
डेजा वू एक राज़ – 57
उस पल मन में भावनाओ की जो नदी बह निकली उसे किसी तरह जब्त करते मन के बाँध में समेटे जॉन अनिकेत को पुकारता है –
“बस एक आखिरी बात और बता दो अनिकेत – क्या मेरी माँ जिन्दा है या नही !”
जॉन का प्रश्न अनिकेत को अंदर तक दहला गया| उसे समझ नही आया कि इसका क्या जवाब दे ! कभी कभी सच को कहने के लिए भी अपार हिम्मत चाहिए होती है| वह प्रश्न को मन में मथता रहा जिससे उसकी ख़ामोशी को पढ़ते हुए जॉन आगे कहता है – “शायद तुम्हारा जवाब नही में है – कोई बात नही अनिकेत आखिर इस सच को मैं बहुत पहले की स्वीकार कर चुका था बस फेनी के आने से एक झूठी उम्मीद सी बंध गई थी – खैर सच तो सच ही होता है|” जॉन बिना अनिकेत से नजर मिलाए हुए कहता रहा क्योंकि वह जानता था कि अनिकेत से वह अपना दर्द नही छिपा पाएगा|
अनिकेत फिर उसके पास बैठता हुआ कहता है – “मेरे ख्याल से अभी तुम्हे फेनी के पास जाना चाहिए क्योंकि इन सबमे वह बेवजह ही पिसी – उसे तो पता भी नही कि कब वह पैरलर वर्ड में सफ़र कर लेती है – उस वक़्त भी यही हुआ मैंने उसके चेहरे को देखा पर वो किसी और की मौत थी – वजीर बहुत अच्छे से हमे बीती घटनाओ के साथ साथ वर्तमान के साथ ट्रेवल कराता है|”
इस पर जॉन कुछ न कहते बस हामी में सर हिला देता है|
“जॉन अभी बहुत कुछ है जानने को जिसे मैं तुम्हारे बिना नही जान सकता – और इसलिए ये लड़ाई सिर्फ तुम्हारी या मेरी नहीं बल्कि हमारी है और इसे हम मिलकर जीतेंगे बस तुम अपना हौसला बनाए रखो क्योंकि वजीर आखिर यही तो चाहता है कि हम टूटे, बिखरे और भटके पर अब उसका सोचा हुआ कुछ नही होगा – अब सब कुछ हमारी सोच से होगा – मैं अतीत से वापस तो आ गया पर उन जगहों पर दुबारा जाकर सब फिर से पता करता हूँ और जरुरत पड़ी तो एक बार फिर से मैं टाइम ट्रेवल करूँगा बस तुम खुद पर से विश्वास मत हटाओ |”
अबकी खुद को सँभालते हुए जॉन सहमति में उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए उठता हुआ कहता है – “तो अब हमे आगे क्या करना चाहिए ?”
जॉन को संभलते देख अनिकेत मुस्कराते हुए कहता है – “चलो दिल्ली की ओर…जहाँ से ये कहानी शुरू हुई अब उसका अंत भी वही से करेंगे |”
वे साथ में जाने की तैयारी करते है पर जाने से पहले अनिकेत पलक को एक बार मिलना चाहता था| लेकिन साथ ही वह ये नही चाहता था कि रचित ये बात जाने कि वह और जॉन कहाँ है? इसलिए मन ही मन तय करते वह उसी पल हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ता है|
आईसीयू के बाहर सभी मौजूद थे| वैभव जी को होश आ चुका था और उनकी हालत कुछ बेहतर थी इसलिए उन्हें प्राइवेट रूम में शिफ्ट किया जा रहा था इससे काफी समय से सारा परिवार उनका इंतजार करता अब उत्सुक और खुश नज़र आ रहा था|
रचित पेपर वर्क कराने लगा तो झलक अपनी माँ और पलक के लिए चाय लाती हुई उन्हें बैठने को कह रही थी|
चाय लेती हुई नीतू जी कहती है – “मेरी चिंता न कर – मैं तो बस ये खबर सुनते दुबारा जी उठी – तू जा झलक बेटा और रचित की हेल्प कर जा कर |” कहती हुई अब पलक की ओर देखती हुई कहती है – “और पलक तू बेटा थोड़ा आराम कर ले – इतनी देर खड़ी रहना तेरा ठीक नही – नही बस बहुत जिद्द कर ली – झलक तू न इसे उसी प्राइवेट रूम में ले जा – अभी तो पापा तो आने में समय है तब तक ये आराम कर लेगी वहां |”
पलक बहुत नानुकुर करती रही लेकिन नीतू जी उसकी कुछ नही सुनती, वे माँ होने के नाते बिन कहे ही पलक की स्थिति समझ रही थी|
झलक भी माँ का कहना मानती हुई पलक को उस रूम की ओर ले जाती है|
“अब जब तक हम बाहर से टिफिन लेकर आते है तब तक चुपचाप से आराम करना – वैसे भी जब तक पापा को यहाँ शिफ्ट नहीं करेंगे तब तक हमारे सिवा कोई नही आएगा इस रूम में – समझी न – वरना बाहर आकर बेबी मुझसे ही शिकायत करेगा कि मौसी आप तो इतनी समझदार थी फिर मेरी नासमझ बुद्दू माँ को थोड़ा ज्ञान क्यों नही दिया !”
