
डेजा वू एक राज़ – 50
झलक और रचित दयनीय भाव से एकदूसरे को देख रहे थे| इस वक़्त अनिकेत की चिंता के आगे वे आपस की अपनी नाराजगी भूल चुके थे उन्हें तो आने वाले समय में क्या होने वाला है इस बात की ज्यादा फ़िक्र हो रही थी|
“अब हम क्या करे रचित ?” परेशानी में अपने होठ काटती हुई पूछती है|
“वही जो अनिकेत जी ने कहा है – इंतजार….इसके अलावा कर भी क्या सकते है?”
“क्यों न हम जॉन को खबर कर दे – वह उनका दोस्त है तो शायद इस वक़्त वही हमे सही राय दे सके !”
“कोशिश करके देख लो |”
रचित के कहते झलक तुरंत जॉन को कॉल लगाती है फिर तुरंत ही मोबाईल कान से हटाती हुई कहती है – “स्विच ऑफ़ बता रहा है|”
“क्या …!!”
“अब क्या करे – मुझे तो बस जॉन से उम्मीद थी – अब तो हम वाकई सिवाय इंतजार के कुछ कर भी नही सकते |”
दोनों उलझन में एकदूसरे को देखते रहे|
एक कम उजाले वाला कक्ष जहाँ सिर्फ इतनी रौशनी थी जिसमें बस वहां का सामान भर देखा जा सकता था| बिस्तर, एक स्टूल, एक कुर्सी और कुछ बड़ी टेबल जिसके ऊपर कुछ यंत्र जैसे सामान रखे थे जिन्हें कोई हाथ बड़े जतन से जोड़ रहा था| काफी देर की अपनी मशक्त के बाद वह अब दरवाजे की ओर देखता है जहाँ से कोई प्रवेश कर रहा था| अब कमरे में दो लोग मौजूद थे|
आगंतुक अपनी दोनों हथेली बंद किए प्रथम उपस्थित व्यक्ति के पास आकर रुकता है जिससे अब उसका ध्यान उस आगंतुक पर ठहर जाता है| अगले ही पल आगंतुक अपनी हथेली की बंद चीज से ऊपरी हाथ हटाकर उसे मुक्त कर देता है| ऐसा करते उस क्षण कमरे में एक नीली आभा सी फ़ैल जाती है| वह नीली आभा निश्चित रूप से उसकी हथेली पर रखी चीज से आ रही थी|
अब कमरे से इतना उजाला हो चुका था कि दोनों का चेहरा अच्छे से स्पष्ट हो रहा था| वे अनिकेत और जॉन थे जो एकदूसरे के सामने खड़े थे| जॉन अभी भी अनिकेत की हथेली पर रखी उस चमकती चीज को भर नज़र देख रहा था|
“मैंने कभी सोचा नही था कि मैं इसका उपयोग अपने हित के लिए करूँगा पर इसके अलावा अब हमारे पास कोई चारा नही है|” अनिकेत सधे शब्दों में कहता है|
“ये सच में अनोखा है |” जॉन की निगाह अभी भी उस चमक पर टिकी थी|
“हाँ सच में ये अनोखा है – ये पारस अपने आप में अद्भुत और अनोखा है इसलिए तो मुझे इसके गलत उपयोग का डर रहता है – जब मैंने इसे राजमहल वालो से छिपाने के लिए इसे मंदिर के गुप्त स्थान पर गाड दिया था ताकि फिर कभी इसे बाहर नही निकालूँ पर आज मैं मजबूर हो गया हूँ – अब यही पारस अपनी तरंग यात्रा से मुझे सशरीर चौथे आयाम मे पहुंचेगा |”
“पर अनिकेत तुमने तय तो कर लिया कि प्रकाश की गति से समय के पार जाओगे लेकिन प्रकाश भी प्रकाश की गति से अधिक रफ़्तार प्राप्त नही कर सकता तब उस हालत में समय की गति भी धीमी हो जाएगी |”
“जानता हूँ इसलिए तो मैं पहली बार में बीस साल पहले की यात्रा करूँगा और यही इसकी मैक्सिम लिमिट होगी – जॉन इसके अलावा और कोई चारा नही है – मैंने ये तभी तय कर लिया था जब फेनी वाली घटना घटी – मुझे तभी अहसास हो गया कि ये जरुर समयांतर सापेक्ष है पर मैंने इसे जाहिर नही किया और तुरंत ही लखनऊ आकर ये दिखाया कि वह जो सोच रहा है मैं ठीक वही कर रहा हूँ – इसलिए झलक और रचित को भी मैंने सब इस तरह से बताया जैसे मैं खुद कलप्रिट हूँ और समय के पार जाकर मैं खुद की रिसर्च पर संदेह व्यक्त दिखाया जबकि इस कहानी की शुरुवात बीस साल पहले ही हो चुकी थी और अब मैं उसकी सोच से आगे सीधे उसी समय पर पहुंचकर उसे देखूंगा – हाँ इस यात्रा को करने का तरीका बिलकुल नया होगा – इस बार पारस के प्रकाश से मैं ये यात्रा तय करूँगा – |”
