
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 111
बहुत कुछ सिर्फ निगाहों की भाषा से कहा और समझा जा सकता है उसके लिए शब्द जैसे नगण्य होते है| अरुण के लिए वर्तिका की बेचैनी जैसे पुनर्जीवित हो उठी, उसपर उसे घायल देखते तो वह अपना आपा खोती योगेश और नर्स को चिल्ला कर आवाज देने लगी|
वह उस पल इतनी बेसब्र नजर आ रही थी कि उसकी हालत अपने आप में मौन ही बहुत कुछ कह दे रही थी| आदित्य तो अपनी जगह थमा रह गया| उजला के हाथ भी अरुण की पीठ से सरक गए|
अब तक योगेश वर्तिका की आवाज सुनते आ पहुंचा था| उसे थामे वह तुरन्त ही ड्रेसिंग रूम में उसे लाता बुरी तरह से हडबडा रहा था| खून अभी भी उसकी पीठ से निकलता उसकी शर्ट को तर करता जा रहा था|
“ये सब क्या है अरुण ? शर्ट खोलो पहले – देखे घाव कितना गहरा है ?” कहता हुआ योगेश इससे पहले उसकी शर्ट तक हाथ पहुंचा पाता उससे पहले ही वर्तिका तुरंत उसकी शर्ट का बटन खोलते खोलते रुआंसी होती कहे जा रही थी –
“कितना खून बह रहा है – किसने किया तुम्हारे साथ ऐसा ?”
कहती हुई वर्तिका उसकी शर्ट को खुद ही उतार रही थी| और कोई वक़्त होता तो अरुण उसे ऐसा करने से रोक लेता पर दिलजले आशिक की कोई हद नहीं होती| वह वर्तिका को मौका दे रहा था और उस बात का दर्द कही और तलाश रहा था| उस वक़्त जितनी बेकसी उनके चेहरे पर थी उसकी दस प्रतिशत भी अरुण के हाव भाव में नहीं थी उसकी नज़र तो दरवाजे की ओट में खड़ी उजला पर थी| उसके दिल पर क्या गुजर रही थी ये देखने अरुण की नज़र बस उजला पर ही टिकी थी जबकि आदित्य वह भी अपनी जगह पर जमा रह गया| अभी तक में ये पहली बार था जब उसने वर्तिका को किसी के लिए इस कदर बेचैन देखा| और ये बेचैनी दोस्ती से कही ऊपर लग रही थी|
योगेश उसके घाव को रुई से दबाते हुए कहने लगा – “घाव ज्यादा गहरा तो नहीं है लेकिन खून रोकने के लिए दो तीन स्टिच तो लगाने ही पड़ेंगे – देख दर्द होगा – बोल तो पहले एनिस्थिसिया दे दूँ ?”
“नही कोई जरुरत नहीं है – मैं भी दर्द की बेइंतहा लिमिट देखना चाहता हूँ |” कहते हुए वह एक गहरी नज़र उजला के चेहरे की ओर डालता है जो नज़रे झुकाए खड़ी थी|
ये बात अलग थी कि उसकी बात की गहराई अभी तक कोई नही समझ पाया था| योगेश उसकी पीठ पर स्टिच लगाकर वार्डबॉय की मदद से उसकी पट्टी कर रहा था| अब पट्टी कर चुका तो योगेश उसी नाराज़गी से उससे पूछने लगा –
“पहले ये बता ये सब हुआ कैसे – किसकी इतनी हिम्मत हो गई कि तुझपर वार कर दिया – ऐसा कर पहले तो पुलिस को सूचना देते है फिर….|”
योगेश को बीच में ही टोकते हुए अरुण कहता है – “पुलिस को ही सूचना देनी होती तो फिर तेरे पास क्यों आता – फालतू में छोटी सी बात का बतंगड़ बन जाएगा |”
“ये तुझे छोटी बात लग रही है !! यार तुझपर हमला हुआ है और ऊपर से एक तू है कि बिना सिक्योरटी से निकल जाता है |”
योगेश की बात के आगे वर्तिका भी कहने लगी – “हाँ अरुण – तुम्हे पुलिस को तो बताना चाहिए – आखिर मालूम तो पड़े कि वो कौन लोग थे – वे फिर से भी ऐसा कर सकते है !”
“कुछ ख़ास नहीं है – मुझे पता है एक छोटी सी बात के कारण वे अपनी खुन्नस निकाल रहे थे |”
“कैसी छोटी बात ?”
