
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 112
कार मेंशन में रुकी तब तक काफी रात हो चुकी थी जिससे मेंशन की हलचल शांत थी| कार के रुकते एक ओर से अरुण तो दूसरी ओर से उजला उतरते है| इस उपक्रम में वे अपनी छुपी नज़र से एकदूसरे की ओर देखकर भी एकदूसरे से अनजान बने रहते है| उजला चुपचाप अंदर चली जाती है| उसे जाते हुए देखते अरुण की भवे जैसे तन जाती है|
आखिर कितना मौका दिया उसने फिर भी वह पूरी तरह से खुद को खामोश किए रही| आखिर ऐसा क्या सच है जो वह नही बता रही| या कोई जिद्द है उसकी| सोचते हुए उसका जबड़ा कस जाता है| अगर ये जिद्द है तुम्हारी तो इस जिद्द को तोड़ने की भी मेरी जिद्द है – किरन| मन ही मन खुद को समेटता अब वह भी अपने कमरे की ओर तेजी से बढ़ जाता है|
इसके विपरीत उजला के मन में कुछ अलग ही उथल पुथल मची हुई थी| उसे अभी कहा पता था कि अरुण उसे पहचान गया है इससे उसका उजला के प्रति झुकाव भी उसके मन को अनजानी टीस से भर दे रहा था| कैसे खुद को संभाले और क्या कह का खुद को समझाए ? जिसका सारा प्यार चाहिए उसकी जरा सी भी नजदीकी आज उसके मन में टीस भर दे रही थी| मन तो कर रहा था कि जाकर सारा सच कह दे और अपना मन इस दर्द से खाली कर ले|
वह उदास मन से चली जा रही थी| वह खुद में इतनी डूबी थी कि सामने से आते हरिमन काका को भी नही देख पाई तो वे उसे टोकते हुए कहते है –
“अरे बिटिया – कहाँ थी आज सारा दिन – क्षितिज बाबा बहुत पूछते रहे तब हम यही कह कर समझा दिए कि हॉस्पिटल गई है तबियत दिखाने |”
वे कहे जा रहे थे और उजला उदासी से हामी में सर हिला रही थी|
“अच्छा चलो खाना खा लो – छोटे मालिक भी अभी बाहर से आए है – हम उनका खाना कर अभी आते है तब तक तुम अपना खाना परोस लो बिटिया |”
रात होने की वजह से काफी लोग अरुण और उजला का साथ में आना देख नही पाए थे|
रसोई में दोनों साथ में जाते है| उजला अरुण की थाली लगाने में काका की मदद करती करती पूछती है –
“काका एक बात पूछूँ ?”
“हाँ हाँ पूछो बिटिया |”
“ये वर्तिका कौन है ?”
“वर्तिका बिटिया तो बिटवा की बचपन की दोस्त है |”
“बस दोस्त ?” हिम्मत करके वह पूछ लेती है|
“अब का बताए – समझो बहुत ज्यादा वाली दोस्ती थी – कभी भी किसी वक़्त वो आती और सीधे बिटवा के कमरे में चली जाती – कोई रोक टोक नही थी – वो तो शादी भी करना चाहती थी |”
उजला काका की ओर से चेहरा फेरे किसी तरह से अपने आंसू रोके थी|
एक गहरा शवांस छोड़ते हुए आगे कहते है – “पर भाग्य को तो कुछ और ही मंजूर था – ये शादी हो जाती तो बहुत अच्छा होता – कम से कम ये अकेलापन ये दुःख न भोगना पड़ता बिटवा का – बड़ी मनहूस रही ये शादी – एक तरफ बिटवा को ढेरों दर्द मिला तो दूसरी ओर दादाजी भी उसकी वजह से घर छोड़कर चले गए – बडी बुरी लड़की थी – हम तो कहते अब वो कभी वापस भी न आए – बड़ी मुश्किल से बिटवा ने खुद को संभाला है – वैसे जो अपने माँ बाप की सगी न हुई तो किसकी सगी होती – बाप बिचारा आज भी अस्पताल में है और उस लड़की का कुछ अता पता नही – देखना सबको दुःख देकर वो भी कभी खुश नही रहेगी |”
