
डेजा वू एक राज़– 60
पलक उस साए के पीछे चली जा रही थी जो उसके हिसाब से झलक का था| उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर झलक उसे सुन क्यों नही रही कि तभी अचानक उसे किसी के हाथ का भार अपने कंधे पर महसूस होता है और वह चौंकती हुई पलटकर पीछे देखती है| उसके पीछे खड़ी झलक उसे अजीब निगाह से देख रही थी|
“झल्लो तू यहाँ !! तो वो !! वो कौन थी ?/” पलक हकबकाई सी फिर अपने आगे जाते रास्ते के अँधेरे को देखती हुई फिर झलक को देखती है|
“मैं तो तेरे पीछे ही थी – तब से आवाज लगा रही थी पर तूने सुना ही नहीं और ये तू नो एंट्री वाली जगह पर क्यों चली आई ?”
झलक पलक से पूछ ही रही थी कि झलक के हाथ में पकड़े मोबाईल में एक मेसेज टोन बजती है| अब दोनों एकसाथ झुककर उसे देखने लगते है| झलक मेसेज को खोलती हुई धीमे स्वर में कह उठती है –“ये तो जीजू का मेसेज है -|” एक पल को हैरान पलक का चेहरा देखती हुई फिर मोबाईल का स्क्रीन देखती हुई उसे आगे पढने लगती है – “पलक को जाकर ये सन्देश दे दो क्योंकि उसे मेरा मेसेज अभी मिला नही है – किसी कारण से परालौकिक वर्ड का दरवाजा खुल गया है और बहुत सारी अज्ञात आत्माए आजाद हो गई है – मेरा मेसेज मिलते सब सुरक्षित होने का प्रयास करना – डरना नहीं – मैं दूर रहकर भी तुम सबसे मानसिक ऊर्जा से जुड़ा हुआ हूँ इसलिए बस ईश्वर पर विश्वास रखना – मैं जबतक इसे ठीक करने का प्रयास करता हूँ तब तक पलक से कहना वह शंकाष्टकम मन्त्र का जाप करे इससे उसके आस पास मन्त्र का ओजस अपना विस्तार करेगा और तुम सबको हर मुश्किल से बचाएगा|” झलक ने ज्योंही आखिरी लाइन पढ़ी वह बिना समय गंवाए तुरंत पलक को खींचती हुई वहां से दूर ले जाती हुई कहने लगी – “मुझे भी कुछ ठीक नही लग रहा पर सबसे पहले तेरा सुरक्षित होना जरुरी है |” पलक झलक की नजरे उसके उदर की ओर देख समझ जाती है कि वह क्यों ऐसा कह रही है?
“तू जल्दी से रूम में पहुंचकर अन्दर से बंद करके उस मन्त्र का जाप करना शुरू कर दे |”
“और तू कहाँ जा रही है ?”
“मेरी चिंता मत कर फिलहाल मेरे साथ रचित भी है और मैं उसी के पास जा रही हूँ – |”
“पर…!!”
