
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 109
‘कोई शहर कैसे दिल में बस जाता है ! क्या वो बहुत खूबसूरत होता है !! या उसकी रिहाइशी सड़के, माहौल, दिलकशी दिल जीत लेती है तो नहीं साहब शहर अकेला कहाँ कुछ होता है…वो तो महज चंद सड़क, पेड़, इमारते होता है…असल शहर तो अपने महबूब के दिल से जिया जाता है….जब उसके लिए सड़को पर पैदल यूँही दिल निकले और धूप का कोई टुकड़ा चेहरे को तपाने लगे तब सिर्फ चेहरा ही तपता है दिल तो उसके दीदार के नूर से जगमगा उठता है…तो जनाब अगर आप इश्क में है तो डूब जाइए उसमे…तब वो शहर शहर नही शीशमहल बन जाएगा….सुनते रहे एफएम में तेरा आशिक हूँ मैं….आपकी फरमाइश हमारी ख्वाइश..सुने अगला प्यार भरा गीत…|’
बस की भीड़ और उमस भरे माहौल में जहाँ लगभग की नजर उतरती सवारी और उसकी खाली होती सीट पर थी तब किसी को भी कहाँ खबर थी कि कोई आशिक भी उसमे सफ़र कर रहा है| अपने कम्फर्ट जोन से निकलने के बाद से उसकी ये हालत हो रही कि थोड़ी देर के सफ़र में भी वह बुरी तरह पसीने पसीने हो गया था पर इसकी परवाह किए बिना उसकी नजर उजला पर तो कान बस के एफएम पे लगे थे जिसमे से निकला गीत उसके दिल के जज्बातों को जुबान दे रहे थे|
मैंने छानी इश्क की गली
बस तेरी आहटे मिली
मैंने चाहा चाहुँ न तुझे
पर मेरी एक न चली
इश्क में निगाहों को मिलती है बारिशे
फिर भी क्यूँ कर रहा है दिल तेरी ख्वाहिशे
दिल मेरी ना सुने
दिल की मैं न सुनूँ
दिल मेरी ना सुने
दिल का मैं क्या करूँ…..
लाया कहाँ मुझको ये तेरा मोह तेरा
जान लेगा मेरी ये इश्क मेरा
इश्क में निगाहों को मिलती है बारिशे
फिर भी क्यूँ कर रहा है दिल तेरी ख्वाहिशे…..
एक झटके के साथ बस के रुकते अरुण जैसे अपने ख्याल से बाहर आया और उसका ध्यान उजला की ओर गया जो बस के आगे से उतर रही थी, ये देखते वह तेजी से भीड़ को चीरता हुआ बस के पिछले हिस्से से उतर जाता है|
उसे नहीं पता कि वह बस कहाँ रुकी वह तो उजला के पीछे पीछे चल रहा था| कुछ दूर पैदल चलने के बाद उजला जल्दी से कही प्रवेश कर जाती है| अरुण उसके पीछे पीछे खुद को छिपाते हुए उस जगह पर प्रवेश कर जाता है| अगले ही पल उसे अहसास होता है कि वह इस वक़्त किसी हॉस्पिटल में था|
उजला को जैसे पता था कि उसे कहाँ जाना है और वह सुनिश्चित वार्ड की ओर बढ़ गई| अरुण लगातार उसके पीछे था|
ये वही हॉस्पिटल था जहाँ किरन के पिता एड्मिड थे और अरुण ये देखकर और भी हैरान रह गया कि वह उनके पास न जाकर बस उन्हें छिपकर दूर से ही देख रही थी और ऐसा करते उसकी भरी हुई आँखों को वह साफ़ साफ़ देख पा रहा था|
वह खुद से ही कह उठा – ‘ओह तो तुम यहाँ आती थी – मैं क्यों ये बात नही समझ सका – मुझे सच में उनका ख्याल ही नहीं रहा पर अब इस गलती को गुनाह नही बनने दूंगा |’ मन ही मन तय करता हुआ वह वहां से हटकर किसी एकांत में आते तुरन्त अपने ऑफिस के एक कर्मी को फोन लगाता हुआ कहता है – “मैं इस समय तुम्हे जिस हॉस्पिटल की लोकेशन और वार्ड नम्बर भेज रहा हूँ उन पेशेंट को तुरन्त शहर के बेस्ट हॉस्पिटल और डॉक्टर के पास एड्मिड करो और उनका बेस्टस इलाज हो इसकी मुझे ताकीद करो |’
