Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 45

आधी देर रात झलक की अचानक आँख खुली और अपने बगल की खाली जगह देख वह याद करती है कि रचित पिछली रात को दो तीन घंटे का जरुरी काम बोलकर स्टडी रूम में गया था पर अब तो बहुत रात हो रही है| वह उसे देखने के मन से उठती हुई स्टडी रूम की ओर चल देती है|

स्टडी रूम का दरवाजा खोलकर झलक ज्योंही अन्दर पहुंची तो ये देखकर हैरान रह गई कि रचित डेस्क पर सर रखे ही सो गया था| ये देख वह मुस्कराती ये सोचती हुई उसकी ओर बढ़ने लगी कि काम करते करते ही वह थक कर सो गया होगा| वह पास आकर देखती है तो डेस्क पर रखा पीसी अभी भी ब्लिंक कर रहा था| पीसी को ओन देख वह उसे बंद करने के उद्देश्य से उसका कीबोर्ड अपनी ओर करती उसे शट डाउन करने का सोच ही पाई थी कि अचानक उठते हुए रचित झलक का हाथ पकड़ता हुआ कहता है –

“ये क्या कर रही हो ? मैंने मना किया था न कि मुझे डिस्टर्ब मत करना |”

रचित चेतन आँखों से झलक को देख रहा था जबकि इससे झलक चिढ़ती हुई बोल उठी –“तो इस बात को कहे पांच से छह घंटे हो चुके है अबभी पूरी रात यही बितानी है क्या ?”

झलक की चिढ़ी आवाज पर रचित थोड़ा नरमी से कह उठा – “हाँ कुछ जरुरी काम कर रहा हूँ तो प्लीज़ मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो|”

“ठीक है रहो अकेले |” गुस्से में अपना हाथ उसकी पकड़ से छुडाती हुई झलक वापसी को मुड गई| रचित ने भी कुछ नही कहा जिससे झलक तुरंत ही कमरे से बाहर निकल गई पर जाते जाते एक सरसरी नज़र उसकी पीसी पर दो पल को ठहर गई जहाँ का स्क्रीन कुछ अलग ही दिख रहा था जैसे वह नेट का कोई गुप्त दरवाजा था स्याह और बेहद अजीब| वह पहली नज़र ने कुछ ख़ास समझ तो नही  पाई पर उस स्क्रीन में चल रहे बेव ब्राउजर की इमेज उसे कही कही देखी देखी लग रही थी…यूँही सोचते सोचते वह फिर से बिस्तर पर आती पसर गई पर उस ब्राउजर की इमेज काफी देर तक उसके मस्तिष्क में घूमती रही तभी एक झटके से उठकर बैठती हुई वह खुद से कह उठी – ‘ये कही ओनियन शेप की टोर ब्राउजर तो नही !! हाँ डार्क वेब के बारे में पढ़ते हुए कभी उसने इसकी इमेज को देखा था !! पर रचित ! वह क्यों इसका इस्तमाल कर रहा है !! जबकि ये तो एक तरह से इलीगल है !’ मन ही मन इस विचार को खंगालती वह फिर उसे देखने जाने को नही उठी पर मन से उसे जानने का विचार भी पूरी तरह से नही निकाल पाई| आखिरकार वह जबरन फिर से लेटी आंख खोले छत निहारती रही|

इधर फेनी जैसे पूरी रात जागने का मन बना चुकी थी| वह जल्दी ही उस फ़्लैट के एक कमरे को पूरी तरह से लैब बना कर अपना काम शुरू कर चुकी थी| कई तरह से लिक्विड और टेस्टिंग उपकरण के बीच डेस्क पर कुछ दवाइयों के सेम्पल भी पड़े हुए थे| वह बहुत देर से अपने काम में तल्लीन बीच बीच में एक लेटर पैड पर कुछ लिख भी लेती थी|

आधी रात तक यूँही काम करते करते जब थकान उसपर तारी होने लगी तो वह अंगड़ाई लेती शरीर सीधा करने लगती है| वह उंगलियाँ चटकाती अपनी बोझिल ऑंखें झपकाती हुई डेस्क पर उल्टा रखे एक फोटो फ्रेम उठा कर उसे देखने लगी थी| ऐसा करते उसके चेहरे के भाव अब पूरी तरह से बदल चुके थे| कोई अनचाहा दर्द उसकी पलकों पर भारी हो चला था| वह अतिरेक भाव से उस फ्रेम को चूमती हुई मन ही मन बुदबुदा उठी – ‘माय लव – जैकी आई मिस यू अ लॉट..|’

रात बीती और आखिर दिन हुआ जो सबके लिए कैसा था पता नही पर जॉन के लिए बहुत उत्साहित था| वह टिफिन डिलीवर करने को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित था| अनिकेत उसके हाव भाव से सब समझ रहा था फिर भी नासमझी  दिखाते हुए जॉन को तैयार टिफिन के साथ देखता हुआ कहता है –

“मैं उधर ही जा रहा हूँ – कहो तो मैं ही फेनी को दे देता हूँ |”

इसपर अपने चेहरे के सारे भाव समेटता हुआ जॉन तुनकते हुए कहता है –

“हाँ तो जाओ – मुझे कौन सा जाने का शौक है |”

कहने के बावजूद जॉन अपने हाथो के बीच टिफिन लिए रहा जिसपर अनिकेत मजे लेता हुआ कह उठा – “तो लाओ लेकिन सोच लो – अगर तुम जाना चाह रहे हो तो मुझे कोई प्रॉब्लम नही है|”

इससे जॉन और तुनकता हुआ अबकी टिफिन उसकी ओर बढ़ाते हुए कह उठा – “मुझे कोई शौक नही है जाने का – तुम ले कर जा सकते हो |”

“पक्का !!”

