Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 116

मीटिंग खत्म करके अरुण अब कही निकलने का मन बना चुका था| वह ज्योंही बाहर तक आया वैसे ही सिक्योरटी टीम उसे अपने घेरे में ले लेते है| ये सब देखते उसका दिमाग घूम गया क्योंकि इस तरह का बंधन उसके लिए असहनीय था| वह ज्यो ज्यो कार की तरफ बढ़ रहा था वे सब भी क्रमशः उसके आगे पीछे चल रहे थे|

उसे जहां जाना था उसके लिए वह उन सबसे पीछा छुड़ाना चाहता था इसलिए कुछ सोचते हुए वह अपने ड्राईवर राजवीर को बुलाते हुए उससे फुसफुसाते हुए कुछ कहता है जिसे सुनते वह आँखों आँखों से उससे विनती करने लगता है कि प्लीज़ ऐसा मत करिए लेकिन अरुण तय कर चुका था|

अरुण जैसे ही कार में पीछे बैठता है उसे देखते सिक्योरिटी टीम भी अपनी कार से उसे फ़ॉलो करने को तैयार हो जाती है| अरुण की कार राजवीर चला रहा था और कार के अंदर से दोनों की सीटें बदल गई| अब राजवीर पीछे बैठा डरा सहमा बार बार पीछे मुड़कर देखने लगा| कार पोर्च से निकलती ज्योंकि अपने तय रास्ते के अनुसार ब्रिज में चढने वाली थी अरुण तुरंत ही कार को ब्रिज के नीचे वाली सड़क में घुमा लेता है जिससे सिक्योरटी टीम एकदम से रास्ता भ्रमित होती ब्रिज में चढ़ जाती है|

अब जब तक कि वे वापस लौटकर उसे फ़ॉलो करते अरुण अपना काम कर चुका था वह राजवीर को पैसे देकर टैक्सी स्टैड छोड़कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाता है|

ये सिर्फ अरुण ही जानता था कि उसकी अगली मंजिल हॉस्पिटल थी जहाँ किरन के पिता को उसने एड्मिड करवाया था|

अगले ही कुछ मिनटों में वह कार ठीक एक बहुत बड़े हॉस्पिटल के सामने रोकता है| वो एक बहुमंजिला हॉस्पिटल किसी फाइव स्टार होटल से कम नजर नही आ रहा था| असल में वह एक ट्रस्टी हॉस्पिटल था जहाँ के सबसे बड़े शेयर होल्डर दीवान परिवार ही था तो यही कारण था कि उस हॉस्पिटल की एक मंजिल में उनके परिवार के लिए सबसे ख़ास इंतजाम थे| वहां स्पेशल वार्ड और ख़ास बड़े बड़े डॉक्टर के चैंबर थे और वही के एक डीलक्स रूम में वे एड्मिड थे|

सीनियर डॉक्टर दिन में तीन से चार बार उनका खुद चेकअप करते बाकि पूरा वक़्त एक दो जूनियर डॉक्टर उनके आस पास बने रहते और उन्हें लगातार मोनिटर करते रहते|

वह जिस रूम में अपनी गहन तन्द्रा में थे उसके लगा हुआ एक अन्य रूम भी था जहाँ दो व्यक्तियों के रहने सोने की व्यवस्था थी और खाना हॉस्पिटल के ख़ास केन्टीन से आ जाता था|

उसी रूम में सारंगी और उसके पिता ठहरे थे| यूँ तो उनके वहां रुकने की कोई ख़ास जरुरत नही थी पर वे अक्सर यहाँ आ जाते और अपना बहुत सारा समय वही बिताते| ये उनका व्यक्तिगत जुड़ाव था उनसे क्योंकि हर कठिन वक़्त में मनोहर दास ने उनका साथ दिया था जिसका वे अहसान कभी नहीं भूल सकते थे| पर वृद्ध अवस्था होने से सारंगी चाहती थी कि वे घर पर आराम करे इस पर वे उसे समझाते हुए कह रहे थे –