बात करके वह वापस उजला को देखने उसी वार्ड के बाहर आता है जहाँ वह उसे छोड़कर गया था| उस समय वह उस वार्ड के बाहर से सबकी नज़रो से छिपकर अपने पिता को देखती सुबक रही थी| उस पल तो अरुण का दिल किया कि झट से उसके पास आते उसे अपनी पनाह में ले ले लेकिन कुछ था जो उसे उसके सामने नही आने दे रहा था| वह चाहता था कि जब किरन खुद उजला बनी है तो खुद ही वह सबके सामने आए और अपना सच सबके सामने रखे नाकि इस तरह से सबसे छिपाए|
अरुण सोचता सोचता उसी स्थान पर आ गया था पर ये देखकर वह हैरान रह गया कि अब वहां उजला नही थी| इधर उधर उसे खोजते हुए वह तुरन्त ही बाहर की ओर भागता है| वह उसे ढूंढ ही रहा था कि सहसा उसकी निगाह हॉस्पिटल के बाहर के हिस्से पर बने मंदिर की ओर चली गई जो था तो हॉस्पिटल के बाहरी हिस्से पर लेकिन उसका प्रवेश और निकास दोनों बाहर से ही था|
वह उधर हैरानगी से देख रहा था| मंदिर के बाहर कई भिखारी और बीमार लोगो की कतार थी| उजला वही के पास के ठेले से फल खरीदकर अब उनमे वो सब वितरित कर रही थी|
ये देखते अरुण मन ही मन ये सोचकर मुस्करा पड़ा कि दादाजी सही कहते थे किरन के बारे में| लेकिन जिसके दिल में इतना प्यार और स्नेह परायो के लिए भी है तो वह खुद के साथ क्यों परायो वाला व्यवहार कर रही है ?? क्यों नही सारा सच उससे कह देती ??
वह अभी भी उसकी नज़रो आए बिना उसे ही निहार रहा था| उजला उन सबको बड़े स्नेह से फल देकर अब बाहर जाने को होने लगी तभी कुछ कुत्ते आकर उसे चारो ओर से घेर लेते है| ये देखते अरुण तुरंत चौकस होता उसकी मदद करने बस उसके सामने आने ही वाला था कि सहसा वहां का दृश्य ही बदल गया|
वे स्ट्रीट डॉग उसके आगे पीछे घूमते हुए अपनी दुम तेजी से हिला रहे थे| ये उनका उसके प्रति स्नेह दिखाने का तरीका था| अरुण अब अगला दृश्य देखता और भी हैरान रह जाता है| उजला अब किसी अन्य दूकान के सामने खड़ी बिस्किट के ढेरों पैकेट खरीद रही थी ऐसा करते उसका ध्यान इस बात पर भी जाता है कि उजला अपने पर्स का लगभग पैसा निकाल चुकी थी और शेष पैसे हथेली में लिए घोर निराशा से उन्हें अपनी मुट्ठी में बंद किए आगे बढ़ जाती है|
कितना स्नेह है उसे सबसे ! ये देखते उसे अपनी किरन से और भी प्रेम हो जाता है| वह बिस्किट उन्हें खिलाकर फिर से बस स्टैड की ओर बढ़ जाती है| अरुण फिर से उसके पीछे पीछे हो लेता है|
