
डेजा वू एक राज़ – 38
वही रेतीला समन्दर वही दमकती सोने सी सोन महल पलक का बाँछे बिछाकर कर स्वागत करेगी पलक ने सोचा भी नही था जबकि वह बड़ी हिचकिचाहट के साथ वहां प्रवेश करती है| अनामिका तो जैसे मिनट भी घंटो की तरह बिता रही थी जब से उसे मालूम पड़ा था कि पलक उसके पास आने वाली है|
“यकीन ही नही आ रहा कि तू मेरे सामने है – सच्ची पल्लो बहुत बड़ा वाला सरप्राईज दिया तुमने |” अनामिका बेसब्र होती कैब से निकलते ही पलक के गले लग जाती है| पलक से मिलने की अपार ख़ुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी| पलक भी उसके गले लगी जैसे दो पल को भूल ही गई कि उसके पीछे खड़ा अनिकेत उन्हें चुपचाप देख रहा है|
“अरे अनिकेत जी आप वहां क्यों खड़े है – ?”
अब आवाज से दोनों सखियों की तन्द्रा टूटते दोनों साथ में कभी चुपचाप उन्हें निहारते अनिकेत पर फिर अभी अभी वहां आए रूद्र को देखती है जो अब तक अनिकेत के पास पहुँचता हुआ बेहद सम्मान से उसे अन्दर चलने का आग्रह करता हुआ कहता है –
“आपने आकर हमारा सबका सम्मान बढ़ा दिया – हमे आपके आने की सच में बहुत ख़ुशी है|”
“ओह हम आपस में मिलने में जीजू सा आपको तो भूल ही गई – क्षमा कीजिए -|” अनामिका नज़रे झुकाती हुई कहती है तो इसपर अनिकेत अपनी मुस्कान का लेप लगाता हुआ आगे बढ़ता हुआ कहता है – “इसी स्नेह के कारण तो पलक इतनी लम्बी यात्रा करके आई है – |”
“सच में |” एकबार फिर अनामिका उसके गले लगाती मुस्करा पड़ी|
“लगता है अनु – आप अपनी सहेली को अंदर ले जाने के मूड में नही है |” हँसते हुए ज्योंही रूद्र ने कहा अनामिका को छोड़ सभी खिलखिला उठे|
बड़े दिन बाद सहसा पुराना लम्हा लौट आया था| वही पलक का स्वागत, सबके चेहरे पर उसके लिए इंतजार, आलिशान आवभगत सब कुछ तो वही था जब वह पहली बार इस महल में आई थी उससे बस आज उसके मन का अहसास कुछ अलग था| तब वह झलक के साथ आई थी इसलिए इस बार भी उसे झलक की कमी महसूस होने लगी|
अनामिका बड़े प्यार से पलक को अपने साथ में लिए मेहमान कक्ष में उसे ले आई थी तो रूद्र अनिकेत को विशिष्ट मेहमान का अहसास कराते अपने साथ ले गया|
दोनों सखिया मिल कर अभी भी इतनी बाते कर रही थी मानो अचानक लदी फूलो की टोकरी उफन पड़ी हो…आखिर कितने इंतजार के बाद उनके पास फिर एक बार उनके साथ का लम्हा आया था|
“काश झलक भी होती तो कितना अच्छा होता – लगता जैसे उसी पल में पहुँच गए जब तुम दोनों कैसे चुपचाप हमारी सगाई में आई थी – क्या मजा आया था तब |”
“कोई बात नही – एक दिन झलक भी सब समझेगी और देखता एक वो दिन भी आएगा जब हम तीनो फिर एकसाथ होंगे|”
“सच में मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा –|” अनामिका मुस्कराती हुई कह उठी|
“अच्छा ये बता – वो वजह कहाँ छुपा रखे हो जिसके लिए मैं इतनी दूर से आई – नन्हे कुंवर को छुपा के रखोगी क्या मुझसे |”
“ओह हाँ – इसमें भी तेरी गलती है – तुझसे मिलने में मैं सब भूल ही गई तो मैं क्या करूँ |”
“अच्छा !” अनामिका की ठसक पर पलक और मुस्करा उठी|
अनामिका तुरंत उठकर बाहर चली जाती है| जब तक अनामिका वापिस आती तब तक पलक के लिए उसी कक्ष में जलपान का आलिशान इंतजाम किया गया|
कुछ देर बाद अनामिका अपनी गोद में एक खूबसूरत सा बच्चा लिए प्रवेश करती है|
