|
झलक की आँखों के सामने जॉन खड़ा था अगले ही पल उसके दूसरी ओर से अनिकेत भी निकल आता है उस पल उसके मन में उन्हें देखते कितना सुकून आया ये बस उसका मन ही जानता था|
अनिकेत ने आखिर झलक को ढूंढ लिया और वो भी सुरक्षित आखिर इससे बढ़कर उस वक़्त और क्या कामयाबी हो सकती थी| जॉन की मदद से रचित को वह अपनी कार में ले आते है और उनकी कार वही अच्छे से लॉक करके वे सभी वापस घर की ओर मुड जाते है| रचित के सर पर चोट लगी थी जिससे वह अभी तक बेहोश था पर बाहर से कोई भी कट या खून का निशान नही था जिसका साफ़ साफ़ मतलब था कि उसे कोई अंदरूनी चोट लगी होगी जिससे वे उसे लेकर सबसे पहले किसी नजदीक के हॉस्पिटल की ओर जाते है| तब तक रास्ते भर में झलक अपने ऊपर आई सारी मुसीबत जस की तस सुना डालती है|
इस पर अनिकेत झलक की तारीफ करता हुआ कहता है – “तुमने ऐसे वक़्त बहुत हौसले से काम लिया – तुम सच में बहुत बहादुर हो – |”
झलक इस पर अदनी की मुस्कान के साथ सीट पर लेटे हुए रचित पर नज़र डालती है जिससे अनिकेत आगे कहता है – “डोंट वरी कुछ नही होगा रचित को – अब बस हम हॉस्पिटल पहुँचने ही वाले है|”
अबकी कार जॉन चला रहा था और मैप में देखते अनिकेत उसे एक हॉस्पिटल जाने का रास्ता बताता है जहाँ वे अगले कुछ पल में ही पहुँच जाते है|
हॉस्पिटल पहुंचकर उसका चेकअप करते हुए डॉक्टर जब उसका सदमे से बेहोश होना बताते है तब जाकर उन सबके मन में राहत की सांस आती है इसका मतलब था कि रचित जल्दी ही होश में आ जाएगा| तब तक अनिकेत उनका हाल बताने पलक को फोन करता है तो झलक उदासी से बैठी रचित के होश में आने का इंतजार करती करती अब उन सभी परिदृश्य को याद करती है जिनसे अभी अभी वह निकल कर बाहर आई थी| वह अभी तक उलझी हुई थी कि आखिर उनके संग हो क्या गया ये किसी तरह का भ्रम था या सच में वे मौत को छूकर वापस आ गए !!
वह अभी अपनी इस तन्द्रा में थी कि डॉक्टर की दी दवाइयों का असर होते रचित अब कराहते हुए आंख खोलता है|
“रचित !!” झलक दौड़कर उसके पास पहुँच गई|
रचित सर को दोनों हाथ से थामे उठने की कोशिश करने लगता है जिससे झलक उसे हलके से पीछे करती लेटे रहने को कहती है|
“उफ्फ मेरा सर इतना भारी क्यों हो रहा है ?”
“रचित ! तुम ठीक हो – मैं – मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हूँ |” झट से रचित को छोडती हुई झलक बाहर की ओर भागती है|
इसके अगले ही पल आगे आगे डॉक्टर और पीछे पीछे झलक, जॉन और अनिकेत साथ में प्रवेश करते है| डॉक्टर आते ही उसका पुनानिरिक्षण करता हुआ रचित से पूछता है – “अब आपको कैसा लग रहा है ? कही कोई दर्द है आपको ?”
अपनी बात पूछता हुआ डॉक्टर दो पल तक रचित का चेहरा गौर से देखता रहा फिर उसके सर न में हिलाने के बाद वह कहता हुआ बाहर निकल जाता है – “इट् मीन्स यू आर फाइन – आप चाहे तो डिस्चार्ज ले सकते है |”
अब झलक रचित का हाथ अपने हाथो में लेती हुई उसका चेहरा देखती है दो पल में ही कितना मुरझाया हुआ हो गया था|
अब रचित झलक से लेकर अनिकेत और जॉन को आश्चर्य से देखता हुआ पूछता है – “मैं हॉस्पिटल में कैसे हूँ – मुझे हुआ क्या था ?”
अब सभी बारी बारी से एकदूसरे का चेहरा देखते है फिर अनिकेत आगे बढ़कर रचित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “सब बताऊंगा पर अभी हमे यहाँ से निकलना चाहिए – चलो |”
अनिकेत के कहते तीनो उसके साथ बाहर निकल जाते है|
अगले कुछ समय में ही वे लखनऊ की सीमा में पहुँच गए जिसे देखते हुए देर की ख़ामोशी तोड़ता हुआ रचित पूछता है – “मेरी कार कहाँ है ?”