“यू झलक !” बनावटी गुस्से में पलक मारने को हाथ उठाती है और झलक खिलखिलाती हुई कमरे से नौ दो ग्यारह हो जाती है|
झलक उसे रूम में छोड़कर बाहर चली गई| मरीज के बिस्तर के बगल में अटेंडेंट की बैंच पर तकिया लगाकर आराम से लेटती हुई पलक को अहसास हुआ कि वाकई उसे इस आराम की इस वक़्त बेहद जरुरत थी|
वह बस दो पल को आंख बंद करके लेटी ही थी कि एकदम से रूम का दरवाजा खुला और तुरंत ही बंद भी हो गया| पलक औचक आंख खोले देखती है कि कोई डॉक्टर कमरे में आता हुआ अन्दर कमरे को सिटकनी लगा रहा था, ये देखते पलक बगल में रखा जग उठाकर बस चीखने ही वाली थी कि डॉक्टर एक लम्बी फलांग में उसकी नज़रो के ठीक सामने खड़ा था|
पलक मुंह खोले बस देखती रह गई| वह डॉक्टर अपने मुंह पर का मास्क हटाकर बिस्तर पर रखता हुआ पलक की ओर मुस्करा कर देखने लगा और बस पलक आपा खोती तुरन्त उठकर उसकी खुली बांहों में समा गई|
दो पल तक वह सिसकी लेती उन गर्म प्रीत के पलो में मौन ही गोता लगाती रही| वह भी उसके बालो पर उंगलियाँ फेरता हुआ उसे आराम से बैठाता हुआ कहता है – “तुम ठीक हो न ?”
इस पर सर उठाकर अब उसका चेहरा ध्यान से देखती हुई कहती है – “मैं तो ठीक हूँ पर आपको इस तरह आने की क्या जरुरत थी – एक पल को तो मैं डर ही गई|”
इस पर अनिकेत हलके से हँसते हुए कहता है – “तुमसे कभी छुपकर नही मिला तो सोचा इसका भी मजा चखा जाए !”
“आप भी न – कभी कभी बिलकुल अलग हटकर बात करते है तब लगता है – ये कोई और अनिकेत है |” वह मुस्कराती हुई उसकी बाहों में फिर सिमटती हुई कहती है – “और कहाँ चले गए थे अचानक से – न झलक न रचित किसी को भी आपके बारे में कुछ नही पता था |”
“यही तो मैं चाहता था |”
“मतलब !!” चौंकती हुई पलक सर उठाकर फिर अनिकेत का चेहरा गौर से देखती रही|
“मैं नही चाहता था कि वजीर मेरी किसी भी मूवमेंट को जाने इसलिए सबकी जानकारी के बिना गया था |” अनिकेत की इस बात पर पलक का आश्चर्य और चार गुना हो जाता है जिससे वह उसे समझाता हुआ आगे कहता रहा – “रचित जिस भी वजह से डार्क वेब में गया पर वही से उसे वजीर द्वारा हैक कर लिया गया – ये सुनने में बहुत अजीब लगेगा पर हुआ यही बिलकुल – रचित हमारे साथ बराबर बना है और हमारी सारी बाते जानता था इसलिए उसे टारगेट करना बहुत आसान जरिया रहा और डार्क वेब के लेंस से उसकी मेमोरी को ट्रेस कर लिया गया जिससे वह हमारी हर एक बात पहले से जान जाता था – इसलिए मैं रचित की नज़रो में आए बिना तुमसे मिला – मैं काफी देर से आईसीयू के बाहर खड़ा तुम्हे देख रहा था – और जब तुम्हे यहाँ आते देखा तो मैं भी आ गया -|”
इस पर पलक के होंठो पर हलकी शर्मीली मुस्कान तैर गई|
“देखो पलक अब मैं जो कह रहा हूँ उसे बहुत ध्यान से सुनो – हो सकता है आने वाले दिनों में कुछ अजीब घटनाए घटे पर किसी भी घटना से विचलित मत होना – मैं हर हाल में सुरक्षित रहूँगा और तुम्हे भी सबके साथ अपना ख्याल भी रखना होगा क्योंकि आने वाला पल बस उस वजीर के साथ मेरा आर पार का खेल होने वाला है और जब तक मैं वापस न आ जाऊं तब तक रचित को यही रोके रखना इससे डार्क वेब से वह नही जुड़ पाएगा – क्योंकि वह उसके उस सिस्टम में है जो उसके बैंगुलुरु वाले घर मे है – झलक को भी सब समझा देना – रचित बिलकुल गलत नही है बस सब एक तरह का मायाजाल है – इस बार का मायाजाल पूरी तरह से वर्चुअल विजुअल है|”
“मतलब क्या होने वाला है ?”