“एक बार जब मैं गरबा गया था तब इन गुंडों से एक लड़की को बचाया था बस यही कारण है |” अरुण किस जगह की बात कर रहा था उसका सीधा अहसास जैसे उजला के दिल की गहराइयों में उतरता चला गया| वह कसकर अपना पल्लू थामे यूँ खड़ी थी मानो वह पल्लू उसका बेक़रार दिल है जो धड़कता हुआ सीने से निकलने को बेचैन हुआ जा रहा था| वह अब जानकर उसकी ओर से पीठ किए खड़ी थी जबकि वर्तिका अरुण के बेहद पास खड़ी अपने स्पर्श से उसकी चोट सहला रही थी जैसे वह चोट उसे लगी हो|
पट्टी हो जाने के बाद अरुण ज्योंही उठने का उपक्रम करने लगा तो योगेश उसे रोकते हुए कह उठा – “रुको मैं खुद तुम्हे छोड़कर आऊंगा |”
“इसकी कोई जरुरत नहीं है |”
“पागल न बन – मैं चल रहा हूँ तुझे छोड़ने बस |”
“अगर हेल्प ही करनी है तो ऐसा कर अपनी शर्ट दे दे मुझे – ऐसी शर्ट में जाऊंगा तो बेवजह हंगामा मच जाएगा |” कहते हुए अरुण जबरन योगेश की शर्ट उतारने लगता है|
“अबे – अबे क्या कर रहा है – तेरी तरह कोई बॉडी सोडी नहीं है मेरी जो बिना शर्ट घूमता फिरूं – ये छोड़ दूसरी शर्ट देता हूँ मैं |” योगेश बच्चो की तरह अपनी शर्ट को उसके हाथ से छुड़ाते हुए कहता है|
“तो तू अपनी क्लिनिक में कपड़े भी रखता है क्या ?”
“हाँ एक नहीं कई है – |”
कहता हुआ योगेश उठकर अपने केबिन की ओर जाने लगता है तो अरुण भी उसके पीछे पीछे चलता हुआ उसकी केबिन तक जाता हुआ कह रहा था –
“तू कपड़े क्यों रखता है क्लिनिक में ?”
इसपर योगेश उसकी तरफ एक अजीब नज़र से देखता हुआ कहता है – “पड़ जाती है जरुरत है खैर अब ये तेरे जानने का मैटर नहीं है – ले पकड़ ये टीशर्ट पहन ले – देख अभी भी कहता हूँ – मैं चल कर तुझे छोड़ दूंगा और रही तेरी कार की वो ड्राईवर से पहुंचवा दूंगा |”
“बोला न – नहीं तो नहीं |” कहता हुआ अरुण टीशर्ट पहनना हुआ उसके केबिन से निकलने लगता है| वह तुरंत ही उजला के पास आता उसे कहता है –
“चलो – |” वह भी चुपचाप उसकी आज्ञा मानती उसके पीछे पीछे चल देती है| अरुण अपनी कार तक पहुँचता ड्राइविंग सीट में पहुँचता है तो उजला को बगल में बैठने का संकेत करता है|
उसे ऐसा करते अब वे दो जोड़ी निगाहे अपलक देखती रही|
“बहुत जिद्दी है – ऐसी सिचुवेशन में खुद ड्राइव कर रहा है |”
योगेश जो कह रहा था वर्तिका उससे अलग सोचती कह रही थी –
“पर अरुण के साथ वो थी कौन ?”
वह प्रश्न करती हुई योगेश की ओर देखती है जिसपर अरुण कंधे उचका देता है|
अब अरुण की कार वहां से जा चुकी थी| उसके जाते जैसे वह भी अपने वर्तमान में वापस आती अपने अगल बगल देखती है| आदित्य ठीक उसके पीछे खड़ा था|
“तुम अभी भी यही हो – मुझे लगा चले गए |” वर्तिका आश्चर्य से पूछती है|
पर आदित्य उतनी ही दिलकशी से जवाब देता है – “जहाँ छोड़ कर गई थी वही तो खड़ा हूँ |”
योगेश वापस अपने क्लिनिक में चला गया था तो वर्तिका चुपचाप बाहर जाने का उपक्रम करने लगी| उसके पीछे पीछे आदित्य भी जाने लगता है|
***
शाम से रात हो गई थी और अरुण की कार अभी भी मेंशन की ओर नही मुड़ी थी| लेकिन इस बात की बेचैनी उजला के हाव भाव में कतई नही थी| उसका सारा सुकून तो उसके साथ था|
अचानक अरुण कार को ब्रेक लगाता है तो उजला खिड़की से बाहर देखती है वो जगह मेंशन तो नहीं थी फिर…!! वह अब अरुण की ओर देखती है जो उसी की ओर देख रहा था| इस तरह उसकी ओर सीधा देखने से उसकी धड़कने धौकनी की तरह चलने लगी| वह होंठ काटती हुई नज़रे झुका लेती है|
तभी सहसा वह चौंक गई| अरुण उसकी ओर झुक रहा था| अब तो उसका दिल मानों हलक से बाहर ही निकलने को बेचैन हो उठा| उसकी साँसे गले में अटक गई तो होंठ अचरच करते खुले रह गए|
