Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 76

मयंक अपने खाने के पैकेट के साथ उस रेस्टोरेंट से बाहर निकलते किसी ऑटो को रोकता हुआ उसमे बैठ जाता है ये देखते जॉन और अनिकेत भी उससे समुचित दूरी बनाते हुए उसके पीछे हो लेते है| अब दोनों ऑटो समुचित दूरी के साथ आगे पीछे चल रहे थे| जॉन की निगाह तो बस मयंक के ऑटो पर चिपक सी गई थी| कही भी कितनी ही बार के ट्रैफिक लाइन को क्रोस करते या ढेरों ऑटो के आ जाने पर भी वह मयंक के ऑटो से अपना ध्यान बिलकुल नही हटने देता|

अभी वे कुछ पांच छह किलोमीटर गए ही होंगे कि मयंक किसी चौराहे पर उस ऑटो को रोककर वही उतर जाता है| दोनों आश्चर्य से एकदूसरे की ओर देखते है क्योंकि वहां तो कोई घर भी नही था फिर वह वहां क्यों रुका !!

अभी वे ये सोच में पड़े ही थे कि वे देखते है कि मयंक अपने सामने रूकती एक बस पर चढ़ गया था| अब उनका ध्यान जाता है कि वे बस स्टैंड था| बस में अच्छी खासी भीड़ उतर भी रही थी तो उसके अन्दर समा भी रही थी ये देखते दोनों भी तुरंत प्रतिक्रिया करते ऑटो छोड़कर उस बस की ओर लपकते है और बस आखिरी पल में वे बस के पिछले दरवाजे से अंदर जा पाते है|

वे मयंक को दूर से देखते हुए राहत की सांस छोड़ते किसी तरह से खुद को उस भीड़ में छिपाए रहते है| बस भी अपने चार पांच स्टॉप के बाद जब अपने पांचवे स्टॉप पर रूकती है तो मयंक वही उतर जाता है| उसे उतरते देख वे दोनों भी बड़ी सावधानी से उसके पीछे उतर जाते है|

मयंक अब सड़क के किनारे किनारे चल रहा था| दोनों भी उससे दूरी बनाकर उसके पीछे हो लेते है| मयंक लगभग एक किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद रुककर अपने आगे पीछे दाए बाएँ देखता है इससे वे दोनों घबरा जाते है| खासकर अनिकेत को खुद से इस तरह की हरकत की अपेक्षा नही थी पर क्या करे उसे मयंक का पीछा करना पड़ रहा था|

जब तक वे मयंक की मंशा समझते वह किसी टैक्सी को रोकता हुआ उसमे बैठ जाता है| ये देखते आनन फानन में दोनों भी उसके पीछे की टैक्सी पर लपकते हुए उसमे बैठते उसे अगली टैक्सी का पीछा करने के लिए बोल देते है| जॉन तब से इस चूहे बिल्ली की पकड़म पकड़ाई से आजिज़ आता अनिकेत से बोल उठता है – “ये हमे गोवा भ्रमण करा रहा है क्या – अब बस नाव से जाना शेष रह गया है – अजीब घनचक्कर है |”

अनिकेत इस पर कोई प्रतिक्रिया न करके अपनी आंखे सामने गड़ाए रहता है| अब वे किसी रिहाईशी इलाके में आ पहुंचे थे इससे अब उन्हें लगने लगा कि जरुर उसका घर आने वाला है| टैक्सी कुछ दो चार गली में घूमती हुई एक घर के सामने रुक जाती है| वे भी दूर खड़ी टैक्सी करके उस जगह को घूरने लगते है|

वे देखते है कि मयंक एक घर के अंदर समा गया| जब उसका जाना वे सुनिश्चित कर लेते है तो दोनों भी साथ में उतरते उस घर की ओर बढ़ने लगते है| वह एक साधारण सा दिखता हुआ घर था| अनिकेत आस पास की जगह को देखता हुआ कहता है – “यहाँ आते मुझे ये जगह जानी हुई सी क्यों लग रही है|”

जॉन भी इस बात पर अपनी सहमती देता हुआ कहता है – “हाँ सही कहा|”

अब वे उस घर के अंदर प्रवेश करने को उसका मुख्य फाटक खोलते हुए अन्दर जाते है| घर जमीन के बीचो बीच बना था जबकि उसके आस पास खाली पड़ी जमीन थी जो छह फिट की दीवार से घिरा थी| घर का दरवाजा पूरी तरह से बंद नही था ये देखते अनिकेत जॉन की ओर देखता हुआ पूछता है –

“कही वह ही तो नही चाहता कि हम अंदर आए |”

