Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 52

पत्नी के जाते मौरिस अपने दो कमरे के घर में बाहरी वाले कमरे में अनिकेत के संग बैठा था| अनिकेत समय के पार तो आ चुका था पर अब उन परिस्थितियों के प्रति रियक्ट करने का अपने मन में तरीका खोज रहा था| सभी कुछ उसके लिए अपरिचित की तरह था और इस अपरिचित माहौल में उसे खुद को एक अस्तित्व के रूप में दिखाना था| 

मौरिस पत्नी के आँखों से ओझल होते अनिकेत के कानो के पास आते धीरे से कहते है – “वो क्या है तुम्हे परिचित बताना पड़ा – नही तो मेरी पत्नी फिर मुझे कहती कि मैं अजनबियों पर विश्वास कर लेता हूँ इसलिए नही बताया कि तुम मुझे सड़क पर मिल गए थे |”

मौरिस को हँसते देख अनिकेत उनके चेहरे की ओर यूं देखने लगा जैसे अब समझा कि आखिर क्यों उसे दोस्त बताया था|

“चलो अब तो अपना नाम बता दो नही तो पत्नी को मेरा झूठ पकड़ते समय नही लगेगा – वैसे वह जानती है कि मैं लोगो की मदद किए बिना रहता नही हूँ|” वह खुद में ही हँसते हुए अपनी बात कह रहे थे|

लेकिन अनिकेत थोड़ा सोच में पड़ गया था|

“बताओ क्या नाम है तुम्हारा ?”

अनिकेत ने अब तक इस बारे में कुछ सोचा नही था क्योंकि समय यात्रा करते उसे ये सुनिश्चित नही था कि वह समय के किस हिस्से में पहुंचेगा, इससे वह इस सोच में डूबा ही था कि मौरिस फिर पूछ उठे|

“अरे भाई क्या सोच रहे हो – नाम पूछा है तुम्हारा |”

“ज जी अरविन्द – हाँ अरविन्द नाम है मेरा|”

“तो इतना क्या सोच रहे हो ?”

“वो क्या है – मैं एक पत्रकार हूँ और एक रिपोटिंग के सिलसिले में आया था – पता नही कैसे गिर गया वहां ?”

“ओह पत्रकार हो तो किसकी रिपोटिंग के लिए आए ?” अब वे दिलचस्पी लेते हुए पूछते है|

अनिकेत अब संभल संभल कर अपनी बात रखने लगा था – “मैं बच्चो के गायब होने की खबर की रिपोटिंग करने आया था |”

“क्या – अरे तो बिलकुल सही जगह आए – तुम पक्का उन्ही बच्चो की बात कर रहे हो न जो अनाथालय से गायब हो रहे है !”

“हाँ बिलकुल – तो क्या आप ही है मिस्टर मौरिस ?” अनिकेत अपनी बात को सच्चा दिखाने पूर्ण अभिनय के साथ पूछता है|

“हाँ हाँ मैं ही हूँ – कितने समय से मैं इस पर सबका ध्यान दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ – चलो अच्छा हुआ जो सही व्यक्ति मुझे मिला – अब मैं चाहूँगा कि तुम सारा का सारा सच अपने अख़बार में लिखो ताकि सबका ध्यान इसपर जाए |” वे अतिरिक्त जोश में अपनी बात कहते रहे|

“हाँ मैं वही करूँगा पर इसके लिए सारा सच आप मुझे बताए तो !”

ये सुनते वे पूरे उत्साह से अपनी बात कहने लगे – “सारा सच कितनी बार सबको बता चुका हूँ – अब फिर से बताता हूँ – मेरा नाम मौरिस है ये तो जानते ही हो और मैं जिस अर्फ्नेज को संभालता हूँ वहां से कुछ हफ्तों से बच्चे गायब हो रहे है – |”

“गायब !! किस तरह से ये बात आप कह सकते है ?”

“हमारे यहाँ हफ्ते में एक बार बच्चो की गिनती होती है और पिछले चार पांच हफ्ते से कभी एक कभी दो बच्चे कम मिले और वे कहाँ गए, कैसे गए, क्यों गए कोई नही जानता ?”

“ये तो बड़ी अजीब बात है – आपके ओर्फ्नेज से बच्चे गायब हो रहे तो और बच्चो को तो कुछ पता होगा ?” अपनी शंका प्रकट करता हुआ अनिकेत पूछता है|

“देखिए यहाँ बच्चे उम्र के अनुसार अलग अलग तरह से ग्रुप बनाकर रहते है और जो गायब हुए वे बड़े बच्चे है जो ज्यादातर अकेले ही रहते है – आखिर उनकी अपनी दुनिया होती है तो हम उन्हें ज्यादा टोका टिप्पणी नही करते|”

“कितने बड़े  – मतलब किस एज ग्रुप के ?”

