Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 48

पूरी रात जैसे आँखों आँखों में कट गई| अनिकेत बस टहल कदमी करता कई बार वार्ड के चक्कर काट आया पर सब बेनतीजा निकला| सुबह बस होने को थी| पलक माँ की गोद में सर रखे बस थोड़ी देर पहले ही लेटी थी जबकि झलक वह बैंच पर बैठे बैठे ही ऊँघ रही थी| नीतू जी भी उसी अवस्था में बस कब सोती कब जागती उन्हें खुद को ही पता नही चल रहा था|

जब तक आईसीयू से कोई खबर नही मिलती किसी को चैन नही मिलने वाला था| अनिकेत बहुत देर इधर उधर करने के बाद एक खाली बैंच पर बैठा किसी सोच में मग्न था कि अपने बगल में किसी के बैठने का अनुभव किया जो उसकी ओर कॉफ़ी का कप बढ़ा रहा था| वह हाथ देखते फिर चेहरे की ओर देखता हुआ पूछ उठा –

“झलक – तुम कब उठी ?”

“कब सोयी ये मत पूछना बस आप – लीजिए |”

अबकी उसके हाथ में पकड़ी कॉफ़ी की ओर उसका ध्यान दुबारा जाता है तो वह झट से उसे लेता हुआ कहता है – “थैंक्स – इसी की जरुरत थी |”

“हाँ तो – आप तो बिलकुल बैठे भी नही – तब से चहलकदमी कर रहे है – कोई और परेशानी भी है क्या ?”

अभी वह अनिकेत का चेहरा गौर से देखती है जिसपर जल्दी परेशानी के भाव नही आते थे पर आज वहां कुछ अलग ही भाव मौजूद थे|

“न नही – बस यूँही किसी सोच में था – तुम ठीक हो – और रचित – अगर उसे कोई जरूरी काम है तो बेवजह उसे मत बुलाना – हम सब यहाँ है सँभालने के लिए |”

“हाँ शायद उसे भी यही लगता होगा |”

मतलब !!”

“कुछ नही जीजू – आप कॉफ़ी पीजिए वरना बेकार हो जाएगी |”

अब दोनों अपने अपने मौन में कॉफ़ी के घूंट भरने लगे पर उन दोनों के हाव भाव यूँ थे मानो हर एक घूंट के साथ वे कोई बात बार बार अपने मन के अंदर गटक लेना चाहते थे| विचार जिस तेजी से उनका दिमाग घुमा रहा था उससे कही तेजी से उनका मन तरह तरह के विचार उत्पन्न कर रहा था|

झलक अभी तक नही समझ पायी थी कि आखिर रचित उसके संग इतना अजनबी व्यव्हार कैसे कर सकता है| किसी बात को छिपाना का मतलब क्या होता है कि सामने वाले पर उसे विश्वास नही रह गया या वह विश्वास करने के योग्य नही पर ये बात तो उनके रिश्ते को दरका देगी जबकि वह ऐसा कभी भी नही चाहती|

वही अनिकेत के दिमाग में बार बार फेनी का चेहरा और उसी के साथ जॉन का चेहरा भी घूम जाता| वह सोच भी नही पा रहा था कि इस समय वहां क्या हो रहा होगा| उसने जॉन को अपना लखनऊ आना बता तो दिया तो क्या वह अब खुद फेनी के पास गया होगा ? और अगर गया भी होगा तो अब तक उसे सारी सच्चाई मालूम नही पड़ गई होगी !! तब क्या गुजरी होगी जॉन पर??

जॉन टूट गया होगा और इस वक़्त मैं उसे फोन भी करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा| लेकिन अगर ऐसा होता तो कम से कम उसका फोन तो जरुर आता और अब तक तो वहां के अख़बार में भी जरुर खबर छप गई होगी| तब क्या पुलिस उस तक पूछताछ के लिए आती होगी !!

जाने आने वाले पल में क्या हंगामा होने वाला है उसे खुद भी नही पता पर तब तक काश यहाँ सब ठीक ठाक हो जाए तो वह किसी तरह से पलक से ये सारा घटनाक्रम छुपा सके क्योंकि अभी वह उसे कोई भी शोकिंग न्यूज से गुजरते नही देखना चाहता|

अचानक कोई बात याद आते वह तुरंत उठकर खड़ा हो जाता है और उसके इस व्यव्हार पर झलक अवाक् उसे मुड़कर देखने लगती है| वह उसे पुकारकर रोकती भी है पर अनिकेत तेजी से वहां से निकल जाता है|

