
डेजा वू एक राज़ – 66
पलक को घेरे सभी बैठे थे, झलक, रचित, नीतू जी और उसके पिता वैभव भी| वह पल में सबकी नज़र को क्रमशा देखती मुस्करा पडती है|
“मैडम आप तो हमारा ट्रांसफार्मर है – आप ऐसे आराम करेंगी तो हमारी तो समझो बत्ती गुल हो जाएगी |” झलक पलक का हाथ पकड़ती हुई ये बात कुछ इस तरह कहती है कि सभी एकसाथ हँस पड़ते है|
“पापा आप अब कैसे है -?” पलक अपने पिता की ओर नज़र करती हुई पूछती है|
वे प्यार से उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहते है – “मैं अब बहुत बेहतर महसूस कर रहा हूँ पर तुम बताओ – तुम्हारी कैसी तबियत है बेटा ?”
“मैं बिलकुल ठीक हूँ – देखिए |”
उठती हुई पलक कहती है तो माँ झट से उसे रोकती हुई कहती है – “हाँ बस बस ठीक हो तब भी अभी लेटी रहो |”
इस पर पलक मुस्कराती हुई माँ को देखती है जो कह रही थी – “उस वक़्त तो इसकी हालत देख मैं घबरा ही गई थी पर वो कहो अनिकेत ने ढाढस नही दिया होता तो जाने मैं ही घबराकर बिस्तर पकड़ ली होती|”
“हाँ पंडित ज..!” उद्वेग में झलक झट से बोलते बोलते अपनी जीभ दातों तले दबाती हुई अपने मम्मी पापा की नजरो से बचती हुई कहती है – “मतलब जीजू तो है ही ज्ञानी – उन्ही की वजह से हम सब सेव हुए है – क्या कमाल का उनका वायरलेस सिस्टम है |”
इस बात पर पलक जहाँ मन ही मन मुस्करा रही थी वही वैभव जी बोलते है – “हाँ सच है – चलो अंत भला तो सब भला – तुम सब सुरक्षित हो बस और क्या चाहिए |”
अबकी वे बारी बारी से रचित, झलक, नीतू जी और पलक को देखते हुए कहते है|
“हाँ अब आप ठीक हो गए है तो क्यों न हम बेंगलुरु वापस लौट जाए !” रचित सबकी ओर से देखता हुए झलक की ओर देखता हुआ पूछता है|
रचित की बात सुनते पलक को अनिकेत की बात याद हो आती है जिसने रचित को अभी कही नही जाने को कहा था इससे किसी के बोलने से पहले ही पलक बोल उठती है – “नही – अभी कुछ दिन और रुक जाते तो अच्छा लगता – मैं सोचती हूँ अभी कुछ दिन झलक के साथ रह लूँ अब मैं तो कही जा नहीं सकती |”
पलक जिस उदासी से अपनी बात कहती है वह माहौल में असर कर जाती है और वैभव और नीतू जी संग में बोल उठते है – “हाँ सही बात है – हमारे संग तो तुम दोनों रुके ही नही – अगर कुछ दिन रुक सको रचित बेटा तो हमे भी बहुत अच्छा लगेगा |”
इस पर रचित झलक की ओर देखता है जो बिन शब्द के ही सबकी बात पर हामी भर रही थी|
“अब सभी यही चाहते है तो ठीक है – कुछ दिन बस |”
रचित की बात पर पलक झट से खुश होती हुई कहती है – “हाँ हाँ कुछ दिन ही सही पर बहुत अच्छा लगेगा|”
अब सभी एकसाथ मुस्करा उठते है| वैभव जी तब से बैठे बैठे थक गए थे तो उन्हें लेटाकर अब नीतू जी उनके पास आकर बैठ गई थी तो अटेंडेंट की सीट पर लेटी पलक के पास झलक आकर बैठी थी| तभी अनिकेत का कॉल पलक के फोन पर आती है पर जिसे झट से उठाती हुई झलक पहले बात करने लगती है जबकि पलक उसे ऐसा करने पर नाटकीय रूप से अपनी नाराजगी दिखाती है लेकिन झलक तो झलक ही है जबरन बातो के फुग्गे उड़ाती रही और पलक उसे बस घूरती रह गई| रचित अपने ऑफिस में कॉल लगाने बाहर निकल गया था|
अनिकेत को पलक के ठीक होने का आभास तो था पर उसकी आवाज की खनक सुनते उसका मन और संतुष्ट हो उठा| उसने पलक को ज्यादा कुछ नही बताया नाही पिछली समय यात्रा का बताया और न आगे दुबारा की जाने वाली समय यात्रा का बताया| उसे पता था ये बात उसे चिंता में डाल सकती थी इसलिए वह उसे सब ठीक होने की सांत्वना देता जल्दी वापस आने का भरोसा देता फोन डिस्कनेक्ट कर देता है|
वही जॉन समय यात्रा में दुबारा जाने के लिए फिर से सभी तैयारी कर रहा था तो फेनी उसके साथ खड़ी सभी कुछ चीजे हैरानगी से देख रही थी| उसके लिए ये सब हैरतअंगेज तो था ही अद्भुत भी था| उसे सहज ही आँखों देखी चीज पर विश्वास नही आ रहा था फिर सब सच था और उसकी प्रत्यक्ष आँखों के सामने था|
जॉन सभी वायर कनेक्शन ठीक से देखने के बाद दो पल रूककर सभी कुछ दुबारा चेक कर रहा था| वह अपनी तरह से कोई भूल नही रखना चाहता था|
“क्या सच में ये वर्क करता है ?”
