
डेजा वू एक राज़ – 46
अभी अभी अनिकेत के सामने जो हुआ उसपर वह रियक्ट भी नही कर पाया कि दूसरी घटना घट गई| मोबाईल से उसे वैभव के हार्ट अटैक की खबर मिली, बस जल्दी आओ यही शोर्ट नोट पलक के नंबर से मिला| ये कैसे कब हुआ कुछ न उसे पूछने की सुध रही और न उसकी ओर से ही कोई मेसेज मिला| एक तरफ फेनी की लाश पड़ी थी तो दूसरी ओर से पलक का सन्देश मिला| पल भर को उसे समझ नही आया कि आखिर क्या करे और क्या नहीं !! उसी पल उसे जॉन का ख्याल आया| अच्छा ही हुआ जो वह यहाँ नही था वरना शायद ये उसके लिए किसी सदमे सा गुजरता|
अब तक पुलिस आकर उस जगह को घेरने लगी| ऐसे समय अनिकेत को बस यही समझ आया कि उसे इस वक़्त यहाँ से चले जाना चाहिए| अगर इन्क्वारी में फंसा तो पलक तक नही पहुँच पाएगा फिर ये भी अभी तय नही था कि ये सब हुआ कैसे !! इसलिए वह वहां न रूककर चुपचाप भीड़ से निकलकर सोसाईटी से बाहर चला गया|
ये वक़्त उस पर तो भारी गुजर ही रहा था पर ये सोच सोच कर और उसका दिमाग चकरा रहा था कि वह लौटकर जॉन से क्या कहेगा? समय भी ज्यादा नही था तुरंत फिर पलक का दूसरा मेसेज आता है उसे त्वरित आने का| अब ज्यादा कुछ सोचने को नही रह गया और जॉन को अपने वापस लखनऊ जाने का शोर्ट मेसेज करके वह वही से लखनऊ के लिए निकल जाता है|
आज पहली बार वह इस कदर उलझ गया था कि उसे लग रहा था कि वह खुद से कोई फैसला नही ले पा रहा बस हालात जहाँ को उसे मोड़ दे रहे थे वही को वह मुड गया था|
झलक जबतक उठती है अच्छी खासी सुबह हो चुकी थी| रात की नींद टूटने से वह सुबह कुछ ज्यादा ही देर तक सो गई थी फिर रचित का ख्याल आते वह उसे देखने स्टडी रूम तक जाती है| रूम में सरसरी दृष्टि डालते हुए रचित कही नही दिखता लेकिन उसी वक़्त पीसी पर नजर जाते अचानक रात का सारा वाकया उसे याद हो आता है जिससे वह खुद को पीसी के पास जाने से नही रोक पाती|
वह तुरंत डेस्क पर की चेअर खींचकर उसके सामने बैठ जाती है| उसके बाद वह पीसी ओन करने लगती है लेकिन पासवर्ड से लॉक होने की वजह से वह नही खुलता इससे वह खीजती हुई कई बार पासवर्ड डालती है पर हर बार पासवर्ड गलत दिखाता है| इससे वह मन ही मन भुनभुना उठी – ‘ऐसा तो पहले कभी नही किया रचित ने – मैं भी तो यही पीसी यूज करती हूँ फिर अब ऐसा क्या है जो रचित मुझसे छिपा रहा है – ये नही हो सकता – पर सच मेरे सामने है कि रचित नही चाहता कि मैं पीसी खोलूं – तो आखिर क्या है इसमें !!’