“हाँ मुझे तुम्हारा गुप्त सन्देश मिल गया इसलिए इन्स्पेक्टर ने जो कहा मैंने उस पर सहज विश्वास कर लिया और फेनी के पास न जाकर भी ये जाहिर कर दिया इससे कम से कम उसे विश्वास हो गया होगा कि वह जैसा हमे चला रहा है हम वही कर रहे है|
“पर वह ये नहीं सोच पाया कि हर शैतानी बुद्धि से ऊपर ईश्वर की शक्ति होती है और इसी विश्वास ने मेरी सोच प्रशस्त की – वह रचित के माध्यम से हम पर नजर रखे था – झलक और रचित को आपस में उलझाकर वह बार बार नई नई कहानी गढ़ते हुए हमे लगातार उलझा रहा था और इस बार मैंने उसी के तरीके से उसे मात दे दी – मैंने रचित को वो सब बताया जो मैं उस वजीर को बताना चाहता था – आखिर हर बार वह मुझे जीरो पॉइंट देकर खुश था |”
“बेचारा रचित जान भी नही पाया कि डार्क वेब के गुप्त लेंस से उसकी यादो को कोई ट्रेस कर रहा है – वह वाकई बहुत शातिर है – उसने रचित को डार्क वेब में उलझाया जिसे वह लगातार झलक से ये सोचकर छिपा रहा है कि कही झलक भी उसकी आदि न हो जाए और रचित के ही सन्देश झलक के मोबाईल में दुबारा दिखा कर रचित के मन में ग़लतफहमी पैदा कर रहा है – उन्हें पता ही नही चल रहा कि वे कब समान्तर समय में यात्रा कर लेते है |”
“हाँ अगर पलक ने सुरक्षा के लिए अपने घर के बाहर सीसीटीवी न लगवाया होता और उसमे मेरी इस बात पर दृष्टि नही जाती कि एक ही वक़्त में वह बाहर भी जाती है और उसी वक़्त में वह वापस भी आती है – तभी मैं समझ गया कि वह बार बार हम सबको समान्तर समय में घुमा रहा है – एक ही पल में पलक का वह पल वापस आ गया जब महामाया उसके शरीर में थी जबकि अभी महामाया अभी अस्तित्व में है ही नही – और उसी ने समय के पार से आकर कुछ ऐसा किया कि पलक के पिता बीमार हो गए – |”
“ये सच में बहुत खतरनाक व्यक्ति है – ये तो महामाया का भी बाप है भ्रम पैदा करने में – वह हमारी बुद्धि से खेल रहा है इसलिए इतना सब सुनिश्चित करने के बाद भी कुछ अविश्वसनीय डर है मेरे मन में – अगर तुम समय को पार करके वापस नही आ पाए तो मैं तुम्हे वापस लाने के लिए क्या करूँगा – अबकी तो तुम्हारा शरीर भी मेरे पास नही होगा |”
“जॉन फ़िक्र मत करो – जब ईश्वर रास्ता दिखाते है तो उसे पार करने की शक्ति भी देते है – मुझे अपने इष्ट पर पूर्ण विश्वास है कि उस दुष्ट वजीर तक पहुँचने में वे मेरा साथ जरुर देंगे – तुम भी विश्वास का दमन मत छोड़ो – अब बस इस मिशन को किसी भी स्तर पर पूर्ण करना होगा हमे – इसलिए मैंने तुम्हे सारी तैयारी करने को पहले से बोल दिया था – |”
“हाँ तुम्हारा सन्देश मिलते मैंने सब तैयार कर लिया और तुरंत ही लखनऊ आ पहुंचा – एक बार फिर मेरे घर का यही कमरा फिर से एक नहीं इबारत लिखेगा |”
अनिकेत अपनी हथेली में पकड़े उस पारस को अनावर्त करता सुनिश्तित मेज पर रखे उपकरण के पास पहुँच जाता है जहाँ अभी अभी जॉन ने सारे मशीनी प्रक्रिया पूरी की थी|
क्रमशः…….