
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 118
लगातार धीमी पड़ती आवाज से उजला समझ गई कि अरुण वहां से जा रहा है, ये आभास होते वह तुरंत उठकर बैठ गई और हैरान सब सोचने लगी| उसकी उलझन अजीब से प्रश्न पर अटकी थी, क्या अरुण उसके प्रति आकर्षित हो रहा है ?? मतलब उजला के प्रति !! फिर किरन कहाँ जाएगी !! क्या उसका अस्तित्व सदा के लिए खत्म हो जाएगा ? अजीब सी उलझन में उसका मन पड़ा था| जो चाहती थी जब वो हो रहा है तो भी उसे अच्छा नही लग रहा !! आखिर क्या रजा है इस वक़्त की…!!
वह अपने ख्याल में गुम थी कि सहसा तेज हँसी की फुहार से उसका ध्यान टूटा और वह तुरंत बाहर को निकल गई जहाँ से वह आवाज आई थी| अरुण और क्षितिज की मिलीजुली हँसी की आवाज सुनती वह गलियारे तक आ गई जहाँ से लिविंग रूम में रखी कांच की बडी सी टेबल पर क्षितिज को बैठाए अरुण उससे बाते कर रहा था और बातों बातो पर बीच बीच में वे दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते|
आज वह कुछ अलग ही रूप में था, अकसर खामोश रहने वाला अरुण कुछ ज्यादा ही हँस रहा था जिससे वह ख़ामोशी से उसकी नज़रो से छिपी बात सुनने लगती है|
“चाचू सच में आप थ्री डेज के लिए जा रहे हो ?”
“हाँ – शायद जल्दी भी आ जाऊं या इससे भी ज्यादा टाइम लग जाए|”
“ओह चाचू |”
उदास का मुंह बनाते क्षितिज होंठ गोल गोल कर लेता है ये देखते अरुण उसके कंधो पर अपने दोनों बाजु हलके से रखता हुआ कहता है –
“अच्छा तुम्हे याद आएगी मेरी ?”
“हाँ चाचू |”
“कितनी आएगी ?” वह भी मुस्कराते हुए पूछता है|
इस पर क्षितिज अपनी दोनों बाहें फैलाते हुए कहता है – “इतनी सारी आएगी चाचू |”
“और मुझे इतनी सारी |” अरुण भी अब उसकी तरह अपनी बाहे हवा में दूर तक फैलाते उसी की तरह कहता है जिससे क्षितिज खिलखिलाकर हँस पड़ता है|
अरुण भी हँसता हुआ उसे अपनी बाँहों के बीच समेटता हुआ हँसते हँसते अब चुपचाप उस ओर देख रहा था जहाँ उजला उसकी नज़रो से छिपी खड़ी थी ऐसा उसे लग रहा था पर हवा से उड़ती उसकी साड़ी उसके होने की चुपचाप चुगली कर दे रही थी|
“चाचू पता है मेरी मैम ने एक बार एक स्टोरी सुनाई थी – उसमे जब कोई किसी को याद करता तो वो जादू से उसके सामने आ जाता |”
“अच्छा !!”
“हाँ चाचू – आप भी ऐसा करना और मैं झट से आपके सामने आ जाऊंगा |”
“बिलकुल तब तो बहुत ज्यादा याद करूँगा |”
नन्हा क्षितिज इस बात पर कसकर खिलखिलाता हुआ कहता है – “फिर तो चाचू आप अचानक से मुझे देखकर डर जाओगे न !”
