
डेजा वू एक राज़ – 63
ऊर्जा किसी सीमा रास्ते की बाधा में कहाँ रूकती है| जिस वक़्त महामाया का रूहानी अहसास झलक, रचित, जॉन और फेनी को सता रहा था उसी वक़्त जैसल में आधी रात बीत जाने पर भी उत्सव अपने चरम पर था|
सोन महल में अनामिका और रूद्र की विवाह की वर्षगांठ का उत्सव मनाया जा रहा था जिसमे पूरा परिवार सम्मिलित था| कल्बेरिया नृत्य और कठपुतली के कार्यक्रम के बाद रात्री का भोजन कर के सारे मेहमान अब जा चुके थे पर जश्न की रात अभी कहाँ सिमटी थी|
मेहमानों के जाने के बाद सारा परिवार अभी भी एक साथ बैठा अपने ही खुशियों के आनंद में लिप्त खिलखिला रहा था| असल में बहुत समय बाद ऐसा अवसर आया था कि सारा परिवार एकसाथ था| शौर्य और वैजयंती भी वहां मौजूद थे जो किसी करणवश पिछली बार अनामिका के पूजा कार्यक्रम में नही आ पाए थे इसकारण ये वक़्त और भी अहम् था|
सभी हंसी मजाक और उल्लास के मूड में थे| रानी सा राजा साहब के साथ जा चुकी थी| अब वहां पर रुद्र, अनामिका, नवल, नंदनी, शौर्य और वैजयंती ही मौजूद थे| वैजयंती अभी अभी गिटार पर अपना मनभावन गीत सुनाकर तालियों के सम्मान को पलके झुका कर स्वीकार कर रही थी|
“बहुत खूब – आप तो छुपी रुस्तम निकली वरना हम तो यही सोचते थे कि महफ़िल ज़माने की जिम्मेदारी बस नवल की है|” रूद्र मुस्कराते हुए नवल की ओर देखता है जो आधी रात में भी खिले पूर्णिमा के चाँद को निहार रहा था|
अब सभी अपनी हंसी ठिठोली में नवल की ओर देखते है जिसका ध्यान उनकी ओर बिलकुल नही था जबकि उसके बगल में बैठी नंदनी उसके इस व्यवहार पर थोड़ा अचकचा उठी थी| मानो नवल उसके संग होकर भी कही और ही था|
“कुंवर सा – आँखों की सीढ़ी से चाँद जमी पर नही उतरता – चाँद तो बगल में बैठा है आपके |” कहती हुई अनामिका खिलखिलाती हुई नवल और नंदनी को एकसाथ नज़र से देखती है|
“नवल भाई सा |” अबकी शौर्य उसे पुकारता है|
अपने नाम की पुकार पर नवल का ध्यान अब अपने सामने की ओर जाता है जहाँ सबकी निगाह बस उसी ओर उठी थी इससे वह अपने भावों को अपने सपाट चेहरे पर छुपाते हुए सामने रखे गिलास को होठो से लगा लेता है|
“कुंवर सा ऐसे नहीं चलेगा – आज आपको भी महफ़िल जमानी होगी |” अनामिका फिर इसरार करती है|
“हाँ नवल – बहुत दिन हुए आपके मुंह से कोई नज़्म नही सुनी – पिछली बार हमारी शादी में सुनाई थी आपने – आज तो आपको हमारे लिए ये उपहार देना ही पड़ेगा|”
नंदनी भी मोहक मुस्कान के साथ नवल को देखने लगी पर नवल तो कही और ही खोया था| वह जाम को हलक में पूरा उतारते जबरन मुस्कराते हुए कहता है – “नही भाई सा ऐसा कुछ हुकुम मत दीजिए जो हम पूरा न कर सके – |”
“क्यों नही |”
