Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 47

अजीब सी कशमकश की स्थिति थी न आगे कुछ सोच पा रहा था न बीते की चर्चा ही| अभी बस किसी तरह से सबको संभालना ही था| वैभव जी की हालत अभी भी खतरे में थी इससे सभी के होश उड़े हुए थे| रात होते होते झलक भी चली आई पर उसे अकेला आते देख सभी हतप्रभता से आँखों से पूछ उठे जिसका बहुत संभलते हुए झलक उत्तर देती है|

“रचित को बहुत जरुरी काम था इसलिए बाद में आएगा|” कहती हुई माँ के पास बैठती हुई एक नज़र पलक पर फिर अनिकेत पर डालती हुई आगे पूछती है – “हुआ क्या पापा को अचानक से !! कल ही तो बात हुई थी तब वे ठीक थे फिर !!”

“पता नही क्या हो गया |” नीतू जी सुबकती हुई कहने लगी – “मैं तो बस छत पर से कपड़े लेने गई थी वापस आई तो देखा बिस्तर पर सीना पकड़े लोट रहे थे उसी वक़्त पलक आ गई नहीं तो मेरा तो दिमाग ही काम नही कर रहा था कि क्या करूँ ?”

पलक बिफरती हुई आगे कहती है – “मैं बस पास की सुपर मार्किट गई थी – वहां से कुछ सामान लेकर जैसे ही लौटी माँ की चीख सुनी – पापा की ऐसी हालत देख घबरा तो मैं भी गई थी लेकिन उस वक़्त किसी तरह हौसला रखते हुए उन्हें बचाना मेरी प्राथमिकता थी फिर तुरंत एम्बुलेंस को फोन किया और तब से पापा आईसीयू में है – जाने क्या हो गया पल भर में |” पलक भी अपने मनोभावों को रोक न सकी जिससे अनिकेत जो उसके बगल में बैठा था तुरंत पलक के कंधे पकड़ता हुआ उसे चुप कराता हुआ कहता है –

“कुछ ज्यादा मत सोचो – सब ठीक होगा – डॉक्टर ने कहा है अभी ओबजर्वेशन में है तो होप फॉर बेस्ट |”

इसके बाद किसी के पास कहने को कुछ नही रहा| सब अपनी ख़ामोशी में सफर करते रहे| फिर कुछ देर बाद ख़ामोशी को तोड़ते हुए अनिकेत ने ही कहा – “मुझे  लगता है आप तीनो घर चले जाए सभी यहाँ रहेंगे तो परेशान बने रहेंगे – मैं यहाँ पर हूँ तो आपको अपडेट देता रहूँगा – |”

“हाँ माँ आप पलक के साथ चली जाओ – अभी पलक का आराम से रहना ज्यादा जरुरी है |” जल्दी से झलक अनिकेत की हाँ में हाँ मिलाती हुई कहती है|

इस पर पलक तुरंत कह उठी – “नहीं – जब तक पापा को होश नही आ जाता – मुझसे कही नही रहा जाएगा – प्लीज़ मैं अभी यही रुकना चाहती हूँ |”

“सही कहती है पलक – घर पर बैठे बैठे तो और जी हलकान हो उठेगा -|” नीतू जी भी अपना दर्द बया कर उठी|

सबकी मनोदशा अनिकेत समझ रहा था इसलिए ज्यादा कुछ न कहते बस ख़ामोशी से हाँ में हाँ मिला देता है| अब सभी को वेटिंग रूम में छोड़कर आईसीयू तक जाने लगता है तब झलक भी उसके पीछे हो लेती है|

वहां डॉक्टर से पूछने पर अभी भी कुछ ख़ास पोजिटिव रिस्पोंस नही मिलता ये सुनते अनिकेत ज्योंही वापसी को मुड़ता है पीछे झलक खड़ी थी| वह सब सुन चुकी थी और इस बात की उदासी साफ़ साफ़ उसके चेहरे पर स्पष्ट भी हो आई थी| ये देखते अनिकेत उसके कंधे पर हाथ रखते उसे ढाढस देता हुआ कहता है –

“तुम भी हौसला खो दोगी तो उन्हें कौन संभालेगा – अभी डॉक्टर ने फिफ्टी फिफ्टी कहा है तो अभी भी फिफ्टी परसेंट उम्मीद है हमारे पास और ईश्वर ने चाहा तो बाकी फिफ्टी भी हमारे साथ होगा – बस उम्मीद मत छोड़ो -|”

इस पर झलक एक ठंडा उच्छ्वास छोड़ती निरीह मुद्रा में उसकी ओर देखती आंखे झपकाती है|

इन्स्पेक्टर वापस उस चर्च के पीछे के प्रांगन में आया जहाँ लोगो ने बताया था कि उसकी बहन की लाश मिली थी| उसे उम्मीद थी कि उसकी बहन की आत्मा वही मिलेगी| वह दौड़ता हुआ वही पहुंचा| इस वक़्त काफी रात थी और इस वजह से चर्च के पिछले हिस्से में काफी सन्नाटा भी|

इन्स्पेक्टर अपनी बहन का नाम ले लेकर उसे पुकार रहा था – “नताशा …नताशा तुम – तुम कहाँ हो – मैं तुम्हारा भाई – तुम वापस आई हो न – तो कहाँ हो – तुम जहाँ भी हो मुझे अपनी मौजूदगी का कोई तो अहसास दो – मुझे तुमसे मिलना है – नताशा !!”

