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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 101

न्यूज एजेंसी के ऑफिस में एडिटर राव तेज कदमो से चलता हुआ अपने केबिन में आ रहा था| इस वक़्त उसके हाव भाव उड़े उड़े बने हुए थे जबकि वह भरसक कोशिश में खुद को सामान्य बनाए हुए था ताकि उसके मिडिया के साथी उसके हाव भाव से उसकी परेशानी न समझ ले|

कई लोग खड़े होकर तो कोई हाथ हिलाकर उसे विश करते है जिसका वह सहजता से उत्तर देकर आगे बढ़ता रहता है| अपने केबिन का डोर तेजी से खोलकर वह अंदर प्रवेश करते हुए केबिन में अपनी नज़रे फैला देता है| उसकी नजरो की सीध में स्टैला मौजूद थी जो सोफे पर एक ओर को सर टिकाए हुए बैठी थी|

राव उसके पास आता उसके बगल में बैठता हुआ थोड़ा उसकी ओर झुकता है और अगले ही पल उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर करता हुआ कहता है –

“तुम ड्रिंक करके ऑफिस में आई हो ?”

राव की आवाज पर स्टैला उसकी ओर मुड़ती हुई बोली – “तुमने मेरा प्राइम शो क्यों कैंसिल किया ?”

स्टैला की आवाज बहकी हुई थी जिससे साफ़ साफ़ पता चला रहा था कि वह काफी नशे में है उसकी ऐसी हालत पर उखड़ते हुए एडिटर बोल उठा – “अपनी हालत देखी है तुमने – तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ड्रिंक करके ऑफिस आने की – बात प्राइम की कर रही हो यहाँ बात तो सही से की नहीं जा रही तुमसे |”

“मुझे पता है कि मैं क्या कर रही हूँ – मेरा ब्रॉडकास्ट जारी हो चुका था फिर तुमने क्यों रोका ?” वह बुरी तरह उसपर चीख उठी|

“तुम मेरा मिडिया हाउस डुबाने में तुली हो – क्या मुझे पता नही था कि तुम आज क्या करने वाली थी – जब मिस्टर रंजीत इंटरव्यू के लिए मना कर चुके है तो क्यों उसके बारे में शो करने वाली हो – बात बार जबरन उसको क्यों न्यूज में कवर कर रही हो – किया क्या है उसने ?”

एडिटर जिस तेजी से प्रश्न पूछता है स्टैला उसी तर्ज में उसपर चीख पड़ती है – “क्योंकि कुछ नहीं किया उसने |”

“ओह्ह |” अबकी एडिटर स्टैला की बौखलाई हालत पर हलके से मुस्करा दिया|

स्टैला रंजीत के नाम पर बुरी तरह फुकारती हुई बोल रही थी – “अपने आप को वो जो भी समझता है पर उसे पता नहीं है कि स्टैला के चंगुल से निकलना किसी के लिए भी आसान नहीं है – क्यों मिस्टर एडिटर आपको पता है न |” अबकी एडिटर को देखती हुई वह अपने होठो विस्तार दे देती है जिससे सच में एडिटर सकपका जाता है| वह भी स्टैला का एक शिकार ही था जिससे वह स्टैला को न चाहते हुए भी तल्ख़ शब्दों से कुछ न कह सका|

वह अंदर ही अंदर भुन रहा था फिर भी खुद को सयंत करते उसे समझाता हुआ कहता है – “देखो स्टैला अभी तुम्हारे पास मिस्टर रंजीत को लेकर कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे तुम खबर बना सका इसलिए मैंने ये शो रोका है और तुम कब से कच्चा काम करने लगी – अगर सच में उसे आड़े हाथो लेना है तो खबर तलाशो नही बल्कि बनाओ और तब मैं क्या दुनिया तुम्हारा शो देखेगी और हमेशा की तरह टीआरपी तुम ही लूट ले जाओगी |”

एडिटर की बात पर स्टैला सोचती हुई खामोश हो गई थी| अपनी बात का असर देख एडिटर आगे कहता है – “आज इसलिए मैंने तुम्हारे शो की जगह इंटरनेश्नल लाइव न्यूज लगा दी है – तुम्हारे पास आज का दिन है – मैं तो कहता हुआ आज तुम आराम करो और कल के शो की तैयारी करो – हूँ !!”