अचानक उसकी दर्द की हिलकी निकल गई जिसपर काका उसकी ओर देखते हुए बोले –
“अरे बिटिया तुम सुनकर ही दुखी हो गई तो सोचो जिसपर बीती उसका क्या हुआ होगा – चलो हम खाना देकर आते है |” गहरा उच्छ्वास खींचते हुए वे कहते है|
काका थाली लेकर बाहर निकल जाते है पर उन्हें क्या पता था अनजाने में वे उन दर्द्ली परतो को कुरेद गए जिसकी सबसे ज्यादा भुगत भोगी तो वही थी| वह बिना खाना लिए कमरे में चली जाती है|
अरुण कमरे में आते चेंज करके बैठा ही था कि दरवाजे की आहट पर झट से दरवाजे की ओर देखने लगा| अनजाने ही उसे बस उसका इंतज़ार था| लेकिन उसकी जगह काका को देखते वह बेखबर बना रहा| वे मेज पर खाना लगा रहे थे| उनको खाना लगाते देख उसे उजला के खाने का भी ख्याल आता है पर सीधे तो पूछ नही सकता था इससे वह अनभिज्ञ बना उनसे पूछता है –
“काका इतनी रात आप क्यों जगे – उजला को भेज देते |”
“अरे वो खुद अभी बाहर से आई तो उसे भी खाने को बोल कर आए है – और कुछ चाहिए बिटवा ?”
“काका आप उजला का खाना और दवाई देख लीजिएगा – पिछली बार वीकनेस से बीमार पड़ी थी |” अरुण अपनी बात जानकर भरसक रुखाई से कहता रहा – “और हाँ इसके बाद एक कॉफ़ी भिजवा दीजिएगा – अगर उजला फ्री हो जाए तो उसी से बनवाकर भेज दीजिए |”
“अच्छा ठीक है|”
कहते हुए वे बाहर को निकल जाते है|
वापस आकर उजला की लगी प्लेट ज्यो की त्यों देखकर काका उसके लिए भी प्लेट लगाकर उसके पास चल देते है| वह अभी भी उसी साड़ी में चुपचाप बैठी थी| गुजरा हर एक लम्हा जैसे चलचित्र सा उसकी आँखों के सामने चल रहा था|
कैसे अरुण उसके और उन गुंडों के बीच आ गया और कितनी आसानी से उसने इतने सारे गुंडों को पल में धूल चटा दी तो फिर पहले क्यों वह उन सबके आगे कमजोर पड़ रहा था ? उसी पल योगेश के क्लिनिक का पल भी उसकी आँखों के सामने तैर गया जब वर्तिका अरुण के कितने पास थी और हक़ से उसकी शर्ट को उसके शरीर से अलग कर रही थी तब मन किया दौड़ जाए और सबको पीछे धकेल दे| लेकिन जो हक़ उसका है वो उसकी भी हकदार नही|
माना वह नहीं अपना हक़ निभा पाई लेकिन अरुण ने वर्तिका को क्यों नही रोका ? क्यों उसे अपने इतने पास आने दिया ? कही सच ही तो नहीं कह रहे सब कि मैं ही इस घर के लिए मनहूस रही, सब कुछ मेरी वजह से बर्बाद हो गया| तो आखिर किस हक़ से रहूँ मैं इस घर में जब किसी को मेरी जरुरत ही नहीं| सोचते हुए एक बूँद उनकी बंद पलकों के बीच से उसके कपोल पर से लुढ़क गई|
“बिटिया खाना क्यों नही लिया ?”
