Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 74

“आह !” पलक की आह की आवाज निकलते अनिकेत फ़ौरन उसकी ओर भागा, पीछे पीछे जॉन और झलक भी किचेन से दौड़ी चली आई|

अनिकेत पलक के पास पहुँचते उसे ध्यान से देखते पूछ रहे थे जबकि पलक मंद मंद मुस्करा रही थी|

सभी भौचक हुए पलक की ओर देख रहे थे जो होंठ का किनारा दबाती हुई कह रही थी – “बेबिस किक |”

“क्या …सच्ची |” झलक तो उछलती हुई पलक के बगल में आ पहुंची और झट से उसके पेट पर कान लगाती दांत दबाती मुस्करा उठी – “वाह लगता है मेरी प्रतिछाया है – क्या धमाल मचाए है |”

पलक मुस्कराती हुई अनिकेत की ओर देखती है जो उसका हाथ पकड़े अपनी नज़र उसी पर रखे था|

“जीजू..|” कहती कहती झलक देखती है कि पलक और अनिकेत एकदूसरे की निगाह में डूबे मुस्करा रहे थे उनका ध्यान किसी की ओर था ही नही| ये देखती झलक अब जॉन की ओर देखती है जो अनबूझा सा खड़ा बैड साइड में रखे फेनी के हेयर पिन को घूर रह था|

“जॉन वो मुझे नमक नही मिल रहा |” झलक किसी तरह से जॉन को अपने साथ ले जाकर उन दोनों को एकांत देना चाहती थी जबकि जॉन वही डटा खड़ा था|

“वो खत्म हो गया होगा |”

“उफ़ अच्छा मिर्च तो होगी |”

“क्यों !!!” जॉन चौंककर उसकी ओर देखता है|

“अपने दिमाग के दही में डालकर रायता बनाना है – अब चल कर किचेन में बताएँगे या यही सारा पचड़ा सुलझाते रहेंगे |”

अबकी झलक की बात पर जॉन उसके पीछे पीछे चलता कमरे से बाहर निकल जाता है|

अब ये एकांत उनका अपना था| अनिकेत भी अपने स्पर्श से नवांकुर को महसूस कर पा रहा था ये उनके जीवन का सबसे अनमोल लम्हा था| पलक शर्माती हुई अनिकेत की उदोलित बाहों में समां गई जहाँ उसकी समस्त दुनिया थी| उनका प्रेम जो हर देह समीकरण से ऊपर था| ये एक आत्मा का मिलन था जिनकी आँखों में अब भावी खुशियों का इंतज़ार कोई सहज ही देख सकता था|

अगले कुछ समय बाद झलक जितनी देर जॉन को किचेन में रोक सकती थी अपनी बातों के लच्छे से रोके रही फिर वही हुआ कि जॉन अनिकेत को पुकारता हुआ उस कमरे में फिर आ पहुंचा| उसे जाता हुआ देख झलक मन ही मन बडबडा उठी –

“जीजू के पीछे पीछे ऐसे लगा रहता है जैसे कोई बच्चा मम्मी मम्मी करता रहता है – छोड़ता ही नहीं उन्हें अकेला – हे भगवान् इसको इसकी गर्ल फ्रेंड से मिला दो तो बिचारे जीजू को इससे कुछ तो फुर्सत मिले |” अपने आप में बडबडाती हुई झलक किचेन में फिर कुछ ढूँढने लगती है|

अब कमरे में अनिकेत, पलक और जॉन मौजूद थे| जॉन को पता नही क्या सूझी उसने एकदम से टेबल पर से रखा फेनी का सामान नीचे की ओर गिरा दिया|

“ये क्या !!” अनिकेत हैरान रह जाता है|

पलक भी आश्चर्य से देख रही थी जिससे संभलते हुए जॉन कहने लगता है – “वो यहाँ जरुरी सामान की जगह बना रहा हूँ बेकार सामान हटाकर|”

तभी अनिकेत का ध्यान किसी चीज की ओर अटक जाता है और जमीन से उठाते हुए वह जॉन से कहता है – “क्या फेनी कॉन्टैक्ट लेन्स लगाती थी !!”

जॉन अब अनिकेत के हाथ में पकड़ी एक छोटी डिब्बी को देखता हुआ कंधे उचकाता हुआ कहता है – “मुझे क्या पता !”