“वही जो हर बार होता है इंसान अपने लोभ में जकड़ता खुद की कब्र खुद ही खोदता चला जाता है – ये लालच की पराकाष्ठा है – पहले वह जरुरत की चीज चाहता है फिर जरुरत से थोड़ा ज्यादा चाहता है और उसके बाद उससे कही ज्यादा चाहता है इस तरह से उसका लालच हर बार एक नया सोपान चढ़ते हुए उसे उसकी ही फ़ासी के फंदे तक पहुंचा देता है पर तब वह ये भूल जाता है हर अति की अतिवृष्टि होती है तब प्रकृति सबके साथ समान व्यव्हार करती है इसलिए ईश्वर होने का कोई दो पल तक अहसास कर सकता है पर ईश्वर नही हो सकता |”
पलक डर मिश्रित हैरानगी से अनिकेत की बात पूरी ख़ामोशी से सुन रही थी|
“अभी कहने को बहुत कुछ है पर जब तक मैं सारी कड़ियाँ आपस में न जोड़ लूँ तब तक तय तौर पर कुछ नही कह सकता – बस जो कहा है उसका ध्यान रखना – अब विदा लेता हूँ तब तक के लिए जब तक ये मिशन न पूरा कर लूँ – |”
“पर !!” पलक के लबो पर घबराहट थरथरा उठी|
“तुम्ही तो मेरी ताकत हो – बिना आदि शक्ति के शिवा भी अधूरे है – इस तरह तुम मेरी आदि शक्ति हो – जब तुम मुस्करा कर मुझे विदा करोगी तो उस पल सम्पूर्ण ताकत से मैं बुराई से लड़ सकूँगा – तुम्हारे एक क्षणिक संशय से मेरा विश्वास भी डगमगा जाएगा |”
“नही होगा ऐसा – आप अपने लक्ष्य में जरुर कामयाब होंगे – मुझे पूरा विश्वास है पर एक गुजारिश है कि जब भी आपको समय मिले एक बार मेरी खोज खबर जरुर ले लीजिएगा |”
इस पर अनिकेत अपनी हथेली में उसका चेहरा भरता हुआ उसे गौर से देखता हुआ कहता है – “तुम्हारे पास तो मुझसे कही ज्यादा मानसिक शक्ति है – जब चाहे आंख बंद करके मेरे मन से कनेक्ट हो जाना – फाइव जी से कही तेज है वह |”
इस पर पलक मुस्कराए बिना न रह सकी| उसे अनिकेत को विदा करते मन में हूक सी तो उठ रही थी पर वक़्त की जरुरत पर वह भरपूर मुस्कान के साथ अनिकेत को विदा करती है| अनिकेत भी अपना प्यार उसके माथे पर अंकित करता उससे विदा लेता तुरंत दुबारा मास्क लगाए वहां से निकल जाता है|
जॉन और अनिकेत साथ में दिल्ली पहुँचते जॉन के फ़्लैट में पहुँचते है| अनिकेत अब जॉन को वही छोड़कर खुद अकेला उस फ़्लैट के लिए निकलने वाला था जहाँ उसने फेनी को ठहराया था|
उस वक़्त अनिकेत जॉन के चेहरे पर आए दुविधा भरे भाव देखता हुआ पूछता है – “क्या हुआ जॉन – क्या सोच रहे हो ?”
