
डेजा वू एक राज़ – 53
अनिकेत का मकसद था कि किसी भी तरह से वह जॉन के पिता के आस पास बना रहे ताकि वह इस गुत्थी को समझ सके| उनके साथ उनके घर से नाश्ता करके वह साथ में ही ओर्फ्नेज में आ गया था| इस पूरे रास्ते तक वे गुजरे हर घटनाक्रम को विस्तार पूर्वक बताते जा रहे थे|
वे अनिकेत को ऑफिस में लाते उन सभी अखबारों की कटिंग दिखा रहे थे जिसमे कही न कही इस खबर को छापा गया था| अनिकेत उन अख़बार को एक एक करके देखता हुआ पूछता है – “इन सबमे तो खबर बस नाममात्र को छपी है – कही भी कोई ज्यादा जानकारी है ही नहीं !”
इस पर वे गहरा उच्छ्वास छोड़ते हुए कहते है – “हाँ क्योंकि किसी को इस बारे में कोई दिलचस्पी ही नही – आखिर वे इन अनाथ बच्चो के होने या न होने में कोई खास फर्क ही नही समझते – पुलिस तो ये तक कह चुकी है कि जब तक किसी बच्चे की बॉडी नही मिल जाती वे इसे कोई खबर मान ही नही सकते – अब तुम ही बताओ – क्या तब तक के इंतजार में मैं बैठा रहूँ –|”
अनिकेत शांत भाव से उनका चेहरा देखता रहा और वे कहते रहे|
“मैं शांत नही बैठने वाला – मैंने कुछ और रास्ता भी सोच लिया है |”
तभी उस कमरे मे किसी और की भी मौजूदगी होती है जिसकी ओर देखते हुए मौरिस के कसे हुए हाव भाव बदल जाते है और वे सहज भाव से कहते है – “आओ सतीश |”
सतीश अनिकेत को अपरिचित नज़र से देखते हुए अंदर आते है|
“इनसे मिलो ये अरविन्द है – एक पत्रकार – ये गुम हुए बच्चो की कहानी को रिपोर्ट करने आए है – और ये है मेरा मित्र सतीश |”
मौरिस की औपचारिक मुलाकात के बाद दोनों साथ में बैठे रहे और अनिकेत अर्फ्नेज का एक चक्कर लगाने के उद्देश्य से बच्चो के रहन निवास की ओर चल देता है| ओर्फ्नेज ज्यादा बड़ा नही था पर उसके अंदर कई कमरे होने से बच्चो को अपना एकांत आसानी से मिल जाता था| हर उम्र के बच्चे थे जिनके किए अच्छी खासी व्यवस्था की गई थी| तभी अनिकेत की नज़र किसी एक बच्चे पर जाती है जो एकांत में बैठा कुछ पढ़ रहा था| अनिकेत उसके पास आकर खड़ा हो गया पर वह लड़का अपनी खुली किताब में इस कदर गुम था कि अनिकेत की ओर उसने ध्यान ही नही दिया जिससे अनिकेत ठीक उसके बगल में बैठने लगा जिससे वह लड़का चौकते हुए उसकी ओर देखता है|
उस एक पल अनिकेत भी उसका चेहरा गौर से देखने लगा| दो पल तक दोनों एकदूसरे को देखते रहे फिर इस देखने से सकपकाते हुए वह लड़का उठकर जाने लगा जिससे अनिकेत उसे रोकता है पर वह लड़का नही रुकता और किताब लिए चला जाता है|
वही बैठा अनिकेत कुछ पल तक उस लड़के का चेहरा याद करते हुए मन ही मन बुदबुदाता है – ‘आखिर वह चेहरा मुझे इतना जाना पहचाना क्यों लगा – कहाँ देखा है मैंने उसे – इस समय काल में तो अभी देखा है फिर कब देखा होगा उसे मैंने ? कही ऐसा तो नही कि अपने समय काल में मैंने उसे देखा हो – मतलब आज से बीस साल बाद जब वह सत्ताईस अठाईस साल का होगा – क्या जो मैं सोच रहा हूँ ये सच है !!’ अपने ही सवाल में उलझा अनिकेत वही बैठा कुछ सोचता रहा तब तक जब तक एक आदमी चाय के लिए अनिकेत को ऑफिस आने का आमंत्रण नही दे गया|
अनिकेत अब ऑफिस में आ जाता है पर मौरिस को न पाकर वह वहां उपस्थित सतीश से पूछता है|
“वह घर गया है – तब तक तुम्हे यही रुकने को बोल गया है – बैठो चाय आ रही है|”
अनिकेत अब वही बैठा उस ऑफिस को सरसरी नज़र से देखने लगा| उसे इधर उधर देखते देख सतीश उसे टोकता हुआ कहता है – “तो रिपोर्ट तैयार हो गई ?”
