Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 100

योगेश अपने नर्सिंग होम में ही था और जिस वक़्त अरुण वहां पहुंचा वह अपने लगभग मरीज निपटाकर बस बैठा ही था| अरुण सीधे उसके केबिन में हड़बड़ाते आते हुए देखता है कि योगेश आराम से हेडफोन लगाए गाना सुन रहा था| उसने अरुण को आते बिलकुल नही देखा जिससे वह उसके पास आता उसके मोबाईल की खुली स्क्रीन को ऑफ़ कर देता है इससे उसका ध्यान अरुण की ओर जाता है और वह चौंकते हुए पूछ उठता है –

“अरे तुम आ भी गए !”

“हाँ क्योंकि तुम्ही ने अर्जेंट आने को कहा था लेकिन तुम्हे देखकर लग नहीं रहा कि तुम्हे कोई अर्जेंसी थी|” सख्त हाव भाव लिए वह ठीक उसके सामने बैठ जाता है|

“यार क्या करूँ एक तू ही है जो मेरा दुखड़ा सुन सकता है इसलिए बुलाया लेकिन तेरे पास समय नहीं है तो तू रहने दे |”

“अब अपना ड्रामा बंद कर और बोल क्या बोलना है |”

अरुण की सुनता योगेश तुरंत उसकी तरफ झुकता हुआ कहता है – “यार मुझे सच्चा वाला प्यार हो गया है |”

“ओह्ह ग्रेट – तो इस वाले प्यार की इंटेंसिटी पिछले वाले से ज्यादा है या कम ?”

“यार समझ नहीं रहा तू – सच्चा वाला प्यार मतलब अब मैं सच में इतना सीरियस हूँ कि शादी के बारे में सोच रहा हूँ |”

“क्या !!!”

अरुण अवाक् उसके चेहरे की ओर देखता रहा जिससे चिढ़ता हुआ योगेश कह उठा – “इसी कारण मैंने ये बात पहले किसी और से नहीं कही और तू भी इतना गन्दा वाला रियक्शन दे रहा है !”

योगेश की ठसक पर अरुण थोड़ा संभलते हुए बोलता है – “अब बात ही तूने कुछ ऐसी कही – हज़म करने में समय तो लगेगा न |”

जहाँ योगेश अरुण को बुरी तरह घूरने लगा था वही अरुण की हँसी छूट पड़ी थी| योगेश बेहद गंभीरता से कहने लगा –

“सच बोलता हूँ यार प्यार का असल मतलब अब समझ आया है – प्यार का मतलब जहाँ कोई स्वार्थ न हो बस अनदेखा प्यार हो जिसे जताया भी नहीं गया हो बस वही सच्चा प्रेम है बाकी तो बस टाइम पास होता है|”

“क्या खिचड़ी पका रहा है साफ़ साफ़ बोल न |”

“अच्छा तू जानता है न आज तक मेरी लाइफ में कितनी लड़कियां आई |”

योगेश की बात पर अरुण तपाक से बोल उठा – “मुझे नही पता – वैसे क्या तुझे भी पता है उनकी गिनती !”

“अरे यार तू तो मेरी बखिया ही उधेड़ने में लगा है – |”दांत दिखाता हुआ योगेश आगे कहता है – “मेरा मतलब था ये सब लड़कियाँ बस मतलब की निकली – यार इनकी डिमांड पूरी करता करता मैं निचुड़ा निम्बू बन गया फिर भी इनका लटका मुंह सीधा नही हुआ – आज तो वो टीना बस मेरे मरीजो के सामने ही शुरू होने वाली थी – वो तो कहो नैना ने जाने कैसे सब संभाल लिया – नहीं तो अपने मरीजो के सामने ही मुंह दिखाने लायक नही बचता – बस यार तभी से रिलाईज हुआ कि सच्चा वाला प्यार तो मेरे पास ही था और एक मैं था कि इधर उधर भागता फिरता था – बिलकुल कस्तूरी मृग की तरह |”

योगेश धाराप्रवाह कहता जा रहा था और उसी के साथ अरुण के हाव भाव गंभीर होते जा रहे थे|

“तुझे पता है न नैना कितने टाइम से मेरे साथ है – मुझे पता ही नहीं चला कब मेरे क्लिनिक का ध्यान रखती रखती मेरी लाइफ में भी इम्पोर्टेंट रोल अदा करने लगी – जब देखो उसके भरोसे क्लिनिक छोड़कर चला जाता और उसने कभी कोई शिकायत भी नहीं की – यहाँ तक कि कितने निजी काम उसके भरोसे पर ही मैं कर पाता – हमेशा बेहद ख़ामोशी से मेरा ध्यान रखती और एक मैं था कि इसे उसकी ड्यूटी समझता रहा जबकि वो प्यार था यार – कोई इस हद तक तो नहीं जाता न !”

