Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 115

इस समय केबिन में दीवान साहब के सामने अरुण को सारी स्थितियां समझा दी गई| जरुरी निर्देश देने के बाद वे ब्रिज को बाहर जाने का संकेत करते है| उसके जाते अब उस कोंफ्रेंस रूम में अरुण के सिवा सिर्फ वे ही थे| वे उठकर टहलते हुए अपनी बात कहने लगे –

“अरुण तुम भावनगर जा रहे है और उम्मीद है कि तुम इस समस्या को कोई हल भी निकाल लोगे लेकिन अभी हाल के दिनों में जो कुछ भी हो रहा है उससे मेरे मन में एक अजीब सा डर पनपने लगा है |”

“डर !! कैसा डर डैड ?” अरुण हैरानगी से उनकी तरफ देखता है|

“ये बात मैंने किसी से नही कही यहाँ तक कि आकाश से भी डिस्कस नहीं की क्योंकि हो सकता है ये मेरा वहम ही साबित हो लेकिन अपने चालीस साल के अनुभव ने मुझे साहस के साथ साथ डरना भी सिखाया है – |”

दीवान साहब लगातार टहलते हुए अपनी बात कहे जा रहे थे और चेयर पर बैठा अरुण अचरच भाव से उन्हें सुन रहा था क्योंकि आज से पहले उन्होंने इस तरह की बात कभी नहीं की कम से कम उससे तो कतई नहीं की थी|

“तुम्हे सुन कर अजीब लग रहा होगा पर ये भी एक शास्वत सच है कि साहस से डर विलग नहीं होता – हर एक दिन सफलता की सीढियां चढ़ने वाले कदम हर घड़ी पीछे गिर जाने से डरते भी है लेकिन उस वक़्त खुद पर भरोसा और विश्वास ही उसके सबसे बड़े संबल बनते है – और यही मेरे साथ भी हुआ – मैंने हर एक दिन दीवान इंटरप्राइजेज को ऊंचाई में ले जाने की कोशिश की उसके साथ ही हर दिन इस ऊंचाई को बनाए रखने का डर भी मेरे साथ रहा – बस यही डर हर बार मेरे दिमाग में खलबली मचा देता जिससे मेरी मेहनत और दस गुना बढ़ जाती – करते करते आज जिस पोजीशन पर पहुंचा हूँ तो समझो इस ऊंचाई के साथ उस डर का समूह भी मेरे साथ है – तुम शायद अभी इस बात को समझ नही पा रहे होगे लेकिन मैं अपने चालीस सालो की कीमत समझता हूँ इसलिए डरता भी हूँ इस बुलंदी से नीचे झाँकने पर..|”

वे एक गहरे उच्छ्वास के साथ केबिन की खिड़की से उस बिल्डिंग की उंचाई पर नजर दौड़ाते हुए आगे कहते रहे –

“अरुण इसलिए चाहता हूँ कि मेरी इस ऊंचाई में कभी खलल न पड़े बल्कि शायद मैं जरा भी खलल बर्दाश्त भी न कर पाऊं – बस इस बात का ख्याल रखना |”

अरुण जो तब से शांत बैठा उनकी बात ध्यान से सुन रहा था| उनके मौन होते खड़ा होता हुआ उनकी ओर धीरे धीरे चलता हुआ आता कहता है –

“डैड – मैं आपके इन चालीस सालों की कीमत समझता हूँ और ये भी समझता हूँ कि इन वर्षों में उन सबकी मेहनत और विश्वास भी जुड़ा होगा जो शायद किसी गिनती में भी न आते हो पर एक इंटरप्राइजेज की नींव होते है जिनके मौन कंधो पर एक एक ईंट जोड़कर कोई सफलता अपना शोर करती है –|”

अरुण की बात पर दीवान साहब पलटकर उसकी ओर देखते रह गए जो अब उनके बेहद पास खड़ा था और खिड़की से नीचे उन हिस्से की ओर देख रहा था जहाँ से स्टाफ सेक्शन का ऑफिस का कॉरीडोर साफ़ साफ़ नज़र आता था| अब वे मौन उसकी नज़र से उस जगह को देखते रहे|

अरुण आगे कहता रहा – “मैं आपसे कोई वादा तो नहीं करता पर इतना जरुर विश्वास दिला सकता हूँ कि मैं किसी भी सही जगह कोई गलत फैसला नही लूँगा|”

उस वक़्त वे अरुण के हाव भाव में आए विश्वास को हैरानगी से मौन देखते रह गए|

***

वही इन सब पचड़ों से बेखबर मेनका विवेक के साथ थी|

“बोलो न क्या सरप्राइज है ?”