“नहीं – मैं तो बहुत खुश हो जाऊंगा – आखिर दिल से जो याद किया है |” अपना आखिरी वाक्य वह कुछ इस तरह धीमे से कहता है जैसे बस अपने दिल को कह रहा हो पर निगाह अभी भी उसकी वही थी जहाँ उजला खड़ी थी|
उजला दिल थामे सब सुन रही थी| उसका मन उन शब्दों को भी सुन रहा था जो कहे भी नहीं गए इससे उसका मन और बेचैन हो उठा| सहसा उसे अहसास होता है कि आवाज आनी बंद हो गई तो वह झट से उस ओर बढ़ गई| अब वहां कोई नही था| वह इधर उधर देखने लगी पर वहां अब न क्षितिज दिखा न अरुण इससे अपनी उधेड़बुन में घिरी वह पलटकर वहां से जाने लगी|
वह अपने में गडमड सोचती हुई रसोई की ओर चली जा रही कि सहसा किसी से टकराती टकराती बची| असल में वह नीचे देखकर चल रही थी जिससे वह सामने से आते अरुण को नहीं देख पाई और उससे टकरा गई ये बात अलग थी कि अरुण उसे जानकर अनदेखा करता उसकी ओर बढ़ा आ रहा था|
वह अचानक से लड़खड़ा जाती है और बस गिरने वाली थी कि अरुण एक हाथ से उसकी गिरती देह उसकी कलाई पकड़कर बचा लेता है| वह पल भर को उसकी बांह में झूल जाती है| उस वक़्त अजब दृश्य बन गया था दो जोड़ी निगाह एकदूसरे पर टिकी रह गई थी मानों सारी कायनात उन आँखों में समां गई हो| न उस पल अरुण को उसकी कलाई छोड़ने का ख्याल रहा और न उजला को उससे अपनी कलाई छुड़ाना |
“चाचू ..!!”
अचानक एक आवाज और अवाक् खुला मुंह उन दोनों को ताकने लगा था| जिससे दोनों अपनी अपनी तन्द्रा में होश में आते अपनी अपनी जगह तनकर खड़े हो जाते है|
उन दोनों के सामने खड़ा क्षितिज अपनी नन्ही नन्ही पलके झपकाते कभी अपनी उजला आंटी को देखता तो कभी अपने चाचू को|
“चाचू आपने आंटी का हाथ क्यों पकड़ा हुआ है ?”
“अहाँ !!!!”
क्षितिज की बात सुनते अरुण को ख्याल आता है कि उसने अभी तक उजला की कलाई छोड़ी नहीं थी| ये देखते जहाँ उजला कसमसाकर अपनी कलाई छुड़ाने का उपक्रम करती है वही अरुण उसकी कलाई छोड़कर थोड़ा और किनारे खड़ा हो जाता है|
इस हालात में जहाँ क्षितिज उन दोनों को अनबूझा सा देख रहा था वही दोनों बुरी तरह से झेंपे हुए लग रहे थे| इस हालात से निकलने उजला जल्दी से क्षितिज का हाथ पकड़े ले जाती हुई कहती है –
“चलो स्कूल जाना है न |”
उस वक़्त उजला की जो हालत थी उससे वह बस तुरंत वहां से निकल जाना चाहती थी|
“उजला |” पर अरुण कहाँ इतनी आसानी से उसे छोड़ने वाला था| वह उसे हडबडाते जाते देखता टोकता हुआ बोल रहा था – “मुझे चाय चाहिए अभी – थोड़ा जल्दी ले आना रूम में |”
वह बस मौन ही हामी भरती तुरन्त ही वहां से निकल जाती है|
***
वाइट ब्लेजर पर वाइट पेंट उसपर हलके नीली रंग की टाई के साथ अरुण अपने स्वभाव के साथ बिलकुल ही कूल नज़र आ रहा था| वह भावनगर जाने को बिलकुल तैयार था| मिस्टर ब्रिज भी जरुरी पेपर्स के साथ बाहर ही खड़े थे| राजवीर भी अरुण की कार को अच्छे से चमका कर तैयार खड़ा था तो वही उनके पीछे चलने को बॉडीगार्ड की कार भी तैयार थी| अरुण का जरुरी सामान नौकर कबका कार में पहुंचा चुके थे और वह भी अपनी ओर की तैयारी कबकी कर चुका था| फिर भी वह अभी तक क्यों जाने को नहीं निकला ये कोई नहीं जानता था|