“वो हमे हाइवे पर ही छोडनी पड़ी – पर डोंट वरी मैं किसी तरह से उसे मंगवा लूँगा – कार लॉक है |” अनिकेत आश्वासन देता हुआ कहता है|
रचित माथे पर उंगली फिराते हुए कहता है – “बहुत कुछ अजीब ही रहा है – मुझे ऐसा लग रहा है जैसे पिछले कुछ दिन की मैं याददाश्त ही खो चुका हूँ – मुझे कुछ भी याद नही आ रहा कि मैं कब हाइवे तक गया – क्या झलक तुम मुझे ढूँढते हुए आई थी ?”
ये सुनते झलक की आंखे जैसे बाहर को निकल आई| उसे उम्मीद नही थी कि रचित ऐसा कुछ पूछेगा !! क्या सच में जो उसके साथ था वो ये रचित नही था क्या !!
“मैं तो तुम्हारे साथ ही थी फिर ऐसा क्यों पूछ रहे हो – ये सब हो क्या रहा है – मेरा तो दिमाग घूम रहा है|”
अब रचित उसे सभी को अजनबी की तरह देखने लगा| वैसे भी अभी किसी के पास इन बातों का कोई उत्तर नही था| इससे अब उनके बीच कुछ पल तक ख़ामोशी बनी रही जिसे तोड़ते हुए जॉन कहता है – “कुछ समय से हो तो बहुत कुछ अजीब रहा है – वैसे अभी तक मैं भी अपने बारे में कुछ नही सुलझा पाया तभी तुम लोगो के गुम होने की खबर मिली और हम दोनों तुम दोनों को खोजने चले आए|”
“कही इन सबके पीछे महामाया तो नही – आखिर इतना बड़ा और डरावना भ्रम और कौन दे सकता है ?”
“महामाया तो बस एक प्यादा है असल में जो इन सबके पीछे वजीर है वो कोई और है |”
“कौन !!” एक साथ तीनो पूछ बैठते है|
“बताऊंगा – सब बताऊंगा – बस सारी कड़ियाँ एकसाथ जोड़ लूँ |”
अनिकेत की बात पर सभी खामोश होने के सिवा क्या कर सके थे| अब सभी ख़ामोशी से बैठे अपनी अपनी तरफ के शीशे के पार बदलते दृश्य पर अपना ध्यान लगा देते है|
अनिकेत अबकी पलक झलक के घर के बाहर कार रोकता है| कार के रुकने की आवाज से ही पलक झट से बाहर आ जाती है| इसका साफ़ मतलब था कि वह कितनी बेचैनी से उन सबके लौटने का इंतजार कर रही थी|
पलक झलक को देखते झट से उसे गले लगाती हुई कहती है – “अभी पापा का फोन आया था – वे पहले ही गंगोत्री में रुक गए थे – |”
“क्या सच में ?” झलक की आंखे जैसे ख़ुशी से भर आई|
इस पर हामी में सर हिलाती हुई पलक कहती है – “सच में वे सुरक्षित है |”
अबकी अपनी बात कहती अनुमोदन में सबकी ओर नजर फेरती है| सभी हलकी मुस्कान से उसका अनुमोदन करते हुए अंदर आते है|
वे सभी एकसाथ बैठे कुछ पल तक यूँ खामोश थे मानो किसी तूफान को पार करके आए हो| रचित भी अब कुछ बेहतर नज़र आ रहा था तो झलक मुस्कराती हुई रचित के बगल में बैठी थी| जॉन अपने डिवाइस में कुछ देख रहा था तो पलक अभी अभी लायी हुई चाय सबकी ओर बढ़ा रही थी| अनिकेत सबकी ओर एक सरसरी नज़र डालते हुए कहता शुरू करता है जिससे तुरंत ही सभी उसकी ओर देखने लगते है जैसे बस इसी पल का वे इंतजार कर रहे थे|
“मैं आगे कुछ भी बताने से पहले ये चाहूँगा कि रचित तुम्हे पिछली बात क्या याद है वो बताओ ?”