वह हवा में ही चीख पुकार करता रहा पर जैसे सारे शब्द हवा में ही गुम होते गए| बहुत देर इधर उधर देखने के बाद भी उसे कुछ समझ नही आया तब निराशा से वह अपने घर की तरफ वापस चल देता है|

घर वापस आते आते उसके हाव भाव के यूँ चिथड़े उड़े हुए थे मानो अंतरस कोई फैसला करके आया हो| वह घर के अंदर आते एक कमरे में घुसते ही एक अलमीरा से कपड़े बाहर उझेलने लगता है|

वे उन सारे कपड़ो को बाहर की ओर बस फेक रहा था| कोई कपडा फर्श पर गिर रहा था तो कोई बिस्तर पर| उन कपड़ो को फेकने के बाद उन्हें हाथ से इकट्ठा करता कोने की ओर धकेलता हुआ दो पल तक उन्हें घूरता रहा| वे सभी लड़कियों के कपड़े थे| उन्हें देखते हुए उसके चेहरे पर पिटे से भाव तैर गए थे| जिससे ये निश्चित था कि वक़्त ओ हालात से पिटा हुआ वह इन्स्पेक्टर अपनी बहन की आखिरी निशानी उसके कपड़ो को ही घूर रहा था|

शायद जाने किस उम्मीद में वह उन कपड़ो को संभाले हुए था पर आज वह बुरी तरह खुद को टूटा हुआ महसूस कर रहा था| तभी वह आनन् फानन में उठा और माचिस उठाकर बस उसे जलाने ही वाला था कि सहसा कोई तेज आवाज हुई जैसे कोई स्क्रीन अचानक से ओन हुई हो|

वह जलती माचिस पकड़े तुरत पीछे पलटकर देखता है तो अजीब सी रौशनी उसे वहां दिखती है| वह हैरानगी से पीछे देखता रहा तभी मुंह से उसके हलकी सिसकारी फूट गई क्योंकि माचिस से उसकी उंगली का पोर जल गया था|

वह बुझी तीली फेंककर दुबारा पीछे पलटकर देखता है पर अब उसे कोई रौशनी जैसा नही दिखता| पर उसे अहसास होता है जैसे अन्दर की ओर कोई है| वह तुरंत उस ओर बढने लगता है|

उन दो तीन कमरों के घर में एक बड़ा कमरा ठीक रसोई के पास खुलता था जिसमे वह खड़ा था| वह अभी उस कमरे से निकलकर रसोई में झांकता ही है कि उसे कोई परछाई सी कोने में दुबकी दिखती है| वह दबे आहिस्ते कदमो से उस कोने की ओर आँखे गडाए बढ़ने लगा|

वह कोना जैसे अँधेरे में गुम था| वह अपने आप में कोई गहरी सुरंग की तरह था| इन्स्पेक्टर बिना कुछ सोचे उस ओर अपना हाथ बढ़ाने लगा था कि एकाएक कोई चीज चमकती सी उसे वहां लगी जिससे वह दो कदम पीछे हो गया| वहां सच में कोई था| वह चीज अब हिलने लगी थी| वह तेज तेज हिलते हुए जैसे खुद को वहां से हटाने की कोशिश कर रही थी इस अजीब प्रतिक्रोया के प्रति वह सहमकर थोड़ा पीछे हटकर उस ओर अपनी नज़र गडाए था|

वह चीज अब अँधेरे से धीरे धीरे उगती हुई किसी साए की तरह उसके सामने लहराने लगी| वह कोई लम्बा साया था जो उसकी आँखों के सामने लहराता हुआ एकदम से गायब हो गया|

उसके गायब होते वह जैसे अपने होश में वापस आया जिससे वह उस ओर और तफसील से देखने लगा पर सच में वह अब वहां से गायब हो चुका था|

“नताशा – क्या तुम – तुम हो वहां ?” वह अपनी लडखडाती हुई आवाज में पूछता हुआ उस अँधेरे हिस्से को घूरता है|

पर जब कोई जवाब नही मिलता तो वह बदहवास सा इधर उधर देखता हुआ नताशा नाम को पुकारता है जैसे उसे आभास हो गया हो कि वह वही कही है बस उसे नज़र नही आ रही|

वह अब कमरों के अँधेरे हिस्से को खोजते हुए आगे बढ़ा तभी उसे लगा जैसे कमरे में हल्का भूकंप सा आ गया हो और धीरे धीरे करके सारे सामान इधर उधर गिरने लगे| वह चौककर हर तरफ देखने लगा पर सिवाए अँधेरे के उसे कुछ नज़र नही आया| सामान यूँ गिरते दिखे जैसे जानबूझ कर वह सामान उनकी अपनी जगह से हटाए जा रहे हो|