बडी अभी उसके पैरो के पास लेटा लगातार अपनी पूँछ हिला रहा था| उसने अपना मुंह उसके जूतों के बीच में घुसा रखा था जैसे उसका जाना उसे भी रुला दे रहा था और वह अपना सर उठाकर उसे ये नहीं दिखाना चाहता था|
अरुण प्यार से उसका शरीर सहलाता कह रहा था – “तू तो यार है मेरा तो मेरा एक काम करेगा न – देख मेरे जाने के बाद मेरी किरन का ख्याल रखना और जब तक मैं वापस न आ जाऊं उसे कही अकेले मत जाने देना – समझा न |”
ये भावनाओ की आपसी समझ थी जिसे कोई भी कह सकता था कि क्या कोई जानवर इंसानों की बोली समझता भी है ? पर जहाँ जज्बातों का रिश्ता हो वहां शब्दों की कोई जरुरत नही होती बस भावनाए एकदूसरे को समझ लेती है| जैसे उजला अपने दिल की हर बात बडी को कह लेती तो वही अरुण भी उससे ऐसे ही बात करता जैसे कोई अपने जिगरी यार से बाते करता हो|
बडी पिछले आठ सालो से अरुण के पास था जब वह एक छोटा सा पप्पी था| अपने अकेलेपन को दूर करने जब अरुण ने एक डॉग पालने का सोचा और वह एक डॉग हॉउस पहुंचा तब वहां उसने कितने सारे नस्ल के एक से एक बढकर डॉग देखे वहां| वह दुकान ही थी उन मूक मित्रो की जो इंसानों की दुनिया में दोस्ती और प्यार बनकर आती थी| कुछ इसी ख्याल से अरुण भी वहां पहुंचा था|
एक रिच कस्टमर को देखते दुकान वाले ने अरुण के सामने एक से एक महंगे डॉग रख दिए| किसी के सुनहरे फ़र दिखाता किसी की फुर्ती की तरीफ में कसीदे पढ़ने लगता| तब अरुण बुरी तरह से कन्फ्यूज था कि आखिर किस बेस पर वह अपने लिए एक डॉग पसंद करे ?
कोई भी डॉग उसकी नज़रो को जब बहुत देर तक जब अपील न कर पाया तो वह यूँही दूकान में चक्कर काटने लगा| सभी तरह के जानवर थे वहां पर अब तक वह कुछ डिसाइड नही कर पाया था कि तभी उसकी नजर एक फिश टैक की ओर गई जो उसका एक मछली बुरी तरह से उछल रही थी| अरुण को लगा शायद उस मछली को कुछ परेशानी है ये सोचकर वह उस टैंक के पास आ गया| वह टैंक ऊपर से खुला पड़ा थ जिससे वह हाथ डालकर उसे निकालकर बगल के पॉट में डालने के बारे में सोच रहा था कि तभी दो चीजे अचानक से हुई और वह टैंक एक तेज आवाज के साथ नीचे गिर पड़ा|
आवाज इतनी तेज हुई कि दुकानदार भागता हुआ वहां आता है और हैरान उसकी ओर देखता बात समझने लगा| अरुण एक नज़र जमीन पर टूटे पड़े टैंक को और दुसरी नजर पानी में तड़पती मछली को देखता हुआ तुरंत उसे उठाकर पास के पॉट में डाल देता है| मछली को डालने के बाद अरुण की नज़र अब उस पप्पी की ओर जाती है जिसकी बदमाशी से ये कांड हुआ था| अगर एक एकदम से अरुण के हाथ पर न वह कूदता तो न उसका हाथ लगता और न वो टैंक गिरता| अरुण अब उस पप्पी को घूरता हुआ देख रहा था|
वहां आया दुकानदार सारा माजरा समझते हुए जल्दी से अरुण के पास आता हुआ कह रहा था –
“सर आपको कही लगी तो नहीं !”