“पर वर कुछ नही – अपनी सिचुएशन को समझ न और फिर जीजू ने कहा न कि वे इसे ठीक करने का प्रयास कर रहे है|”
पलक भी अब ज्यादा तर्क वितर्क न करते झलक की बात मानती हुई रूम की ओर बढ़ती हुई कहती है – “झल्लो तू भी अपना ख्याल रखना |”
पलक कमरे के अंदर चली जाती है और पीछे रह गई झलक तुरंत उस गलियारे की ओर अपने तेज कदम बढ़ा देती है जिसे पार करके वह वेटिंग रूम तक पहुँच सकती थी| रात का समय और चारो और अजीब सा सन्नाटा पसरा था मानो बस तूफान आने ही वाला हो| उस वक़्त सौ मीटर की दूरी भी उसे सौ किलोमीटर की तरह लग रही थी|
झलक अपने आस पास देखती आगे की ओर बढ़ी जा रही थी कि सहसा उसे लगने लगा जैसे कोई उसके पीछे है| अब झलक को हल्का हल्का डर सताने लगा पर बिना पीछे मुड़े वह अपने कदम और तेज कर लेती है| अब एक कदमो की आहट कई कदमो की आहट में बदल गई थी| अब झलक को अहसास होने लगा कि बहुत सारे लोग उसके पीछे है इससे डर की सहस्त्र बूंदे उसके माथे पर उमड़ने लगी|
वह कदम अब उसके इतने आस पास महसूस होने लगे जैसे वह उसी के पैरो की कई गुना आहट हो| डरती हुई झलक चलते चलते एक बार पीछे पलटकर देखती है तो हैरानगी से उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है| उसके पीछे का पूरा गलियारा तो सूना पड़ा था वहां किसी के भी मौजूदगी के निशान नही थे फिर ये आवाज आखिर कहाँ से आ रही थी ?ये देखे झलक के चेहरे पर काटो तो खून नहीं इस तरह के भाव उभर आए और वह हकबकाई सी अपने सामने देखने ज्योंही अपनी नज़रे सामने करती है उसके हलक से एक तेज चीख निकल जाती है|
बहुत सारे लोग किसी परछाई की तरह ठीक उसके सामने से उसकी ओर बढे आ आ रहे थे| झलक बिना पल गंवाए तेज कदमो से अब उनके विपरीत भागने लगती है| वो सब कौन है और क्यों उसकी ओर आ रहे है ये सब सोचने विचारने का समय नही था बस अनिकेत की बात याद करती वह बस बेदम विपरीत दिशा में भागी जा रही थी|
भागते भागते उसे लग रहा था जैसे आज ये जरा सा लम्बा गलियारा सैकड़ो मील लम्बा हो गया हो| वह बदहवास सी रास्ते पर बस भागी जा रही थी कि अचानक किसी चीज से उसका पैर भिड़ता है और वह झटके से साथ जमीं पर गिर पड़ती है|
वह जमीं पर जहाँ गिरी थी वहां वह कुछ पड़ा हुआ पाती है जिससे वह अभी अभी टकराई थी| वह अपनी उफनती हुई साँसों को अपने होंठो के बीच भींचती हुई उस चीज पर अपनी नज़र तेज करती है और अगले ही क्षण बस उसके हलक से हृदयविदारक चीख उभर आती है| वह जहाँ गिरी थी वहां कोई लाश पड़ी थी जिसका सर गायब था| ये दृश्य झलक पर कितना भयावह गुजर रहा था ये बस उस पल उसके मन को ही खबर थी| उसे समझ नही आ रहा था कि ये कोई भ्रम है या सच में वह किसी मुसीबत में उलझ गई है लेकिन सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि रूककर सोचने का समय ही नही था उसके पास|
वह डरी सहमी थी फिर भी किसी तरह से अपने ऊपर नियंत्रण करती हुई उठकर भागने का प्रयास करने लगती है पर ये क्या उसका पैर तो किसी अनजान जकडन की पकड़ में था| वह जल्दी से बिना पल गंवाए अपने पैर को झटका देती हुई उस अज्ञात जकडन से छूटने की कोशिश करती हुई उसके विपरीत दिशा में भागने का प्रयास करती है| भागते हुए बस फर्श पर उसे कटा हुआ हाथ दिखता है|
झलक बुरी तरह से अब हांफने लगी थी, उसे लग रहा था कि वह बस उस गलियारे के एक ओर से दूसरी ओर ही तबसे भाग रही है| जाने किस तरह का दोहराता हुआ भ्रम था वह??