काका की आवाज पर वह जल्दी से खुद को संभालती हुई कहती है – “वो मन नही हुआ |”
“क्यों बिटिया – तबियत तो ठीक है न ?” काका स्नेह से उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहते रहे – “समझता हूँ – अपने याद न आने वाले कल पर दुखी हो जाती होगी तुम – ये सोचो बिटिया सब ईश्वर की मर्जी से होता है – कल जो हुआ और आज जो हो रहा है सब ईश्वर की ही मर्जी है |”
“तो क्यों ऐसी मर्जी रही भगवान् की ? इससे अच्छा वे मेरा जीवन ही खत्म कर देते |”
“न न बिटिया – ऐसे नही कहते – इस संसार में कान्हा की मर्जी के बिना कुछ नही होता |”
“तो क्या मर्जी है उनकी ?” बिलखती हुई पूछ उठी|
“वो तो वही जाने बिटिया पर हमका तो इतना पता है कि तुम तो इस घर के लिए जैसे ख़ुशी बनकर आई – वो ख़ुशी जो बड़ी मालकिन के जाने के बाद से इस घर से सदा के लिए जा चुकी थी – उनके जाने के बाद से कभी हमने परिवार को साथ में बैठा नहीं देखा – ऐसा लगता है जैसे जो कुछ बिगड़ा था तुम्हारे आने भर से वो सब ठीक होता चला गया – तुम तो खुद में साक्षात् लक्ष्मीस्वरूपा हो – इस घर की खुशियों के बदले में हम ईश्वर से तुम्हारे लिए ढेरों दुआ मांगते है – सदा खुश रहो बिटिया |” कहते हुए वे उसके सर पर हाथ फिराते रहे|
उजला उन्हें ऐसा करते आश्चर्य से देखती रही| आखिर यही हाथ अभी कुछ देर पहले उसके लिए बद्दुआ दे रहे थे और अब वही उसके लिए दुआ करते उठ रहे है| वह मन ही मन बिलख उठी ‘हे मेरे भगवान् आपने किस दुविधा में मुझे फसा दिया है – ये ऐसा बंधन बन गया है जो न छोड़ता है और न बढ़कर थामता ही है !!’
काका आखिर उसे मनाकर खाना खाने को राजी करके उसे प्लेट देकर चले जाते है| जाने से पहले वे कॉफ़ी लेकर अरुण के कमरे में जाने की बात भी कह जाते है|
***
खाना जैसे तैसे निगलते वह किचेन में कॉफ़ी बनाने चली जाती है| कॉफ़ी बनाकर वह ट्रे लिए अरुण के कमरे की ओर बढ़ रही थी| उसका कमरा बंद था| वह हलके से दरवाजे को धक्का देकर अंदर प्रवेश करने लगती है पर दरवाजा खुलते एकदम से तेज धुंए का भभका उसके चेहरे पर पड़ता है जिससे वह बुरी तरह चिहुक उठती है|
कमरा बुरी तरह से धुंए और गंध से अटा पड़ा था| उजला को सहज ही विश्वास नही आया| वह इस धुंए को पहचान सकती थी| ये धुँआ सिगरेट का था तो कमरा शराब की गंध से बुरी तराह महक रहा था| उसकी आँखों को सहज ही विश्वास नही आया| वह दरवाजे पर ही अवाक् खड़ी देखती रह गई| कमरे में चारो ओर जली हुई सिगरेट की बड और खाली बोतल फर्श पर लुढकी पड़ी थी|
ये सब देखते उजला के पैर देहरी पर ही जमे रह गए|
“क्यों ? क्या हुआ ?”
धुंए के बीच से उसे अरुण की आवाज मिलती है तब जाकर उसकी तन्द्रा भंग होती है और उसका ध्यान अपने ठीक सामने फर्श पर लुढ़क रही एक खाली बोतल की ओर जाता है जो बार बार हवा में लुढ़कती सिगरेट के जले टुकड़े से टकरा जा रही थी|
अरुण शराब से भरा गिलास लिए उसकी ओर बढ़ता है जिससे वह सहम जाती है| अरुण अब ठीक उसके सामने खड़ा एक नज़र से उसे फिर उसके हाथ की ट्रे की ओर देखता है|
“ये क्या है ?”
