
डेजा वू एक राज़ – 64
महल में हुई इस अनायास घटना की वजह से महल वाले अभी अनभिज्ञ थे| राजगुरु भी अँधेरे का फायदा उठाकर महल की सीमा से दूर जा चुका था पर महामाया का आभास अभी भी महल में मंडरा रहा था| इस आधी रात के तूफान से महल ही नहीं बल्कि महल वाले भी गहरी दहशत से भर उठे थे| अब आगे इस तूफान के बाद कौन सा बवंडर उठने वाला था| इससे बेखबर नवल नंदनी का हाथ पकड़े उसे अपना सहारा दिए किसी तरह से अपने कक्ष तक पहुँचता है|
अंदर आते वह कक्ष का लॉक अच्छे से बंद करता नंदनी की ओर तेजी से आता है जो बिस्तर के पैताने बैठी गहरी गहरी सांसे भर रही थी| नंदनी प्रेंग्रेंट थी इससे इस वक़्त उसकी हालत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई थी| उसे हलकान देख नवल पानी का गिलास लिए उसी ओर बढाता हुआ उससे पूछता है – “ठीक तो हो नंदनी ?”
इस पर गिलास लेती नंदनी एक गहरा श्वांस खींचती हुई किसी तरह हाँ में सर हिलाती पानी का गिलास खत्म करने लगती है| गिलास खाली होते नवल उसे रखता हुआ नंदनी को बड़े ध्यान से अब बिस्तर पर लेटाने लगता है| नंदनी अब थोड़ा राहत में आ चुकी थी इससे वह हलके से मुस्कराती हुई आराम से लेट जाती है|
नवल सहज भाव से उसे लेटाते ओढ़ाकर हटने लगता है तो नंदनी उससे पहले ही उसका हाथ पकड़ लेती है| नवल भौं उचकाकर उसकी जरुरत उससे पूछता है इसपर नंदनी बस नयन भर उसकी आँखों में देखने लगती है| एक तरफ जहाँ नंदनी का मन जाने किस मोह में बंधा आसक्ति पूर्ण निगाह से बस उसे देखे जा रहा था वही नवल के चेहरे के भाव सपाट बने हुए थे| वह नंदनी की इन निगाहों से कतराता हुआ उसकी हथेली थपथपाता हुआ उठ जाता है| नंदनी मन मारे बस उसे जाते हुए देखती रहती है|
नवल उस कमरे के आगे की बैठकी के स्थान पर आते ईजीकुर्सी पर बैठ जाता है| अभी दो पल को वह बैठा ही था कि उसे लगा उसके पीछे कोई है ये महसूस होते वह तुरंत पीछे पलटता हुआ नंदनी को आवाज लगाता है| पर पीछे तो कोई नही था और वहां से नंदनी भी उसे बिस्तर पर लेटी हुई दिखाई दे रही थी|
नवल फिर भीतर श्वांस खींचता हुआ आराम कुर्सी की पुश्त से पीठ जोड़ता हुआ आंख बंद कर लेता है|
तभी खट से कोई चीज तेजी से कमरे में गिरती है और नवल तुरंत आंख खोलता हुआ उस आहट की ओर देखने लगता है|
“कुंवर सा ..!” नंदनी की पुकार पर नवल तुरंत भागता हुआ उसके पास पहुँचता है|
“क्या हुआ नंदनी ?” नवल हकबक उसे देखता हुआ पूछता है जिसके उत्तर में नंदनी अपनी आँखों से उसे एक ओर का इशारा करती है| नवल अब उस ओर देखता है तो हैरान उस ओर देखता रह जाता है| कोर्नर में रखा फूलदान और कुछ सजावटी सामान जमीन पर गिरा पड़ा था|
नवल उसे गौर से देखता हुआ सोचने लगता है कि एकाएक ये कैसे गिर सकता है| अभी वह सोच ही रहा था कि कक्ष का दरवाजा तेज आवाज के साथ भड़ाक से खुल जाता है और उसके खुलने के साथ तेज हवा अब अन्दर प्रवेश करने लगती है|
जब तक नवल कुछ संभलता अब एक एक करके कमरे का सामान नीचे गिरने लगता है| यहाँ तक की फानूस भी हवा में कागज की तरह डोलने लगता है| ये सब देख नंदनी घबराकर तुरंत उठ बैठती है| नवल भी पहले नंदनी को सुरक्षित करने उसके पास पहुँचता उसे अपने घेरे में लेता हुआ मन ही मन बुदबुदाता है – ‘ये सब हो क्या रहा है – पिछले तीन साल बाद हम ऐसा तूफान देख रहे है – कही ये कुछ बुरा होने का संकेत तो नही !’ नवल नंदनी को अपने पाश में लिए सुरक्षित करता उस अजीब मंजर को देख रहा था|
वही लिफ्ट में अभी अभी प्रवेश किए फेनी और जॉन फिर एकदूसरे के साथ के लिए एकदूसरे का हाथ पकड़े थे| अभी लिफ्ट बंद भी नही हुई थी कि लिफ्ट हलके हलके से हिलने लगी| ये महसूस होते जॉन इधर उधर देखता तुरंत फेनी को बाहर निकलने को कहता बाहर निकल आता है|
“ये क्या हो रहा है ?”