अनिकेत अब उस कॉन्टैक्ट लेन्स को गौर से देख रहा था| जॉन को ये अजीब लगा फिर उसकी ओर से ध्यान हटाकर वह अन्यत्र देखने लगता है|

कि सहसा अनिकेत थोड़ा तेज स्वर में कहता है – “ये तो छिपा कैम है -|”

“क्या !!  कैमरा !!” बाकी दोनों अनिकेत के हाथ की चीज को देखते हैरानगी से कह उठे|

“ओह अब समझ आया – ये तो टेक्नीकल का मास्टर है – इसने हमारी खोज खबर के लिए फेनी के कॉन्टैक्ट लेन्स में कैमरा फिट किया जो हमारी सारी खबर उस तक पहुंचाता था इसलिए जब पहली बार मैंने समय यात्रा की तब वह हमारा कुछ नही बिगाड़ पाया जबकि मेरी दूसरी यात्रा का उसे अच्छे से पता था इसलिए उसने पारस गायब किया – और हो सकता है दुबारा जब फेनी आई तो ऐसा वजीर खुद चाहता था ताकि वह हमारी सारी खबर रख सके |”

“क्या – एक तरफ रचित के डार्क वेब के कैमरा से वह ऐसा कर रहा था और दूसरी तरफ उसने फेनी का भी ऐसा यूज किया – वो है क्या चीज |” ये झलक थी जो कमरे में आते ही इस बात पर चौक गई थी|

“बहुत पहुंची हुई चीज जो शर्तिया तुम्हारे पिता नही हो सकते ?” अनिकेत कहता है तो इसपर जॉन कुछ अजीब नज़र से उसकी ओर देखने लगता है|

“हाँ जॉन समय के पार जाकर मैंने देखा कि तुम्हारे पिता तुम्हारी माँ को उनकी अर्धचेतना की हालत में अपने पास रखे है ताकि जब तक उनके द्वारा प्रयोग में उपयोग किए गए बच्चे अपने स्वाभाविक शरीर के साथ बड़े नही हो जाते तब तक उन्हें जिन्दा रख सके – और यही कारण है कि इन्स्पेक्टर की बहन की शक्ल तुम्हारी माँ की शक्ल से मिलती थी – या तो उसने उसका शरीर यूज कर लिया है या करने वाला होगा – |”

“तो क्या अनिकेत मेरी मॉम और डैडी जिन्दा है !!”

“हाँ जिन्दा तो है पर उनके पीछे कोई और है क्योंकि जो जानता है कि मैं समय के पार सच जानने जा रहा हूँ तो वह अपना सच क्यों मुझे देखने देगा तभी मेरा मन कह रहा था कि ये वो सारा सच नही है जो सामने दिख रहा है बस मुझे उस एक क्लू तक पहुंचना है जो उस शख्स का पता बता सके |”

अनिकेत की बात पर सभी गंभीरता से चुप हो जाते है फिर उनके बीच की ख़ामोशी तोड़ते हुए अनिकेत कहता है – “कोई बात नही – सच कितनी भी परतो के पीछे हो पर एक न एक दिन सामने जरुर आता है और मेरा मन कहता है कि अब वो समय जल्दी ही आने वाला है – जॉन हो न हो वह कोरियर वाला भी वजीर हो सकता है – क्या तुमने उसकी शक्ल देखी थी !”

“हाँ बहुत अच्छे से मैं उसे भीड़ में से भी पहचान लूँगा पर उसे पहली बार मैंने अपने जीवन में देखा था – वो कौन हो सकता है ?” जॉन सोचता हुआ कहता है|

तभी दरवाजे की कॉल बेल से सबका ध्यान दरवाजे की ओर जाता है| अनिकेत के उठने से पहले ही झलक जाती हुई बोलती है – “मैं जाती हूँ दरवाजा खोलने |”

दरवाजे के बाहर रचित था जो काफी सामान से साथ था|

“अरे जल्दी पकड़ो – आज कल पोलिबैग क्या बंद हो गया सामान लेना मुश्किल हो गया – ऊपर से मैं कोई बैग भी नही ले गया था|”

“तो इतना सारा सामान लाने की जरुरत क्या थी – क्या करवा चौथ तक तुम्हारा यही रुकने का इरादा है क्या !”झलक उन सामानों को सही से टेबल पर रखती हुई एक साँस हवा में छोडती है|

फिर उसका ध्यान जाता है कि रचित उसे गौर से देख रहा था इसपर वह भौं उचकाकर कारण पूछती है|

“ऐसे देखे लग रहा है जमाना हो गया – माथे पर पसीना गले में एप्रेन – एक हाथ में सामान – उफ़ क्या क़यामत की धर्मपत्नी लग रही हो !”

रचित उसे देखता हुआ कुछ ज्यादा ही हंस पड़ा जिससे तुनकती हुई झलक एप्रेन उतारती हुई भड़क उठी|

“लो जाओ – नही करना कोई काम – जब करती हूँ तब सबको हंसी सूझती है -|”

“अरे अरे नाराज न हो – तुम तो हर अवतार में बस कमाल धमाल लगती हो |” कहता हुआ रचित उसे अपने में समेटता झूम उठा|

“बहुत हुआ रोमांस – अभी चलो कुछ खाने का इंतजाम करते है |” झलक अबकी उसे पीछे धकेलती एप्रेन उठाए रसोई की ओर चल देती है|

सभी ने मिलकर खाना खाया उसके बाद झलक ने अपने विचित्र रूप से और सबको अचंभित कर दिया| पलक को उठने ही नही दिया बल्कि वह उसके लेटने के लिए कमरा भी ठीक करने लगी| अचानक फिर बेकार का सामान ड्रावर में रखती हुई झलक जॉन को पुकारती हुई पूछ उठी – “लगता है एक और शक्स गायब है यहाँ का|”

