
डेजा वू एक राज़ – 68
एक शांत कमरे में पलक लेटी थी पर अचानक उसके शांत हाव भाव बिगड़ने लगे, एक अनजानी बेचैनी उसके हाव भाव में नज़र आने लगी| एकाएक वह गहरी गहरी साँसे भरती हुई एकदम से उठ के बैठती हुई बुदबुदा उठी – ‘अनिकेत….!’
वह कमरे में अकेली थी और नींद खुलने के बाद अपनी स्थिति देखती हुई खुद से बाते करने लगी – ‘कितना अजीब अहसास था – ऐसा क्यों लग रहा है मुझे कि अनिकेत मुझसे दूर जा रहे है – क्यों लगा ऐसा – कही सच में वे किसी खतरे में तो नहीं – मैं अभी फोन करती हूँ – जब तक उनसे बात नही हो जाएगी मेरे मन को चैन नही आएगा|’ खुद से कहती हुई पलक झट से बैड साइड में रखे मोबाईल को उठाने लगती है तो अँधेरे की वजह से गिलास पर ढका कोस्टर जमीन पर गिर पड़ता है|
पलक जल्दी से अनिकेत के नम्बर पर कॉल लगाती है| एक बार दो बार और कॉल जाती रहती है|
तभी कमरे से एकाएक उजाला फैला जाता है| ये झलक थी जो गिरने की आवाज सुनकर उसे देखने आई थी| वह जमीन पर गिरा कोस्टर देखती फिर पलक को देखती हुई उसके पास बैठ जाती है|
“क्या हुआ पलक – किसे रात में फोन लगा रही है ?”
पलक मोबाईल को कॉल में छोडती हुई झलक की ओर देखती हुई कहती है – “झलक – देख अनिकेत जी फोन नही उठा रहे है ?”
“अरे मेरी बावरी बहन – रात है न और तुझे तो पता ही होगा जीजू जल्दी सो जाते है |”
“अभी आठ बजे है !”
“हाँ तो आज और जल्दी सो गए होंगे – हर बात पर टेंशन क्यों लेने लगती है|”
“इतनी गहरी नींद नही सोते कि मेरा कॉल भी नही उठाएँगे – मेरा तो मन बहुत घबरा रहा है |”
“च्च – तो तू जॉन को मिला ले न – हो सकता है उनका फोन म्यूट हो |”
“तब से यही तो कर रही हूँ – कभी इनका नंबर मिलाती हूँ कभी जॉन का पर कोई भी फोन नही उठा रहा – तो चिंता तो होनी है न ?”
“अच्छा ला मुझे ला – मैं मिलाती हूँ – पता नहीं टेंशन में किसे फोन मिला दे रही होगी |”
कहती हुई झलक पलक के हाथ से उसका मोबाईल लेती हुई कॉल डिटेल देखती हुई दुबारा कॉल करती है| और सच में थोड़ी देर में उसके हाव भाव भी चिंतित नज़र आने लगते है जिसे देखती हुई पलक की बस रुलाई ही फूटने वाली थी|
पलक का रुआंसा चेहरा देखती हुई झलक झट से उसे पकड़ती हुई कहती है – “कॉल नही उठ रहा – जीजू से बात नही हो रही – तुझे जो कुछ भी सोचना है सोच ले पर ये मत सोचना कि वे किसी मुश्किल में है – वो झलक के जीजू है एकदम सुपर हीरो टाइप – समझी – वो दूसरो को मुश्किल से निकालते है – खुद नही फंसते – समझी न – अब बेकार की चिंता छोड़ और सो जा – सुबह देखना उनका फोन खुद ब खुद आएगा |”
कहती हुई झलक उठने लगी तो पलक उसका हाथ पकड़कर रोकती हुई बोली – “नही झलक मेरा मन सच में बहुत घबरा रहा है – कुछ तो अजीब हुआ है – वरना मेरा मन इतना अशांत नही होता – तू बात तो समझ न |” वह झींकती हुई बोली|
“हाँ तो बता क्या करे इतनी रात में ?”