“तैयारी तो मैं ऐसी करुँगी कि ये रंजीत खुद मेरे पास आएगा और जो मैं चाहती हूँ वो करेगा |” गुस्से में जबड़े को कसती हुई स्टैला टेक लेकर उठ जाती है|

वह टेबल पर रखे पानी के गिलास को हलक में उतारने के बाद दरवाजे की ओर बढ़ने लगती है| चलती हुई बार बार वह हलके से लड़खड़ा जाती लेकिन तुरंत ही खुद को वह संभाल लेती| उसकी बिगड़ी हालत को देखता हुआ एडिटर चुपचाप उसे जाता हुआ देखता रहा फिर उसके केबिन से बाहर निकलते उसकी ओर देखते हुए वह बुरा सा मुंह बनाए उस जगह से उठ जाता है|

***

सेल्विन उस घर के बाहर अपनी बुलेट रोकता है जहाँ उसने विवेक के रहने की व्यवस्था की थी| फट से बुलेट स्टैड पर लगाकर वह उस घर में प्रवेश कर जाता है और जैसा कि उसे पता लगा था विवेक अपने बैग में सामान रख रहा था|

सेल्विन तेजी से उसके पास आता उसका हाथ पकड़कर उसे रोकता हुआ कहता है – “ये क्या कर रहे हो ? सामान लेकर कहाँ जा रहे हो ? क्यों छोड़ रहे हो घर ?”

“ठिकाना बदल रहा हूँ अपना बस |” विवेक सामान रखता रहता है|

“कोई प्रॉब्लम है इस घर में तो मुझे बताओ – इस तरह से जाने का क्या मतलब है – देखो रंजीत साहब ने तुम्हारे लिए ये भिजवाया है |” कहता हुआ सेल्विन अपनी शर्ट के अंदर से कुछ गड्डियां निकालकर उसकी नज़रो के सामने रख देता है|”

विवेक उन गड्डियों को घूरता रहा| सेल्विन उसे ही देख रहा था उसकी नजर विवेक की अगली प्रतिक्रिया पर थी कि उसके अगले ही पल विवेक उस गड्डी में से आधी गड्डी उठाते हुए कहता है –

“मैं खैरात नही लेता – इसमें से वही ले रहा हूँ जितना मैंने काम किया है – कह देना अपने रंजीत साहब से |”

“विवेक पागल मत बनो – अकेले तुम कुछ नहीं कर सकते – मुझपर भरोसा करो |”

“भरोसा ही किया था तुम पर – तुम दोस्त बनकर आए थे न पर क्या किया तुमने ?” विवेक आक्रोश से उसकी तरफ देखता हुआ कहता रहा – “मैं सिर्फ अब तक उस रंजीत के हाथो की कठपुतली बनकर रह गया हूँ – वो भी तुम्हारी वजह से – नहीं समझ पा रहा कि क्या करना चाहता था और क्या कर रहा हूँ – अब से मैं वो करूँगा जो मैं करना चाहता हूँ -|” कहते हुए विवेक चलने को हुआ पर फिर कुछ याद आते हुए कहता है – “और हाँ वो रूबी उससे क्या चक्कर है तुम्हारा ? क्या मैं जानता नही कि दिवान्स के किले में घुसने का साधन बना रखा है तुमने उसे – तुम उसे भी धोखा दे रहे हो सेल्विन – तुम्हारी तबियत ही धोखे वाली है या ये भी तुम्हारी रंजीत राय की वफादारी के काम के अंदर ही आता है |”

“तो तुम्हे क्या लगता है ये पैसे वाले लोग हम तुम जैसे लोगो पर दया करके अपने साथ रखते है ! विवेक अगर ये मेरा सच है तो एक सच और भी अच्छे से जान लो – पैसा आज की सबसे बडी जरुरत है – जरुरत क्या अगर माँ बाप कहूँ तो गलत नही होगा –|”

“तो तुम अपने माँ बाप के साथ रहो मुझे जाने दो |”

