
डेजा वू एक राज़ – 54
समय लगातार अब उसी पल तक पहुँच रहा था जब बहुत बड़ा घटनाक्रम होने की उम्मीद की जा रही थी इसी कारण अनिकेत जॉन के घर जाने से खुद को न रोक सका| जॉन के पिता ने औपचरिकतावश उससे अपने घर पर दोपहर के भोजन के लिए पूछा और अनिकेत तुरंत राजी हो गया| वह खुद भी उनके आप पास बने रहना चाहता था|
वे उसे उसी बाहरी कमरे में बैठाकर अन्दर चले गए| वह सहज भाव से बैठा कमरे को आँखों से खंगालने लगा| उसे वैसे भी इस काल में सिर्फ दर्शक की तरह मौजूद होना था| आगे का घटनाक्रम कब और कैसे होगा इसपर उसे बस तीक्ष्ण नजर रखनी थी| अभी वह अपनी इसी सोच में डूबा था कि एक आहट पर उसका ध्यान गया| नन्हा जॉन कमरे में प्रवेश कर रहा था|
ये देखते अनिकेत की आंखे चौकस हो उठी| उसकी नजरो के सामने नन्हा जॉन खड़ा था| अनिकेत बस जॉन से बचना चाहता था पर उसके घर पर रहते ये असंभव था| न चाहते हुए भी वह हलकी मुस्कान से उसकी तरफ देखता है जिससे खिलता हुआ नन्हे जॉन के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खिल उठी| जॉन ठीक अनिकेत के पास आकर बैठ जाता है|
अनिकेत किसी तरह से उसे कमरे से रफा दफा करना चाहता था| वह थोड़ा सख्त आवाज में पूछता है – “तुम स्कूल नही जाते हो क्या ?”
“नही |” जॉन मासूमियत से सर न में हिला देता है|
“क्यों ?”
“मॉम बोलती है मैं कुछ दिन बाद सीधे बड़े स्कूल में जाऊंगा |”
“ठीक है – तो कम से कम कुछ पढ़ा करो – देखो बड़े होकर तुम्हे बहुत बड़े बड़े काम करने होंगे इसलिए अभी से पढाई शुरू कर दो |” अपनी बात कहते हुए अनिकेत मन ही मन मुस्करा रहा था|
पर नन्हा जॉन जो अनिकेत की बात शायद समझ नही पाया इससे कुछ न कहते हुए अपने हाथ में पकड़े खिलोने से खेलने लगा| अनिकेत देखता है कि वह एक कपड़े की गुडिया थी जिसकी आँख नाक मुंह कुछ नही बना था बस खाली सफ़ेद चेहरा था| उसे देखकर साफ़ पता चला रहा था कि वह हाथ से बनी हुई गुडिया है पर उससे जॉन को खेलते देख अनिकेत बड़े जॉन को याद करता हलके से हँस पड़ा जिससे नन्हा जॉन अब उसकी ओर घूर कर देखने लगा|
अपनी हंसी को नियंत्रित करते अनिकेत उससे पूछता है – “तुम गुडिया से खेलते हो ?”
“मेरी मॉम ने बनाई है |” जॉन अनिकेत की हंसी से थोड़ा रुष्ट होता हुआ कहता है|
अनिकेत समझ गया कि आखिर वह अभी बच्चा ही तो है और इस तरह उसे उसपर नही हँसना चाहिए, इससे वह उसके संग आत्मिकता दिखाते हुए गुडिया उसके हाथ से लेता हुआ वह भी उसे बड़े ध्यान से देखने लगता है| अब नन्हा जॉन हलके से मुस्करा दिया था|
“वैसे ये बताओ – इस गुडिया की न आँख है और न मुंह तो तुम्हे इससे डर नहीं लगता !”
“डर !!” जॉन यूँ कहता है जैसे अभी वह इस शब्द से वाकिफ ही न हो|
पर अनिकेत मुस्कराते हुए कहता है – “तुम बचपन से ही बड़े बहादुर हो |”
इस पर जॉन फिर अनबुझे भाव से उसकी तरफ देखता रहा| गुडिया अभी भी अनिकेत के हाथ में थी जिससे अब नन्हा जॉन हल्का नाराज़ भी दिखने लगा|
“वैसे तुम्हे ये सब खेल छोड़कर पढाई भी करनी चाहिए वरना तुम बड़े होकर क्या बन पाओगे ?”