पलक झट से बोली – “मुझे दिल्ली जाना है |”
“क्या..!!! दिल्ली – और अभी – हाँ हाँ क्यों नही वो दूसरी गली में ही तो है – अभी रिक्शा मंगा देते है और कहेंगे – भैया रात है दस रूपए ज्यादा ले लो पर बिलकुल दिल्ली दरबार में ही उतारना मैडम को – बात करती है – कुछ भी बोलने लग जाती है |”
“झलक मजाक नही कर रही हूँ सच कह रही हूँ |” पलक अबकी कुछ तेज और दृढ़ आवाज में कहती है|
अबकी झलक चौंक जाती है| तभी उनकी आवाज सुनती हुई नीतू जी भी वही आ जाती है|
“ये क्या हो रहा है तुम दोनों का – रात हो गई है – सो जाओ न – मैं तो बरामदे की बत्ती बंद करने आई तो देखा कमरे की बत्ती जल रही है – क्या हुआ है तुम दोनों को – तुम दोनों के चहरे पर इस तरह बारह क्यों बजे हुए है ?”
अबकी माँ दोनों के पास आती बारी बारी से दोनों का चेहरा गौर से देखती हुई पूछती है| दोनो भी उसी भाव से अपनी माँ की ओर देखती है, माँ समझ गई जरुर कोई बात है|
रात के साढ़े आठ बज रहे थे और बैठक में वैभव जी, नीतू जी, रचित, झलक और उसके बीच पलक बुझी हुई हालत में बैठी थी|
ये तय था कि सभी बारी बारी से अनिकेत और जॉन के नंबर लगा चुके थे पर किसी का फोन नही उठा जिससे अब सभी के चेहरे पर चिंता की लकीर साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी|
“पापा इसलिए तो कह रही हूँ कि मेरा दिल्ली जाना बहुत जरुरी है |” रुंआसी आवाज में पलक कहती है|
“पर बेटा दिल्ली कोई पास थोड़े है – और फिर तुम्हारी ऐसी हालत में तुम्हे यूँही नही जाने दे सकते |” वैभव समझाते हुए कहते है|
“हाँ पलक बेटा – अभी तुम अपनी स्थिति को भी समझो और मुझे तो झलक की बात सही लगती है – सुबह तक देख लेते है – हो सकता है कई गए हो दोनों और मोबाईल कही छूट गया हो ?” नीतू जी भी अपने बगल में बैठी पलक के सर पर हाथ फिराती हुई कहती है|
“माँ होने को तो अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है – पर बात सिर्फ ये नही है – मेरा मन इस बात को मान ही नही रहा कि अनिकेत जी किसी मुश्किल में नही है |” पलक धीरे से अपनी बात कहती है |
“पर बेटा…!”
माँ कहते कहते चुप हो जाती है क्योंकि अब रचित बीच में बोल उठा था –
“माँ जी अगर इन्हें सच में ऐसा कुछ लगता है तो जब तक अनिकेत जी से इनकी बात नही हो जाएगी इन्हें सच में चैन नही आएगा |”
“लेकिन बेटा सुबह तक तो वेट करना ही पड़ेगा |” वैभव धीरे से कहते है|
“किस बात का वेट करना पापा – हम अभी दिल्ली जा सकते है |” झट से झलक अपनी बात कहती है|
“हम !! तुम सब क्यों मेरी वजह से परेशान होगे – मैं ट्रेन से जाउंगी ?” पलक झलक और रचित की ओर देखती हुई कहती है|
“क्योंकि वो जो नन्हा मुन्ना है न वो हमारी जिम्मेदारी है – मुझे तुझसे कोई मतलब नही पर उसे मैं यूँही अकेला नही छोड़ सकती – समझी न |”
झलक के इस तरह कहने से पलक पल में शर्मा जाती है|
“तो ठीक है – यही तय रहा हम दोनों पलक जी को साथ में लेकर अभी के अभी दिल्ली को निकल जाएँगे तो सुबह तक दिल्ली पहुँच जाएँगे |” रचित जल्दी से अपनी बात रखता है|
“अभी !! इतनी रात में !!” माँ चिंतित हो उठी|
“ओह माँ – रात का सफर तो बहुत अच्छा है – बिना ट्रैफिक में फसे हम शहर से निकलकर दिल्ली आराम से पहुँच जाएँगे फिर दिल्ली लखनऊ रूट तो मक्खन जैसा चिकना है क्यों रचित ?”