“ये है नन्हे कुंवर – अभी नाम नही रखा गया है तो बस यही बुलाते है सब इन्हें |”
पलक बड़े प्यार से उस गोलमटोल बच्चे को अपनी गोद में ले लेती है| फिर उसे प्यार से दुलारने लगती है|
“लगता है पूरे महीनो भर जीजू को ही निहारती रही क्या – बिलकुल उन्ही पर गया है इसलिए मैं भी बस यही करती हूँ |”
“क्या !! क्या कह रही हो -|” अचानक जो पलक कह गई उसे समझती अनामिका उसकी चोरी पकड़ती हुई उसपर अपनी छद्दम नाराज़गी दिखाती हुई आगे कहती है – “इतनी बड़ी बात और मुझे भी नही बताया तुमने !”
इस पर पलक हौले से हुई शरमाती हुई कहती है – “अभी तो बस तीन महीने ही हुए है |”
“सच्ची – ये सुनकर मैं तो बहुत खुश हूँ – अब मेरे कुंवर को भी अपना दोस्त मिल जाएगा – तू भी न बड़ी छुपी रुस्तम है – कितनी बात छुपा ले जाती है|”
“क्या बात छुपा ले गई जरा हम भी तो जाने |” अचानक उनकी वार्ता के बीच एक तीसरी आवाज उभरी जिसे पहचानती हुई पलक तुरंत खड़ी होकर उनका अभिवादन करती है – “रानी साहिबा !!”
“रानी साहिबा तो हम दूसरो के लिए अपनों के लिए तो बस माँ है – आप हमे माँ सा कहेंगी तो हमे और भी अच्छा लगेगा |” रानी साहिबा पलक के पास आती उसे अपने अंक में लेती हुई उसका माथा प्यार से चूम लेती है|
पलक की गोद से उतरकर नन्हे कुंवर अब अपनी माँ को पकड़कर खड़े हो गए| अनामिका भी खड़ी हुई उन्हें आपस में प्यार से मिलते देख ख़ुशी ख़ुशी निहार रही थी|
“इतने समय बाद आपको देखकर हम बता नही सकते कि हुए हमे कितनी ख़ुशी हो रही है और हम ही क्या ये राजमहल भी आज धन्य हो उठा – आप हम सबके लिए शुभ है – आखिर आपके पैर महल में पड़ते ये महल अपने सदियों के श्राप से जो मुक्त हुआ था |”
“माँ सा ये तो वक़्त को मंजूर था बस हम वजह बन गए |”
पलक के परिपक्व उत्तर पर माँ सा बस हलके से मुस्करा दी|
“और वो भी बहुत खूबसूरत वजह जिसे हम क्या कोई नही भूल सकता – अच्छा आप दोनों सखियाँ बैठिए हम आते है – अभी थोड़ी देर में पूजा भी शुरू होने वाली है – तब बहुत देर बैठना पड़ेगा इसलिए तब तक आप आराम करिए |” माँ सा दोनों को साथ में छोड़ती कुंवर को तैयार कराने अपने साथ ले जाती है|
सखियाँ फिर एकदूसरे का साथ पाकर खिल उठी थी|
“बस सारे मेहमान आ गए पूजा थोड़ी में शुरू हो जाएगी उसके बाद तो हम इतने व्यस्त हो जाएँगे कि साथ में बैठ भी नही पाएँगे इसलिए तब तक हम साथ में बैठे थोड़े गप्पे लगा लेते है|”
“हाँ वो तो है – अच्छा नंदनी कैसी है – वो नज़र नही आई !” पलक पूछती है|
“सब ठीक है – आज कल उसका सातवां माह भी है न और उनकी माँ शारदा भी आजकल कुछ बीमार रहती है इसलिए ज्यादातर वह अपने कक्ष में आराम करती है – जब बाहर पूजा के लिए जाएँगे तब बाकी सबसे तुम्हे मिलाएँगे – जब से तुम्हारे आने का पता चला है हम तो सारे महल में तुम्हारे आने का ही गाते फिर रहे है – क्या बताए कितनी ख़ुशी हुई तुम्हे देखकर – अब माँ के बाद वैसे भी लखनऊ बड़ा पराया सा लगता है लेकिन तुम आ गई तो लगता है जैसे हमारा सारा लखनऊ हमारे सामने आ गया|”
“आंटी नही रही – ये कब हुआ !! तूने बताया ही नही |” पलक आश्चर्य प्रगट करती है|
“हाँ कुंवर के जन्म से एक माह पहले ही वे गुजर गई और अपने नाती का मुंह तक नही देख पाई – वैसे कुछ ख़ास बीमार नही थी फिर भी होनी को कौन रोक सका है ?”