घबराहट और डर से उस गला सूखा जा रहा था जबकि उसकी पूरी देह पसीने से भर उठी थी| वह हथेली से अपने सूखे गले को सहलाती है तो सहसा उसके हाथ में वह लॉकेट आ जाता है जिसमे अनिकेत द्वारा दिया सिद्ध एकमुखी रुद्राक्ष था| उसे हाथ में लिए वह पल भर को रुकी उसे अपने माथे से लगाती हुई भगवान् शिव का ध्यान करती है|
अभी वह दो पल की राहत की सांस लिए ही थी कि कोई उसे अपने पीछे आता हुआ महसूस हुआ| वह डरी सहमी किसी तरह से पलटकर देखती है तो बस उसका रहा सहा हौसला भी पस्त होने लगा| कोई आदमकद साया अँधेरे में उसकी ओर तेजी से आ रहा था| वह इतनी तेजी से उसकी ओर आया कि झलक पीछे हट भी न पायी और बस उसकी पकड़ में आती बेहोश होते होते बची|
“झलक !! क्या हुआ ?”
वह रचित था जो उसे पूरी तरह से अपनी पकड़ में लिए हुए उसका चेहरा थामता हुआ उससे पूछ रहा था|
झलक उस पल से इतना डर गई थी कि एक पल को रचित का आना उसे यकीन ही नहीं आया पर अगले ही पल रचित जब उसे कसकर थामे अपने साथ चलने को कहता है तब वह कुछ न कहती बस उससे लिपटती हुई बिफर पड़ती है|
“अरे हुआ क्या?”
“रचित जल्दी से चलो यहाँ से |”
“हाँ वही तो मैं भी कहने आया हूँ – कब से तुम्ही को ढूंढ रहा था – पता नही क्या हो गया है कब से हॉस्पिटल की लाइट आ जा रही है – लोग भी बदहवास से इधर उधर जा रहे है – मुझे यहाँ कुछ ठीक नही लग रहा|”
“ठीक है भी नही रचित – |”
“मतलब !!”
रचित के पूछते झलक उसे अनिकेत की बात कह सुनाती है जिसे सुनते रचित तुरंत कहता है – “ओह तभी ये सब अजीब अजीब घट रहा है – अब हमे भी यहाँ से कही सुरक्षित जगह जाना चाहिए – चलो |”
कहता हुआ रचित झलक का हाथ पकड़े उस गलियारे से निकलने लगता है| वे अब तुरंत ही गलियारे से निकलते उस पार के वेटिंग रूम के बगल से गुजरते हुए पलक वाले रूम की तरफ बढ़ रहे थे|
चारोंओर अजीब सी बदहवासी सी पसरी थी| लोग बहुत ही कम थे और जो भी थे सब इधर उधर तेजी से आ जा रहे थे जैसे सभी खुद को किसी अज्ञात चीज से बचा लेना चाहते हो| तभी किसी महिला के रोने की आवाज रचित और झलक के बढ़ते कदम रोक देती है| वे साथ में उस आवाज की दिशा की ओर देखते है| वेटिंग रूम के बगल में रखे ड्रावर के बगल में खड़ी महिला रो रही थी उसका हाथ उसमें फंसा था| वह दर्द से रोए जा रही थी पर सभी बिना उसकी ओर देखे अपनी अपनी बदहवासी में भागे जा रहे थे|
उसे छोड़कर रचित और झलक भी आगे बढ़ जाना चाहते थे पर वे बस दो कदम आगे बढे ही थे कि दोनों एकदूसरे की ओर देखने लगते है फिर जैसे उस महिला की मदद किए बिना वे दोनों भी आगे न बढ़ सके और तुरंत ही वापस लौटते हुए उस महिला के पास आते है|
इधर पलक उस मन्त्र का जाप करना शुरू कर चुकी थी| अनिकेत ने पलक को मंत्रो की शक्ति से परिचित करा रखा था कि विपत्ति में इन अदृश्य शक्तियों से बस यही एक अद्भुत ध्वनि उसका सामना और उसका बचाव कर सकती थी| मंत्रो से निकलती ध्वनि वातावरण में अपनी सकारात्मक ध्वनी से उस नकारात्मकता का दूर करने की सामर्थ रखती थी| वैभव जी तो दवा के असर के कारण गहरी नींद में थे और पलक अपनी साधना की स्थिति में जाने से पूर्व ही अपनी माँ को सब बता चुकी थी इसलिए अपना दिल थामे वह इस दृश्य को बस देखे जा रही थी|
क्रमशः…….