सबकी आँखों में जैसे ये प्रश्न अटका रह गया पर नवल क्या जवाब देता इसका| वो तो ऐसा सवाल था जिसका जवाब वह खुद तलाश रहा था| आखिर दिल इश्क करने से और करते रहने से खुद को कहाँ रोक पाता है !! पता है हक़ नही उस संगदिल पर फिर भी मन जैसे वही उसी पल में आज भी ठहरा है| जब यूँही चांदनी रात थी और था एक अनजाना सफ़र| रेलगाडी की धक् धक में कब दिल धडकना भूल गया वह खुद भी नही समझ पाया| आखिर इश्क पर जोर कहाँ किसी का !! इश्क पाने का नहीं खोने का सबब बन गया हो जहाँ वहां तो बस तनहा मन की दीवारों में जज्बात कैद रह कर रह जाते है|
“लगता है भाई सा कुछ बेहतरीन सोच रहे है – अब सुना भी दीजिए नवल भाई सा |” अबकी शौर्य नवल को टोकता है इससे सभी एकसाथ खिलखिला उठते है|
“लगता है नंदनी को सामने रखकर ही कुछ सुनाएँगे – नंदनी आप पर ही है – लगता है आपको देखकर ही कुंवर सा के मन की जलतरंग बजेगी |” अनामिका हंसती हुई कहती सच में नंदनी का हाथ पकड़कर उसे नवल के ठीक सामने कर देती है|
इससे नंदनी शर्माती हुई नवल के सामने खड़ी थी| नवल भलेही उसे नही देख रहा था पर नंदनी अपनी भरपूर नज़र से नवल को देख रही थी| यही तो प्यार की अजब दुनिया है जहाँ प्यार के बदले भलेही प्यार न मिले पर उसका होना कोई रोके भी तो आखिर कैसे !!
“सुनाईए…!”
सबका इसरार सुनते नवल सुनाने के मूड में आता मुस्कराते हुए आंख बंद करता सुनाने लगता है –
“इश्क कोई चेहरा या नाम नही होता…
वो तो होता है बस जो होता है..
इश्क कोई चेहरा या नाम नही होता…
वो तो होता है बस जो होता है..
एक अनजानी लड़की पर एक दीवाना दिल मरता है..
बस चुपचाप बिन कहे दिल में यूँही कोई रहता है..||”
नज़्म सुनाकर नवल आंख खोलकर सबको सरसरी दृष्टि से देखता है और सभी जैसे उस क्षणिक मदहोशी से निकलते ताली बजाने लगते है| नवल मुस्करा देता है पर सभी की नज़र इस बात से बेखबर थी कि इस नज़्म का नंदनी पर क्या असर गुजरा था !! वह देह में उतरना और दिल में उतरने का फर्क अच्छे से समझती थी इसलिए अपने जज्बात सभी की नज़र में लाए बिना चुपचाप आकर अपने स्थान पर बैठ जाती है|
“नही नही नवल भाई सा आज यही नही रुकोगे – आपने तो वही पुराना चस्का लगा दिया – आज तो पूरी नज़्म कहेंगे आप तभी हम छोड़ेगे आपको….|”
सभी की एकसाथ हामी पर नवल आगे सुनाने लगता है –
“अभी मसरूफ हूँ यारो
क्या कह दूँ इश्क पर नज्म कोई
फुर्सत में सोचेंगे उसको
जिसका नाम ही इश्क है
और जूनून मेरी दीवानगी
जिसका मिलना सुकून है
जिसकी जुदाई मेरी तन्हाई
जिसकी यादो की बेहिसाब दुनिया है
दिल के कोने में कही
इश्क ने छिपाई
क्या कह दूँ यारो
कि फुर्सत नही आज कहने की
कि उसके सिवा कुछ अब याद नही
उसकी यादो की चांदनी में…..