“और जाओगे कहाँ तुम ? क्या इतने बड़े लोगो के सामने तुम बिना संसाधन के एक पल को भी टिक पाओगे ? वो दिवान्स है |”

“शायद तुम भूल रहे हो तुम्हारे रंजीत साहब के भेजे आदमी जो नहीं कर पाए वो मैंने अकेले किरन के साथ किया और दिवान्स के ऑफिस में भी मैं अपने दम पर घुसा हूँ तो अपने रंजीत साहब को बता देना कि मुझे चैलेन्ज तो बिलकुल न करे क्योंकि इस वक़्त एक जूनून सवार है मेरे सर पर जिसके आगे मैं अब खुद की जान की परवाह भी नहीं करता |”

कहता हुआ विवेक अपना बैग लिए निकलने लगा तो सेल्विन फिर उसे टोकता हुआ कहता है – “विवेक एक बार फिर से सोच लो  – अब तुम अपने मकसद के बहुत पास हो और ऐसे समय रंजीत साहब ही तुम्हारे सच्चे मददगार होंगे |”

सेल्विन की बात पर व्यंग भरी मुस्कान के साथ विवेक कहता है – “अभी तक तो तुम्हारे रंजीत साहब मुझसे ही मदद ले रहे थे और तुम जानते नही हो – ये बिजनेसमैन किसी के सगे नहीं होते – मुझे तो लगता है किसी दिन ये सब आपस न मिल जाए तब तुम कहाँ जाओगे सेल्विन ? उस दिन तुम्हे ये बड़े लोग दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे – अगर फ़िक्र करनी है तो उस वक़्त की करो – चलता हूँ |”

विवेक अब नही रुका पार कमरे में एकांत खड़ा सेल्विन जरुर सोच मे घिर गया था|

***

संस्था में कुसुम बेन भुगतान बिल में भूमि के साइन ले रही थी| भूमि उन्हें जब ध्यान से देखने लगती तो कुसुम बेन इधर उधर की बात करके उसका ध्यान भटका कर रसीद के पन्ने सरकाती रहती| ऐसा करते पूरा साइन लेने के बाद कहती है –

“मैडम जी आज बगीचे में माली ने बड़ा अच्छा काम किया है – आप देखने चलेंगी ?”

“ठीक है – आती हूँ थोड़ी देर में |”

“अच्छा जी |” कहती हुई कुसुम बेन तुरंत ही फ़ाइल लिए कमरे से बाहर निकल जाती है| अगले कमरे में राघव जी उसी के आने का इंतजार कर रहा था| उसके ठीक सामने बैठती हुई वह राहत भरा इतना लम्बा श्वांस छोड़ती है कि राघव उसे हैरानगी से देखने लगा|

“अरे क्या भाग के आई हो क्या ?”

“बस यही समझ लीजिए राघव जी – मैडम जी से न सच में बहुत डर लगता है अगर जरा भी हमारा झोल पकड़ा गया न तो हमे भी कल्याण की तरह बाहर का रास्ता दिखा देंगी |”

कुसुम की बात पर राघव किसी घाग की तरह हँसता हुआ कहता है – “कल्याण तो रहा निरा गधा जो अपना कल्याण भी न कर सका पर हम तो ठहरे मजे हुए खिलाडी – मैडम क्या मैडम का भूत भी हमे नहीं पकड़ पाएगा कि कैसे हम संस्था के लाए नए सामानों की जगह पुराने सामान का सौदा करते है और शेष रकम हमारी पॉकेट में – ही ही |”

“हाँ ये तो है आप जैसा दिमागदार और कहाँ – सच में आप में ही मेनेजर बनने के गुण है – वैसे भी इन अनाथ बच्चो और महिलाओ को नए कपड़े और किताबो पर खर्च करना बेकार ही है – ये तो हमेशा से ही पुराने के लायक है |” वह बलैयां लेटी कहने लगी|

“सही कहती है |”

राघव की बात पर कुसुम बेन भी कसकर हँस पड़ती है|

***

शाम से रात घिर आई उजला को जैसे इसी वक़्त का इंतज़ार था| आज शाम को आने के बाद से अरुण कमरे से बाहर भी नहीं निकला जिससे उजला के मन में बेहद बेचैनी सी भरी हुई थी पर क्या कर सकती थी बिना काम उस कमरे में जा भी नहीं सकती थी| कई दिनों से अरुण का व्यव्हार उसके प्रति अजीब हो रहा था| कभी लगता जैसे कुछ कहना है उसे पर उसके अगले ही पल अरुण खुद को जब्त करता खुद को बेहद खामोश कर लेता| उजला कुछ पूछती भी तो कैसे ?