खीजती हुई झलक उठकर बाहर निकलने लगती है|
उधर तब तक नहाकर निकलता रचित वार्डरोब में अपने लिए कपड़े देख रहा था कि साइड टेबल पर रखा झलक का मोबाईल बार बार ब्लिंक होने लगा| वह इस तरह बार बार ब्लिंक हो रहा था कि झुंझलाकर उसे मोबाईल उठाकर उसे देखना पड़ा| स्क्रीन में लगातार मेसेज आ रहे थे और जो मेसेज आ रहे थे वे रचित के सीने में किसी बम की तरह गिरने लगे|
सुर्ख दिल लगातार मेसेज के रूप में गिर रहे थे तो
आई एम् कमिंग सून
वी विल मीट सून
वेट फॉर मी
लव यू ऐसे मेसेज लगातार आ रहे थे, सैंडर अननोन था|
ये देखते रचित का दिमाग ही घूम गया| वह झट से मोबाईल का लॉक खोलने लगा पर मोबाईल लॉक था| इससे उसकी खीज और बढ़ गयी| मोबाईल पर अभी भी लगातार मेसेज गिर रहे थे और उसी अनुपात में रचित के दिल पर बिजलियाँ| उसे विश्वास नही हो रहा था कि झलक ऐसा कुछ करेगी| इस बेवफाई की उसे कतई उम्मीद नही थी| बहुत देर तक उस मेसेज को देखने के लिए जब मोबाईल का लॉक नही खुला तो गुस्से में स्विच ऑफ़ करके उसे बिस्तर पर फेककर अपने कपड़े लिए कमरे से निकल जाता है|
उलझी हुई झलक जब तक वापस बेडरूम में आती है उसे बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज सुनाई पड़ती है जिससे वह तुरंत बाहर देखने आती है| दरवाजा तेजी से बंद करता रचित उसे जाता हुआ दिखता है| जब तक वह रचित को रोकने बाहर तक आती वह तेजी से लिफ्ट की ओर बढ़ चुका था| ये देख वह वापस बालकनी तक दौड़ी दौड़ी आती है जहाँ खड़े होते हमेशा जाते हुए रचित उसे बाय करके ही जाता ल्रेकिन रचित ने आज एक बार भी उसकी ओर नही देखा|
इससे झलक और झुंझला उठी कि आखिर अचानक रचित में क्या बदल गया!! कही कुछ ऐसा तो नही जो वह उससे छिपा रहा है तो आखिर क्या है वो !! अपने में ही घुमडती हुई वह वापस कमरे में आ जाती है|
अभी वह अपना मोबाईल ढूढ़ कर देखती है जो उसे स्विच ऑफ़ मिलता है| उसे वह ओन करती है| मोबाईल ओन होते ही उसमे पहली रिंग माँ के नाम से दिखती है|
झलक उदास मन से मोबाईल कान से लगाती ही है कि दूसरी ओर से माँ के रोने की आवाज सुनते उसके होश ही उड़ गए|
“जल्दी आओ झलक तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया है|”
ये सुनते झलक परेशान होकर कब कैसे पूछती रह गई पर माँ की रोती हुई आवाज के आगे बस आती हूँ माँ ही कह पायी|
अजीब सी कशमश में पड़ गई थी इधर रचित पर मन उलझा हुआ था और उधर अपने पापा की खबर से उसका जी हलक को हो आया था| इस वक़्त सब भूल कर वह तुरंत रचित को कॉल लगाती है| एक बार दो बार और जाने कितनी बार पर रचित द्वारा एक बार भी कॉल रिसीव नही होती| मोबाईल न उठने की स्थिति में वह उसके ऑफिस में कॉल लगाती है जहाँ उसे रचित की ओर से खबर मिलती है कि वह किसी मीटिंग में अभी व्यस्त है तो घर आकर बात करेगा| पर तब तक वह कैसे वेट करती| और बस दो पल ही बात करनी थी इतना भी क्या बीजी होना|
एक ही पल में वह जैसे सारे जहाँ में तनहा हो गई| इससे दिल में ऐसी हूक उठी कि वह फफककर रो पड़ी| कुछ देर यूँही रोते जब कुछ हद तक मन का समंदर वह खाली कर लेती है तब जल्दी से खुद को संभालती हुई तुरंत मोबाईल उठाकर अपने लिए फ्लाइट बुक करने लगती है| अब न उसे रचित के लिए कोई मेसेज छोड़ने का मन हुआ न उसे दुबारा ही कॉल करने का|
जॉन अपने रूम में बैठा अनिकेत की वापसी का इंतजार कर रहा था तभी अचानक उसे उसके लखनऊ जाने का समाचार मिला| वैभव के हार्ट अटैक की खबर से वह हालत की गंभीरता को समझ गया कि क्यों वही से अनिकेत लखनऊ के लिए निकल गया|
अभी वह इस पर सोच ही रहा था कि डोर बेल से उसकी तन्द्रा टूटी| वह दरवाजा खोलते उस पार किसी अनजान शख्स को पाता है| इससे पहले कि वह कुछ पूछता वह अजनबी तुरंत कह उठा|
“आप मिस्टर जॉन है न – अनिकेत जी के दोस्त – मैं इन्स्पेक्टर राव – आज ही गोवा से वापस आया हूँ – अनिकेत जी बात हुई थी….|”
उसकी इतनी ही बात से जॉन समझ गया कि ये वही इन्स्पेक्टर है जो गोवा से आया है पर उसके साथ तो उसकी माँ होनी चाहिए थी ये सोचता हुआ वह उसके पीछे और आस पास भी देखता है लेकिन इस वक़्त वह उसे अकेला दिखता है|
“और जो अनिकेत से बात हुई थी वो…!” प्रश्नात्मक मुद्रा में वह पूछता है|
“वो गलत इन्फोर्मेशन थी – वहां जाकर पता चला कि आप जिनकी बात कर रहे थे वे बहुत पहले ही वहां से जा चुकी है और फिर कभी वापस आई ही नही तो मैं किसे साथ लेकर आता |”
“क्या !!!” उसका मुंह हैरानगी से खुला का खुला ही रह गया|
“हाँ ये सच है – मैंने अच्छे से पता किया तो अब क्या वो डील पूरी नही होगी ?”