“हाँ बिलकुल जब मैं बेंगलुरु से लॉन्ग ड्राइव करके आ सकता हूँ तो ये तो बस महज सात आठ घंटे की दूरी है – आप फ़िक्र मत करिए – मैं बहुत सावधानी से गाड़ी चलाऊंगा|” रचित भरोसे के साथ कहता है|
“हाँ बेटा हमे तुमपर भरोसा है बस पलक की तबियत की थोड़ी चिंता है |” माँ अपना दर्द बयाँ करती है|
“माँ |” अबकि झलक माँ के पास आती हुई उनके दोनों हाथो को अपने हाथो के बीच में लेती हुई कहती है – “आप पलक की ओर से बेफिक्र रहिए – मैं हूँ न उसकी देखरेख के लिए – आप बस अपना और पापा का ख्याल रखिएगा – पापा आज ही तो हॉस्पिटल से आए है – हमे तो उनकी चिंता है|”
“बच्चो तुम सबको ठीक देखकर ही तो मैं ठीक हूँ – |” वैभव मुस्कराते हुए कहते है – “बस तुम सब दिल्ली पहुंचकर कॉल करो कि अनिकेत ठीक है तो हमे चैन में चैन आए |”
“सब ठीक ही होगा पापा – हम तो बस इसके मन के लिए जा रहे है बाकि मेरा मन तो कहता है जीजू न आराम से पड़े सो रहे होंगे |” कहती हुई झलक हंस पड़ी तो सभी के चेहरे पर भी मुस्कान थिरक उठी|
पलक भी खुद को हँसता हुआ दिखा दी पर उसका मन ही जानता था कि उसके मन की इस वक़्त क्या हालत हो रही थी !!
“तो चलो – झट से तैयार होकर फट से निकल पड़ते है – |” कहता हुआ रचित उठ जाता है|
पल में पलक झलक और रचित तैयार होकर बस जरुरी सामान के साथ कार की ओर बढ़ जाते है|
रचित ड्राइविंग सीट पर बैठ था तो पीछे झलक और पलक बैठी थी| उन्हें जाता देख माँ का मन कुछ भर आया पर किसी तरह अपने मन को नियंत्रण में करती हुई रचित से कहती है –
“बेटा रात है तो जरा आराम से जाना |”
“माँ जी आप चिंता मत करिए मैं बहुत ध्यान से चलाऊंगा – इस पर भी हम सुबह तक आराम से पहुँच जाएँगे -|”
वैभव और नीतू दोनों भरे मन से तीनो को विदा करते है| वे तीनो भी मुस्करा कर उनसे विदा लेते है|
जल्दी ही कार रास्ते पर दौड़ाने लगती है| रचित कार बहुत संभालकर चला रहा था जिसपर पलक उसे टोकती हुई कहती है – “रचित थोड़ा तेज चलाओ न – इससे तो देर होती रहेगी |”
“पलक जी बेफिक्र रहिए – कितनी भी गिरी हालत में चलाऊंगा तबभी हम सुबह होते ही दिल्ली में होंगे |”
रचित की सांत्वना पर पलक एक राहत की साँस भीतर खींचती है|
“और तुमना रास्ता ताकना बंद करो और सो जाओ – लेटो मेरी गोद में – और अब न सुबह ही आंख खोलना समझी |” कहतीं हुई झलक पलक को सच में अपनी गोद में लेटा लेती है और पलक भी उसका हाथ प्यार से थामे लेट जाती है पर उसका मन ही जानता था कि जब तक वह अनिकेत से मिल नहीं लेगी तब तक नींद उनकी आँखों को छूएगी भी नही |
……………….क्रमशः……