तेज धडकनों की आवाज ने उजला के शब्दों को दबा दिया| वह अपनी सहमी नज़र नीची किए हुए थी जिससे उसकी नज़र अपने ठीक सामने खड़े अरुण पर नहीं गई जो अपनी आँखों में बेहद आक्रोश भरे उसी को घूर रहा था|
अगले ही पल वह तेजी से अपनी दोनों बाँहों को दीवार पर टिकाए उसके बीच में उजला को घेर लेता है| अकस्मात हुए इस व्यव्हार पर उजला बुरी तरह घबरा जाती है जिससे उसके हाथो पर रखे कप प्याली भी थर्रा उठती है|
अरुण की लाल ऑंखें उजला का चेहरा घूर रही थी तो उसकी गर्म साँसे उसके माथे पर लगातार गिर रही थी| जिससे उन दोनों के दिलो की बेचैनी और भी बढ़ने लगी| उजला मन ही मन उलझी थी कि जाने अब क्या होगा तो वही अरुण पूरी तरह से आग्नेय नेत्रों से उसे घूरता हुआ बोल रहा था –
“मेरी शराब – मेरी सिगरेट छुड़वाना चाहती थी न तुम !! सुधारना चाहती थी मुझे !! क्यों !! मैं आज जानना चाहता हूँ कि क्यों – आखिर क्यों ?” आखिरी शब्द अरुण ने इतनी तेजी से कहा कि उजला एक पल को काँप गई जो प्यालियों के आपस में टकराने की आवाज से अहसास हुआ|
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ?”
“ये ये मेरा फर्ज ही था – इसके अलावा और क्या ..?” कांपती आवाज से आखिर वह बोल पड़ी|
“इस अलावा को ही तो मैं जानना चाहता हूँ – बोलो –|”
“म मुझे जाने दीजिए |”
“मुझे जवाब चाहिए तुम्हारे इस फर्ज के नाम का – आखिर किस रिश्ते से किस हक़ से ये फर्ज है तुम्हारा – बोलो जवाब दो |” अबकी अरुण उजला की ओर थोड़ा और झुक जाता है जिससे वह बुरी तरह सहम जाती है|
अब उसकी गर्म साँसे वह अपनी उफनती साँसों के साथ महसूस कर रही थी| वह उसके इतने पास था कि उजला नज़र उठाकर भी उसकी ओर नही देख पायी| बस उसकी शर्ट के उपरी खुले बटन पर दिखते सीने पर उसकी सहमी नज़र ठहरी थी| अब उसकी उफनती साँसे अरुण के सीने पर लगातार गिर रही थी|
दोनों की धड़कने जैसे रिदम में धड़क रही थी| एक दूसरे के सीने से उभरते गिरते भार पर उन दोनों की नज़रे पल भर को ठहर गई थी|
कान तो बस यूँही शब्द सुन रहे थे|
वह फिर से हिम्मत करके बोलती है – “मुझे जाना है |”
“तुम जवाब नही दोगी पर मैं तुम्हे निरुत्तर नहीं भेजूंगा|” कहते हुए अरुण उसकी पास से हटकर सीधा खड़ा हो जाता है| शराब का गिलास अभी भी उसके एक हाथ में था जिसे पल में वह उस कप पर पूरा उड़ेल देता है| पल भर में पूरी ट्रे समन्दर की तरह नज़र आने लगती है| यही पल था जब उजला अपनी भीगी पलको से उसकी ओर देखती है|
“ये है मेरा जवाब |”
इतना कहकर वह गिलास फर्श पर तेजी से मार देता है| कांच टूटे दिल की तरह टुकड़ा टुकड़ा होकर चारो ओर बिखर जाता है|
क्या होगा आखिर उनकी मोहब्बत का ? क्या टूटा दिल कभी जुड़ पाएगा दुबारा ? जानने के लिए पढ़ते रहे बेइंतहा….
क्रमशः…………………….
Dil ki kasak … Kiran ka dard sab se bad k hai.. jise vo keh bhi nhi sakti💕🥺💖