अरुण उसकी ओर झुकता हुआ उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ लेता है| उजला सांस रोके देखती रह गई कि आखिर वह करने क्या वाला था ? अरुण उसकी साड़ी का पल्लू अपने हाथ में लिए था जो उसके खून से तरबतर हुआ नज़र आ रहा था| वह झटके से उसके पल्लू का वो हिस्सा फाड़कर अलग कर देता है| उजला आश्चर्य से देखती रह जाती है|
अगले ही पल उसका पल्ला छोड़ते हुए वह अपनी तरफ से उतरता हुआ उजला को भी उतरने का संकेत करता है|
वह फिर चुपचाप उसकी बात मानती हुई उतरकर उसके पीछे पीछे चलने लगती है| वह कोई साड़ी की दूकान थी जिसके बाहर अरुण ने कार खड़ी की थी|
अब दूकान बंद करने का समय हो रहा था जिससे दुकान में उनके सिवा कोई नहीं था पर ग्राहक के आते दुकान के सेल्समैन फिर से चेतन हो जाते है और उनकी आवभगत करते हुए उनकी नज़रो के सामने कई साड़ियाँ बिखेर देते है|
अरुण आगे बढ़कर नजर घुमाकर चारो ओर देखता है सच में वह साड़ियों का महासागर था| गुजरात की हर किस्म की साड़ियाँ वहां सजी थी|
“सर ये देखिए कोटा का फ्रेश माल है – एकदम अनछुई साड़ी है|”
सेल्समैन अपनी दिखाई साड़ी की ओर अरुण का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश करता है पर अरुण की निगाह तो जैसे कुछ ख़ास तलाश रही थी| इन सबके बीच उजला चुपचाप बहुत पीछे खड़ी थी|
अचानक एक शो केस की साड़ी की ओर वह संकेत करता है और पल में वह साड़ी वहां से निकालता हुआ सेल्समैन कह रहा था –
“क्या पारखी नज़र है आपकी – एकदम मास्टर पीस है – समझिए अपने आप में अनोखी है – मैम आप देखिए न – आपको भी पसंद आएगी – हथकरघा का काम है ये |”
सेल्समैन उजला की तरह देखता हुआ कहता है जो अभी भी उनकी तरफ अनिच्छा से देख रही थी| सेल्समैन उसकी ओर साड़ी बढ़ा रहा था और वह उसी तरफ देख भी नहीं रही थी इससे अरुण उजला के पास आकर उसे साड़ी लेने का आँखों से संकेत करता है|
इसपर भी जब वह टस से मस नहीं होती तो अरुण उसकी ओर झुकते हुए धीरे से कहता है – ‘मैं यहाँ तुम्हे कोई शोपिंग कराने नहीं लाया हूँ – साड़ी बदल लो नहीं तो ऐसी हालत में देखकर सब तरह तरह के सवाल करते रहेगे |’
इस पर भी उजला चुपचाप खड़ी रही| उसका मन अजीब सी उधेड़बुन में फसा था| वह समझ नही पा रही थी कि अरुण ये बात एक अनजान लड़की को कैसे बोली ? आखिर वह उसके लिए अनजान ही तो है !! वह खुद में गडमड हुई सोचती रही और अरुण उसे खामोश देखता रहा आखिर उससे न रहा गया तो वह उसके पास आता उसकी ओर झुकता हुआ दबी आवाज में हक़ से कह उठा –
“खुद बदलोगी या मैं बदलूँ !”
ये सुनते जैसे होश में आती वह अरुण की ओर देखती रही| उजला बडी बडी आँखों से अरुण को देख रही थी जो सेल्समैन से साड़ी लेकर उसकी ओर बढ़ा रहा था|
अब उजला चुपचाप साड़ी ले लेती है|
“मैम ट्रायल रूम इधर है |” वह एक ओर संकेत करता है|
उजला उस ओर चल देती है|
अरुण पेमेंट करके घड़ी की सुई सी धड़कन के साथ उसके बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था| अगले कुछ क्षण बाद वह बाहर आती है| वह इस वक़्त उसी साड़ी को पहने थी जो अरुण ने उसके लिए पसंद की थी|
हलके नारंगी और लाल के मिश्रण की वह बेहद खूबसूरत साड़ी थी, उजला ने भी साड़ी कुछ इस तरह पहनी थी मानो साड़ी ने उसकी देह से लगते ही उसके कटीले बदन का आकार ले लिया हो| वह चाहकर भी अपनी नज़र उसपर से फेर नही पाया लेकिन जब वह सर उठाकर उसकी ओर देखती है तो अरुण को जबरन अपनी नज़रो के कान खींचने पड़ते है|
पर आहो का क्या वो तो हौले हौले दिल के भीतर सुलगती रही|
अब कार मेंशन की ओर चल दी थी|
क्रमशः………………………………..
Bahut hi badhiya part tha ye wala bhi hamesha ki tarh.dil ko chu lene wala
Wow … Too good……
💕💖