सभी एकसाथ झलक की ओर नज़र करते अचरच से उसे देखने लगे| झलक अपने हाथ में वही कपड़े की गुडिया पकड़े उसे अलट पलट कर देखती हुई पूछ रही थी – “यहाँ कोई छोटी बच्ची भी रहती थी क्या – बेचारी की डॉल रह गई – कहाँ है वह बच्ची ?” झलक सबकी ओर देखती पूछ रही थी जबकि अनिकेत किसी तरह से अपनी हंसी रोके सर नीचे की ओर झुका लेता है| पलक और रचित झलक को देख रहे थे जो उनके पास ही चलती हुई आ रही थी|

ये देखते जॉन तुरंत अपनी जगह से उठता हुआ उसके हाथ से डॉल लेता हुआ  कहता है – “यहाँ कोई छोटी बच्ची नही रहती – |”

“तो !!”

“मुझे बाहर पड़ी मिली – बस |” जॉन झींकते हुए कहता है|

“तो तुमने उठाई क्यों ?” झलक बिलकुल पीछे नही हटने वाली थी|

“ताकि अनिकेत को उसके भावी बच्चे के जन्म पर गिफ्ट कर सकूं |” दांत पीसता हुआ जॉन डॉल को लेकर अंदर के कमरे में चला जाता है|

इसपर झलक पलक के कानो के पास आती हुई कह रही थी – “जीजू का दोस्त तो बड़ा कंजूस निकला – पड़ी हुई डॉल गिफ्ट करके निपटा देगा|”

सभी अब आराम से बैठे थे| तभी अनिकेत को ख्याल आता है कि उसने काफी समय से अपने कॉलेज बात नही की इससे वह झट से अनमोल को कॉल लगाता है|

वह अनिकेत की आवाज सुनते काफी खुश हो जाता है|

“अरे अनिकेत सर – आपको कितना याद किया मैंने पर इस बीच अपनी लाइफ में इतना फंस गया कि आपको कॉल बैक भी नही कर सका – बाकि आप छुट्टी की चिंता न करे जब तक आप ज्वाइन नही करते ये आपकी पर्सनल लीव ही रहेगी – वैसे कैसे है आप और कब से ज्वाइन कर रहे है – जब भी ज्वाइन करिएया मुझे कॉल कर दीजिएगा क्योंकि मैं भी काफी समय से कॉलेज नही गया – लीव पर हूँ – वो क्या है मेरा छोटा भाई जिसके बारे में मैंने आपको बताया था – उसका मेजर एक्सीडेंट हो गया और वो भी उसी दिन जिस दिन आपको उसके बारे में बताया था इसलिए तब से आपसे बात भी नही कर पाया – हेलो – आप सुन रहे है न – हाँ अभी भी वह हॉस्पिटल में है – बोन इंजरी हुई है – गोविन्द नाम है मेरे भाई का – पर आप नाम क्यों पूछ रहे है ! ठीक है – मिलते है सर |”

एक विस्तार बात के बाद कॉल डिस्कनेक्ट होते अनिकेत हैरान बना रहा जिसपर जॉन उसे टोकता हुआ पूछता है – “क्या हुआ अनिकेत ?”

“मेरा ध्यान आखिर उस शख्स पर कैसे नही गया – वो मेरे दिमाग से कैसे स्किप कर गया – |”

“कौन !!!”

“मयंक |”

सभी हैरान अनिकेत को देखते रहे जो आगे कह रहा था – “ जॉन अब तुरंत ही गोवा जाना होगा |”

“गोवा !!” बाकी बैठे सभी हैरानगी से पूछते है|

“हाँ हम एज मच पोसिबल गोवा को निकल जाएँगे – और कल सुबह रचित तुम पलक झलक को लेकर वापस लखनऊ लौट जाओ – बस इतना ख्याल रखना कि डार्क वेब भूलकर भी न खोलना क्योंकि वही एक जरिया है जिससे वह हमारी खबर रख सकता है |”

“हाँ उसमे उलझकर मैं पहले भी अपनी जिंदगी काफी उलझा चुका हूँ – यहाँ तक कि झलक पर शक भी किया |”  रचित नज़रे झुकाकर झलक की ओर देखता है जो विश्वास से उसकी ओर देखती रही|

“कोई बात नही – इसमें तुम्हारी कोई गलती नही थी बस यही ध्यान रखना और हो सके तो जब तक मैं लौट नही आता तुम लखनऊ में सबके साथ ही रहो – अबकी तुम्हारा वहां होना सबको सहयोग करेगा |”

“ठीक है अनिकेत जी |”

अपनी बात खत्म करके अनिकेत उम्मीद से पलक की ओर देखता है जो अपने संवेगों को संभाले उससे विदा लेने को खुद को तैयार कर रही थी|

क्रमशः……..

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