वह उसकी उदोलित बाहों में समाती हुई कहती रही – “तुमने कहा था कोई सरप्राइज है और अब मुझे बता नही रहे – क्यों सता रहे हो मुझे |”

विवेक उसे अपनी बाहों से किनारे लेता हुआ उसकी आँखों के सामने कोई पेपर लहराता हुआ कहता है – “ये है वो सरप्राइज |”

मेनका अतिउत्साह में उस पेपर को लेती हुई कहने लगी – “वाह अब क्या प्रेम पत्र टाइप करके दोगे !”

विवेक मेनका के चेहरे को गौर से देखता हुआ सपाट भाव से कहता है –

“ये हमारी शादी का एप्रूवल पेपर है |”

ये सुनते मेनका के चेहरे के सारे भाव एकदम से थम जाते है| वह अवाक् पेपर तो कभी विवेक की ओर देखती है|

“क्या हुआ ? आज ये कोर्ट से पेपर मिला है और कल को हम आराम से शादी कर सकेंगे – यही तो चाहते थे हम – क्यों है न ?”

“हाँ लेकिन….|”

“हाँ है तो लेकिन की क्या जरुरत ? कही ऐसा तो नहीं कि जिस बात को लेकर मैं जज्बाती हूँ उसे तुमने युही कह दिया हो ? अगर ऐसा है तो अपना रास्ता बदल लो मेनका – अभी भी समय है तुम्हारे पास |”

बेहद रुखाई से अपनी बात कहता हुआ विवेक मेनका के हाथ से वह पेपर लेता हुआ उसे फोल्ड करके अपनी पॉकेट के सुपर्द कर देता है| मेनका जो अब ठीक विवेक की नज़रो की सीध में खड़ी थी, वह विवेक को ऐसा करते देख एकदम से झिझक जाती है|

“नही विवेक – तुम मुझे गलत समझ रहे हो |” विचलित होती मेनका विवेक के बाजू थामती हुई बोलती है|

इस वक़्त दोनों बीच में मौजूद थे जहाँ वे अक्सर मिलते थे| शाम की हलकी नमी उस मौसम में समाई थी और दूर दूर तक बस समंदर की उफनती हुई लहरे ही नजर आ रही थी| बार बार लहरे तट तक आती और उसी तेजी से वापस हो जा रही थी| अब विवेक अपनी नज़रे उन लहरों की ओर करता हुआ कहता है –

“मेनका मुझे तुम्हारा एक टूक उत्तर चाहिए – हाँ या नहीं – तुम मुझसे शादी करोगी या नहीं !”

“ये क्या कह रहे तुम ? मैंने शादी के लिए कब मना किया बल्कि मैं तो खुश हूँ आखिर कितने प्रेम होते होंगे जिनकी मंजिल शादी होती होगी पर – पर विवेक…!”

“तो फिर ये हिचकिचाहट कैसी ?”

“विवेक मुझे शादी करने के लिए नहीं सोचना पड़ रहा है बल्कि मैं तो ये सोच रही हूँ कि इस शादी के मत में और विमत में कौन होगा ?”

“तो डरती हो समाज से !”

“बिलकुल नही – मुझे दुनिया की परवाह नही – मैं तो अपनी फैमिली के बारे में सोच रही हूँ – डैडी और आकाश भईया का तो नही कह सकती  लेकिन मुझे विश्वास है अरुण भईया और भाभी जरुर मुझे समझेंगे – मैं कम से कम उन्हें तो एक बार अपने मन की बात बता दूँ !”

“और अगर वे भी राजी नही हुए तब तुम क्या करोगी ?”