“क्या करे मन ही नहीं मानता इसलिए चला आता हूँ – मास्टर जी हमेशा सबके कठिन वक़्त में खड़े हुए है तो आखिर कैसे उन्हें ऐसे छोड़कर चला जाऊ मैं |”

सारंगी आँखों से सहानभूति भरे उन्हें देखती रही|

उनका मन मनोहर दास जी के दर्द से भरा हुआ था| वे उसी भाव में आगे कहते रहे –

“तुम्ही देखो आज दामाद ने बेटे से बढ़कर अपना फर्ज अदा किया है – अगर वे इन्हें यहाँ नही लाते तो पता नहीं उस सरकारी अस्पताल में हम उनका इलाज कब तक करवा पाते – बड़ा दुःख होता है मास्टर जी की हालत देखकर – कभी कभी तो मन कहता है कि काश वे कभी होश में आए ही न – |”

“पिता जी …!!”

“हाँ बेटी – मुझे न चाहते हुए भी ऐसा कहना पड़ रहा है – तुम्ही बताओ अगर होश में आ गए तो क्या कहेंगे हम उनसे – जिस बेटी पर उन्हें नाज़ था आज उसी की वजह से वे इस मरणासन्न हालत में है – क्या वे होश में आकर इस सच को फिर स्वीकार कर सकेंगे !! ये समाज जो आज उनकी इस हालत पर कम से कम उनपर तरस तो खाता है और अगर कही होश में आ गए तो लोगो के लांछन और ताने उन्हें फिर जीते जी मार देंगे – क्या ये सब मैं देख सकूँगा !!”

कहते कहते उनकी आँखों में नफरत का भाव आँखों में बूंदों के रूप में झलकने लगा था|

“पिता जी आप ऐसा क्यों कह रहे है ?”

“अभी तो मैं कह रहा हूँ – कल को अगर वे ठीक हो गए तो सारा समाज उनपर उंगली करता यही कहेगा जिसके सामने उनकी बेटी उनपर कालिक पोत कर चली गई – फिर किसी की उनसे हमदर्दी नहीं होगी – नहीं तो देखो कल तक जिस दीवान परिवार को मास्टर साहब से नाराजगी थी आज वही उसका बेहतर इलाज करा रहे है – क्यों भला ?”

सारंगी उनके प्रश्न पर बस मौन अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरकर रह गई|

“पता नही क्यों किया ऐसा किरन ने ? कभी कभी तो इस पर विश्वास ही नहीं होता कि वह ऐसा भी कर सकती थी ?”

“लेकिन मेरा मन उनपर पूरी तरह से अविश्वास नही करता पिताजी -|”

“अच्छा तो बताओ वह है कहाँ ? अगर उसने किसी और संग अपनी दुनिया बसा ली तब भी क्या उसे एक बार भी अपने पिता का ख्याल नहीं आया जिस पिता ने उसे बचपन से माँ पिता दोनों का प्रेम देकर पाला – क्या एक बार भी उसके मन को उनकी याद उनकी परवरिश का जरा भी ख्याल नही आया ? अरे इतना बेरहम तो कोई पशु भी नही होता जिसे कुछ दिन अपने पास रखो – देखो आज तक गौरा ढंग से खाना नही खाती पर किरन !! वे कैसे इतनी बेरहम हो गई !! कभी कभी तो लगता है वह इस दुनिया में है ही नहीं अगर होती तो क्या एक बार भी अपने पिता के पास नही लौटती – आखिर ऐसी क्या बडी बात हो गई कि एक झटके में उसने अपना सब कुछ पीछे छोड़ दिया |”

वे जिस आक्रोश में अपनी बात कह रहे थे उसी दर्द में सारंगी उनका विरोध करती हुई कह उठी –