किताबे, सजावटी सामान, फूलदान सब नीचे गिरने लगे| ये अजीब वाक्या देख वह बदहवास सा इधर उधर देखने लगा| जैसे अब उसे यकीन हो गया कि उसके अलावा कोई और है उस कमरे में|

कुछ देर सामान गिरना अपने आप बंद हो गया| अब वहां इतनी अजीब सी नीरवता छा गई मानो शमशान का सन्नाटा छा गया हो| वह इस सब बदलती स्थितियों को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि एकाएक उसे किसी अन्य कमरे के दरवाजे के पीछे किसी के होने का आभास हुआ|

वह तुरंत उस कमरे के पास आता उसके दरवाजे को खोलता है और इस बार एक और हैरानगी भरा दृश्य उसकी आँखों के सामने था| उस कमरे में अजीब सी धुँआ फैला था ऐसा धुँआ कि कमरे के क्या है कुछ भी स्पष्ट नजर नही आ रहा था|

वह फिर नताशा को आवाज लगाता उस कमरे की देहरी पर खड़ा रहा पर अन्दर नही जा सका| उसकी आंखे अब धुए पर टिकी थी और धुआ धीरे धीरे कोई आकार में तब्दील हो रहा था| सब उसकी आँखों के सामने किसी जादू की तरह हो रहा था मानो वह किसी पहेली में डूब गया हो|

जल्द ही वह साया कोई इंसानी आकार में उसकी आँखों के सामने लहराते हुए नज़र आया| अबकी उसने उसे पहचानने में जरा भी देरी नही की और जोर से चिल्लाया – “तुम हो कौन ? उस दिन भी तुम मुझे इस तरह रोकने आए थे – आखिर तुम्हारा मेरी बहन की आत्मा से क्या सम्बन्ध है ? और क्यों उसे रोक रहे हो ? मैं – मैं तुम्हे …|”

बाकी के शब्द दांत पीसते हुए उसके होंठ की थरथराहट में रह गए|

उसकी आँखों के सामने वह साया तेजी से लहराया मानो वह हवा में निर्मित कोई डिजिटल स्क्रीन हो जिसमे से अब रौशनी आ रही थी| इन्स्पेक्टर अजीब डरी निगाह से उसे देखता रह गया|

“मेरी बहन की आत्मा को तुम उस दिन भी आने से रोकना चाहते थे और आज भी तुम ऐसा ही भ्रम पैदा कर रहे हो – आखिर तुम क्या चाहते हो ?” वह चीखते हुए बोला|

अबकी जवाब में उस साया से घरघराई हुई आवाज आई – “तुम्हे मैंने इन सबसे दूर रहने को कहा था न – बस दूर रहो – नताशा वापस आएगी पर आत्मा के रूप में नही बल्कि शरीर के रूप में – बस थोड़ा इंतज़ार – तब तक ये सब जो कर रहे हो करना बंद करो –|”

“बकवास – तुम कौन हो ?” अबकी चीखते हुए इन्स्पेक्टर अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर उसपर तान देता है और उस पार हवा में वह साया यूँ लहराया मानो उसकी इस हरकत पर हँस रहा हो|

“तुम जो भी हो जरुर मेरी बहन की मौत से तुम्हारा कोई सम्बन्ध है – तभी तुम हर बार मुझे उसकी आत्मा तक पहुँचने से रोकते हो – पर ये बात जान लो – मैं उसकी मौत की गुत्थी तक पहुंचकर रहूँगा और तुम तक भी |” कहते हुए वह अपनी सर्विस रिवोल्वर से एक निशाना उस साए में ज्योंही मारता है झट से वह साया वहां से गायब हो जाता है|

अब सब कुछ पहले जैसा शांत और नीरव हो उठा था| बस उस इन्स्पेक्टर की उफनती हुई साँसे साफ़ साफ सुनाई दे रही थी जिसकी निशानदेही में अभी भी वह  स्थान था जिस ओर उसने गोली दागी थी|

आखिर वह कौन था और हर बार उसे क्यों रोकने आता है? क्यों नही चाहता कि उसकी बहन की आत्मा उस तक पहुंचे ? क्या है उसके पीछे का राज़ ? क्या उसकी बहन उस राज़ को जानती थी !! वह साया कौन है ? बहुत सारे प्रश्न थे जो उसका सर चकराने को काफी थे पर जवाब एक भी नही लेकिन ये तय था कि अगर वह अपनी बहन की आत्मा से संपर्क कर लेगा तो इस एक राज़ से शायद पर्दा भी उठ जाएगा| वह जान पाएगा कि उस एक वर्ष में आखिर क्या हो गया कि उसकी मौत उसके लिए अभी तक एक रहस्य बनी हुई है ? और वह क्यों कहता है कि उसकी बहन शरीर के साथ वापस आएगी !! ये कैसे संभव है ? कोई मरने के बाद कैसे वापस आ सकता है वो भी शरीर के साथ !! क्या करना चाहता है वह ? पर जो भी कह रहा है उससे उसके खतरनाक इरादे साफ़ साफ़ मालूम पड़ रहे है|

इन्स्पेक्टर बेचैनी में उस अँधेरे में किसी साए की तरह टहलता रहा|

क्रमशः…….

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