Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 71

सिपाही पूरी तरह से अपनी मस्ती में थे| लग रहा था बड़े दिन से इसी जुगाड़ में थे कि किसी तरह से कोई पकड़ में आए और एसएचओ के सामने पेश करते अपना कन्धा चमका ले| दोनों सिपाही खैनी खाते खाते बस आगे की योजना में लगे थे कि साहब आएँगे तो कैसे इस चोर पुलिस की कहानी को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना है और पकड़ा गया आदमी खुद को कितना भी निर्दोष बोल ले उसे बस गुनाहगार साबित करना ही है|

ये सोच सोचकर उनके पेट की गुदगुदी रुकने का नाम ही नही ले रही थी| इधर अनिकेत जिस स्पैक्ट्रम से आया था उसमे ही उसकी ऊर्जा समवेत जुडी थी और स्पैक्ट्रम के गायब होते उसकी ऊर्जा का भी क्षय होता जा रहा था| वह समय में बाधा तो पहुंचा चुका था पर किस समयांतर में वह मौजूद था इसकी खबर उसे नही थी|

अनिकेत परेशान था अगर इसी तरह चलता रहा तो वह हमेशा के लिए इसी समय में फसा रह जाएगा| अब उसकी मानसिक ऊर्जा भी चुकने लगी थी| पर वह अभी इससे अनिभिग्ज्ञ था कि उसकी शारीरिक मानसिक ऊर्जा क्षय हो सकती है पर अभी उसकी आत्मिक ऊर्जा उसमे शेष थी जो उस तक बस पहुँचने वाली थी| वह जब हताश बैठा था तभी उसे किसी के अपने आस पास होने की अनुभूति हुई| ये पल उसे बुरी तरह चमत्कृत कर गया उसने सोचा भी नही था कि पलक उसे खोज सकेगी| ऐसा उसने उसकी क्षमता को कम आंकने के कारण नही सोचा बल्कि उसे लगा उसने पलक से सब बात छिपाई है|

पलक ऊर्जा की तरह उसके सामने थी और उसे अपने सामने देखकर उस पल उसके मन में क्या उत्साह और उमंग जलतरंग सा दौड़ गया ये अभी सिर्फ अनिकेत के मन को ही खबर थी| वे दोनों कुछ क्षण तक एकदूसरे को नयन भरकर देखते रहे|

यही समय थाना प्रभारी वापस आ गया जिससे वे सिपाही अपनी गाथा कहने को उत्साहित हो उठे| वे फटाफट उसे अनिकेत के रूप में अपनी उपलब्धि दिखाना चाहते थे| थाना प्रभारी को अपने निक्कमे सिपाहियों पर कोई विश्वास तो नही था पर उनका उत्साह देखकर वह उनकी बात मानता हुआ जेल की ओर चल दिया| लेकिन साथ ही तय भी कर लिया कि अगर इनकी बात झूठी निकली तो पक्का आज इनकी अच्छे से वह खबर लेगा|

सिपाही अतिउत्साह से थाना प्रभारी को अपनी चोर पुलिस की कहानी पूर्ण भूमिका के साथ सुनाते जा रहे थे साथ ही ये भी साबित करने में लगे थे कि पकड़ा गया व्यक्ति बहुत बड़ा शतिर चोर नज़र आता है और उनकी परखी नज़रे कभी धोखा खा ही नही सकती| वे सभी जेल के पास पहुँचने ही वाले थे|

इधर पलक अपने हाथ का स्पर्श अनिकेत को देती है और पल में उनकी ऊर्जा एक में ही समाहित होते वे दोनों एकसाथ उस समय काल में होकर भी गायब हो जाते है| वे वहां थे पर नज़र किसी को नहीं आ रहे था और यही वक़्त था जब सिपाही पूरे जोश में थाना प्रभारी को लिए जेल की ओर आ रहे थे|