“ओह – बड़ा अफ़सोस हुआ जानकर |” सांत्वना में पलक उसके हाथ पर अपना हाथ रखती है|
“अब होनी में किसका बस चला है – उधर नंदनी के साथ भी यही हुआ – जब उनके कुंवर का जन्म हुआ तो हमारे सास नानी सा नही रही – बड़ा अजीब संयोग है – एक तरफ जन्म हो रहा दूसरी तरफ ईश्वर घर के बड़ो को बुला लेते है….!” कहते कहते अनामिका सहसा रुक कर पलक की प्रश्न में उठी नज़र देखती रही, अब तक वह अपनी ही कही बात को जैसे उसकी नज़र से अब जाकर नए अर्थ में समझ पायी, क्या ये कोई वाकई संयोग है या ये भी कोई श्राप का असर है कि एक तरफ महल में सदस्यों की संख्या बढ़ रही है दूसरी ओर घर के बड़े सदस्यों की हानि भी..!!
अब दोनों संशय में खामोश हुई कुछ पल तक यूँही एकदूसरे को देखती रही, जैसे अभी अभी जो कहा है वो कोई आकस्मिक अफसोसजनक घटना है जो आगे और कहाँ जाएगी कोई नही जानता पर उसका डर अब अनामिका की रगों में सनसनी सा धीरे धीरे उतरने लगा था|
वक़्त कब किसकी पकड़ में आया है जो जो अब आता| दोनों साथ में बैठी ही थी कि कुछ समय बाद पूजा के लिए उनका बुलावा आ गया| जिसके लिए अनामिका तैयार होने चली गई तो सेविका पलक को लिए मंडप स्थान पर ले आ आई जहाँ पूजा संपन्न होनी थी| वहां माँ सा संग बैठी वह सभी से मिल रही थी| औपचारिकता में नंदनी भी उससे पल भर को मिलकर चली गई| महल के बाकी सदस्य भी उससे मिले और अपना हर्ष प्रगट किया| वैजयंती और शौर्य अभी आए नही थे बाकी सभी उनके आने का इंतजार कर रहे थे| इस तरह सभी पलक से मिल लिए और हर पुराने चेहरे उसकी नज़र से गुजर लिए पर अभी तक बस नवल नही दिखा था| पलक को ये अजीब लगा फिर भी उसे उससे मिलने की कोई दरकार भी नही थी|
पर महल के अंदर कही पलक के आने का अफ़सोस भी जताया जा रहा था या यूँ कहना ज्यादा सही होगा कि उसके आने भर से उस हिस्से में एक अनचाहा डर फिर अंकुरित होने लगा था| नंदनी बेचैन सी कक्ष में टहल कर अपनी तड़प पर भर कोशिश नियंत्रण करने की कोशिश कर रही थी| ऐसा लग रहा था जैसे पूरे महल में एक वही थी जिसे पलक का आना कतई नही सुहाया और इसी डर से वह बार बार नवल को भी खोजती जैसे उसकी नज़रो को वह टटोलना चाहती थी पर अब तक नवल भी उसे नज़र नहीं आया था इस कारण उसका संदेह और बार बार अपना सर उठा लेता|
इतने समय नवल के साथ रहते वह ये तो बखूबी समझ गई थी कि नवल ने अपने हिस्से का उसे सब कुछ तो दे दिया बस नवल के दिल के उस हिस्से में वह नही उतर सकी जहाँ शायद पहला प्यार अंकित होकर किसी पुराने जख्म सा आज भी जिन्दा है और यही उसकी तड़प का आज भी कारण है इसी वजह से वह कभी नही चाहती कि नवल और पलक का कभी आमना सामान भी हो !
