Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 69

रचित पूरी रात ड्राइविंग करता रहा और वाकई सुबह के पांच बजते ही वह जॉन के फ़्लैट के बाहर झलक पलक के साथ खड़ा था|

“कोई घर पर नही है क्या – कबसे कॉल बेल बजा रहे है दरवाजा ही नही खुल रहा|” झलक एक नज़र रचित को तो दूसरी नज़र पलक को देखती है जो उसके पीछे खड़े थे|

पलक आगे बढ़कर दरवाजे का लॉक घुमाती है और दरवाजा खुल जाता है|

“ओह गॉड दरवाजा तो खुला है !!” आश्चर्य प्रकट करती झलक तुरंत अंदर चल देती है| उसके पीछे पीछे पलक और रचित भी अन्दर आ जाते है|

तीनो अंदर आकर दरवाजे के पास खड़े एक नज़र चारों ओर डालते है, कमरा पूरी तरह से अस्त व्यस्त था जिसे देखती हुई झलक बोल उठती है – “यहाँ कोई तूफान आया था क्या ? छीई ये जीजू का दोस्त अपना घर कबाड़ की तरह रखता है – पता नही जीजू जैसे इन्सान इसे कैसे बियर करते होंगे ?”

तब तक पलक अंदर के कमरे को देखने आगे बढ़ जाती है| तब तक झलक चलने का रास्ता बनाती हुई जमीन पर पड़ी चादर और बाकि सामान उठाकर टेबल पर रख देती है|

“झलक जल्दी आ |” पलक की तेज आवाज सुनते झलक और रचित उसकी ओर तेजी से भागते हुए आते है|

“क्या हुआ ?” झलक पलक के पास आती हुई पूछती है जो अन्दर के कमरे में खड़ी उसे बैड की ओर देखने का उंगली से इशारा कर रही थी|

अब दोनों साथ में उस दिशा में देखते है जहाँ बिस्तर पर जॉन पड़ा था|

“लो ये यहाँ आराम से सो रहे है तो कहाँ से फोन उठाएँगे ?”

रचित आगे बढ़कर जॉन को आवाज लगाता है पर उसमें कोई प्रतिक्रिया नही होती|

“मुझे लगता है गहरी नींद में सो रहा है पर अनिकेत जी कहाँ है ?” रचित जॉन के पास खड़ा खड़ा पूछता है|

“घर भी अस्त व्यस्त है – लगता है जीजू यहाँ है ही नही – वरना ये घर यूँ कबाड़ की तरह न दिखता |” अपनी बात कहते कहते झलक एकदम से कुछ याद करती हुई कहती है – “अरे हाँ पलक – तूने किसी फेनी के बारे में बताया था न – वो भी तो यहाँ रहती थी – अभी तो घर में कोई नही दिख रहा – कहाँ होंगे सब ?”

झलक अपनी ही सोच में पड़ी थी जबकि पलक जॉन के आस पास घूमती हुई कहने लगी – “मुझे नही लगता कि जॉन सो रहा है – कोई इतना बेखबर कैसे सो सकता है कि घर का दरवाजा खुला है – हम यहाँ आस पास मौजूद है और वो सोया पड़ा है |”

“मैं जगाता हूँ |” पलक की बात सुनते रचित जॉन के पास आकर उसे हिलाकर जगाने लगता है पर जॉन जैसे किसी बेहोशी में था वह जरा भी चेतन में नही आता इससे वे तीनो प्रश्नात्मक रूप से एकदूसरे को देखने लगते है|

उनका चेहरा बता रहा था कि उन्हें कुछ भी सामान्य नही लग रहा रचित तुरंत डॉक्टर को बुलाने चला गया तभी वैभव जी का फोन आ जाता है| रिंग जाते हुए मोबाईल को हाथ में लिए लिए पलक झलक से पूछती है –

“अब क्या करे झल्लो – अगर पापा को सच कहा तो वे परेशान हो जाएँगे |”