अब सुबह हो चुकी थी| अलसुबह होने से भीड़ कम ही थी| आधा पिया कप फेककर अनिकेत रिसेप्शन में पहुंचकर आज का अख़बार मांगता है| अख़बार बस अभी ही आया था जिसे लिए वह किनारे खड़ा होता पूरे अखबार पर नज़र दो तीन बार दौड़ा जाता है पर जिस तरह की खबर की वह उम्मीद कर रहा था वहां वैसी खबर नही थी|

ये देखते एक बार फिर उसका माथा ठनकता है कि क्या खबर बड़ी नही या सच में ऐसा कुछ हुआ ही नही !! पर सब उसकी आँखों के सामने ही घटित हुआ तभी उसे ख्याल आया कि ये तो लखनऊ का पेपर है और उसे ये खबर दिल्ली के अखबार में खोजनी चाहिए|

इस ख्याल के साथ वह अखबार रिसेप्शन में रखता हुआ मोबाईल में ईपेपर खंगालने लगता है| अभी वह पेपर को देख ही रहा था कि उसे अपने कंधे पर कोई जाना पहचाना स्पर्श महसूस हुआ| वह पलटकर देखता है|

“रचित – तुम – कब आए ?”

बदहवास सा रचित उसके सामने खड़ा था|

“मुझे जैसे ही मालूम पड़ा तुरंत चला आया – अब कैसे है वे ?”

“नॉट स्टेबल |”

“ओह !!”

तभी उसके हाथ में पकड़ा मोबाईल तेजी से बज उठा| इतनी सुबह कॉल आने से अनिकेत तुरंत उसे उठाकर कान से लगा लेता है ये देखते रचित रिसेप्शन से वार्ड का पूछता हुआ अंदर चल देता है जबकि अनिकेत बात करता करता बाहर निकल जाता है|

दूसरी ओर इन्स्पेक्टर था जो अनिकेत को गुजरी सारी घटना बता रहा था|

“मैंने जो देखा और महसूस किया वो मैं आपको बता रहा हूँ – मेरी बहन की आत्मा जैसे आना चाहती है पर वो क्या अज्ञात साया है जो ये सब अजीब बात कर रहा है – अब आप कुछ सुलझाए कि मैं इस रहस्य तक कैसे पहुँच सकता हूँ – मैंने तो उसे गोली भी मारी पर वह तो जैसे हवा था पर इतना तो तय है वो मुझे कही से वाच कर रहा है|”

“ठीक है मैं बाद में देखता हूँ – ओके|”

अनिकेत उसकी सारी बात सुनते बस ओके कहकर कॉल काट देता है| अभी जैसे फेनी की मौत के आगे कोई और बात उसके दिमाग में टिक ही नही रही थी| कॉल काटने के बाद वह रचित को आँखों से खोजता हुआ वेटिंग रूम की ओर आता है पर वहां पलक और उसकी माँ के सिवा उन्हें न पाकर वह झलक और रचित को देखने आगे बढ़ जाता है|

रचित को अचानक अपने सामने देख पहले तो झलक को लगा उसके शाने में जाकर अपना मन कुछ हल्का कर ले पर फिर पिछला सब ख्याल आते वह अपने जज्बात तुरंत ही सख्त कर लेती है|

रचित जैसे कुछ कहने वाला था झलक तुरंत उसे चुप होने का इशारा करती दूसरी ओर चलने को कहती है| उसे पता था इस वक़्त सुबह के सन्नाटे में उनकी जरा भी आवाज दूसरो की नींद में खलल पैदा कर सकती थी इसलिए रचित भी चुपचाप उसके साथ कोने की ओर बढ़ गया जो वेटिंग रूम से कुछ हटकर था|

“तुम चुपचाप यहाँ चली आई और मुझे बताने की जरुरत भी नही समझी – पता है सारी रात मैं तुम्हे कहाँ कहाँ नही खोजता फिरा – कितनी फ़िक्र हो गई तुम्हारी – पहले लगा किसी फ्रेंड के यहाँ गई होगी पर जब सारी रात वापस नही आई तो पलक को देर रात फोन करना पड़ा – तब जाकर मालूम पड़ा – क्यों किया तुमने ऐसा ?”

रचित एक साँस में अपनी बात कह गया जिसपर उसका चेहरा तकती हुई झलक का चेहरा और तमतमा गया और वह दांत पीसती हुई दबे स्वर में बोल उठी –

“मैंने क्यों किया ? ये सवाल खुद से पूछो – मैंने कितना फोन मिलाया तब तो फोन नही उठाया गया – बिना बताए घर से तुम पहले गए थे फिर बाद में मैं ?”

