
डेजा वू एक राज़ – 78
अनिकेत और जॉन बीच पर आते किसी एकांत में रेत पर ही बैठे थे| इस वक़्त दोनों के चेहरे के भाव शून्य बने हुए थे जैसे सब कुछ हारा हुआ जुआरी होता है| काफी देर तक उनके बीच ख़ामोशी बनी रहती है मानो उनके बीच की सारी वार्ता समाप्त हो गई हो| ऑनलाइन टिकट बुक करने के बाद अनिकेत जॉन को पुकारता हुआ कहता है जो कही और ही गुम हुआ समंदर की फेनिली लहरों को कबसे एकटक देखे जा रहा था|
अगर कोई उसके मन की गहराईयों में इस वक़्त झांकता तो पता चलता कि वह फिर से उसी समंदर के पास आते फेनी की यादों में खो चुका था| यही पर तो वह मिला था उससे, यही उसके साथ रेत पर दौड़ते उसने अपनी जिंदगी का सबसे प्यारा वक़्त बिताया था पर क्या पता था कि किसी वक़्त वही रेत, वही समंदर, वही उनकी फेनिली बाहे होगी बस नही होगी तो फेनी ही….वह एक ठंडी आह के साथ अनिकेत की ओर देखता है जो उससे कह रहा था –
“कल सुबह की पहली फ्लाइट है – तब तक तुम कही जाना चाहो तो घूम आओ मैं यही कुछ पल तक अकेला रहना चाहता हूँ अपने एकांत में |”
उसकी बात पर सहमती देता वह बस हाँ में सर हिला देता है| क्या कहता कि वह भी तो कही नही जाना चाहता यहाँ से| अब दोनों दोस्त उस रात को वही बिताने रेत पर ही लेट जाते है|
वह बेहद शांत कमरा था जिसके बीचो बीच टेबल चेअर पर अपने कुछ उपकरणों के साथ वह खेल रहा था| कमरे में काफी अँधेरा था बस टेबल पर रखे टेबल लैंप की रौशनी के दायरे में वह उपकरण ही थे जिनपर वह हाथ तेजी से चल रहे थे| उस सीमित उजाले के कारण बाकि का कमरा अजीब से अँधेरे ने डूबा हुआ प्रतीत हो रहा था जिससे कुर्सी पर जमे व्यक्ति की न शक्ल दिख रही थी न बाकि कमरे का कोई सामान| लग रहा था जैसे वह अकेला ही उस कमरे में कबसे बैठा हुआ था|
तभी अचानक कुछ हलचल हुई और टेबल लैम्प जमीं पर गिर पड़ा| जमीं पर पड़ा हुआ टेबल लैम्प गोल गोल घूमने लगा था जिससे उसकी रौशनी के दायरे में आते दृश्य लगातार बदल रहे थे| लग रहा था कोई दो साए आपस में उलझ रहे है, फिर दिखा एक साया चित टेबल की डेस्क पर पड़ा था उसके अगले ही पल लगा एक साया खड़ा है तो दूसरा साया कुर्सी पर पड़ा था|
इसके अगले ही क्षण कमरे में एक आहट के साथ कमरे में भरपूर रौशनी हो गई और वहां का सारा दृश्य कुछ इस तरह था| उस एकांत कमरे के बीचो बीच टेबल कुर्सी पर का पिछला दृश्य काफी हद तक बदल चुका था| टेबल पर रखे उपकरण वैसे ही थे पर कुर्सी पर मयंक खिसियाई हुई हालत में था, जिसके हाथ और पैर टेप से कुर्सी से ही बंधे थे जिससे चाहकर भी उसमे कोई हरकत नही हो पा रही थी| यहाँ तक कि उसका मुंह पर भी टेप लगा हुआ और उसकी घूरती हुई आंखे अपने सामने खड़े शख्स पर थी|
उसकी नज़रो के सामने खड़ा शख्स अब अपना एक पैर उसकी कुर्सी पर रखे उसकी ओर झुका हुआ अपनी तिरछी मुस्कान से उसे देख रहा था जबकि मयंक के चेहरे पर खा जाने वाले हाव भाव आ गए थे|
“तो मिस्टर वजीर – आप जरुर जानना चाहेंगे कि ये सब हुआ कैसे – अचानक से एक हताश व्यक्ति ने कैसे सारी बाजी पलट दी – क्यों ?”