“तो तू चाहती है कि झूठ मैं बोलूं – देख मैं झूठ बोलना तो नही चाहती पर लोग ही मुझसे बुलवाते है |” बड़े नाटकीय ढंग से कहती हुई झलक पलक के हाथ से मोबाईल लेते ही शुरू हो जाती है – “अरे पापा – बस आपको मिलाने ही वाले थे फोन – क्या करती जैसे ही यहाँ आए इतनी सारी हम सब बाते करने लगे कि पूछिए मत – फिर जीजू ने कहा दिल्ली आई हो तो यहाँ के छोले कुलचे खिलाते है – बस वही लेने गए – हाँ पापा – कितना मना किया पर वे माने ही नही – हाँ हाँ उनके आते आपसे बात करा देंगे लेकिन अगर कही बाहर जाने का प्रोग्राम नही बना तो – तब उस हालत में मैं आपको मेसेज कर दूंगी कि हम कहाँ जा रहे है |”

झलक अपने तरीके से लहकती हुई अपनी हांकती रही तो उसके सामने खड़ी पलक मुंह खोले उसे देखती रही|

“ओके पापा – आप न बस आराम से रहो और हमारी चिंता बिलकुल मत करिए – हाँ हाँ पापा बिलकुल आपको मेसेज करते रहेंगे – बाय|” फोन डिसकनेक्ट करती हुई झलक पलक की ओर देखती हुई उसका मोबाईल उसे लौटाती है जो उसे देखती अभी भी मुंह खोले उसे देखे जा रही थी| ये देख वह एक हाथ से उसका मुंह बंद करती हुई झलक कहती है – “मुंह बंद कर मक्खी चली जाएगी |”

इससे हडबडा कर खुद को सयंत करती हुई पलक कहती है – “तू कोई झूठ बोलने की मशीन है क्या !! कितनी आसानी से झूठ बोल लेती है – |”

“एक्सपीरियंस |” कंधे उचकाती हुई कहती है|

“अब से न तेरी कोई बात पर मैं जल्दी यकीन ही नही करुँगी |” कहती हुई पलक पलटकर चलने लगती है|

“ओ मैडम – एक तो मुसीबत से बचा लेती हूँ – ऊपर इल्जाम भी सहो – अभी पापा को सच बता देते कि हम यहाँ आए तो जॉन बेहोश और जीजू गायब मिले तो बस अगली गाड़ी से वे भी यही भागते हुए चले आते |”

झलक के गुस्से पर पलक अब नर्म पड़ती हुई कहती है – “अच्छा ठीक है – तू सही मैं गलत – बस |” कहती कहती वह अब पूरे कमरे का मुआयना करने लगती है|

वे दोनों टहलती हुई उस दिशा की ओर भी जाती है जहाँ समयांतर जाने की मशीने रखी थी| उसे दूर से औचक देखती हुई वे आपस में कहती है –

“पलक ये देखा – ये मशीने कितनी अजीब है !”

“हाँ वही देख रही हूँ और तुझे ये बिलकुल वैसी नही लगती जैसी मेरे समय पार जाने के समय जॉन के घर पर दिखी थी ! मुझे कुछ न ठीक नही लग रहा – जाने कहाँ है अनिकेत जी ?” कहती कहती पलक फिर रुआंसी हो उठी|

उसे दुखी देख झलक अब उसके पास आती उसके कंधे पकड़ती हुई कहती है – “कुछ बेकार का मत सोच – जीजू जरुर कही गए होंगे और ये जॉन महाशय जैसे ही होश में आएँगे – तब हमे सब मालूम पड़ जाएगा – बस थोडा इंतजार कर |”

तभी रचित डॉक्टर को लेकर वहां आ पहुंचा| डॉक्टर जॉन की जाँच करता हुआ उसे एक इंजेक्शन देते हुए कहता हुआ उठ जाता है – “कोई फ़िक्र की बात नही है – थोड़ी देर में होश आ जाएगा इनको |”

वे शुक्रिया कहते डॉक्टर को विदा करते है| डॉक्टर को छोड़कर रचित अब उन दोनों को बड़े अजीब दहशत भरे भाव से देखता है जिसे समझती हुई पलक उससे पूछ बैठती है – “क्या हुआ रचित – तुम कुछ और सोच रहे हो ?”