“ओके…अंकल..|” कहता हुआ नन्हा जॉन कसकर मुस्करा दिया क्योंकि उसे पता चल गया था कि अनिकेत को अंकल सुनते अच्छा नही लगता|
और वाकई अनिकेत इससे अब उसे घूरने लगा| तभी बाहर से आती माँ की आवाज पर जॉन तुरन्त तीर की तरह बाहर निकल गया| अनिकेत अरे कहता गुडिया उसकी ओर बढ़ाता रह गया|
खाने खा लेने के बाद भी अभी काफी समय था और इस तरह वह उनके घर पर लगातार बना हुआ भी नही रह सकता था इसलिए उसे कुछ समय के लिए इधर उधर कही बाहर जाना ही होगा|
इसलिए वह शहर घूमने के इरादे से बाहर निकल पड़ा| बीस साल पहले का शहर काफी बदले बदले स्वरुप में था, सड़क पर कम वाहन नजर आ रहे थे| लोग बातों में मशगूल दिखाई पड़ रहे थे| कही कही खोमचे पर खड़े लोग ठहाके लगा रहे थे| ये सब देखते अनिकेत को बहुत अच्छा लग रहा था कि बच्चे आपस में खेल रहे तो बड़े अपने हमउम्र के साथ व्यस्त थे| उन सबके मोबाईल से फ्रेंडली न होने से उनका जीवन बिलकुल अलग नज़र आ रहा था|
अनिकेत ये सब देखते देखते बस अड्डे तक आ पहुंचा| यहाँ भीड़ कुछ ज्यादा थी| वह बस उधर से गुजर कर आगे ही बढ़ने वाला था कि एक आवाज उसके पैरो पर एकदम से ब्रेक लगा देती है| वह कोई जोड़ा था जो अपनी दो बच्चियों को एक बैंच पर बैठाते हुए कह रहा था – “झलक…अब से कोई शैतानी नही – समझी |”
वह बच्ची भी पूरी मासूमियत से हाँ में सर हिला देती है| जबकि उसके बगल में बैठी दूसरी बच्ची भोलेपन से उस वार्तालाप को बस देख रही थी|
दूर से देखता हुआ अनिकेत तुरंत ही समझ गया ये जरुर पलक झलक का बचपन है और ये उनके माता पिता| ये दृश्य देखते अनिकेत अपने सर पर हाथ मारता हुआ खुद से कह उठा – ‘अब बस यही देखने को बाकी रह गया था !’
वैभव अभी भी झलक को समझा रहे थे पर उनकी बात पर वह लगातार हाँ में सर हिलाती हुई कभी उनके पॉकेट से पेन निकाल लेती तो कभी पैर हवा में जोर जोर से हिलाने लगती है| उस वक़्त उनकी उम्र कोई पांच छह साल रही होगी| अनिकेत देखता है कि उसके बगल में बैठी पलक का मुंह खुला था और वह अन्यत्र देख रही थी| इससे वैभव बार बार दोनों का चेहरा अपनी ओर करते उन्हें समझा रहे थे| इस वक़्त वैभव जी का परेशान चेहरा देखते अनिकेत थोड़ा हकबका गया| ‘क्या बच्चे ऐसे भी परेशान करते है !’
वह आगे बढ़ना चाहता था पर कुछ पल रूककर उन्हें देखने के मोह को वह तज न सका और छुपकर उन्हें देखने लगा|
वैभव अब अपना आखिरी समझाने वाला वाक्य बोलते हुए कहते है – “देखो – मम्मी उधर टिकट लेने गई है – मम्मी टिकट लेगी तो जल्दी काम हो जाएगा इसलिए तब तक तुम दोनों अच्छी बच्चियों की तरह यही बैठी रहोगी और कही नही जाओगी – समझी न ! और हाँ ये जूस पकड़ो दोनों लोग इसे खत्म करना तब तक हम आते है – गुड |” अपने बैग पैक से दो जूस के छोटे पैकेट निकालकर उसके नन्हे हाथो में पकड़ाकर उनका सर प्यार से सहलाते हुए वैभव चले जाते है| जाते जाते एक बार पीछे मुड़कर उनका बैठा रहना चेक भी करते है| अब वे उस भीड़ की तरफ बढ़ रहे थे जो महिलाओ के लिए टिकट काउंटर था|
अभी तक तो दोनों अपना अपना जूस चुपचाप पी रही थी फिर शायद पलक ने अपना जूस फटाफट खत्म कर लिया और सीट का टेक लगाए ऊँघने लगती है| उस वक़्त उसके चेहरे की मासूमियत देखने लायक थी| वही झलक जूस पीने के बजाये जूस के डिब्बे से खेल रही थी|