अरुण योगेश की बात सुनता सुनता बेचैनी से एक सांस भीतर घोटता है|

“अब तू ही बता ये प्यार नही तो क्या है !! शायद वह नर्स है इससे मुझसे कहने से डरती हो – बोल न यार – अरे कहाँ खो गए – देखा मेरी दर्दभरी दास्ताँ से सबकी बोलती ही बंद हो जाती है|”

योगेश को क्या पता था कि उसके जैसी बेचैनी तो अरुण कब से भुगत रहा है, वह सच में खामोश होता खुद के भीतर की पड़ताल करने लगा था| योगेश आगे  कहता है –

“बस यार अब ये बता कि मैं नैना से अपने दिल की बात कैसे करूँ – मेरी तो हिम्मत ही नहीं पड़ रही |”

“अच्छा है किसी गलत शादी में पड़ने से पहले तुझे अपने प्यार का अहसास तो हो गया – अब देर मत कर और सीधा बोल दे उसे |”

“क्या सच्ची !!” योगेश उमंग से उछलता हुआ बोलता है जबकि अरुण पूर्ण शान्ति से हामी में सर हिला देता है|

***
ऑफिस में देर शाम आकाश अपने केबिन में बैठा था और हमेशा की तरह दीपांकर उसे ऑफिस की अपडेट दे रहा था|

“सर मुझे इस रूबी पर पहले दिन से ही कोई फेथ नही था और देखिए आज सबूत भी मिल गया – उसके ऑफिस के मोबाईल से ऑफ टाइम में सबसे ज्यादा बार दिवान्स कंपनी के ऑफिशियल पोर्टल को एक्सेस किया गया है |”

“इससे ये भी तो हो सकता है कि उसने ऑफिशियल काम के लिए ऐसा किया हो – दीपांकर इससे कुछ साबित नहीं होगा – ठीक तो मुझे भी नहीं लगती – कभी मुझसे रूपए लेने में उसकी अकड़ आ गई थी और उसके बाद खुद ऑफिस ज्वाइन कर लिया – कुछ तो कारण होगा – दीपांकर तुम उसके डेस्क की तलाशी लो और देखो कोई अनवांटेड चीज तो नहीं – बाकी एक बार उसे मेरे हत्थे चढ़ने दो – उसी दिन उसका सारा गुरुर उतार कर रख दूंगा |” सिगरेट एस्ट्रे में मसलते हुए आकाश कहता है जिसपर हामी भरते हुए दीपांकर तुरंत उठ जाता है|

पर्सनली भी दीपांकर रूबी को पसंद नहीं करता था क्योंकि आकाश का राईट हैण्ड होने से वह हमेशा बाकी के कर्मचारियों से खुद को ऊपर देखता था जो उसे भाव नही देते उन्हें वह भी पसंद नहीं करता था और इस बात की खुन्नस वह रूबी पर निकाल ही देता है|

शाम का समय था और लगभग कर्मचारी अपने अपने जाने की तैयारीयों में थे तभी दीपांकर के इशारे पर एक प्यून रूबी की डेस्क की तलाशी ले रहा था| पास ही खड़ी रूबी नज़रे नीची किए हथेली मसलती खड़ी थी क्योंकि ये उसके लिए शर्मिंदगी का विषय था| शेष कर्मचारी अपनी अपनी डेस्क से झांकते हुए उसकी ओर देख रहे थे|

“सर ये फाइल नीचे की ओर रखी थी |”

प्यून कहता हुआ कुछ फाइल दीपांकर की ओर बढ़ा देता है जिन्हें अलट पलट कर देखता हुआ दीपांकर उसे उसकी डेस्क पर रखता हुआ कहता है – “कुछ ख़ास नही है इनमे |”

अब जब प्यून तलाशी का काम कर चुका तो रूबी आँखे तरेरती हुई दीपांकर को देखती हुई कहती है –

“वैसे सर आप ढूंढ क्या रहे थे जो आपको नही मिला !”

दीपांकर तपाक से बोलता है – “तुम्हारा सच |”

“कैसा सच ? मैंने क्या किया है ?”

“वही तो जानना है |”

रूबी को दीपांकर का ऐसा कहना बुरा लग रहा था जिससे उसका मन रुआंसा हो उठा था, वह भरे मन से कह उठी – “क्या जानना है आपको मुझसे पूछिए लेकिन इस तरह से तलाशी लेकर आप साबित क्या करना चाहते है ? बिना सबूत मुझपर शक करने की वजह तो बताए मुझे |”

“वक़्त आने दो सब बता दूंगा |” कर्कश भाव से कहता हुआ दीपांकर आगे बढ़ जाता है|

रूबी बेबस सी खड़ी देखती रह जाती है| उसके लिए ये बहुत ही अपमानजनक रहा जिससे अभी तक वह नज़र उठाकर अपने अन्य साथियों की ओर देख भी नहीं पायी थी|

***

उस छोटे से कमरे में बहुत ही छोटे बल्ब से रौशनी थी इतनी कि वहां मौजूद शख्स एकदूसरे को महसूस कर सकते थे पर चेहरा नही देख सकते थे| उस कमरे में एक बेड के अलावा एक मेज कुर्सी पड़ी थी जिसपर खाने पीने का कुछ सामान रखता हुआ अभी अभी विवेक वहां आया था|

