Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 119

भूमि जल्दी जल्दी तैयार हो रही थी| उजला भी वही थी| तभी उस कमरे में मेनका आती है|

“भाभी ..!”

“हाँ बोलो मेनका |” साड़ी का पल्ला ठीक करती हुई कहती है|

“मुझे आपसे कुछ बात करनी है लेकिन आप तो कही जा रही है|”

“हाँ जा तो रही हूँ पर तुम कहो क्या कहना है तुम्हे ?”

“भाभी..!” तभी कमरे में उसका मोबाईल बज उठा जिससे मेनका की बात अधूरी रह गई|

“रुको मेनका सुनती हूँ |” मोबाईल उठाती हुई वह मेनका से कहती है|

मोबाईल कान से लगाते ही उस पार से कोई तुरंत कहने लगता है – “बहुत घमंड है न अपनी संस्था पर तो जाकर देखो क्या घोटाला मचा है वहां और यकीन न हो तो उन्ही बच्चो औरतो संग शामिल होकर देखना तुम्हारी आँखों की पट्टी हट जाएगी |”

“कौन हो तुम ? और कहना क्या चाहते हो ?”

भूमि फोन पर चीख उठी पर उस पार से कॉल डिस्कनेक्ट की जा चुकी थी|

“क्या हुआ भाभी ?”

भूमि कुछ पल तक अवाक् हाथ में पकड़ा मोबाईल घूरती रही| आखिर कौन होगा जो उसकी संस्था के बारे में इस तरह की बात कर रहा होगा? क्या सच में उसकी संस्था में कुछ घपला चल रहा है ? बहुत से प्रश्न उसके दिमाग में आपस में गडमड होने लगे|

भूमि को इस तरह खड़े देख मेनका अब उसके पास आती उसे हौले से झंझोडती हुई फिर पूछती है|

“क्या हुआ भाभी आप किस सोच में पड़ गई ? किसका फोन था ?”

“आं !! कुछ नही मेनका |” जल्दी से खुद को संभालती हुई कहती है – “मुझे अभी संस्था निकलना है मैं लौटकर आकर तुमसे बात करती हूँ |”

कहती हुई भूमि तेजी से कमरे से बाहर निकल जाती है| भूमि को जाते हुए देखकर मेनका रुआंसी होती वही बैठती हुई बुदबुदा उठी –

“काश मेरी ऐसी भाभी होती जिनके पास कुछ समय तो होता मेरे लिए |”

उस कमरे में तब से सब देखती उजला भी वही मौजूद थी| मेनका की कही बात उसके मन को भी उदोलित कर गई थी| उसका बहुत दिल चाह रहा था कि दौड़कर मेनका को गले लगा ले और बता दे कि वह भी उसकी भाभी है पर उजला मन मसोज कर ही रह जाती है फिर कुछ सोचकर मेनका के पास आती उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे सांत्वना देती है| उस पल की सांत्वना मेनका के मन को और बिखेर देती है जिससे वह झट से उसका हाथ पकड़े बिलखकर रो देती है| उजला भी स्नेह से थामे उसे अपने सानिध्य में समेटे रहती है|

***
न्यूज एजेंसी में बैठी स्टैला और एडिटर मिस्टर राव शाम के प्राइम शो पर अपनी लास्ट रिपोर्ट डिस्कस कर थे|

“बड़े बिजनेस टाइकून का बजा बैंड – ये टैग लाइन डाल देते है |” कहती हुई स्टैला ठहाका मारकर हँस दी|

सामने बैठा एडिटर उसे गौर से देखता हुआ कहता है –

“हमारा शो कोई नुक्कड़ नाटक नही है जो इस तरह की हेड लाइन डाली जाए |”

“डियर एडिटर सर – हम न्यूज वाले करते तो यही है बस टैग लाइन बदलती रहती है – एक तरफ गिरते शेयर दूसरी तरफ ये होटल वाला कांड – ये दीवान तो समझो अब गए – बस इसे धीमी धीमी आंच पर पकने देना है और हमे बस इसकी खिचड़ी बनाकर जनता को खिलाना है |”

“हम्म – लेकिन अभी तक ये प्रूफ नही हुआ कि होटल में मिली उन लड़कियों से उस होटल के सीईओ को कोई सीधा सम्बन्ध है |”