“वो तो मैं…|” कहते कहते रचित चुप होकर बस झलक को घूरने लगा|

“हाँ क्या – बताओ – सुन रही हूँ मैं ?” झलक उसी कसे भाव में बोलती है|

“मुझे अभी इस बारे में कुछ नही कहना – पहले यहाँ सब ठीक हो जाए तब घर पहुंचकर आराम से बात करेंगे |”

“नही मुझे अभी सब बातो का जवाब चाहिए -|”

“मैं क्या जवाब दूँ – जवाब तो तुम्हे देना है |”

“किस बात का ?”

रचित बस उगलने ही वाला था कि उसी वक़्त अन्य आवाज उनके बीच व्यवधान पैदा कर गई –

“क्या हुआ है तुम दोनों को – तुम दोनों लड़ क्यों रहे हो – बात क्या है ?”

दोनों देखते है कि अनिकेत उन्ही को घूरता हुआ खड़ा था जिससे दोनों चुप होते बस इधर उधर नज़रे कर लेते है|

अनिकेत उनकी चुप्पी पर फिर पूछता है – “बात क्या है – किस बात का दोनों एकदूसरे पर इल्जाम लगा रहे हो ?”

“इससे पूछे आप |” दोनों एकसाथ एकदूसरे की ओर उंगली करते वही ठहर जाते है| अनिकेत भी उसकी ये हरकत देख अवाक् रह गया|

“तुम बताओ पहले – क्या किया रचित ने ?” अनिकेत झलक की ओर देखता हुआ पूछता है|

“रचित मुझसे कुछ छुपा रहा है |” मुंह बनाती हुई झलक कहती है|

“मैं छुपा रहा हूँ या तुम ?” रचित बीच में बोल पड़ता है|

“मैं !!” झलक रचित को घूरने लगती है|

“एक एक करके बोलो बात क्या है ?” अनिकेत झींकते हुए कहता है|

“रचित मुझसे कुछ छिपा रहा है – पीसी यूँ तो कभी लॉक नही रहता फिर आजकल उसी में डूबा रहना और मुझसे क्यों लॉक कर रखा है – मैं क्या जान लुंगी ?”

“ओह – और तुम्हारा मोबाईल – उसे लॉक करके रखा है – ताकि तुम्हारे प्राइवेट मेसेज कोई न पढ़ सके – ?”

“कैसे प्राइवेट मेसेज ?”

“उफ़ चुप करो दोनों – अब यही बस देखना बाकि है क्या कि बच्चों की तरह तुम दोनों लड़ो |”

अनिकेत की बात पर झलक जल्दी से कहती है –

“आप चाहे कुछ भी कहो पर कोई तीसरा तो है हमारे बीच |”

“तीसरा !!”

तीनो चुप हो गए| रचित और झलक एकदूसरे के विरोध में देखने लगे पर अनिकेत !! उसके दिमाग में कुछ और ही चलने लगा|

वह फिर खुद में बुदबुदाया – ‘तीसरा ….!!’

अबकी उसके इस शब्द को अजीब तरह से बुदबुदाने से दोनों की नज़रे उसकी ओर चली गई और वे आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे क्योंकि अनिकेत अभी भी बुदबुदा रहा था – ‘तीसरा जो तुम दोनों के बीच भी है और इन्स्पेक्टर और उसकी बहन की आत्मा के बीच भी है – जॉन और फेनी के बीच में भी है – वो हर जगह है – वो तीसरे छिपे नेत्र की तरह हमे देख पा रहा है – तभी तो जो वह चाहता है वही हो रहा है – ये हम नही कर रहे बल्कि हमसे कराया जा रहा है|’

“जीजू आप क्या बडबडा रहे है – मुझे कुछ समझ नही आ रहा ?” झलक अनिकेत को हतप्रभता से देखती रही|

अनिकेत उसपल कुछ नही कहता बस मोबाईल ओन करके कुछ पल यूँही स्क्रोल करता रहा उसकी उस पल ये हरकत देख दोनों अपना अपना गुस्सा भूले बिना शब्दों के एकदूसरे से इसका अर्थ पूछने लगते है| जिसपर झलक रचित एकदूसरे को देखते कंधे उचका लेते है|

कुछ पल यूँही मोबाईल में देखने के बाद अनिकेत जल्दी से उन दोनों को बिना देखे ही अपनी बात कहने लगता है – “सब कुछ बस इस तीसरे नेत्र से हो रहा है – वह तीसरे नेत्र से हमे देखता हुआ हमसे अपनी मर्जी का करा रहा है – इन्त्युशन ऑफ़ थर्ड आई और पैररल वर्ल्ड विथ थर्ड आई – कुल मिलाकर मेरी सारी थिसिसेज ही अप्लाई हो रही है – तो क्या इसका वजीर मैं हूँ …!!” अनिकेत के बात सुनते बाकि दोनों जोड़ी आंखे जैसे उसी पर टिकी रह गई….

क्रमशः…….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!