“वो..!!”

“हाँ कहो न |”

“नीचे गैराज में जॉन और अनिकेत जी की कार खड़ी है तो क्या वे किसी और साधन से गए होंगे ?”

रचित की बात सुनते पलक के होश अब और ज्यादा ही उड़े उड़े हो गए जिससे उसे संभालती हुई झलक उसके पास आ जाती है|

“पलक !”

“तभी मुझे कुछ ठीक नही लग रहा – कुछ तो बहुत बड़ी बात है पर क्या ?”

इस प्रश्न पर दोनों मौन पलक का चेहरा देखते रहे| अब उनके पास जॉन के होश में आने तक इंतजार करने के सिवा कोई रास्ता नही था इससे वे तब तक कमरे को ठीक करते हुए सब चीजो को गौर से देखने लगे कि शायद इससे कुछ क्लू मिल जाए|

तभी एक दराज में से एक कपड़े की गुडिया को पाते उसे अलट पलट कर देखती हुई झलक पूछती है – “क्या यहाँ कोई छोटी बच्ची भी थी !!”

तभी उन्हें जॉन के कमरे से आहट मिलती है तो झलक उस गुडिया को वही वापस रख देती है| अब सभी एकसाथ उस कमरे की ओर भागते है| जॉन होश में आ रहा था| वह बड़ी मुश्किल से आंख खोले दोनों हाथ से अपना सर पकड़े पकड़े उठता हुआ कह रहा था – “उफ़ ये मेरा सर |”

“जॉन तुम ठीक हो ?” रचित जॉन के पास आता हुआ उससे पूछता है जबकि दोनों सांस रोके खड़ी उसे ही देख रही थी|

“मेरा सर भारी क्यों लग रहा है ?” कहता हुआ वह एक नज़र से पल में उन तीनो को देख डालता है और इसी के साथ उसके चेहरे के हाव भाव भी बदल जाते है| वे तीनो उसी को देख रहे थे जबकि जॉन एकदम से उठता हुआ कमरे से तेजी से बाहर निकल जाता है, वह बावरा सा कमरे से निकलकर इधर उधर देखता रहा |

उसकी ये अजीब सी हरकत देखती हुई झलक धीरे से कहती है – “ये नशे में है क्या ? हम यहाँ बैठे है और पागलो की तरह बाहर किसे खोज रहा है ?”

बाकी दोनों झलक की बात का कोई प्रतिउत्तर नही देते| उसी पल जॉन जिस तेजी से गया था उसी रफ़्तार से वापस आता हुआ अब पलक को देखता है| जो उसी की ओर नज़र गड़ाए थी| अबकी फिर कुछ याद आते वह फिर कमरे से बाहर जाता है और उस जगह पर खड़ा हो जाता है जहाँ समयांतर की मशीने रखी थी| उसे देखते वह बस चीत्कार करता दोनों हाथ से अपना सर दुबारा पकड़ लेता है|

अबकी उसकी आवाज पर तीनो उसके पास लगभग दौड़ते हुए आते है|

“क्या हुआ जॉन – बात क्या है ? और अनिकेत जी कहाँ गए है ?”

पलक के हडबडाते हुए प्रश्न पर जॉन सर उठाकर फिर से उन तीनो को देखता हुआ धीरे से सर झुकाते हुए कहता है – “मुझे माफ़ कर दो – मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई – |”

“क्या मतलब – कैसी गलती !!” एक एक सांस लेती पलक पूछती है|

सभी हैरान उसकी ओर नज़र गड़ाए हुए खड़े थे| किसी को कुछ समझ नही आ रहा था| एक तो बड़ी मुश्किल से जॉन होश में आया और ऊपर से होश में आते ऐसा बोल रहा था जबकि उसके जागने पर ही तो सभी अनिकेत की खबर की उम्मीद लगाए हुए थे|