पलक अभी भी झपकी ले रही थी तभी झलक जिस जूस के डिब्बे से खेल रही थी वो उनके बगल में रखे बैग के ऊपर गिर जाता है| झलक रुआंसा मुंह बनाए उसे देखने लगती है|शायद उसे अहसास हो गया था कि जिस शैतानी को उसे करने से मना किया गया था वह उससे हो गई|
जूस खुला था पर खेलते खेलते बैग पर ही गिर जाएगा ये उसे नही पता था| इधर पापा मम्मी कभी भी आ सकते थे| तभी उसकी नज़र नींद में झूलती पलक पर जाती है और उसी पल उसके चेहरे पर एक शरारती चमक खिल उठती है|
तभी वैभव नीतू संग वापस आ जाते है और सामने का दृश्य देखते है| झलक खाली पैकेट के साथ किनारे चुपचाप बैठी थी वही झपकी लेती पलक के हाथ में पकड़े जूस के पैकेट से जूस बार बार टपकता हुआ पास में रखे बैग पर गिर रहा था|
अब ये जानबूझकर की गई गलती से भूलवश हुई गलती समझ पलक को जगाकर वे उसे किनारे बैठा देते है और नीतू बैग साफ़ करने लगती है और ये सब होते किसी की नजर झलक के चेहरे पर आई शैतानी मुस्कान पर नही जाती है जिसे छिपा हुआ अनिकेत साफ़ साफ़ देख पा रहा था| वह मन ही मन बुदबुदा उठा – ‘हे भगवान् ये बच्चे कितने शैतान होते है |’ वह जॉन का शरारती बचपन भी देख चुका था और अब अपने भावी जीवन के बारे में सोचते पहली बार किसी बात से उसे डर लगा था|
अब तक शाम घिर आई थी और वापस जाने का सोचते अनिकेत पैदल ही मौरिस के यहाँ के लिए चल देता है| ओर्फेनेज पहुँचते पहुँचते कुछ अँधेरा घिर आया था| ये सर्दियों के शुरुवाती दिन थे इसलिए अँधेरा भी जल्दी हो जा रहा था|
वह अभी उस गली को पार कर ही रहा था जहाँ से ओर्फ्नेज और जॉन का घर समान दूरी पर था| वह उस ओर बढ़ा जा रहा था कि किसी आवाजो के टकराने का स्वर उसे सुनाई पड़ता है| ये आवाजे इतनी तल्ख़ थी कि सहसा उनपर से ध्यान हटाना मुश्किल था| पहले तो अनिकेत को लगा कोई दो लोग आपस में बहस कर रहे होंगे पर कोई मौरिस नाम सुनते उसके कदम वही ठहर गए और वह उन आवाजो पर अपना सारा का सारा ध्यान लगा देता है|
गली पूरी अँधेरे में डूबी हुई थी इसलिए न वे आपस में लड़ते साए साफ़ दिख रहे थे और न अनिकेत उनकी बात सुनता हुआ इसलिए वह उनके काफी नजदीक आता हुआ उनकी बाते साफ़ साफ़ सुन पा रहा था|
मौरिस की आवाज में जहाँ ढेर गुस्सा था वही दूसरे साए की अकड़ भरी आवाज कह रही थी –
“अब तुम इस रिसर्च से हाथ नही खींच सकते – ये बस पूरा ही होने वाला है – अब अगर तुमने इसे यही रोका तो समझो आज तक जो किया सब खत्म हो जाएगा और मैं इसे किसी भी हालत में खत्म नही होने दूंगा फिर चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े – तुम समझ रहे हो न इसलिए कहता हूँ अपना पागलपन छोड़ो और इसे पूरा करो|”
“नही – अब मैं इसे और नही कर सकता – और तुम खुद अपना पागलपन रोको – |” मौरिस उसी तर्ज में गुर्रा उठा – “मुझे नही पता था कि तुम इस हद तक चले जाओगे – कभी सोचा है इसका क्या परिणाम हो सकता है – हमने लैब टेस्ट के लिए जो मानक तय किए थे तुमने उसकी हर सीमा रेखा पार की – तुम जीवित इंसानों पर इसे नही अप्लाई कर सकते – वो सारे बच्चे है |”
“हाँ बच्चे है तो उनको मार थोड़े रहे है – सोचो ये अपने आप में बहुत बड़ी रिसर्च होगी जब ये बच्चे बड़े होकर अपने अंदर प्राकृतिक रूप से ग्लूकोसामिन बनाएंगे – इससे कोई कभी नही मरेगा – यही तो चाहते थे तुम भी – आखिर मैरी भी तो मरने वाली है|”