स्टैला अब चलती चलती अपनी बात कहती रहती है – “नही है तो मैं बना दूंगी आखिर ये रिपोटर्स की कौम है किस बात की – मिस्टर एडिटर अब तक मैंने पेड़ के नीचे बैठकर रिपोटिंग नही की है – अब तब जहाँ मैं हूँ वो इन खबरों की वजह से नही बल्कि इस खबरों को खबर बनाने की वजह से हूँ – ये जनता तो बेवकूफ है उसके पास अपना कोई दिमाग नही – उसे सोचने समझने का फ्रेम हम देते है और वो अपने अपने अनुसार उस फ्रेम को अपने गले में डाल कर खुश हो लेती है |”

लहराती हुई अपनी बात कहते कहते वह टेबल के कोने पर बैठती हुई एडिटर की ओर झुकती हुई कह रही थी – “जब साम्प्रदायिक दंगे होते है तब क्या होता है – पता है न !! जो चैनल ऊपर होता है वो उस वक़्त जनता के माइंड सेट को बदलने की सबसे ज्यादा कुव्वत रखता है – बस जहाँ की लहर करनी हो उसी हिसाब से रिपोर्टिंग कर दो जनता उसी हिसाब से सोचने लगती है – अगर किसी ख़ास धर्म के पक्ष में बोलना है तो उसके हताहत वीडियो चला दो – बस हवा का रुख तुरंत बदल जाता है तब जनता बस धडाधड अपनी अपनी सोशल मिडिया में खुद आगे आकर उस रिपोर्ट को सपोर्ट करने लगती है – तब कभी वह अपना दिमाग यूज करती दिखती है – बिलकुल नही – तब उसे कोई सोहार्द का वीडियो याद नहीं आता और हम आसानी से उनकी सोच का फ्रेम बदल देते है – बस इस बार भी यही करना है – दीवान परिवार की नैतिकता पर वार करना है – जिसमे सपोर्ट पर उसके छोटे बेटे अरुण दीवान की भागी हुई पत्नी की खबर इसमें हाइप का काम करेगी – और बस जनता हमे खुद सपोर्ट करती दिखेगी कि किस तरह पैसे के बलपर ये लोग आम लोगो की नैतिकता के साथ खिलवाड़ करते है – ओह माय गॉड – आज तो बस आइटम बम फोड़ने वाली हूँ मैं |”

स्टैला नजाकत से अपना मुंह भोला सा करती फिर ठहाका मारकर हँस देती है|

“कमाल है तुम वाकई खबरे पकाना जानती हो |”

“वो तो है |”

“और उस रिपोर्ट का क्या हुआ – क्या मिस्टर रंजीत को तुमने माफ़ कर दिया क्या ?” खिल्ली उड़ाते हुए एडिटर बोलता है|

रंजीत का नाम आते स्टैला के हाव भाव अचानक से बदल जाते है और वह होंठ भीचती हुई कहती है – “हूँ – माफ़ तो कभी मैं अपने बाप को भी न करूँ – उसने नागिन को छेड़ा है तो वो उसे डँसे बिना तो छोड़ेगी नही – बस कुछ ख़ास क्लू मिल जाए उसका |”

“क्यों अभी तक कुछ ढूंढ नहीं पाई ?”

“बहुत ही पहुंची हुई चीज है वो – उसका कोई भी क्लू अब तक मेरे पास नहीं आया लेकिन मैं लगी हूँ और बहुत जल्दी उसका भी काम तमाम करने वाली हूँ – फ़िलहाल तो मैं चली इस दीवान से कुछ वसूलने अगर मान गया तो रिपोर्ट में कुछ तो उसके लिए लूप होल रखूंगी नहीं तो बस आज तो गया ये दीवान इंटरप्राइजेज ….|” कहती हुई वह एक बार फिर से ठहाका मार कर हँस देती है|

स्टैला को हँसते देख एडिटर भी तिरछी मुस्कान से मुस्करा देता है|

***
फोन किसका आया था भूमि नहीं जान पाई थी पर संस्था को लेकर कही गई बात उसे हिला गई थी| उसे कल्याण के जाने के बाद से लगा उसने संस्था से एक दोषी को हटा दिया लेकिन फिर इस तरह की बात सुनने के बाद इस बात की जड़ तक वह जरुर जाना चाहती थी|

भूमि भलेही नहीं जानती थी कि फोन करने वाला शख्स कौन है पर फोन करने वाला शख्स बराबर उसपर नज़र रखे था| वह किसी अनजान नंबर का प्रयोग करके उस सिम को निकालकर सहेजकर अपनी जेब में रखता हुआ खुद से कह रहा था –