रचित उसकी बुरी हालत देखता हुआ उसे पकड़कर पास की कुर्सी पर बैठाता है तो झलक दौड़कर पानी का गिलास ले आती है जिसे एक साँस में पीकर एक गहरा श्वांस भीतर खींचते हुए जॉन कहता है – “अनिकेत समय के पार गया हुआ है |”

सर झुकाए झुकाए वह कहता रहा – “पर समस्त शरीर के साथ –|”

“लेकिन मुझे तो नही बताया |” पलक परेशान होती हुई कहती है|

“वह तुम सबको परेशान नही करना चाहता था – इससे पहले भी वह समय के पार सशरीर जा चुका था और सही सलामत वापस भी आ गया लेकिन…|”

कहते कहते जॉन चुप हो गया|

“लेकिन क्या – अब क्यों नही हुआ ऐसा ?”

“सब कुछ ठीक रहता तो अब तक वह वापस भी आ गया होता लेकिन इस मशीन से पारस गायब है जो वह स्पेक्ट्रम बनाता है जिसके जरिए अनिकेत समय के पार जाता है और अब वह गायब है – यही मैं देखने आया था|”

“कहाँ गायब है पारस ? जॉन सब कुछ ठीक से बताओ न – आखिर हुआ क्या है – ?”

अब सभी उसे घेरे बैठे थे और जॉन अनिकेत के समयांतर जाने की प्रक्रिया बताते हुए कह रहा था – “उसे दस मिनट में वापस आ जाना था पर अब ये तो कल की बात हो गई और मैं जानता भी नही कि वह किस समय अंतराल में गया है – |”

“अगर ऐसा ही है तो वो पारस गया कहाँ ? और उसके गायब होने के वक़्त तुम क्या कर रहे थे? और ये कमरा ऐसा अव्यवस्थित क्यों है ? क्या कोई और भी आया था यहाँ ?” अबकी झलक पूछती है|

इस पर जॉन दो पल रुककर जैसे पिछला सब याद करने लगता है, फेनी का साथ फिर उसके बाद कोरियर वाले का आना और उसके बाद….उसके बाद का उसे कुछ याद नही !! वह कब और कैसे बेहोश हुआ !! और जब बेहोश हुआ तो फेनी कहाँ थी तब !!  क्या वह भी किसी मुश्किल में है या या उसने ही ये सब किया…नही नही वो ऐसा इतना बड़ा धोखा उसके साथ नही कर सकती !! वह तो उसपर विश्वास करता था क्या उसने उसे धोखा दिया !!

“जॉन !! क्या सोचने लगे ?” अबकी रचित उसे टोकता है|

“आं !!” वह चौंककर उनकी ओर देखता है|

सभी के चेहरे के हाव भाव बुरी तरह से उड़े उड़े हुए थे, जैसे अब क्या होगा आगे उन्हें कुछ समझ ही नही आ रहा हो| अनिकेत समय के पार फंसा होगा ये तो उनके लिए अकल्पनीय था| आखिर वहां तक वे कैसे उसे खोज पाएँगे !! उनकी आँखों के सामने सारे रास्ते बंद नज़र आने लगे| जॉन भी ख़ामोशी से सर झुकाए अपनी सोच में था| रचित भी होठ दाबे चिंतित नज़र आ रहा था| झलक की तो हंसी ही गायब हो गई| अब तक उसे ये सब कुछ इतना गंभीर नही लग रहा था| अब तो उन सबके सामने वह समस्या थी जिसका उपाए भी अनिकेत के पास होता तो आखिर इस हालत में वे क्या करेंगे ?

“जॉन – क्या जाते वक़्त अनिकेत जी अपनी रुद्राक्ष की माला पहने हुए थे ?” नीरव एकांत में एकाएक पलक बड़े धैर्य से पूछती है|

इस पर जॉन तुरंत उत्तर देता है – “हाँ हाँ पहने था वह |”

अब सभी पलक की ओर बड़ी उम्मीद से देखने लगते है जैसे अब इन सारे सवालो का जवाब अब उसी के पास ही हो|

“अब मैं समय यात्रा करुँगी और उनतक पहुंचूंगी |”

“क्या  !! क्या कह रही हो पल्लो ?’ एकदम से उसे पकड़ती हुई झलक कहती है|

जबकि पलक जॉन की ओर देखती हुई कहने लगी – “मैं अनिकेत जी की तरह सशरीर तो यात्रा नही कर सकती पर अपनी आत्मा के जरिए मैं उन्हें खोज सकती हूँ |”

“लेकिन….!!”