“नही मुझे नहीं लगी लेकिन आप ऐसे डॉग को रखते क्यों है जो किसी को भी नुक्सान पहुंचा सकते है |”
“सर इसने तो आपको नुक्सान से बचा लिया |”
“क्या मतलब !!”
“गलती मेरी है – मैं इस फिश टैंक में काम कर रहा था तभी कस्टमर देखने के चक्कर में काम अधुरा छोड़कर चला गया – इस टैंक में ताजा करेंट था और अगर आप गलती से उस पानी में हाथ डाल देते तो आपको झटका लग सकता था पर इसने आपको बचा लिया |”
दुकानदार उस पप्पी की ओर संकेत करता हुआ कह रहा था|
उस पल जैसे शब्दों की कोई जरुरत नही रही और पहली दोस्ती की मुलाकात सदा के लिए यादगार बन गई|
अरुण ने उस पल उसके प्यारे से छोटे से मुंह को देखा जिसमे काली काली आंखे छोटी सी नाक उसी की ओर देख रही थी| ये देख अरुण मुस्करा दिया और जेब से एक चेक निकालकर उसमे अमाउंट भरकर दुकानदार की ओर बढाते हुए उस पप्पी की ओर बढ़ जाता है|
दुकानदार उस चेक का अमाउंट हैरानगी से देखता हुआ कहता है – “सर आपने रेट तो पूछा ही नहीं और ये तो बहुत ज्यादा अमाउंट है |”
“दोस्त की कोई कीमत नहीं होती – ये अमाउंट तो मैंने टैक के नुक्सान का दिया है |” कहता हुआ अरुण उस पप्पी को लिए बाहर चल देता है|
चेक हाथ में लिए दुकानदार आश्चर्य से उसे जाता हुआ देखता रहा|
“चाय..|”
आवाज पर सहसा अरुण की तन्द्रा भंग हुई जिससे वह नज़र उठाकर देखता है उसकी नज़रो के ठीक सामने उजला माफ़ी की मुद्रा में खड़ी कह रही थी – “सॉरी मैं क्षितिज को तैयार करने में चाय का भूल गई थी – |”
वह हिचकिचाती हुई चाय का कप उसकी ओर बढ़ा रही थी और अरुण बड़े प्यार से उसकी ओर देख रहा था जैसे कब से वह इसी लम्हे का इंतजार कर रहा हो |
जहाँ एक ओर अरुण के चेहरे पर मुस्कान थी तो वही उजला हैरानगी से मन ही मन सोच रही थी – ‘क्या सिर्फ इसी कारण से तब से इंतजार कर रहे थे – चाय तो वे कही भी पी सकते थे !!’
ये वो बात थी जो बस अरुण का दिल ही जानता था कि चाय की कहाँ तलब है हमे !!! हम तो हर बार तुम्हे पास बुलाने का बहाना खोजते है और कमबख्त दिल चाय बोलकर रह जाता है |
वह चाय का एक सिप लेता एक भरपूर नज़र उजला को देखता है जिससे हिचकिचाती हुई वह तुरंत वहां से चली जाती है|
उसके जाते अरुण मोबाईल उठाकर मिस्टर ब्रिज को अपने आने की सूचना देता हुआ तुरंत बाहर निकल जाता है|
…………….अरुण भावनगर को निकल गया…अब क्या आने वाल है उसके पीछे तूफान बस इंतजार अगले पार्ट का……आज बडी के नाम रहा पार्ट…
Shi khte h log Mook janwar insaano se jyada wafadaar hote h…..bahut pyara part tha ye jisme ye sndesh diya gya tha
Badi bala kissa bhut acha laga…..👌👌
Woww. . Arun ka har rishta emotions se juda hai .. buddy se bhi.. kitni pyara rishta hai ye bhi…❤️
Badi bahut hi payara or sachcha dost h