“हाँ ये तो मुझे भी जानना है अनिकेत – मुझे नही पता था कि एकाएक एअरपोर्ट जाते तुम यहाँ के लिए मुड जाओगे |”
दरवाजे से अंदर आते ये जॉन की आवाज थी जो एक नज़र कुर्सी पर बेदम पड़े मयंक पर थी तो अगली नजर उसके ठीक सामने खड़े अनिकेत पर थी जो मयंक की ओर झुका अपनी सख्त आंखे उसकी आँखों में डालता हुआ कह रहा था|
“तुम्हे साइंस तो बहुत पता थी लेकिन तुम मेरी अध्यात्मिक खूबी को शायद नजरंदाज कर गए |” अनिकेत अब उसके सामने सीधा खड़ा होता सीने पर हाथ बांधे हुए कह रहा था – “मैं बहुत अच्छे से समझ गया कि तुम मेरा दिमाग पढ़ रहे हो और मैं क्या अगला कदम उठाने वाला हूँ तुम अच्छे से जान जाते हो इसलिए जो तुम्हारे जानने लायक था वह मैंने मन में सोच किया और जो मैं असल में करना चाहता था उसे मैंने दिमाग में लाया ही नही |”
इस बात पर मयंक त्योरियां चढ़ाए उसकी ओर देखता रहा| जॉन भी चलता हुआ उसके पास आ गया था और जाहिर सी बात है कि उसे भी अभी तक कुछ नही पता चला था कि अनिकेत ने सब कैसे और कब तय कर लिया था| वह भी हकबकाया सा उसकी ओर देखने लगा था|
इससे अनिकेत अपनी बात आगे कहता है – “बहुत चालाक व्यक्ति भी कभी न कभी जरुर गलती करता है और मैं तुमसे यही अपेक्षा कर रहा था और आखिर तुमने वही किया – तुमने खुद को बहुत चतुर साबित करने खुद को मेरे सामने प्रकट कर दिया – ये तुम्हारी थी पहली गलती – दूसरी तुम अब तक अपनी सभी चालो से मुझे मात देते देते इतना अहम में डूब चुके थे कि तुम मेरी योग्यता को कम आंकने लगे थे और ये रही तुम्हारी दूसरी गलती इसलिए तुम्हे लगा कि जो कुछ हुआ उससे मैं हताश होने लगा – मैंने अपनी मानसिक स्थिति भी ऐसी कर ली कि मैं सब चीजो से हार मान चुका हूँ पर तुंम भूल गए कि मेरी आस्था जितनी विज्ञान में है उतनी ही अध्यात्म में भी है – और उसका सटीक प्रयोग मैंने तुम्हारे ऊपर किया – क्या और कैसे – चलो वो भी मैं तुम्हे बता देता हूँ – ध्यान की एक चरम अवस्था होती है जीरो थॉट – मतलब ध्यान से अपने मस्तिष्क को उस अवस्था तक ले जाना जब सारे विचार, द्वन्द, विषाद से दिमाग खाली हो जाता है और कोई विचार उसके मस्तिष्क में नही आता और इसी अवस्था में पहुंचकर मैंने अपनी सारी योजना को क्रियान्वित किया |”
“ओह तभी मैं कहूँ कि तुम तो ऐसे नही हो सकते अनिकेत – एक बार को तो मैं भी तुम्हे ऐसा देख हताश हो गया था|” जॉन खुद को बीच में बोलने से नही रोक सका|