फेनी की घबराई आवाज पर जॉन किसी तरह से अपने हाव भाव मुस्कराते हुए करता हुआ कहता है – “डोंट वरी – अब बस ब्रम्ह्मुह्रत होने ही वाला है तब तक इन आत्माओ को और उछल कूद कर लेने दो|”
अभी वे खड़े लिफ्ट का दरवाजा बंद होता हुआ देख रहे थे कि वेंट के पाइप से कुछ अजीब सी आवाजे आने लगती है मानो उसके अंदर कोई फसा हुआ हो| इससे फेनी डरकर जॉन के पीछे हो जाती है| जॉन अब चारो ओर देखता है कि अभी भी वहां कुछ न कुछ अजीब सा घट रहा था| लिफ्ट भी अपने आप बार बार नीचे आती खुल जा रही थी| तो कभी लगता कोई उनके पीछे से अचानक से गुजर गया| तब उस हालात में वे साथ में बदहवास से अपने चारो ओर देखने लगते|
जहाँ फेनी और जॉन परेशान हालात से गुजर रहे थे वही रचित और झलक हॉस्पिटल में कोई अलग ही मुश्किल में फंसे थे| वह महिला अभी भी दर्द से चीख रही थी और वह ड्रावर था कि खुल ही नही रहा था| वे तीनो अभी भी संघर्ष कर ही रहे थे कि छत पर चलता सीलिंग फैन अजीब सी आवाज निकालता हुआ बहुत तेज चलने लगा था| इतना तेज कि उस ड्रावर के उपरी हिस्से में रखी मैगजीन पूरे बल से हवा में उडती हुई इधर उधर गिरने लगी थी| कभी किसी के मुंह से टकराती कभी पैरो पर सांप सी लोट जाती| उस पल ऐसा लग रहा था जैसे उनके पन्ने नही वे सभी पंख थे और उन पंखो को फडफडाते हुए वे सभी हवा में उड़ जाना चाहती थी|
दहशत और डर का माहौल खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था| सब तरफ अजीब और भयावह माहौल बना हुआ था|
वही इन सबसे विरक्त अनिकेत और पलक अब ब्रम्ह्मुह्रत के प्राम्भिक चरण में आकाशीय पुंज का निर्माण कर चुके थे जहाँ उन तरंगो को समेटा जा सकता था| वे सम्मलित शक्ति थी जो अपनी समस्त ऊर्जा के संग्रह से उन तरंगो को अपनी आतंरिक शक्ति से समेटने की कोशिश कर रहे थे|
ब्रम्ह्मुह्रत हो चुका था जिससे वे नकारात्मक शक्तियां कमजोर होती जा रही थी तो वही अनिकेत और पलक का शक्ति पुंज बलवान होता जा रहा था| ये अपने आप में बेहद अद्भुत अनुभव था जिसे न वर्णन किया जा सकता था और न जताया जा सकता था| बस मन की आन्तरिक अनुभूति से सिर्फ महसूस किया जा सकता जा सकता था|
सबसे पवित्र और अद्भुत समय होता है ब्रम्ह्मुह्रत जब सबसे ज्यादा सकारातमक ओजस तेज होता है और उसके फलीभूत पवित्र ऊर्जा तरंगो के रूप में वातावरण में चारो ओर फ़ैल जाती है| इसका महत्व अनिकेत अच्छे से जानता था इसलिए इस पर उसका अटूट विश्वास भी था जिसका प्रभाव भी अब दिखने लगा था|
एकाएक नवल देखता है कि हवा थम गई और सब कुछ अचानक से यूँ शांत हो गया मानो कुछ समय पूर्व कुछ हुआ ही न हो| नंदनी अभी भी नवल की बाजु थामे अपने चारों ओर देख रही थी जबकि नवल हैरान होता जो कुछ अभी हुआ उसे सोचने लगा था कि आखिर ऐसी क्या शक्ति थी जिसने पल में इस तूफान को शांत कर दिया? सब कुछ सामान्य हो चला था| सोन महल फिर पहले जैसा कृत्रिम लाइट से जगमगा उठा था|
रचित उस महिला का हाथ पकड़े एक झटके से पीछे की ओर गिरता है| महिला का हाथ छूट चुका था| छूटते ही वह महिला दौड़ती हुई अपने पति और बच्चो के पास पहुँच जाती है जो वही किनारे बेहोश होकर गिरे पड़े थे| तब से आए तूफानी मंजर की दहशत बस वहां रह गई और बाकि सब शांत हो चुका था जिससे रचित और झलक अब सबको सहायता पहुंचा रहे थे|
इस तूफानी मंजर से फेनी और जॉन भी मुक्त हो चुके थे| चौकीदार भागता हुआ आता लिफ्ट को चेक कर रहा था| सब कुछ शांत और उज्जवल हो चुका था जिससे राहत पाती फेनी बेख्याली में जॉन से लिपट गई थी पर उसे अपनी इस बेखुदी के अंजाम का क्या पता था कि अब तक बाहर चलने वाला तूफान जॉन के सीने में उठने लगा था| उसकी धड़कन धौकनी सी बज उठी थी|
अनिकेत अपनी शक्ति का प्रयोग और नियंत्रण अच्छे से करना जानता था इससे वह अब सब कुछ शांत होते धीरे से अपनी आंख खोलता है जबकि पलक अपनी समस्त शक्ति के प्रयोग से कुछ क्षीण हो चुकी थी जिसके प्रभाव से वह साधना खत्म होते बिस्तर पर बेहोश होती लेट गई थी| पलक की ये हालत देखती नीतू जी तुरंत दौड़ती हुई आती उसे अपने अंक में समेटती हुई उसका चेहरा अपने आँचल से प्यार से पोछने लगती है|
क्रमशः…….