अचानक फेनी की आवाज सुनते उसका ध्यान फेनी की ओर जाता है| वह उसकी ओर मुड़ता हुआ कहता है – “हाँ बिलकुल – पिछली बार इसी तरह से अनिकेत ने समय यात्रा की थी|”
“समय यात्रा कितनी आसानी से कह दिया पर सोचती हूँ तो कितना अद्भुत सा लगता है कि कोई व्यक्ति समय के पार भी जा सकता है !”
“हाँ अनिकेत के लिए शायद कुछ भी असंभव नही |”
जॉन जो सहजता से कह रहा था वही फेनी घोर आश्चर्य से इसे आत्मसात कर रही थी|
“कही कुछ गड़बड़ हुआ तो ! भाभी को भी कितनी चिंता हो रही होगी |”
“भाभी !! कौन भाभी ?” जॉन अब फेनी के चेहरे को ध्यान से देखता हुआ पूछता है|
“हाँ पलक भाभी |”
“पलक – मतलब – अनिकेत वाली पलक !”
“हाँ – तो क्या तुम किसी और पलक को भी जानते हो !!”
फेनी घूरती हुई पूछती है तो जॉन हडबडाता हुआ कह उठता है – “न नही – मैं भी इसी पलक की बात कर रहा था पर वो तुम्हारी भाभी कैसे हुई ?”
“क्यों अनिकेत जी ने मुझे बहन बनाया तो वो मेरे भईया हुए और उनकी पत्नी मेरी भाभी |” बेहद मासूम भाव लाती हुई फेनी अपनी बात कहती है|
“ये रिश्ते तो बहुत जल्दी समझ आ गए और कुछ समझ नही आता ?” मुंह बनाते हुए जॉन कहता है|
“और !! और क्या समझना – एक जैकी था !!” कहती हुई अब उसकी आंखे मानो एकाएक डबडबा आती है पर इसके विपरीत जॉन खीज उठा था|
“काश समय के पार से कोई जैकी को ले आता |”
फेनी मन की व्यथा प्रकट कर रही थी वही जॉन मन ही मन बुदबुदा रहा था – ‘हाँ काश मैं जा पाता तो उस जैकी को वही समय में दुबारा मार देता|’
“कुछ कहाँ तुमने ?”
“न – नही – वो मैं आगे क्या करना है वही मन में प्लान कर रहा था|” जॉन किसी तरह से अपने चेहरे पर आए भाव सुधारता हुआ कहता है|
“जॉन !” अब दोनों का ध्यान अनिकेत की ओर जाता है जो उन्ही के पास आता हुआ कह रहा था – “क्या सब तैयारी हो गई ?”
“हाँ ऑलमोस्ट – क्या तुम अभी जाओगे ?”
जॉन अनिकेत की ओर देखता हुआ पूछता है – “हाँ – अब बहुत देर तक इस तमाशे को नही होने दे सकता – तो क्या तुम गोवा जाओगे ?”
“हाँ बस तुम इधर समय यात्रा पर निकलोगे तो मैं गोवा चला जाऊंगा |”
“मैं भी चलूंगी |” फेनी बीच में बोलती हुई कहती है|
अनिकेत अब दोनों को बारी बारी से देखता हुआ कहता है – “ठीक है – जॉन है तुम्हारे साथ – वो तुम्हारा ख्याल रखेगा |”
इस बात पर जॉन फुल बत्तीसी के साथ मुस्करा पड़ता है|
अनिकेत का ध्यान अब उन यंत्रो के जोड़ पर था| जॉन अपनी ओर से सारी तैयारी कर चुका था अब बस वो पारस निकालकर उसे उस यंत्र में फिट करना था उसके बाद वह पूरी तरह से अपनी विकीर्ण तरंगो के लिए तैयार हो जाता|
सब कुछ तय था फिर भी इस बार अनिकेत के मन में कुछ खटक रहा था| ये खटका उसे कुछ ठीक नही लग रहा था| पर समय के पार जाने के अलावा उसके पास अब कोई चारा भी नही था| वह सब तरह की दुविधा अपने मन से निकालकर अब मानसिक तौर से खुद को इस यात्रा के लिए तैयार करता है|
क्रमशः…….