वह सुनिश्चित बस के आते उसमे चढ़ जाती है| अबकी बस और भी भीड़ से भरी थी लेकिन इसके बावजूद अरुण उसे एक पल को भी उसे अपनी नजर से ओझल नही होने देता| उजला को अब जगह नही मिली थी जिससे वह खड़ी खड़ी पसीना पोछती आगे की ओर देख रही थी| तभी टिकट कंडेक्टर अरुण के पास आता है और वह चुपके से उसकी जेब में कुछ नोट डालते धीरे से उसके कान में कुछ फुसफुसाता है जिसपर वह पहले आश्चर्य होता है तो फिर आगे की ओर देखता मुस्करा देता है|
उजला अचानक से देखती हैरान रह जाती है कि कंडेक्टर उसके लिए बैठने की जगह बनाता हुआ उसे बैठने को कहता है इसक्र लिए वह एक आदमी को उठाते हुए कहता है –
“ए तेरो को दिखता नहीं कि एक लेडी खड़ी है और तू बैठा है – चल उठ जल्दी से |”
वह एक मोटा व्यक्ति था जो आराम से बैठा बस झपकी लेने जा रहा था जिसमे अब खलल पड़ चुकी थी जिससे वह भुनभुनाते हुए बोल उठा –
“तो मैं लेडिज वाली सीट में थोड़े बैठा हूँ – मुझको भी बैठना है |”
“ए सिंगल टिकट डबल सवारी जल्दी से जगह खाली करो नही तो अभी काटूँगा डबल टिकट |”
कंडेक्टर की हुडकी पर मोटा व्यक्ति मुंह बनाते हुए आखिर अपनी सीट छोड़कर उठकर पीछे चल दिया जहाँ अरुण खड़ा था और अपने बगल की सीट खाली होने पर भी खड़ा हुआ था| ये देखते वह मोटा एक नज़र अरुण को देखता हुआ तुरंत लपककर सीट यूँ हथिया लेता है जैसे उसने बहुत बड़ा युद्ध जीत लिया हो| ये देख कर अरुण धीरे से हँस दिया था|
उजला के कितना भी इनकार करने पर कंडेक्टर उसे बैठा ही देता है बल्कि उसकी टिकट भी नहीं काटते हुए कहता है –
“अभी इस वक़्त को लेडिज की टिकट फ्री है |”
ये सुनते एक अन्य लेडी तुरंत फुदकती पूछ उठी –
“क्या सच में सारी लेडिज के लिए फ्री है टिकट ?”
कंडेक्टर एक उड़ती नज़र अरुण की ओर डालता है जो नज़रो से ही उसे संकेत करता है जिसके बाद वह थोडा और गंभीरता से बोलता है –
“हाँ आज अभी इस ट्रिप के लिए ये ऑफ़र है – सारी की सारी लेडीज के लिए फ्री बस सेवा और साथ ही कोल्ड ड्रिंक भी |”
ये सुनते उसके आस पास की सवारियां हैरान रह जाती है| जब कंडेक्टर बस रुकवाकर सभी लेडिज के हाथो में कोल्डड्रिंक पकड़ा देता है तो कुछ एक आद आदमी तुनकते हुए बोल उठे –
“क्यों भाई हम पुरुषो से नाराज हो गया – हमे भी कभी ये सेवा दे दिया करो |”
“चुप करो – ये लेडीज स्पेशल सेवा है – तुम उतरकर चाय पी लेना वो भी अपने पैसे से |” कंडेक्टर के ऐसा कहते बाकी की सवारियां हँस पड़ती है जबकि वह आदमी खिसिया जाता है|
उजला का तो पता नही पर बाकि की लेडीज फ्री टिकट और कोल्डड्रिंक पाकर बहुत निहाल हो उठी थी|
***
अपने सुनिश्चित बस स्टॉप पर उजला ज्योंही उतरती है अरुण भी चुपके से उसके पीछे पीछे उतर जाता है| अब वह फिर से उसी जगह थे जहाँ से उसने यात्रा स्टार्ट की थी| उजला साढ़े कदमो से अब पैदल चली जा रही थी| वह सड़क के किनारे किनारे चल रही थी कि अचानक एक कार आकर ठीक उसके बगल में रूकती है जिससे वह हड़बड़ाकर उसे देखने लगती है|
उस वक़्त चोर निगाह से वह बड़ी मुश्किल से कार की ड्राइविंग सीट की ओर नज़र उठाकर देखती है|
“कहाँ जा रही थी या कही से आ रही थी..?”