जॉन उसकी बात पर कंधे उचकाते उस घर के अन्दर प्रवेश करता है| अंदर काफी अँधेरा था| अब वे दरवाजे से अंदर आ गए थे पर समझ नही पा रहे थे कि आगे कहाँ जाए क्योंकि उनके चारो तरफ काफी अँधेरा था| वे किसी तरह से टटोलते हुए कुछ कदम आगे बढ़े थे कि किसी चीज से टकरा कर वह जैसे पीछे की ओर बाउंस हो जाते है|

ये उनके लिए बिलकुल अजीब अनुभव था और जब तक वह इसे समझ पाते अचानक वहां तेज उजाला फ़ैल जाता है| अँधेरे के तुरन्त बाद उजाला होते दो पल को तो उनकी ऑंखें चौंधियां जाते है और उनके आस पास क्या है वे समझ नही पाते लेकिन एक हंसी की आवाज से उनकी तन्द्रा भंग होती है और बड़ी मुश्किल से ऑंखें झपकाते हुए वे अपने सामने देखते है|

उनकी नज़रो के ठीक सामने मयंक था और ताली बजाकर हँसते हुए कह रहा था – “प्रोफ़ेसर साहब मुझे आपसे तो इस बेवकूफी की उम्मीद नही थी – लगता है जॉन की संगत का असर आ गया है – हा हा |”

उसकी हंसी चिढ़ाने वाली थी जिससे चिढ़ते हुए जॉन एकदम से गुस्से में उसकी ओर बढ़ता है पर ये क्या वह किसी बाउंसिंग गेंद की तरह फिर अपने स्थान में आ गिरता है|

अब दोनों का ध्यान अपनी स्थिति और उस जगह पर जाता है| वह कमरा कुछ अजीब सा था किसी साइंस रूम की तरह और उनके आस पास लेज़र किरणों का एक जाल सा बना था जिसमे वे कैद थे| वे अवाक् एकदूसरे की ओर देखते है|

“तो अब आप दोनों महानुभावों को समझ आ गया होगा कि ये लेज़र सेल है और आप दोनों उसमे कैद है तो प्लीज़ खुद को बिना नुक्सान दिए चुपचाप अपनी जगह पर खड़े रहे – वैसे भी यहाँ तक आने में बहुत मेहनत जो की है -|” मयंक अपनी जगह तनकर खड़ा उनको तीक्ष्ण नजरो से देखता हुआ कहता है|

“मतलब तुम हमे यहाँ लाए हो ?” जॉन फिर दांत पीसते हुए बोलता है|

“ये तुम दोनों की इतने दिनों की मेहनत का इनाम है – आखिर कितनी मेहनत की मेरे पास पहुँच जाने की तो इस बार तरस आ गया और सोचा अपने गरीबखाने की मेहमानवाजी करा ही दूँ |”

“तो क्या इन सब चीजो के पीछे तुम हो !!” अबकी अनिकेत घूरते हुए पूछता है|

इसपर मयंक धीरे से होंठ कसते सर नीचा करते हँसता हुआ कहता है – “प्रोफ़ेसर साहब बताया था न कि आपको गुरु मानता हूँ तो बस आपको फ़ॉलो करते करते इतना कुछ कर गया – आपकी वो थर्ड आई वाली थ्योरी है न उसी ने रचित और फेनी द्वारा आप पर नज़र रखने का आइडिया दिया – आखिर आप तो बेस्ट ही है – |”

मयंक के सामने खड़े दोनों हतप्रभता से एकदूसरे को तो कभी मयंक को देखते है| उनके चेहरे के हाव भाव बता रहे थे कि जो कुछ हो रहा है उसपर सहज ही विश्वास नही किया जा सकता पर फिर भी प्रश्न यही अटकता है कि ये आखिर मयंक है कौन !! और क्या चाहता है उनसे !!

“अब जब ये तय हो गया कि तुम अनमोल के भाई नही हो तो ये भी बता दो कि तुम हो कौन और क्या चाहते हो हमसे –?”

“अब इतना भी मुझे कैजुअल न लीजिए प्रोफ़ेसर साहब – कुछ सच अपनी बुद्धि से भी पता लगाए आखिर जीनियस है आप –|” वह उनके आस पास घूमता हुआ कह रहा था जिससे उन दोनों की नज़रे कमरे की अजीब सी संरचना पर भी चली जाती है|

ये उनके लिए अब तक का सबसे बड़ा सरप्राइज था पर अब आगे क्या होगा यह सोचते वे सामने मयंक तक अपनी दृष्टि दौड़ाते है तो उन्हें लगता है जैसे वह वहां है ही नही बल्कि उसकी कोई प्रतिछाया है वहां| अब कमरे का उजाला धीरे धीरे कम होने लगा था और उनकी ऑंखें कुछ अदृश्य सायों को अपने आस आस मंडराता हुआ देखने लगी थी|

क्रमशः……..

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