अनिकेत अब मुड़कर जॉन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “ये मुझे करना पड़ा क्योंकि ये हमारा दिमाग पढ़ रहा था और इस बार तो मैं बिलकुल भी खाली हाथ नही होना चाहता था – इसलिए मैंने समंदर का किनारा चुना क्योंकि वही स्थान था जहाँ मुझे सबसे ज्यादा वाइब्स मिलती और तभी मैंने तुमसे कहा कि मैं अब एकांत में रहना चाहता हूँ और उसी वक़्त से मैंने अपना दिमाग ध्यान से जीरो थॉट तक ले गया और उस अवस्था में ही बिना थॉट के मैंने तय कर लिया कि हो न हो जो स्थान हमे देखा हुआ लग रहा था वह हॉस्पिटल का मरीज का वार्ड वाला स्थान था – जहाँ तुम मुझे मिले थे – पता नही कैसे इसने उस स्थान पर पहुँचने का बिलकुल अलग रास्ता बनाया ये तो यही बताएगा – पर जगह मैं समझ चुका था इसलिए समंदर के पास से उस जगह पर पहुँचने में मुझे देर नही लगी – |”
अब जॉन जब ये जान गया कि अनिकेत ने ये सब कैसे किया तो उसके हाव भाव में अनिकेत के लिए गर्व के भाव थे तो वही मयंक बुरी तरह से चिढ़ा हुआ अपना मुंह घुमाए हुए था|
अनिकेत अब फिर से उसके सामने आता उसके मुंह से खींचकर टेप निकलाते हुए कहता है – “तो अब तुम्हारी बारी – बोलो कौन हो और क्यों कर रहे हो ऐसा – के चाहते हो तुम हमसे ?” अनिकेत अपनी सख्त नज़र उसके हाव पर जमाए था|
अब तक मयंक के हाव भाव में जो हैरानगी के भाव थे वे उपहास भरे भाव में बदल चुके थे ये देख अनिकेत अब गुस्से में उसका जबड़ा अपनी हथेली की पकड़ में लेता हुआ कह रहा था – “मैं बिना तुम्हारे दिमाग पढ़े कह सकता हूँ कि तुम्हे लग रहा होगा कि तुम कुछ नही बोलोगे तो हमे कुछ पता नही चलेगा लेकिन अपने इस तेज तर्रार दिमाग में तेजी से ये बात घुसा लो कि जब मैं तुम तक पहुँच सकता हूँ तो तुम्हारे मकसद तक भी पहुँच जाऊंगा – इसलिए अपना और मेरा समय मत बर्बाद करो – समझे |” गुस्से से उसका जबड़ा पीछे धकेलता हुआ छोड़ता हुआ कहता है|
इस पर मयंक एक हंसी के साथ फिर अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लेता है| ये देखते अनिकेत जॉन की ओर देखता हुआ कहता है – “चलो जब तक ये बोलने के लिए खुद को तैयार करता है तब तक हम इसके घर की तलाशी लेते है – कुछ तो हाथ लगेगा ही |”
इस पर मयंक बुरी तरह से उसे घूरने लगता है जबकि दोनों उस कमरे का दरवाजा खोलते अगले कमरे की ओर बढ़ गए थे| कमरे से निकलते वे अगले कमरे के दरवाजे पर खड़े थे जिसका दरवाजा खोलते उन्हें वह कमरा खाली दिखता है फिर आगे कोई रास्ता न पाते जॉन अनिकेत की ओर देखता हुआ कहता है – “अब क्या करे – यहाँ तो कुछ भी नहीं है |”
“हाँ लग तो यही रहा है लेकिन जब इसे हमारा आना नही पता था तो ये कुछ छिपा भी नही सकता फिर आखिर इस कमरे में कुछ तो होना चाहिए !”
अनिकेत गौर से उस खाली कमरे को देख रहा था जबकि जॉन कुछ अलग ही सोच में पड़ा था| वह अनिकेत को पुकारते हुए अपना संशय प्रकट करता है – “अनिकेत अगर तुम्हे लगता है कि यही वजीर है तो वो तीसरा व्यक्ति कौन होगा जिसकी उम्र मेरे पिता की उम्र के आस पास होनी चाहिए और अगर तुम्हारे अनुसार नए शरीर का स्थान्तरण कर लिया गया तो भी ये प्रश्न बनता है कि ये है कौन ?”
अनिकेत अब पलटकर जॉन की ओर देखता हुआ सोच में पड़ गया था|
क्रमशः……