पर अब उनकी कहानी सब उलट पुलट हो कर रह गई| उन्होंने जिसे पकड़ा वह गायब था वो भी बिना ताला खुले तो क्या सब कुछ सपने में हुआ !! दोनों अपना सर खुजाते बस एकटक उस खाली जेल की निहारते रहे ये जाने बिना कि थाना प्रभारी का तेवर उनपर गर्म शीशे सा बस उबलने ही वाला है|

ये अनजान समय यात्रा थी पर पलक और अनिकेत की समवेत ऊर्जा के मिलते उसमे फिर वही ऊर्जा का आवाहन हो गया और वह मानस स्थिति से बाहर हो गया बिलकुल वैसा ही जैसे कण कण मिलकर प्रदार्थ की रचना होती है परन्तु हम  उन सूक्ष्म कणों को नही देख पाते परन्तु उस प्रदार्थ का आभास कर पाते है| उन्हें आपस में मिलाने वाला आखिर ऊर्जा ही तो होता है| नही तो अलग अलग कणों का कोई अस्तित्व नही होता इसलिए ऊर्जा अविनाशी है वह साध्य है|

पलक के स्पर्श ने अनिकेत को ऊर्जा में बदल दिया और वह उपस्थित होते हुए भी उनकी नज़रो को नही दिखा| अब वे दोनों साथ में वायुमंडल में किसी ऊर्जा के रूप में विधमान थे|

अनिकेत पलक के हाथ आपस में गुथे हुए थे और नज़रे प्रेम से मिल रही थी| जहाँ पलक का विश्वास जीता था वही अनिकेत का प्रेम विजयी हुआ था| ये प्रेम और विश्वास की जीत थी जो कभी आपस में अलग होता ही नहीं क्योंकि जहाँ प्रेम होगा वहां विश्वास स्वतः आ जाएगा और जहाँ विश्वास होगा वहां प्रेम की अनुभूति स्वतः ही हो जाएगी|

“मैं आ तो गई हूँ पर मुझे नही पता कि मैं यहाँ से कैसे निकलूंगी ?” पलक चिंतित स्वर में बोली|

अनिकेत के चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान तैर गई| वह उसकी विश्वस्त आँखों में झांकता हुआ कहता है – “तुम्हारी उपस्थिति ने ही मुझे ऊर्जावान कर दिया – अब निकलने का मार्ग भी मिल जाएगा पर पलक मैं जिस काम के उदेश्य से आया था उसे यूँही अधूरा नही छोड़ सकता |”

पलक हैरानगी से अनिकेत को सुनती रही|

“मुझे अभी उस समयकाल में फिर से लौटना होगा जहाँ से मैं आया था – जॉन के माता पिता का सच जाने बिना वजीर की खोज संभव ही नही क्योंकि मेरा मन कहता है कि उन दोनों का सम्बन्ध जरुर उस वजीर से है |”

“लेकिन उसी समय काल में आप फिर कैसे जाएँगे ?”

“मैं नही हम – अब तुम्हारी मेरी ऊर्जा समवेत हो चुकी है – जब तक तुम्हारा मेरा हाथ एकदूसरे से गुथा रहेगा ये ऊर्जा यूँही समवेत बनी रहेगी और एक इच्छा शक्ति मात्र से हम साथ में उस समयकाल में आसानी से पहुँच जाएँगे |”

“आपके साथ तो मैं हमेशा ही हूँ |”

और अनिकेत के कहते पलक उस समय पर अपना ध्यान क्रेंदित करती है और अब तरंग के रूप में वे साथ में वहां से गायब हो जाते है| जेल खाली दिख रही थी और अपना अपना सर पकड़े वे सिपाही उस जेल के स्थान को घूर रहे थे जबकि थाना प्रभारी अपने हाथ में पकड़ा डंडा अपनी मुट्ठी में मसलता हुआ उन्हें ही घूरता हुआ देख रहा था|

पलक और अनिकेत साथ में अब उसी स्थान में आ पहुंचे थे जब मौरिस मैरी को उसकी जली हालत में उसे कही ले जाने वाला था| वे साथ में अब जॉन के पुराने घर में उपस्थित थे| पर उस वक़्त वहां अजीब सी शन्ति बनी हुई थी इसका साफ़ अर्थ था कि वहां कोई नही है|

“लगता है यहाँ तो कोई भी नही है ?”