“आं !!” अनिकेत चौंककर उसकी ओर देखता है|
“अब तक सब तो मालूम पड़ गया होगा तो रिपोर्ट भी तैयार हो गई होगी |”
“हाँ बस तैयार हो रही है |”
“अच्छी बात है |” अपनी बात अंतिम पंक्ति की तरह कहता वह चाय लाते आदमी की ओर देखने लगता है|
चाय अब उनके बीच में रखी जा चुकी थी| सतीश अपनी चाय उठाते तुरंत चुस्की लेने लगते है जबकि अनिकेत उनकी ओर गौर से देखता हुआ पूछता है – “आप भी मेनेजर है इस ओर्फ्नेज के ?”
“नही – मैं दोस्त हूँ तो बस अपने कॉलेज के बाद यहाँ उसकी मदद के लिए चला आता हूँ |” अपनी बात कहते वे अनिकेत के चेहरे पर आए अनबुझे भाव समझते हुए आगे कहता है – “मैं पढ़ाता हूँ कॉलेज में |”
“ओह – अच्छी बात है तो आप काफी अच्छे दोस्त है उनके – वैसे मैं सोच रहा था कि अगर इस ओर्फ्नेज की भी कोई कहानी पता चलती तो मेरी रिपोर्ट और दिलचस्प हो जाती – अगर आप बताना चाहे हो ?”
इस पर फीकी सी हंसी हँसते हुए वे कहते है – “इस पर न बताने वाली कोई बात नही – ये ओर्फ्नेज असल में मौरिस के पिता ने खोला था – वे खुद अध्यापक थे और अपना शेष समय वे गरीब बच्चों को पढ़ाते गुजारते थे तभी ये रहननिवास खोलने का विचार उनके दिमाग में आया होगा – |”
“ओह तो विरासत में मिला है ये उन्हें |”
“विरासत समझो या रूचि – पहले मौरिस यहाँ काम नही करना चाहता था वह तो खुद विज्ञान का अध्यापक है – वह मेरी तरह कॉलेज में पढ़ाता भी था पर जाने किसी दिन क्या सोचकर उसने नौकरी छोड़छाड कर यही काम करने का मन बना |”
“क्या !! ये तो बिलकुल नई बात पता चली – पर उन्होंने इतनी अच्छी नौकरी क्यों छोड़ी होगी ?”
“क्या पता बड़ा मनमौजी शक्सियत का व्यक्ति है कब क्या ठान ले कोई नही जानता – एक समय था हम तीन मित्र किसी रिसर्च पर काम कर रहे थे उसने वो रिसर्च भी अपनी जिद्द के चलते अचानक से छोड़ दी जबकि वह बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन सकता था – वह किसी एक काम में इतना जुट जाता है बाकी सब भुला बैठता है – अब यही देखो – इन बच्चो के गायब होने की बात पर कितना जमी आसमान एक किए हुए है |”
“तो आपको क्या लगता है – ऐसा उन्हें नही करना चाहिए ?”