उस वक़्त जॉन के मन में क्या गुजरी ये उससे बेहतर और कौन जानता होगा पर किसी तरह अपने मन के जज्बात जब्त किए वह बेहद शुष्क स्वर में कहता है – “काम मेरा अधुरा रहा पर उसमे आपकी तो कोई गलती नही थी इसलिए मैंने आपकी बहन की आत्मा को रिलीज कर दिया है |”
“ओह – थैंक्स – थैक्यू सो मच – ऐसा होगा कभी मुझे उम्मीद ही नही थी|” इंस्पेक्ट की ख़ुशी का अंदाजा उसके शब्दों से साफ़ साफ़ लगाया जा सकता था|
“बस इतना ख्याल रखना कि उस आत्मा को रुकने को मत बोलना – उसका वापस लौटना जरुरी है नही तो उसे कभी शांति नही मिलेगी |”
जाते हुए बस वह हाँ में सर हिलाता तुरंत वापस मुड जाता है| जॉन उसके जाते तुरंत अंदर आते दरवाजा बंद करके जिस हताशा से बैठता है वो उसका मन ही जानता था| उस पल उसे लगा जैसे पल भर में ही उसके मन के कई कई टुकडे होकर बिखर गए हो| इतना बुरा तो उसे तब भी नही लगा जब उसने अपने माता पिता की मृत्यु का सुना था पर उम्मीद का खत्म होना मन पर कैसा गुजरता है ये बस उसके मन को ही खबर थी|
दूसरी ओर उसका मन फेनी की ओर से भी और खिन्न हो उठा| वह इस कदर उसके प्रति संगदिल होगी ये उसने कल्पना भी नही की थी, आखिर क्या बिगाड़ा था उसने उसका जो उसने उसके साथ इतना भद्दा मजाक किया| आखिर वह उससे चाहती क्या है ? अब चाहे जो भी हो वह उससे बिलकुल नही मिलेगा और न उसका नाम ही लेगा| अनिकेत जब आएगा तभी उसकी खबर वह ले पर वह खुद उसके पास कतई नही जाएगा| मन में ठानता हुआ जॉन फेनी की याद को अपने दिलो दिमाग से झटकता हुआ अपने आपको दूसरे काम में व्यस्त कर लेता है|
शाम ढलते ढलते अनिकेत लखनऊ के सिटी हॉस्पिटल में पहुँच गया था| रिसेप्शन से सही वार्ड का पता करते उसे वेटिंग रूम में बैठी पलक अपनी माँ के साथ बैठी मिल जाती है| दूर से ही उनके चेहरे के उड़े हुए हाव का अंदाजा उसे हो गया| स्थिति सच में मुश्किल भरी होगी| वह उनके पास ज्योंही पहुँचता है पलक बेकाबू होती फफककर रो पड़ती है| अनिकेत उसे सँभालते हुए नीतू जी की ओर भी देखता है| उनका चेहरा भी देर का रुआंसा प्रतीत हो रहा था| बहुत कुछ जो शब्दों से न कहा गया बस आँखों की नदी संग बह गया|
“कुछ नही होगा – बस तुम खुद को संभालो – मैं डॉक्टर से मिलकर आता हूँ |” दोनों को दिलासा देता वह तुरंत आईसीयू की ओर बढ़ जाता है|
वह डॉक्टर को तलाशता उन्हें आईसीयू के बाहर ही पाते वैभव जी के बारे में पूछने लगता है|
“एथोरोसक्लेरोसिस अटैक है पर अभी पेशेंट अनस्टेबल एंजाइना की स्टेज में है तो अभी ट्वंटी फ़ोर अवर ओबजर्वेशन के बाद ही कुछ कह सकते है सो वेट टिल |” कहता हुआ डॉक्टर तुरंत आगे बढ़ जाता है पर अनिकेत समझ चुका था कि अभी उनकी स्थिति काफी असहज है और अगले चौबीस घन्टे उनके लिए काफी मुश्किल भरे हो सकते है पर उस वक़्त ईश्वर पर सब छोड़ देने के अलावा उसके पास और रास्ता भी क्या था|
वह कुछ पल वही बैंच पर निस्तेज बैठा दोनों हाथ से अपना सर थामे था| एक ही दिन में इतना कुछ घट गया कि उसे समझ ही नही आ रहा था कि आखिर वह आगे क्या करे ? न जॉन से संपर्क करने की उसकी हिम्मत हो रही थी और न पलक को ये सब बताने की इस वक़्त उसे खुद को ही संभालना था और साथ ही पलक और उसके परेंट्स को भी यही उस वक़्त उसकी प्राथमिकता थी| अब आने वाले वक़्त में क्या होने को है न उसे पता था और न वह इस पर सोचने बैठ सकता था| वह अब एक गहरा शवांस भीतर खींचता हुआ तुरंत उठकर पलक के पास चल देता है|
क्रमशः…….