आखिर कॉफ़ी का कप लिए वह उसके कमरे में चल दी| कमरे का दरवाजा बंद था| वह धीरे से नॉब घुमाकर कमरे के अंदर प्रवेश करती है| कमरे के खुलते ही वह नज़र उठाकर कमरे में अरुण को तलाशने लगती है|

कमरे में हलकी रौशनी थी और खिड़की की तरफ मुंह किए अरुण खड़ा था| तभी उसे सांस लेने में दिक्कत आने लगी| कमरे के खुलते जैसे तेज धुँआ उसकी साँसों में भरने लगा| अरुण खिड़की के पास खड़ा लगातार सिगरेट फूक रहा था जिससे बंद कमरे में उसका धुँआ बुरी तरह भर गया था| अरुण की हालत पर उसका मन तड़प उठा आखिर किस बात की खुद को सजा दे रहा है वो ? सजा तो वह भी बिन बात के भुगत रही है !!

उजला अवाक् खड़ी रह गई| खिड़की के पास खड़े होकर भी आखिर क्यों खिड़की नही खोली ? अरुण अभी भी उसकी तरफ पीठ किए खड़ा था| धुए के प्रभाव से अब उसे खासी आ गई जिससे उसके आने की आहट अरुण को मिल गई पर एक बार भी वह उसकी तरफ नही पलटा और बिना उसकी ओर देखे कहने लगा –

“नहीं चाहिए मुझे कुछ |”

बेहद रुखाई से अरुण ने बिना उसी ओर देखे ही कहा जिससे उजला का मन दुखी हो चला| वह वेदना में अपने होठ चबाती हुई उसकी ओर देखती रही पर अरुण आखिर उसकी ओर नहीं पलटा जिससे वह तुरंत ही कप लिए वापस चली गई और जाते समय उसने दरवाजा बंद नही किया ताकि कमरे का धुँआ बाहर जा सके|

अरुण को बिना देखे ही पूरा अहसास था उसके आने का पर जाने की आहट नही मिलने पर वह अब पलटकर उसकी ओर देखने मुड़ता है पर उजला जा चुकी थी| वह खुले दरवाजे के पार से उसे जाता हुआ चुपचाप देखता रहा|

क्या ये उनकी ख़ामोशी कभी टूटेगी ?? जानने के लिए पढ़ते रहे और कमेन्ट करना बिलकुल न भूले…

क्रमशः………………………

11 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 101

  1. To Vivek ne hi Kiran ko kidnap Kiya tha.. mujhe laga to tha.. Vivek to menka ke saath bhi galt kar rha hai… pta nhi vo ye sab kyu kar Raha hai par saja to Kiran aur Arun ko mil rhi hai.. jo ek dusre ko chahte huye bhi ijhaar nhi kar sakte..
    Stella bhi ajeeb cheez hai par ranjeet jrur usko mazaa chakhayega…

  2. Vivek. Ne kiya tha kiran ko kidnap… Ye baat kabi toh samne aayegi.. Fabulous, mind blowing, superb part… 🥰🥰🥰🥰🥰🥰

  3. Ye baat kuch hajam nhi hui,
    Vivek agar kidnapper h to us time apne btaya tha k wo road accident me mar gya or us samay to ranjeet b kah rha tha k mai us saksh ka pata lagakar rahunga 🤔🤔

  4. Ye baat kuch hajam nhi hui,
    Vivek agar kidnapper h to us time apne btaya tha k wo road accident me mar gya or us samay to ranjeet b kah rha tha k mai us saksh ka pata lagakar rahunga 🙄

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