“यही कोई बारह साल के आस पास की उम्र के और….|”

“सुनिए – खाना तैयार है – क्या लगा दूँ या अभी भी मंत्रणा बाकी है |” तभी पत्नी की आवाज बीच में उपस्थित होते उनका ध्यान आधे खुले दरवाजे की ओर जाता है जिससे वे सकपकाते हुए जल्दी से कहते है – “अरे हाँ हाँ – बड़ी जोर की भूख लगी है – तुम खाना लगाओ हम हाथ धोकर आते है|”

पत्नी हाथ में लिए दो गिलास और पानी का जग वहां रखती हुई चली गई| उसके जाते वे अनिकेत की ओर देखते हुए दबे स्वर में कहते है – “चलो अरविन्द – मैं तुम्हे बाथरूम दिखाता हूँ |”

उनकी बात से हिचकिचाते हुए अनिकेत कहता है – “अरे आप बेवजह तकलीफ उठा रहे है – मैं कही होटल में ठहर जाता |”

“वो तो ठीक है पर इतनी रात बिरात कहाँ जाते – आज रात यही रुक जाओ – मुझे कोई दिक्कत नही – हाँ बस छोटा सा आशियाना है मेरा |”

गिलास में पानी लेते हुए अनिकेत कहता है – “कैसी बात करते है दिल तो आपका बहुत बड़ा है – आखिर मुझ अजनबी पर भी आपने तुरंत भरोसा कर मदद किया |”

इस बात पर वे बिना आवाज के हँसते हुए कहते है – “हाँ हाँ – तुम कोई चोर उचक्के तो नही लगते – शक्ल से भले ही दिखते हो भाई – और हाँ ये आप आप कहना बंद करो – पत्नी को मित्र बताया है – खामखा शक की नज़र से देखेगी – वैसे भी हम हमउम्र ही तो है |”

ये सुनते पानी पीते पीते अचानक अनिकेत को खांसी आ जाती है|

“अरे अरे संभाल के |”

अनिकेत बिचारा अपनी खांसी के बीच में ही सोचता हुआ खुद को जॉन के पिता का हमउम्र मानने के लिए तैयार करने लगा| फिर बड़ी मुश्किल से वह मौरिस बुलाता हुआ उनके साथ में खाना खाता है| आखिर  उनकी पत्नी के सामने उसे उनके दोस्त की तरह दिखना था|

खाने के बाद वे बाकी बात अगली सुबह करने की कहते हुए आगे के कमरे में उसके सोने का प्रबंध करते हुए अपने परिवार के पास चल देते है|

उनके जाने के बाद अनिकेत बहुत देर आंखे खोले पड़ा पिछला सब सोचने लगता है| ये उसकी सोच का सबसे अद्भुत और अनोखा पल था जब वह समय के पार का सफ़र सशरीर तय कर रहा था| अब उसे पता भी नही था कि कब वह वापस जा पाएगा क्योंकि जिस स्पेक्ट्रम से वह आया है जब वह अपनी परिधि पर वापस एक चक्कर लगाकर पुनः अपनी स्थिति में लौटेगा तब उसकी समय यात्रा समाप्त होगी और ये कब होगा उसे सही से पता भी नही था| बस उसने तो यही निश्चय कर रखा था कि जब तक वह यहाँ रहेगा तब तक सब पता करने की भरपूर कोशिश जारी रखेगा|

उसी पल पलक का ख्याल उसके दिमाग में चला आया कि जाने कैसी होगी वह ? यहाँ आने से पहले वह उससे मिल भी नही सका| जाने वक़्त भी कैसी कैसी परीक्षा लेता है ये सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गई उसे पता भी नही चला|

रात बड़ी चैन से अनिकेत सोया और सुबह उसकी नींद बड़े नर्म स्पर्श से खुली| वह धीरे से आंख खोलकर देखता है जो सामने जिसे पाता है उसे देखते वह तुरंत उठकर बैठ जाता है|  

उसकी नज़रो के सामने नन्हा जॉन था जो ठोढ़ी पर हाथ टिकाए उसे गौर से देख रहा था और शायद उसके माथे के बाल हटाते वक़्त की उसका स्पर्श अनिकेत को महसूस हुआ था| जॉन ठीक अनिकेत के सामने था और अनिकेत हकबका सा उसकी ओर देख रहा था|

“क्या आपको पानी चाहिए ?” जॉन धीरे से पूछता है|

इस पर न में सर हिलाते हुए टेबल पर रखे पानी के जग को देखता है|

“आप डैडी के दोस्त है अंकल ?”

अंकल सुनते अनिकेत का हाव भाव यूँ उड़ा उड़ा हो जाता है कि वह जॉन से नज़रे चुनने लगता है जबकि नन्हे जॉन की नज़रे उसी पर टिकी थी|

“आप रात में आए न अंकल ?’

फिर अंकल सुनते अनिकेत अपने अगल बगल यूँ देखने लगा मानो भागने का रास्ता खोज रहा हो|

“अंकल…!”

“मुझे अंकल मत बुलाओ |” अबकी अनिकेत से नही रहा गया तो वह दबे स्वर में विरोध कर उठा|

इसके बावजूद जॉन उसकी ओर देखता हुआ फिर पूछता है – “तो मैं आपको भईया कहूँ ?”

“नही….!” अपने होंठ भींचता हुआ अनिकेत जैसे जॉन से नज़रे बचाता हुआ कहता है|

अबकी नन्हा जॉन उसे यूँ देखने लगता है जैसे पूछना चाह रहा था कि फिर क्या कहूँ पर अनिकेत की ओर से कोई उत्तर न पाते वह अपनी माँ की आवाज पर बाहर चला जाता है|

जॉन को बाहर जाते देख अनिकेत अपनी फसी फसी हालत पर न हँस पा रहा न जाहिर कर पा रहा था| वह ऐसे समय काल में था जहाँ उसका दोस्त उसे अंकल कह रहा था और वह उसे टोकने का उसे कोई वाजिब कारण भी नही बता पा रहा था|

आगे क्या होने वाला है ये सोचते वह इन सब बातों से अपना ध्यान हटाता हुआ अधखुले दरवाजे से बाहर देखने लगता है जहाँ से जॉन अपने पिता की गॉड में खिलखिलाकर हँस रहा था| ये देखते हुए एक बार को अनिकेत भी मुस्करा उठता है|

क्रमशः…….

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