वह अरुण था जो बस से उतरते ही अपनी कार लेकर अब ठीक उजला के बगल में खड़ा किए ताव भरे स्वर में उससे पूछ रहा था|
उसे लगा शायद अब कुछ वह बोलेगी लेकिन वह चुपचाप उससे नज़रे बचाती हुई खड़ी रही| उसकी ऐसी हालत देख उसे मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था| उसे लगा वह झूठ बोलेगी पर यहाँ तो वह मौन धारण करके ही बैठ गई| वह भी अब उसे यूँ घूरने लगा मानो मन ही मन कह रहा हो कि तुम्हारा मौन मुझे ही तोड़ना पड़ेगा|
तभी पीछे से अन्य कार के हॉर्न से उसकी तन्द्रा टूटी और वह उसे जल्दी से कह उठा – “चलो बैठो |”
उजला बुरी तरह से सकपका गई थी| वह कार में पीछे की ओर बैठने लगी तो अरुण झट से बगल की ओर झुकता हुआ उसे आगे बैठने का इशारा देता है| वह भी चुपचाप आगे बैठ जाती है|
कार अब मेंशन की ओर चल दी थी| वह स्टेरिंग घुमाते घुमाते चुपके से उसे देख लेता और उसके अगले ही पल उसकी ख़ामोशी को देखते मन ही मन भुनभुना जाता|
मेंशन वहां से ज्यादा दूर नही था पर अरुण उसके साथ कुछ और पल बिताने जानबूझकर कार को लम्बे रास्ते से ले जाता है| वह कार काफी स्पीड में चला रहा था और हर मोड़ पर झटके से कार को टर्न डे देता| वह चाहता था कि उजला कुछ तो बोले पर वह तो जैसे सामने देखती एक लम्बी ख़ामोशी ओढ़े बैठी थी| इधर अरुण मन ही मन भुनभुनाया जा रहा था|
वह अब कार को एक सुनसान रास्ते पर ले जा रहा था पर आगे एक नई आफत उसका इंतजार कर रही थी ये उसे कहाँ पता था| ट्रेफिक लाइट पर रुका हुआ वह सामने की ओर देख रहा था जबकि उसके बगल की कार का ड्राईवर उसे बुरी तरह से घूर रहा था| उस अन्य कार का सवार अपनी अन्य सवारी से जल्दी से बोलता है –
“केकड़ा भाई – ये तो वहीच श्याना है – आप बोलो तो आज इसे घेरे !”
और इसके साथ ही वो कार का ड्राईवर इशारे पर अपनी कार अरुण के पीछे लगा देता है| उस कार के अंदर केकड़ा भाई बैठा था जो सच में आज अरुण को घेरने का मन बना चुका था| वह फोन से अन्य गुंडों को बुलवा रहा था|
अरुण एक अन्य टर्न पर कार बस उस जगह से निकाल ही लेने वाला था कि केकड़ा भाई अपनी कार जल्दी से उसके आगे लगा देता है इससे अरुण एक दम से ब्रेक लगाते हुए कार रोक देता है| उजला भी तेजी से आगे की ओर झुकती डैशबोर्ड से टकराती टकराती बचती है|
पल में ही वे सारे गुंडे अरुण की कार के आगे उससे रोकते खड़े हो जाते है| ये देख उजला बुरी तरह से घबराकर अरुण की ओर देखती है लेकिन उसकी निगाह तो बस उन्ही गुंडों की अगली प्रतिक्रिया पर थी| ववह चाहता तो तेजी से वहां से किसी तरह से बच कर निकल सकता था लेकिन उन्हें क्या पता था कि उसने क्या सोच रखा है !! अब ब्रेक पर अपना पैर जमाए हुए था…
क्रमशः……