“विवेक तुम मेरी भाभी और अरुण भईया को नहीं जानते – उनके दिल में अमीरी गरीबी का कोई भेद नहीं है – वे तो..|”

“मेनका !” विवेक मेनका की हथेली अपनी हथेली के बीच दबाता हुआ कहता है – “याद है मेनका एक बार तुम्ही ने कहा था कि जिस दिन मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर जिधर चलने को कहूँगा तुम आंख बंद किए मेरे साथ चल दोगी |”

इसपर मेनका विवेक के पास आती उसके कंधे पर सर टिकाती हुई कहती है – “ये तो मैं आज भी कहती हूँ |”

“तो समझ लो मेनका वो वक्त आ गया है – अब तुम्हे अपना वायदा याद रखना होगा |”

“तुमसे कहा हुआ एक एक शब्द एक ठोस वायदा होता है और ये मैं तुम्हे दिखा दूंगी कि मैं तुम्हारे लिए जीती हूँ और तुम्हारे लिए मर भी सकती हूँ |”

कहती हुई वह पूरी तरह से उसकी बांहों के घेरे में समा गई थी|

***

शाम का समय था और वर्तिका अपने भाई के वापस आने के इंतज़ार में कभी कमरे में चक्कर काटती तो कभी लिविंग रूम तक टहलती चली जाती| बेचैनी में इधर उधर चक्कर काटती हुई वह बीच बीच में दीवार घड़ी की ओर भी ताक लेती| बेसब्र होती मोबाईल को गुस्से से देखने लगी उसकी स्क्रीन में अभी भी रंजीत का नंबर शो कर रहा था जिसे अभी कुछ मिनट पहले ही उसने मिलाया था|

वह अब दुबारा उसके नंबर को मिलाने जा रही थी कि तभी किसी के चलते कदमो की आहट पर उसकी निगाह ठीक सामने की ओर उठ गई|

“भईया..|” वह दौड़ती हुई छोटी बच्ची की तरह अपने भाई की बांह पकड़कर झूल गई|

“लो भई – आ गया अब बोलो |” कहते हुए वह उसके सर पर स्नेह से हाथ सहलाता है|

“लेकिन कितनी देर लगा दी – आपने बोला था पांच बजे आ जाएँगे और अभी क्या बजा है पता भी है ?” प्रश्नात्मक मुद्रा में अपने भाई का चेहरा देखती हुई बोलती है – “छह बज रहे है |”

“हाँ आज कुछ ज्यादा ही व्यस्त था लेकिन सुबह प्रोमिस किया था कि डिनर तक आ जाऊंगा तो आ गया न |”

“चलिए अभी आपको तैयार भी होना है – आपको पता है न कि आज आपको बाहर डिनर के लिए जाना है |” अपनी बात कहती कहती वर्तिका रंजीत का हाथ पकड़कर उसे उसके कमरे में ले जा रही थी और रंजीत भी बच्चों की तरह उसकी हर बात मान रहा था|