“हाँ सौ फीसदी पक्का |”

“सोच लो !”

“सोच लिया –|” अबकी अपनी बात कहता हुआ वह अनिकेत के विपरीत मुड़ता हुआ फिर से अपनी डेस्क के सामने बैठता हुआ भुनभुना उठा था – “जो हुआ वो गुजरे वक़्त की बात थी जिसे मैं सिरे से भूल चुका हूँ – अब बस मैं अपने काम में कॉनसेनट्रेड करना चाहता हूँ |”

अनिकेत को जॉन को सताने में कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा था| वह उसके शब्दों और उसकी भावनाओ के अंतर्विरोध को अच्छे से जानता था इसलिए वह चाहता था कि ये प्रेम है तो थोड़ा तपे ताकि बाद में खरा सोना बनकर निकले|

वह हँसता हुआ टिफिन लेकर निकल जाता है| जॉन एक बार भी पलटकर उसकी ओर नही देखता पर गुस्से में उसकी आंखे स्क्रीन पर देखकर भी नही देख रही थी| वह उसी ताव में सोल रिकॉल सिस्टम को ओपन करके उसका पासवर्ड डालने लगता है कि तभी वातावरण में सोनिक बूम की तेज आवाज गूंजती है जिससे उसका ध्यान बाहर की ओर जाता है| आवाज इतनी तेज थी कि जॉन उसे देखने से खुद को न रोक सका| वह खिड़की पर खड़ा आसमान की ओर देख रहा था पर उसे नही पता था कि ठीक उसी वक़्त उसके सिस्टम के सारे कोड उलटी दिशा में जाने लगे थे| उस दो पल में क्या हुआ जॉन इससे बिलकुल बेखबर रहा और खाली आसमान को देखकर वापस अपनी जगह बैठ जाता है| अब सिस्टम पर वह अपनी कोडिंग डालने लगा था| साथ ही इन्स्पेक्टर द्वारा भेजी तस्वीर को फिर से डाउनलोड करने लगा था|

अनिकेत बहुत ही हलके मूड से अपने फ़्लैट की ओर जा रहा था| उसे उम्मीद थी कि फेनी अपनी टेस्टिंग से कुछ न कुछ तो जरुर पता कर लेगी और वो आज पता चल ही जाएगा| अभी वह अपनी सोसाईटी में प्रवेश किया ही था कि एक तेज आवाज उसके कानो से टकराई| आवाज ऐसी थी मानो ऊंचाई से कोई भारी चीज नीचे को गिरी हो| अनिकेत जब तक समझता वहां लोगो की भीड़ दौड़ जाती है| सभी उस गिरी चीज को घेरे खड़े थे| अनिकेत भी खुद को उधर जाने से नही रोक पाया| वह तेजी से उस भीड़ को हटाता हुआ फर्श पर पड़ी उस चीज को देखता है और उसके पैरो टेल जमी की सरक जाती है| कोई फर्श पर पड़ी थी| वह कोई लड़की थी जिसने शायद आत्महत्या के इरादे से बिल्डिंग से कूद कर अपनी जान दी थी| सभी बुरी तरह दहशत में आए चिल्लाने लगे| अनिकेत हैरानगी से उस लड़की को देखता है और अगले ही पल उसके होश ही उड़ जाते है| उसकी आँखों को विश्वास नही आया जो वह अपनी नज़रो के सामने देख रहा था|

‘फेनी !!!’ उसका नाम बुदबुदाते अनिकेत के रोंगटे खड़े हो गए|

वह उसका चेहरा देखते जैसे अपना सारा होश खोता बस वहां खड़े लोगो के स्वर सुनता रहा|

“हाँ ये छत से गिरी है – मैंने ऊपर से गिरते देखा था पर जब तक कुछ समझते ये घट गया|”

“कौन है ये लड़की ?”

“पता नही – हमारी सोसाईटी की नही है |”

“लगता है मरने के मन से आई थी यहाँ |”

“चलो चलो पुलिस को बुलाओ |”

वहां लोग आपस में बात करते रहे और अनिकेत शून्य में देखता खड़ा रह गया|

इसी समय लखनऊ में पलक बैग लिए पास के सुपर मार्किट में कुछ सामान लेने गई थी| एक तरफ पलक बाहर को गई तो दूसरी ओर से पलक बिना सामान के वापस घर में आ गई| जिसे अंदर आते देख पापा पूछ उठे –

“अरे तुरंत ही लौट आई क्या !! खुला नही है क्या मार्किट ?”

इस पलक के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान आ गई और वह सर न में हिलाती हुई अंदर जाने लगती है| तो पीछे से आवाज लगाते हुए पापा कहते है –

“बेटा चाय बना लो – बड़ा मन हो रहा है पीने का|”

पलक किचेन में आती अब चाय बनाने लगती है| ऐसा करते उसके चेहरे पर एक भी शिकन भरा भाव नही था बल्कि वह मंद मंद मुस्करा रही थी|

पल में चाय बनाकर वह कप में चाय निकालती हुई दो पल तक उस कप को घूरती रही| फिर उस कप को ट्रे में रखती हुई उसमे अपनी उंगली डालकर घुमाती हुई फिर एक बार रहस्मयी मुस्कान से मुस्करा देती है| ऐसा करते कप का रंग कुछ ज्यादा स्याह हो उठता है|

अब कप लिए वह वैभव के पास चल देती है|

क्रमशः…….

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