विवेक मेज पर रखी प्लेट में खाना लगाकर उसे लिए कमरे के कोने वाले हिस्से की ओर बढ़ रहा था जहाँ कोई काया अपना सर घुटनों के बीच दिए बैठी थी| वह कोई स्त्री ही थी जिसकी गुदड़ी साड़ी और बिखरे बाल उसकी उलझी स्थिति बता रहे थे|

विवेक उसके पास ही फर्श पर बैठता हुआ उसका सर प्यार से उठाते हुए उसके बालो पर हाथ फिराने लगता है| वह अभी उसके उलझे बालो को अपनी उँगलियों से सुलझा ही रहा था कि वह स्त्री उसका हाथ झटकती हुई खुद को अपने में समेटती हुई उससे दूर सरक जाती है|

इसपर विवेक बडी मुश्किल से उसे धीरे धीरे अपनी ओर लाता है, ऐसा करते साथ ही वह अपना चेहरा अपनी आस्तीन से पोछता रहता है| इसका मतलब था कि वह रो रहा था पर कमरे के अँधेरे उसके आंसू छिपा ले जा रहे थे|

उस स्त्री को बड़ी मशकत से अपने नजदीक लाता हुआ विवेक उसे खाना खिलाने का प्रयास कर रहा था जिसमे कभी वह कौर उगल देती तो कभी मुंह नहीं खोलती लेकिन विवेक बहुत धैर्य से उसे खाना खिलाने का प्रयास करता रहा|

काफी देर की मशकत के बाद वह उसे आधा खाना खिला पाया फिर उसे ध्यान से उठाते हुए बेड की ओर लाता हुआ लेटा देता है| कुछ देर तक वह उस स्त्री के सिरहाने बैठा उसका सर सहलाता रहता है फिर उसे चादर ओढ़ाकर बिना आहट किए कमरे से बाहर निकल जाता है|

***

रूबी का दिन जैसा गया था उसकी उदासी उसके मन से गई ही नहीं| वह सेल्विन के रूम में थी वे दोनों साथ में कॉफ़ी पी रहे थे| सेल्विन अपने मोबाईल में कुछ देखने में व्यस्त था जिससे उसका ध्यान रूबी की तरफ नहीं था| कमरे में टीवी चल रहा था जिस कारण उन्हें आपस में बात करने की जरुरत भी महसूस नही हुई कि तभी एक आवाज पर उन दोनों का ध्यान साथ में टीवी की ओर गया|

न्यूज स्टैला के अगले प्राइम शो के बारे में थी जिसे दोनों साथ में सुन रहे थे|

रूबी बोल उठी – “इसे तो मैंने देखा है आकाश सर के ऑफिस में |”

सेल्विन हैरान होता रूबी से पूछता है – “वहां ? क्यों ?”

“मुझे ठीक से नहीं पता पर कुछ ऐसा जरुर है उनके बीच जिसके कारण आकाश सर जैसे व्यक्ति की भी इसके आगे जुबान बंद थी|”

“और वो क्या है ?”

“मुझे क्या पता और वैसे भी मुझे आकाश सर पर कोई निजी इंटरेस्ट नहीं कि मैं जानू कि उनकी निजी लाइफ में क्या हो रहा है – रियली आई हेट दिस पर्सन |”

सेल्विन अब रूबी के पास आता हुआ उसका हाथ पकड़ता हुआ पूछता है – “कोई ख़ास बात है क्या – तुम कुछ आज अपसेट सी नज़र आ रही हो ?”

इतना भर कहते रूबी का दर्द उनकी आँखों में झलक आता है और वह अपना सर सेल्विन के कंधे से लगाती हुई कह उठती है – “सेल्विन वो बहुत गन्दा इंसान है मुझपर बुरी नज़र रखता है पर..|”

“क्या !!” इतना सुनते सेल्विन झट से रूबी का रुआंसा चेहरा अपनी हथेली में लेता हुआ पूछता है – “तो फिर तुम क्यों काम करती हो वहां ?”

“माँ के इलाज की मज़बूरी है और फिर जब हमारी शादी होगी मैं सच में ये नौकरी छोड़ दूंगी – |”

इसपर चुप होता सेल्विन अपनी नजरे इधर उधर कर लेता है|

रूबी कहती रही – “मैं तो बस उसी दिन का इंतजार कर रही हूँ जब हमारी अपनी दुनिया होगी तब मुझे यूँ मजबूर नहीं होना पड़ेगा – ऐसा कब होगा सेल्विन ?”

रूबी सेल्विन की ओर देखती रही जबकि वह जानकर कही कॉल करने का नाटक करने लगा था|

क्रमशः…….

आप आराम से यहाँ कमेन्ट करे सबका कमेन्ट शो होगा..उम्मीद है ये वेबसाइट जल्दी ही आपके लिए फ्रेंडली हो जाएगी..

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