“कमीने |” अबकी तेज गुर्राहट के साथ उस साए का गिरेबान पकड़ता हुआ मौरिस चीखा – “बस यही कमजोर नस से तुम मुझे मजबूर करते आ रहे हो पर अब और नही ये रिसर्च उन बच्चो पर मौत भी बन सकती है – अगर उम्र के साथ नए स्टेम सेल बने तो क्या वो उनके शरीर से निकाल लोगे – वह तुम्हारे लिए बढ़ते हुए प्रोडक्ट के रूप में है – मैंने सोचा भी नही था कि तुम इस रिसर्च के बहाने अपना इतना बड़ा स्वार्थ हासिल करोगे |”
“पागल हो तुम – जब तुम्हारी बीवी भी तुम्हारी आँखों के सामने मारेगी तब तुम्हे पता चलेगा कि तुमने क्या खोया – तब सारा धन सम्प्रदा इस मौत के आगे बौनी बनकर रह जाएगी – तब क्या करोगे तुम – अभी भी वक़्त है इसे पूरा करो और अपनी कैंसर से मरती पत्नी को बचा लो |”
अबकी मौरिस की कोई प्रतिक्रिया नही सुनाई पड़ती बल्कि उसकी सुगबुगाहट सी हवाओ में जैसे तैर जाती है|
वह फिर बोलता है – “समझते क्यों नही – तुम्हारा दिमाग – ये सबसे कीमती है – बस वो आखिरी काम कर दो और सब तय हो जाएगा – और फिर इन बच्चो पर रहम क्या खाना – ये तो वैसे भी भूखे नंगे है – कब क्या होगा इनका – अगर ये जीवित रह गए तो सोचो ये बहुत काम आ सकते है –|”
“नही – मेरा यही आखिरी फैसला यही है और अब मैंने सब तरफ ये फैला भी दिया है – तुम खुद को भी बहुत दिन नही बचाए रख सकते |”
अबकी उसकी हंसी की आवाज साफ़ साफ सुनाई पड़ी – “तुम भूल रहे हो – ताकत सिर्फ बुद्धि से नही मिलती धन से भी मिलती है – आज रात तक का समय दे रहा हूँ आ जाओ या फिर अंजाम भुगतने को तैयार रहो |”
कहता हुआ वह बड़ी तेजी से गली के अँधेरे में जैसे गुम हो जाता है| ये सब सुनता अनिकेत जैसे सब कुछ अवाक् होकर सुनता रह गया| उसे विश्वास भी नही आया जो अभी अभी उसकी नज़रो के सामने हुआ| तभी उसकी नज़रे महसूस करती है कि मौरिस अपने घर की ओर बढ़ रहा था| अनिकेत फिर चुपचाप उसके पीछे चलने लगता है|
“तुम !!” मौरिस की आवाज पर अनिकेत के पैर भी वही ठिठक जाते है|
मौरिस अपने सामने खड़ी दूसरी परछाई को देखता हुआ कह रहा था – “तुम यहाँ !!”
“हाँ यहाँ नही आती तो आज वो सब नही सुनती जो मुझसे तुमने छिपाया |”
अनिकेत आवाज की ठसक से समझ गया वो मैरी की आवाज थी जो जरुर घर से ओर्फ्नेज की ओर आते हुए मौरिस को मिल गई होगी|
“तुमने क्या सुना ?”
“वो सब सुना जिसे अगर कोई और कहता तो मैं यकीन नही कर पाती पर आज अपने कानो से खुद सुना – तुम ही उन बच्चो के गायब होने की वजह हो तो फिर ये ढोंग किसलिए – ?”
“तुम सुनो तो मेरी पूरी बात – घर चलो मैं सब बताता हूँ तुम्हे |”
मैरी बिलख उठी थी पर मौरिस उसे किसी तरह से समझाता हुआ अपने साथ घर ले जाने लगा लेकिन मैरी जैसे आज अपना आपा ही खो दे रही थी – “इतना फरेब !!”
“फरेब तो मेरे साथ हुआ है मैरी – तुम्हे कैसे बताऊँ मैं नही कर रहा ये |”
“अब किस बात का मुखौटा – मैंने सब सुन लिया है – तुमने अपने जूनून के लिए मासूमो की बलि दे दी – तुम क्या अब मैं खुद तुम्हारी रिपोट दर्ज करवाउंगी |”
“मैरी..|”
मैरी तेजी से अपने घर की ओर बढ़ने लगी और उसी तेजी से मौरिस भी उसके पीछे चला| वह उसे रोकना चाहता था पर मैरी पर जैसे कोई जूनून सा सवार हो गया| अनिकेत भी उनके पीछे पीछे तेजी से आता है कि तभी मैरी की तेज चीख सुनाई पड़ती है और अनिकेत वही स्तब्ध खड़ा रह जाता है| क्या अनिकेत इन घटनाओ को रोक सकेगा…? क्या होगा आगे जानने के लिए बस थोड़ा इंतजार..
क्रमशः……..