“बस पिता जी – सारी दुनिया तो उनपर लांछन लगा चुकी कम से कम आप तो ऐसा न कहे – किसी को विश्वास हो या न हो मुझे अपनी दीदी पर पूरा विश्वास है कि जरुर वे किसी बडी मुश्किल में होंगी – मैं उन्हें बचपन से जानती हूँ – वे लाख कष्ट सह लेंगी पर अपने अस्तित्व पर एक लांछन वे नहीं सह पाएंगी |”

“और मुझे तुम्हारे विश्वास पर विश्वास है सारंगी |”

अचानक इस आवाज पर वे दोनों साथ में चौंक जाते है और झट से आवाज की दिशा में देखने लगते है| उनकी नजरो के सामने अरुण खड़ा था| वह अपनी दोनों पॉकेट में हाथ डाले उन्ही की तरफ चला आ रहा था|

उसे इस तरह आता देख वे अपनी अपनी जगह पर थमें उसे देखने लगते है|

वह अंदर आते आते कह रहा था –

“कुछ चीजे इंसानों के बस से बाहर होती है तब उनका फैसला बस वक़्त के हाथ में होता है – तब इंसान को चाहिए कि वह उस वक़्त पर उन चीजो को छोड़कर बस विश्वास का दामन थामे रहे ताकि जब सही वक़्त आए तब यही विश्वास उसमे और भी विश्वास भर दे |”

“पता नही आने वाले वक़्त में क्या लिखा है पर आपने जो किया उसका अहसान ..|”

अरुण तुरंत उनकी बात बीच में काटता हुआ कहता है – “प्लीज़ जो मेरा फर्ज है उसे अहसान मत कहिए – एक तो वैसे भी मैं इस बात से शर्मिंदा हूँ कि इस फर्ज को मैंने देर से निभाया – खैर अब बेफिक्र रहिए – मुझे उम्मीद है वे जल्दी ही ठीक हो जाएँगे – मैं उन्हें देखकर आता हूँ |” कहता हुआ वह तुरंत उस रूम से निकलकर बगल के रूम की ओर चल दिया जहाँ कांच के बड़े दरवाजे के पार मनोहर जी मशीनो के सहारे जीवित थे|

अरुण के वहां आते उनकी देख रेख में लगे पैनल के डॉक्टर तुरंत उसके पास आकर अपनी अपनी रिपोर्ट देने लगे| उनसे मनोहर जी के स्वास्थ की चर्चा करके वे डॉक्टर अरुण को उसके कहने पर उसे अकेला छोड़कर बाहर निकल गए| अब रूम में बिस्तर पर लेटे मनोहर दास के अलावा सिर्फ अरुण कमरे में था|

वह उनके पास आता साइड कुर्सी पर बैठते हुए उन्हें पल भर गौर से देखता रहा| उसी क्षणिक अहसास में उसकी नजरो के सामने शादी वाला दिन चलचित्र सा घूम गया| वो पल सोचते जब अपनी बेटी का हाथ अरुण के हाथ में रखते वे कितना भरोसे से उसे देखते हुए कन्यादान की रस्म अदा कर रहे थे| उस पल उनके भावों को किसी शब्द से व्यक्त करना मुश्किल था बस उस अहसास को समझा जा सकता था|

अरुण उनके हाथ पर हाथ रखता है जिसमे मशीनों के कई तार बिंधे हुए थे| उस पल उसके मन में किरन का ख्याल भी तैर जाता है कि किस मजबूर हालत में वह अपने पिता को चुपचाप देखने आती होगी | क्या कुछ गुजरता होगा उसके मन में !! ये शायद वह भी ठीक से महसूस न कर सके |

वह हौले हौले उनका हाथ सहलाता हुआ पल्स मोनिटर मशीन की ओर देखता हुआ धीरे धीरे कहता है –