वह उनके टोकने पर भी शांत भाव से कहती रही – “वह किसी भी समय अंतराल में होंगे पर मेरी आत्मा उनतक आसानी से पहुँच जाएगी |”

“पागल न बन पलक – अब तू अकेली जान नही है जो यूँही खुद को कही भी उझेल दे – जीजू भी इस वक़्त यहाँ होते न तो तुझे कभी ऐसा नही करने देते |”

“वे नहीं है यहाँ तभी तो कर रही हूँ ऐसा |” पलक अब दुबारा झलक के बोलने से पहले ही आगे कहती रही – “जब सत्यवती अपने पति के लिए यमलोक तक चली गई तो क्या मैं अपने पति के लिए समयांतर नही जा सकती – जबकि इस वक़्त एक मैं ही हूँ जो उन्हें तलाश सकती हूँ |”

“पर कैसे पलक – यहाँ तो पता भी नही किस समय अंतराल में है अनिकेत – तब तुम सटीक समय में कैसे पहुँच पाओगी |” जॉन हिचकिचाते हुए पूछता है|

इस पर पलक फिर बड़े शांत भाव से कहती है – “मैंने अभी इसलिए तो पूछा था कि अनिकेत जी अपनी रुद्राक्ष माला पहनकर गए है या नही – क्योंकि हम दोनों ने अर्धनारीश्वर के प्रतीक दोमुखी रुद्राक्ष को साथ में धारण किया हुआ है जिससे हम कही भी होते है फिर भी हम एकदूसरे से आभासित हो जाते है|” कहती हुई उनकी नज़रो के सामने अपने मंगलसूत्र में जड़ित रुद्राक्ष को दिखाती हुई कहती है|

“मतलब बिना मोबाईल के तू हमेशा जीजू से कनेक्ट रहती है – ग्रेट |” झलक बचपने में ताली बजा उठती है जिसपर रचित हलके से मुस्करा उठता है|

पलक अपनी बात समझाती हुई कहती रही – “ये अर्धनारीश्वर की व्याख्या असल में इसी का प्रतीक है जिसे कभी कभी हम सही तरीके से समझ नही पाते – जिसका आधार है कि एक पुरुष के अन्दर एक स्त्री होती है तो प्रत्येक स्त्री के अंदर एक पुरुष विधमान होता है – और जब उस पुरुष से मिलते जुलते पुरुष को को वह स्त्री बाहरी जगह में पा लेती है तब उसके प्रति वह अनुराग महसूस करती है जिसे आम भाषा में समझो तो कहते है मन का मीत मिलना या अचानक किसी को देखकर अपना सा लगना – यही पुरुष के साथ भी होता है – यही वजह है जब अनिकेत जी से मैं मिली तो हम अंतरस ही एकदूसरे से जुड़ गए और आज भी हमारी आत्मा एकदूसरे से जुडी हुई है – वे कही भी चले जाए वे मेरी आत्मा की पहुँच से दूर नही जा सकते – तभी तो मैंने कहाँ कि एक मैं ही हूँ जो उन्हें खोज सकती हूँ |”

“हाँ तभी उन्होंने भी तुम्हारे सपनो के जरिए कितनी आसानी से तुम्हे खोज लिया था|” झलक खुद को बीच में बोलने से नही रोक पायी|

“हाँ अब यही मुझे करना है |” पलक दृढ़ता से कहती है|

“और मैं इस अभियान को सफल बनाने के लिए अपनी सारी ताकत झोख दूंगा – तुम्हे अब अनिकेत से मिलने से कोई ताकत नही रोक सकती |” कहता हुआ जॉन तुरंत उठकर उन मशीनों की ओर बढ़ जाता है|

क्रमशः……

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