भुवन अपने नाती को तैयार कराने कक्ष में लाता है और पल में अपनी लाडो की परेशानी और पलक का आना आपस में सम्बंधित कर लेता है| उसकी नज़र में तो बस अपनी लाडो का चैन से रहना ही एक मात्र इच्छा थी| उस पल उसे भी पलक किसी कांटे जैसी उसे चुभने लगी जिससे वह नंदनी की बेचैनी को राहत देने से कहता है –
“लाडो थे फ़िक्र कोणी करो – अब वक़्त आ गयो है ये काटो सदा के लिए हटने के लिए |”
“बापू !!”
“थे बस आराम कर – अभी ऐसी चिंता कोणी करणी है थारे को |” इतना कहकर वह कुंवर को उसके पास छोड़कर बाहर चला जाता है|
सब जगह उत्सव की असीम तैयारी हो रही थी| सबके चेहरे उल्लास से खिले हुए थे| पलक सबके बीच घिरी खुश थी पर अभी अभी एक कॉल आने से अनिकेत परेशान हो उठा था क्योंकि दूसरी ओर से जॉन बहुत बेचैनी से अपनी बात कह रहा था –
“अनिकेत अगर आ सकते हो तो जल्दी वापस आ जाओ – बहुत बड़ा क्लू हाथ लगा है – मैंने सोचा भी नही था कि ये बात इतनी गंभीर भी होगी – अब बस ज्यादा कुछ फोन पर नही कह सकता – तुम आ जाओ तब सब बताता हूँ |”
जॉन की बात सुनने के बाद अनिकेत भी उसकी बात की गंभीरता समझ गया था जिससे वह तुरंत ही वापसी का टिकट बुक करके ही पलक के पास आता है| पलक पल में अनिकेत के बदले हाव भाव देखती समझ गई कि जरुर कोई बड़ी बात है|
“पलक माफ़ करना पर अभी हमे वापस जाना होगा – मैंने टिकट भी बुक कर लिया है – समझो बहुत अर्जेंट है|”
अनिकेत को उम्मीद भी थी कि पलक उसकी भावनाओ को समझ जाएगी और वह सहजता से हामी भरती हुई कहती है – “कोई बात नहीं चलते है वापस – वैसे भी आप मेरे लिए यहाँ आए यही बहुत है मेरे लिए – सच में आप रिश्तो का बहुत सम्मान रखते है – अब मुझे भी तो आपकी बात समझनी होगी – आप कैब बुक करिए मैं माँ सा को बताकर आती हूँ |”
अनिकेत सहमति में हामी भरते है|
पलक का इस तरह आधी पूजा संस्कार में वापस जाना किसी को अच्छा नही लगा पर उसकी अर्जेंसी को सबको समझना ही पड़ा| माँ सा और अनामिका बस उसे नम मन से किसी तरह विदा की कर पाए| रूद्र उन्हें कैब न बुक करने का कहकर अपनी कार से बीकानेर छोड़ने की पेशकश करता है जिसे अनिकेत चाहकर भी इन्कार नही कर पाता| भुवन जो अब परिवार में रिश्ते की वजह से हर चीज में सहजता से घुसपैठ कर लेता था वह आगे बढ़कर रूद्र को आश्वासन देता है कि ड्राईवर को सब समझा देगा| रूद्र भी उसके आगे कुछ नही कहता|
फिर एक कार अनिकेत और पलक को वापस बीकानेर लेजाने को तैयार थी जहाँ से उन्हें अपनी फ्लाइट पकड़नी थी| सभी हर्षपूर्ण विदाई देते है और कार जल्दी ही उन्हें लिए रास्तो पर निकल पड़ती है|