“लौट आइए बाबू जी – अपनी किरन के लिए लौट आइए – आज आपकी किरन को आपकी सबसे ज्यादा जरुरत है – पता नहीं कितना दर्द वह अकेले सह रही है अब तो मुझसे भी उसकी चुप्पी नही देखी जाती – उसके हर दुःख में उसका साथ देने का वचन लिया था तब भी मैं कितना मजबूर हूँ – चाहकर भी उसके लिए कुछ नही कर पा रहा – उसकी ख़ामोशी मेरे मन को उतनी ही चुभ रही है जितनी आपकी ख़ामोशी किरन को सालती होगी पर दोनों जगह बस बेबसी का ही आलम है – चाहता तो कब का उसका सच सबके सामने ले आता पर उसपर विश्वास करता हूँ और चाहता हूँ कि यही विश्वास वह भी मुझपर करे चाहे इसके लिए मुझे उसका कितना भी इंतजार करना पड़े – मैं पूरी शिद्दत से उसका इंतजार करता रहूँगा बस उसे इस इंतजार में तड़पते नही देख सकता – प्लीज़ अब आप को वापस आना होगा – अपनी किरन के लिए वापस आना होगा – लौट आइए बाबू जी |” कहता कहता अरुण अपनी नम आँखों से देर तक उनका हाथ पकड़े यूँही उन्हें देखता रहा|

***

बार बार कॉल करने के बाद जाकर वर्तिका आदित्य का फोन रिसीव करती है|

“व्हाट हैपनिंग वर्तिका – डिनर कैंसिल का मेसेज कर दिया उसके बाद से मेरा कॉल क्यों नही रिसीव कर रही – |”

“कुछ नहीं बस सोच रही थी कि डॉक्टर उष्मा को कैसा लग रहा होगा ?”

मोबाईल के उस पार वर्तिका की आवाज ही उसे उसका रूठा होना बता दे रही थी|

“हम्म – मुझे पहले ही पता था कि यही होने वाला है इसलिए मैंने दी को बताया ही नहीं था |”

“क्या !! मतलब तुमने डिनर जैसा कुछ अरेंज किया ही नहीं था – ऐसा तुम कैसे कर सकते हो ? अगर भईया राजी हो जाते तब !”

“मुझे पता था वे इतनी आसानी से एग्री नही होंगे |”

“अगर होते तो !! तब तुम क्या करते ?”

“मेरे पास तब के लिए प्लान बी था न |”

“प्लान बी – मतलब ?”

“अब छोड़ो न – ये बताओ उस बुक टेबल का क्या करना है ?”

“अजीब इन्सान हो – एक तरफ कहते हो मुझे पता है डिनर में मेरे भईया नही आने वाले और दूसरी तरह टेबल बुक है ये बता रहे हो ? मैं तो न तुम्हे समझ ही नहीं पा रही |”

“तभी तो कह रहा हूँ – कभी तो समझो मुझे – टेबल भी बुक है तो क्या चले हम?”

उस पार जैसे मौन छा जाता है|

“वर्तिका….|”

“देखो आदित्य तुम मुझसे ऐसे बात करोगे तो फिर मैं तुमसे बात नहीं करुँगी – मैंने कहा न कि पहले अपने भईया की सेटिंग कर दूँ तब मैं कुछ भी सोचूंगी |”

“चलो थैंक गॉड – बाद में ही सही सोचोगी तो – चलो आज की टेबल किसी और हसीन जोड़े के नाम – जाने हमारा नंबर जाने कब आएगा |”

“नॉट अगेन आदि |”

“ओके ओके – चलो अब तुम्हारे भईया को डिनर में जाने के लिए कोई आइडिया लगाना ही पड़ेगा तो तब तक….|”

“ओके बता देना – गुड नाईट |” कहती हुई वर्तिका कॉल डिस्कनेक्ट कर देती है लेकिन आदित्य देर तक मोबाईल की स्क्रीन में आया उसका नाम देखता रहा जिसे उसने वर्तिका के नाम के आगे एक हार्ट की इमोजी के साथ सेव किया था|

………क्रमशः….

5 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 116

  1. Arun se aur pyar ho jata hai har part pe.. kitna acha hai.. bas ab Kiran aur Arun ko mil Jana chahiye .. kitna aur satana likha hai.. ❤️💕

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