“मैं ये सोच रहा हूँ कि इन सबके बीच फेनी फिर से न मुसीबत में पड़ जाए – माना इससे पहले वाला दृश्य एक वर्चुअल इमेज थी लेकिन कही इसे सच साबित करने वजीर फेनी को सच में खतरे में न डाल दे – तब !!”
“हाँ इस बात का डर तो है मुझे भी और ये बात भी अभी तक नही समझ सका कि उसने फेनी को क्यों चुना – क्या तुम तक पहुँचने के लिए या कुछ और ही मकसद है उसका ?”
“जो भी हो पर मुझे लगता है फेनी उसकी नज़र में तो है – इसलिए कही उसका सॉफ्ट टारगेट न बना जाए वह ?”
“तो तुम्हारे हिसाब से हमे क्या करना चाहिए ?”
अबकी बड़ी दिलचस्प नजर से वह जॉन की ओर देखता हुआ पूछता है – “मुझे लगता है – हमे फेनी को अकेला नही छोड़ना चाहिए !”
रूककर समर्थन के लिए जॉन अनिकेत की ओर देखता है तब अनिकेत कहता है – “हाँ आगे बोलो मैं सुन रहा हूँ |”
इससे एक हिचकिचाहट सी जॉन के चेहरे पर उभर आई तब उनके बीच की ख़ामोशी में अनिकेत कहता है – “चलो तुम इसपर सोचो मैं तब तक फेनी से मिलकर आता हूँ |”
जॉन एक बार फिर मनमसोजे रह गया और अनिकेत रफ़्तार से वही से अपने फ़्लैट के लिए निकल गया| जबकि जॉन बुझे मन से लिफ्ट की ओर बढ़ गया|
अपने फ़्लैट में पहुंचते जॉन सबसे पहले एक गर्म कॉफ़ी बनाकर तनहा बैठा अपनी सोच में कही गुम था| उसका मन कई दिशा में भाग रहा था जैसे एक ही पल में कई तरह के विचारो की यात्रा वह एकसाथ में कर रहा हो| अब फेनी उसकी नजर में कसूरवार नही थी बस उसे किस तरह से इन सबमे शामिल किया गया वह इस सोच में गुम था| पर जो भी हो फेनी से मिलकर उसकी अधूरी दुनिया की तस्वीर वह बन गई थी| वह उसकी खुमारी से निकलना ही नही चाहता था| कॉफ़ी उसके बगल की मेज पर रखी कबकी ठंडी हो चुकी थी पर जॉन ने एक बार भी उसकी ओर देखा तक नही|
जाने कितनी देर वह अपने ख्याल में गुम यूँही बैठा रहा| जैसे एक ही पल में वह फेनी से हुई पहली मुलाकात से लेकर पिछली मुलाकात को पल में पार कर आया हो| वह उसके दिलो दिमाग में पहाड़ो पर कोहासे की तरह शामिल थी जिनसे उसकी मन की एकांत पहाड़ी गुलज़ार थी|
तभी दरवाजे पर हुई दस्तख से अचानक जॉन की तन्द्रा टूटती है और उसका ध्यान दरवाजे की दस्तख पर जाता है|
‘शायद अनिकेत वापस आ गया |’ ये सोचते हुए जॉन दरवाजे की ओर बढ़ता है|
वह बेख्याली में दरवाजा खोलकर तुरंत ही बिना उस पार देखे मुड़कर अन्दर आ जाता है|
“आओ न फेनी – क्या सोच रही हो ?”
आवाज और अहसास जैसे एक साथ जॉन के दिलो दिमाग को झंझोड़ गए| वह जैसे बिना अगली सांस लिए आवाज की ओर पलटकर देखता रह गया| अनिकेत के साथ फेनी खड़ी थी !! हाँ वह सच में मौजूद थी और अनिकेत उसे अन्दर आने को कह रहा था| वह अपलक उसकी ओर देखता रह गया ये सोचे बिना कि अनिकेत उसकी नज़रो की बेचैनी को देखता अब बंद होंठो से मुस्करा रहा था जबकि फेनी उसकी नज़रो से जानकर भी अनजान बनी अन्यत्र देख रही थी|
मन कवि नही होता पर इश्क कविता कह जाता है…
जब जब देखा बस तुझेही देखा…
जब भी खुली आंखे बस एक तू ही दिखा…
बंद आँखों से भी जब भी दीदार किया..
तेरा ही किया…
तुझे पाने की हसरत में..
एक एक लम्हा तेरा इंतजार किया…
क्या कहूँ उस बेचैन लम्हे की दास्ताँ..
जो पल बस साँसों सा मैंने जिया…||
क्रमशः………