नवल बेहिसाब सुनाता जा रहा था जैसे आज उस बेचैनी से लौटना ही नही चाहता हो पर तभी कुछ ऐसा वहां हुआ कि वैजयंती बुरी तरह चीख पड़ी पर बाकी सभी भी अपनी अपनी जगह से जैसे हिल गए|
नवल आँख खोले अब सामने देखता है तो हैरानगी से बस देखता रह जाता है| सभी अपने अपने स्थान पर खड़े थे और कुर्सियां जमीं पर औंधे मुंह गिरी पड़ी थी|
“ये सब क्या हुआ ?” नवल भी जैसे खड़ा होता है उसकी कुर्सी भी औंधे मुंह गिर पड़ती है|
खुले शामियाने के बीच सहसा सभी हँसते हँसते अब किसी अनजानी दहशत से भर उठे थे| अभी वे कुछ और सोचते कि एकाएक तेज रेतीला बवंडर शुरू हो गया और आस पास सजाए फूलदान गमले तेज आवाज के साथ गिरने लगे|
ये देख सभी अपनी अपनी बिन्दनी को लिए अंदर महल की ओर भागते है| अब तक इन आवाजो को सुनते बाकि के नौकर भी वहां आ पहुँचते है| अचानक की इस तेज बवंडर से सभी नौकर उन सभी को सुरक्षित घेरे में लेते उन्हें उनके कमरे तक पहुँचने में मदद करते है|
सभी गलियारे को पार करते अपने अपने कमरे की ओर बढ़ रहे थे कि एकाएक महल की बत्ती चली जाती है| पल भर में पूरा महल अँधेरे की गिरफ्त में आ जाता है| अब डर का चरम अहसास सबके चेहरे पर साफ़ साफ़ नज़र आने लगा था| वैजयंती तो डरकर कांपने लगी थी आखिर पिछली बार जो उसके साथ महामाया ने किया था उसे वह इतनी आसानी से कहाँ भूल सकी थी और यही कारण था कि वह महल में आने से हमेशा बचती थी और इस बार शौर्य के बहुत आग्रह करने पर वह आई थी| शौर्य इस बात का डर उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ देख पा रहा था|
अनामिका को रूद्र अपनी बाहों के घेरे में लिए उन तेज थपेड़ो से बचाने की भरसक कोशिश कर रहा था तो वही नवल नंदनी का हाथ पकड़े उसे सुरक्षित करने तेजी से उन सबसे आगे चला जा रहा था|
महल पल भर में रौशनी से अँधेरे में बदल गया था| नवल तेज आवाज में सेवको को आवाज लगाता जेनरेटर स्टार्ट करने को कह रहा था पर सभी जैसे उस तेज हवा में खुद को स्थिर ही नही रख पा रहे थे|
वहां हवा भी जैसे किसी अदृश्य साए की तरह उन्हें उनके स्थान पर टिकने ही नही रहने दे रही थी| कोई चलता चलता दिवार से टकराता तो कोई फर्श पर गिर पड़ता| सभी परेशान हालात में बस किसी तरह से खम्बे को पकड़े खुद को स्थिर किए थे पर प्रचंड हवा मानो आज महल हिलाने पर ही तुली पड़ी थी|
इन सभी भयावह अहसास के बीच अचानक वे कोई तेज आवाज सुनते है| कुछ बड़ी चीज गिरी थी| किसी अनहोनी के डर से सभी एकदूसरे को देखते है| तभी किसी सेवक की आवाज गूंजती है जिसमे वह बताता है कि महल के पिछले हिस्से की काली सीढ़ी के पास वाली दीवार अचानक ढह गई है|
क्या होगा आगे सभी सोच में पड़े थे| न तूफान रुक रहा था और न ये डरवाना अहसास !! पर उन सबके संज्ञान के बिना कुछ ऐसा हुआ जिसका वे अंदाजा भी नही लगा पाए| महल की पिछली दीवार गिरने से काली सीढ़ियों के अंदर को जाता गुप्त रास्ता खुल गया था और साथ ही उसके नीचे का तहखाना भी और जो वहां तीन सालो से महामाया के मायावी जादू से अपने को वहां छिपाए था वह अब आजाद हो चुका था| राजगुरु अचानक अपने सामने खुले रास्ते को पार करता महल के अँधेरे का फायदा उठाता हुआ महल से फरार हो रहा था|
क्या होने को है आगे….बस थोड़ इंतजार…
क्रमशः…….