“नही मैं ये नही कहता पर कुछ पता तो चले – खैर – मुझे तो उम्मीद नही कि वह इस बारे में कुछ भी पता कर पाएगा |”
“आपको ऐसा क्यों लगता है ?” संशय भरी नजर से अनिकेत उन्हें देखता है|
“साफ़ सी बात है – एक महीने से उन बच्चो का रत्ती भर भी सुराग हाथ नही लगा है – क्या पता कही बेच दिया हो या मानव अंग की तस्करी हो गई हो – कहाँ से लाएगा सारा सबूत – इन बच्चो पर किसी की दिलचस्पी भी तो नही – एक मैं ही उसका मित्र हूँ जो दोस्ती की वजह से सब देखने चला आता हूँ – अरे चाय तो पियो – तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है|” अपनी चाय खत्म करते करते वह अनिकेत का ध्यान दूसरे कप की ओर दिलाते है|
अब अनिकेत चाय का कप लिए सोचता रहा| इस बीच उनके बीच मौन छाया रहा फिर अचानक से अनिकेत कुछ सोचते हुए पूछता है –
“अच्छा वह तीसरा आपका मित्र कौन था जिसके साथ वे रिसर्च वर्क कर रहे थे ?”
“वो तो अब यहाँ नही है – अपने घर वापस चला गया और उसके पास हमारी तरह रोजगार और धन की कोई समस्या नही है फिर उस रिसर्च को बंद होने में भी उसकी क्या दिलचस्पी होगी |”
“हम्म..|”
अभी दोनों आपस में बात कर ही रहे थे तभी उनका ध्यान कमरे में तेजी से प्रवेश करती मैरी पर जाती है जो थोड़ी रुआंसी सी प्रतीत हो रही थी|
उसकी ऐसी बिखरी हालत देख दोनों साथ में सकपका जाते है फिर उसे आराम से बैठने को कहते उसकी बात पर ध्यान लगा देते है|
वह नाक से बार बार सांस खींचती हुई कह रही थी – “सतीश भईया आप ही इन्हें समझाए – ये जाने क्या किए जा रहे है – कोई अपनी औलाद को बलि चढ़ाता है क्या ?”
“क्या कह रही है भाभी ठीक से बताए आप ?” सतीश टेबल में रखा पानी का गिलास उनकी तरफ बढ़ाते हुए पूछते है|
मैरी भी एक घूंट पीकर जल्दी जल्दी अपनी बात कहने लगती है – “ये सही नही है – कह रहे है – अपने जॉन को यही बड़े बच्चों के साथ रखेंगे – ताकि उसके गुम होने पर इस जांच को शुरू किया जा सके – अब आप ही बताए – कोई बाप ऐसा कर सकता है क्या – उन गायब हुए बच्चो का आज तक कुछ पता न चला और अगर जॉन के साथ वाकई ये घट गया तब !! तब क्या करेंगे हम !! कुछ भी नही सोचते अपने जूनून के आगे – आप उनके दोस्त है जरा समझाईए तो –|” अपनी बात कहती हुई वह फिर सुबकने लगी|
“अरे आप बिलकुल परेशान मत होहिए मैं समझाता हूँ उसे वैसे है कहाँ वह ?”
“पता नही बहुत देर से कही गए है – पर ये बात सुनने के बाद से तो मेरी जान ही हलक में फंसी हुई है अगर ऐसा हुआ तो मैं जॉन को ल्रेकर कही दूर चली जाउंगी |”
“अभी आप घर जाओ – मैं समझाता हूँ उसे – जॉन घर में अकेला होगा |”
वह इस बात पर सर हाँ में हिलाती हुई अपने आंसू पोछती हुई बाहर चली गई|
अनिकेत ये सब हैरानगी से होता देखता रहा| अब वह समझ गया था कि अब ठीक वही घटनाक्रम होने वाला है जो जॉन ने उसे बताया था| वे जरुर जॉन को यहाँ लाएँगे तब उसकी माँ उसे बचाएगी और उसके बाद ही उनके घर में आग वाली घटना घटेगी| और संभव है तभी कुछ ऐसा भी घटे जिससे जॉन अपनी पिछली सभी याद भूल जाए| इसका मतलब साफ़ था कि अब उसे किसी भी तरह से यही उनके आस पास बड़ी सतर्कता से बने रहना है ताकि इस घटनाक्रम से वह न चूके|
अनिकेत मन ही मन सोचता हवा में कप लिए उस दरवाजे की ओर देखता रहा जहाँ से अभी अभी जॉन की माँ गई थी|
क्रमशः…….