“हाँ मुझे देर हो गई – अभी कहाँ होंगे ?” अनिकेत सोचता हुआ कुछ पल के लिए खामोश हो गया जबकि पलक चारो ओर देखने लगी|

“आप वहां वहां क्यों नही जाते जहाँ पिछली यात्रा में आप गए हो – हो सकता है – वहां कुछ क्लू हो …|”

“हाँ ठीक कहा पलक – मुझे वही जाना चाहिए – मैंने वो जगह देखी है जहाँ लैब जैसा कुछ था – और अब तो तुम्हारे साथ होने से हमे कोई देख भी नही पाएगा |”

“तो चलिए – अब समय भमण आपके साथ करुँगी |” पलक मुस्कराते हुए अनिकेत को देखती है तो अनिकेत भी अपना समस्त प्रेम पलक के लिए अपनी आँखों में समेट लाता है| सच में वे दो देह और एक आत्मा ही थे|

अब पलक की तरंग ऊर्जा से वे समय की यात्रा आसानी से कर पा रहे है| अनिकेत पल में फिर से वही उपस्थित था जहाँ पिछली बार वह वजीर का पीछा करता हुआ आया था| उनके हाथ अपनी भी आपस में गुथे हुए थे जिससे वे किसी को दैहिक रूप में नज़र नही आ रहे थे| अनिकेत उस जगह को पलक के साथ घूम घूम कर देखने लगा ताकि उसके अन्दर जाने का रास्ता ढूंढ सके| पहले भी उसे अंदर जाने के लिए न कोई झरोखा मिला था और न खिड़की|

अनिकेत को परेशान देखती हुई पलक कहती है – “आप अंदर जाने का रास्ता क्यों ढूंढ रहे है ?”

“क्यों !! फिर अंदर कैसे जाएँगे ?”

“आपने हो कहा था कि हम इस समय ऊर्जा के रूप में है तो क्यों न उसी तरह हम अंदर पहुंचे !!”

पलक की बात पर अनिकेत के होंठ विस्तारित हो उठे| वह उलझन में ये बात खुद ही भूल गया कि जिस तरह से वे यहांतक पहुंचे है उस तरह से वे इसके अंदर भी पहुँच सकते है|

अब बस पलक को अनिकेत की मानसिक ऊर्जा को आत्मसात करना था और  बस जो अनिकेत ने सोचा वे वही तक आ पहुंचे|

वे दोनों साथ में उस अज्ञात स्थान में उपस्थित थे और नज़र दौड़ाते हुए चारों ओर देख रहे थे| वह घर अन्दर से बहुत ज्यादा ही बड़ा था| किसी भूल भुलैया की तरह हर तरफ बस गलियारा कही मुड़ता हुआ ही दिख रहा था| ये देखते वे साथ में चकरा गए कि आखिर किस ओर वे बढ़े ?

“पलक अब हमे किसी एक रास्ते को चुनकर उस ओर बढ़ना ही होगा पर मन तय नही कर पा रहा कि किस तरफ ?”

“हाँ – ये गलियारे कैसे सब एक जैसे दिख रहे है – !!”

“फिर भी हमे कही तो बढ़ना ही होगा -|” सोचते हुए अनिकेत किसी एक रास्ते की ओर पलक के साथ अपने कदम बढ़ा देता है| आगे अनिकेत का किससे सामना होगा ?? क्या पता लगा पाएगा वह यहाँ ?? या क्या वह वापस भी जा पाएगा ??

क्रमशः……

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