नेशनल हाइवे से उन्हें पांच घंटे का रास्ता तय करके बीकानेर पहुंचना था| इस वक़्त तक शाम गहराने लगी थी| वे रास्ते पर थे पर एक अजीब सी बात उनके साथ हो रही थी तब से ड्राईवर अपनी कार की स्पीड बढाने की कोशिश कर रहा था पर उसके आगे आगे चल रह एक अन्य कार उन्हें न आगे जाने का रास्ता ही दे रही थी और न उन्हें उनकी कार की स्पीड ही बढ़ाने दे रही थी| बहुत देर तक यही होता रहा पर सुनसान रास्ता और रात के वक़्त कार से उतरकर आखिर वे किसे इस बात के लिए टोकते| बस लगा सारा रास्ता समय ज्यादा लग गया पर न उनके सामने वाली कार रुकी और न उसकी कार को रास्ता ही दिया बस मध्यम गति से चलते वे बीकानेर पहुँच गए| बड़ी अजीब बात थी पर क्यों ऐसा हुआ कोई नहीं समझ सका|
कई बार उन्होंने हॉर्न बजाकर तो ड्राईवर ने अपनी खिड़की से झाककर अपने आगे वाली कार को हटने को बोला भी पर कुछ हासिल नही हुआ खैर धीमे धीमे ही सही पर वे बीकानेर पहुँच चुके थे|
“ये था कौन और क्या इसने ये जानबूझ कर किया – हमे कोई नुक्सान भी नही पहुँचाया बस लगा जैसे उसका मकसद ही था हमारी कार को धीमा रखना |” पलक अनिकेत से अपनी शंका प्रगट करती है|
“हाँ लगता तो ऐसा ही है पर जब किसी ने कुछ और नही किया तो क्या कर सकते थे हम – खैर हम सुरक्षित तो पहुँच गए न |”
इस पर दोनों साथ में मुस्कराते हुए एअरपोर्ट की ओर बढ़ जाते है|
समय पर उन्हें फ्लाइट भी मिल गई और अगले ही पल वे लखनऊ भी बड़े आराम से पहुँच गए और साथ ही पहुंची एक खबर भी जिसे सुनते उन दोनों के पैर ही जमी से हिल गए| हैरानगी से पलक अपने होंठ चबाती हुई सोचने लगी – ‘क्या ये बस कोई संयोग था या अप्रत्याशित हादसा जो होते होते बस टल गया – अनु ने हमारे बचने पर ईश्वर को धन्यवाद कहा पर क्या सच में ये होनी इसी कारण से बची या उस कार की वजह से जो सारी रात हमारी कार के आगे आगे चलती रही – अगर उस रात वो कार हमारी कार के आगे न होती तो ड्राईवर हाइवे पर निश्चित रूप से स्पीड बढ़ा लेता और वो हादसा हो जाता जो उसके साथ लौटने पर हुआ – अनु ने बताया कि लौटने पर कार अपनी स्पीड पर नियंत्रण खो बैठी और ब्रेक फेल होने की वजह से उस कार का एक्सीडेंट हो गया – क्या हमारा बचना सिर्फ एक संयोग है !!’ गहरा श्वांस भीतर छोड़ती बस ईश्वर को इसका मन ही मन धन्यवाद करती है साथ ही उस अजनबी कार वाले को भी जिसकी वजह से ये हादसा उनके साथ होने से रह गया|
पर कोई नही जानता था कि वह अजनबी कार कबकी वापस महल लौट चुकी थी और उसकी ड्राइविंग सीट से नवल उतर कर महल में दाखिल हो चुका था|
दिलजलो की दुनिया भी क्या दुनिया है…
जिसे चाहकर न सके खुलकर उसे बचा ले जाते है दुनिया से…
क्रमशः……