कमरे में आते वह रंजीत का हाथ छोड़कर वार्डरोब से कपड़े छाटने लगी| वह कई सूट निकालकर बेड पर फैलाकर उन्हें देखती हुई कहने लगी – “आज बहुत स्पेशल डे है तो आप बताईए कौन सा रंग ठीक रहेगा – मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा – वैसे आप पर तो सभी रंग बहुत अच्छे लगते है लेकिन मैं चाहती हूँ कि जब डॉक्टर ऊष्मा आपको देखे तो आपको देखती रह जाए – आखिर फस्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन होता है – बोलिए न भईया |” उत्साह में झूमती हुई वर्तिका रंजीत की ओर घूमती हुई देखती है जो एक हाथ से अपने गले की टाई उतार रहा था तो अपना दूसरा हाथ पेट पर रखे था |”
ये देखते उसे कुछ अटपटा लगा| 
“क्या हुआ भईया ?”
“कुछ भी तो नहीं – हाँ तुम सूट पूछ रही थी तो वो ब्लू वाला पहन लूँ – ठीक लगेगा न ! उसका पेंट भी ठीक है ज्यादा टाईट नही है |”
कहता हुआ रंजीत यूँ पेट पर हाथ सहलाने लगा जैसे वर्तिका उसे देख ही नहीं रही हो|
“बात क्या है – आप को कोई परेशानी है क्या – दर्द है पेट में ?”
“नहीं बिलकुल नहीं |” कहता हुआ वह जल्दी से हाथ हटा लेता है|
“भईया सच बोलो न – बात क्या है ?”
“कुछ भी नहीं – बस आज बिसनेस एसोसिएटेड के साथ लंच था वो बातों बातो में कुछ ज्यादा ही हो गया लेकिन डोंट वरी – तुमने जहाँ डिनर बुक किया है वहां मैं जरुर जाऊँगा – बस थोड़ा बहुत खा लूँगा |”
रंजीत छुपी नज़र से वर्तिका के हाव भाव देखता रहा जबकि वर्तिका होठ काटती इधर उधर देखती रही|
“तुम बिलकुल परेशान न हो – मैं मेडिसिन लेकर चला जाऊंगा – कोई प्रॉब्लम नही होगी और अगर हुई भी तो सामने वाले को बिलकुल पता नही चलेगी |”
“नही भईया – आप कही नही जाएँगे |”
“क्या कह रही हो ?”
“हाँ सही कह रही हूँ – आप की तबियत खराब है और आप सिर्फ मेरी वजह से जाने को तैयार है लेकिन मैं आपको जरा भी परेशान नही देख सकती|”
“अरे नही – तुम्हारी बात खराब हो जाएगी -|”
“बात ही खराब होगी जो आपकी तबियत से ज्यादा इम्पोर्टेंट नहीं है |” कहती हुई वह रंजीत का हाथ पकड़े उसे बैठाती हुई कहती रही – “ये कम है क्या कि आपने मुझसे कुछ पूछा नहीं बस मैंने कहा और आप जाने को राजी हो गए – और मैं हूँ कि आपकी तबियत भी नहीं देखूं – मैंने जाने को कहा था तो मैं ही आपको नहीं जाने को भी कह रही हूँ – आप रेस्ट कीजिए मैं दवाई लाती हूँ -|”
कहती हुई वह उसे लेटने की अवस्था में छोड़कर झट से कमरे से बाहर निकल गई| उसे जाता देख रंजीत बेड रेस्ट का टेक लेता हुआ मुस्करा दिया| वह जानता था अपनी भोली बहन को कैसे इंकार करना है| 
रंजीत और भूमि आज इनपर कहूँगी क्योंकि कई पाठको का इनपर ही ख़ास कमेन्ट आता है बल्कि एक पाठक जी तो बस इनकी तुरंत शादी को कब से रिक्वेस्ट कर रहे है...अब ये कहानी ही बताएगी कि रंजीत अपने अतीत में कितना वापस आता है ? लेकिन कुछ प्रश्न पाठको से भी है..
क्या भूमि सारा सच जानने के बाद रंजीत से रिश्ता बढ़ाएगी जबकि अब उसकी दुनिया में क्षितिज भी शामिल है जो क्या अपने पिता से दूरी बना पाएगा ?
अगर रंजीत ने इश्क किया था भूमि से तो क्या भूमि को भी उससे प्रेम था ?
क्या प्रेम पाने का नाम है या कुछ यादो का दिल की सतह पर कमल सा टिका रहना..?
जवाब आप भी दीजिए बाकी कहानी इन सब प्रश्नों के उत्तर लेकर आएगी ही....
क्रमशः...............

5 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 115

  1. Ab Arun ko mauka milega khud ko sabit karne ka.. 👍
    Mohabbat ka anzaam shaadi hi ho.. jaruri to nhi.. par ranjeet ko ye jarur pta lagna chahiye ke bhoomi ki shaadi uske pita ko bachane ki akhiri koshish thi.. par nakaam..🥺

      1. Kyi baar hota h Prem apni manjil tk nhi pahuch Pata.bhumi or Ranjeet k sath bhi yhi hua.chahte to hm bhi yhi h ki dono fir se ek ho jay.bt Esa shayad hi hopayga bcoz bhumi ki ab ek family bhi h.aakash ko to uski galtiyo ki saja milni hi chahiye. Bt en sb me khi bhumi ka beta shitij na pis jay.
        Arun jise sb ese hi samjhte the wo hi ab sb theek krta lg rha h sb ek Saman hote h kisi ko bhi chota nhi samjhna chahiye chahe wo apne under work krne wale worker hi kyu na ho

  2. Payar ki manzil shadi hona hi nhi h….ab jb bhumi ki ek alag hi dunia h …apna ghar sansar h jisme chitij h arun h dadaji h ….sabko kese chode payegi….uski life me aakash hi nhi baki b samil h….ab Ranjit ko b ushma ke sath aage badna chahiye

  3. Arun ab kuch kar sakta h….
    Or vivek ka samajh nhi ata ye krna kya chahta h kya menka ko dhoka de rha h ya sach me badal gya wo🤔
    Bhumi ki sadi ranjeet k sath hone k bajah aakash hi sudhar jaye to jada better rhega kynki chhitij b to h bhumi k sath🙄

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