रचित अब अपने हाथ में पकड़ा कप टेबल पर रखता हुआ सोचते हुए कहना शुरू करता है – “मुझे अपने ऑफिस से फोन आया था कि मैं दिल्ली पहुंचकर एक मीटिंग अटेंड करूँ – मीटिंग बॉस के नए प्रोजेक्ट पर थी जिसे उन्हें अटेंड करना था पर किसी कारण से वे नही आ पाए और मैं दिल्ली के पास था तो मुझे जाने को कह दिया – मैं दिल्ली पहुँचने ही वाला था तभी प्रोजेक्ट मेनेजर का फोन मुझे आता है और वे मुझे प्रोजेक्ट से जुड़े असाइंमेंट मेल करने लगते है जिसे ओपन करने पर पता चलता है है कि वे भुज के कुछ डिस्ट्रॉय होटल पर अपना इन्वेस्टमेंट करना चाहते थे साथ ही वे उन होटलस को एक म्युजम की तरह भी रखना चाहते थे ताकि उस त्रासदी को टारगेट करते वे अपना बिजनस चला सके – ये देखते मुझे बिलकुल अच्छा नही लगा – आखिर कोई त्रासदी किसी के लिए अवसर कैसे हो सकती है – वैसे भी कुछ समय से मैं भुज की त्रासदी के बारे में सोचता हुआ परेशान सा था अब ये बात मुझे और परेशान करने लगी इसलिए मैंने इस मीटिंग में न जाने का तय किया और झलक को लेकर तुरंत ही बैगलुरु जाने का तय कर लिया – ताकि अपने बॉस से सामने मिलकर मैं सब बता सकूँ – मैं बस वापस आ ही रहा था कि सर में भयानक दर्द शुरू हो गया तो मैं किसी मेडिकल शॉप में सर दर्द की दवाई लेने पहुँच गया – उस वक़्त मैं इतना परेशान था कि उसने जो दवाई दी मैंने बिना सोचे खा ली |”
“और उसका कैश मेमो ?” अनिकेत जल्दी से पूछता है|
“याद नही – शायद जल्दी में मैं नहीं ले पाया और उस दवाई को लेने के बाद से ही मुझे कुछ नही याद कि मेरे साथ क्या हुआ – उसके बाद बस झलक का चेहरा याद आता है और फिर उस हॉस्पिटल का बस |” कहता हुआ रचित एकबार फिर अपना माथा मसलते हुए चुप हो जाता है जिससे झलक अब और उसकी ओर सरकती हुई अपने हाथ से उसका सर सहलाती हुई आगे कहती है –
“मुझे लग ही रहा था जो उस बीहड़ जंगल में मेरे साथ है वो मेरा रचित है ही नहीं – कितना डर गई थी मैं – कितना भयावह अनुभव था वह – मुझे वहां वे सारे लोग दिखे जो मेरे ब्लॉग में है जबकि मैं उन सबसे कभी मिली ही नही – बस चेहरे देखे थे तस्वीर में फिर अचानक से वे सभी कैसे मेरी नज़रो के सामने आ सकते है ?”
“कैसा ब्लॉग ?” अनिकेत पूछता है|
“मैंने एक ब्लॉग बनाया था जिसमे मैं खोए हुए लोगो को एक साथ जोड़ सकूँ – बल्कि उन सब लोगो को भी जो दुनिया में अकेले है और उनकी कोई खोज खबर नही लेता – पर अचानक से कुछ दिन पहले से उस ब्लॉग की सारी सेटिंग मिस हो गई जबकि मैंने उसका पासवर्ड किसी को बताया भी नही |”
“ओह तुमने ऐसा कोई ब्लॉग बनाया और अनजाने में ही उस वजीर के हाथ चाभी दे दी |”
“क्या मतलब ?” अनिकेत की शंका पर झलक एकदम से चिहुक पड़ी|
अनिकेत अब खड़ा होते टहलते हुए कुछ सोचने लगता है जिसपर झलक शंकित होती इशारे में पलक से अनिकेत के इस अजीब व्यव्हार पर पूछती है तो पलक अनिकेत की ओर देखती हुई पूछने लगती है – “अनिकेत – आप किस वजीर की बात कर रहे है और झलक के ब्लॉग से उसका क्या लेना देना – प्लीज़ आप खुलकर सब बताए न – मेरा तो ये सब सोच सोचकर दिमाग ही घूमा जा रहा है|”
“वही तो सब कड़ी जोड़ रहा हूँ मैं – जॉन का गुम होना – उसे हाई डोज़ की दवाई देना – रचित का कोई अननोन दवाई खा कर अजीब व्यबहार करना – इन सबके पीछे बस एक ही का हाथ है वो है ये वजीर -|”
“वजीर !!!!” सभी चौंकते हुए पूछते है|
“हाँ अभी मैंने इसे वजीर ही नाम दिया है क्योंकि असल नाम तो मैं जान नही पाया पर बहुत जल्दी वो भी जान लूँगा – बस एक बार मैं इन सबकी वजह जान लूँ कि ऐसा करने के पीछे उसका क्या मकसद है – आखिर क्यों वह लोगो को उसने पास्ट के दर्द में ले जाना चाहता है !! आखिर क्यों वह उन्हें डेजा वू का भ्रम दे रहा है !! इस सारे सवालो को ढूंढने के बाद ही मैं पूरी बात समझ पाउँगा |”
“प्लीज़ जीजू अभी आपको जो कुछ भी पता है प्लीज़ हमे बताओ – मैं तो ये सब देख देखकर पागल ही हो रही हूँ |”
झलक की बात पर अनिकेत बारी बारी से सबकी ओर देखता हुआ एक गहरा श्वांस भीतर खींचता हुआ फिर से अपनी जगह बैठ जाता है|
अब सबकी निगाह उसकी ओर ही टिक गई थी|
वह कहना शुरू करता है – “सबसे बड़ी बात है कि इन सब मुसीबत से निकलकर अब हम सुरक्षित है पर अभी पूरी तरह से हम इससे बाहर नही आए है इसलिए अभी मैं जो कुछ भी बता रहा हूँ उन सब सावधानियो पर ध्यान देना बहुत जरुरी है |”
अनिकेत विस्तार से बात कहने के अंदाज से सोफे पर से पीठ हटाता हुआ अब उनकी ओर गौर से देखता हुआ कहना शुरू करता है|
क्रमशः……