‘अभी तो शुरुवात है – इस नंबर से जो अगली कॉल मैं करूँगा उससे तो तुम्हारे होश ही उड़ जाएँगे – बहुत गुरुर है न अपने फैसले पर – अब वही फैसला तुम्हारी तबाही का कारण बनेगा – हाँ तबाही – औरत होकर तूने मुझपर सबके सामने थप्पड़ मारा – मैं न खुद इस थप्पड़ को भूलूंगा और न तुझे भूलने दूंगा – देखना |’

किसी सुनसान हिस्से में बैठा कल्याण जिसकी नज़र के सामने अभी भी शराब की बोतल थी और आँखों से अंगार बरस रहा था| उस वक़्त उसकी हालत बेहद बिखरी हुई थी|

***
पूरा दिन जैसे तैसे गुजर गया| उसका किसी चीज में मन नहीं लग रहा था| बार बार लगता जैसे अरुण ने उसे बुलाया है और कई बार तो वह सच में चाय का पैन चढ़ा देती फिर ये याद आते कि वह तो है ही नहीं तो खुद के ही सर पर टीप मारती मुस्करा देती|

सच में इन दिनों में उनके बीच अजीब सी निर्भरता आ गई थी उसका हर वक़्त हर काम के लिए उजला पर निर्भर रहना जैसे वह उसके बिना अपने कमरे को भी नहीं खंगाल पाएगा तो वही उजला दिल से उसके आस पास बनी रहती और उसकी बिन पुकार के भी उसके पास मौजूद रहती|

कैसा रिश्ता था उनके बीच दो जानने वालो के बीच अनजाना सा रिश्ता !! ये बात अलग थी कि अब अरुण भी जान चुका था कि वह उजला ही उसकी किरन है इससे कई बार वह अपना संयम खोने लगता| उसका भी दिल करता कि वह उसे हक़ से अपने करीब ले आए पर जिस अजनबी राह के बीच वे खड़े थे उसकी सीमा न वह तोड़ पाई और न वह तोड़ पाया|

बहुत उदास हो रहा था उसका मन| उसे बार बार अपने बाबू जी की याद आती| उन्हें याद करते वह अपने अकेलेपन में सुबक लेती| उस पल उसे अपने नसीब पर बहुत गुस्सा आता कि ये कैसा पल है जिसमे उसके बाबू जी भी उसके वक़्त की तरह किसी अँधेरे मौन में समां गए है !! काश कोई तो उसकी इस अँधेरी राह में रौशनी का दीया बनकर आता|

बहुत देर अपनी उदासी में लिपटी वह आखिर अपने बाबू जी को देखने जाने का मन बनाती है| दूर से ही सही एक बार उन्हें देखकर उसके मन को एक सहारा सा लगता कि शायद इस बेरहम वक़्त को उसपर तरस आए और वह फिर अपने बाबू की गोद में सर रखे अपने उदासी के सारे आंसू बहा सके|

शाम होने से पहले ही वह पीछे के गेट से निकलने को तैयार थी पर उसे ये कहाँ खबर थी कि कोई और भी है उसकी पूरी चौकसी किए था|

शाम से पहले ही अरुण भावनगर के अपने बंगले में पहुँच चुका था| वहां आते ही मिस्टर ब्रिज सारी जरुरी रिपोर्ट्स उसके सामने रखते हुए कह रहे थे –

“सर बस आप बताए कि कब एस्क्युट करना है – मेरी पुलिस कमिश्नर से भी बात हो चुकी है – उन गुंडों पर लगे चार्ज को बस फिर से जिन्दा करना है और वे जेल के अंदर होंगे -|”

सोफे पर बैठा अरुण सारे फ़ाइल को पलटने के बाद उनकी तरफ देखता हुआ कहता है –

“फिर उसके बाद क्या होगा – वे गुंडे जेल से छूटेंगे और दुबारा उन मजदूरों पर अपनी भड़ास निकालेंगे – फिर इसकी प्रतिक्रिया में हो सकता है मजदूर फिर उग्र हो जाए और उन गुंडों संग भीड़ जाए – जिसके बाद गुंडे फिर उनपर अपनी गुंडई दिखाएँगे – इस तरह से आपको लगता है ये चक्र कभी रुकेगा ? – हम तो सुरक्षित दायरे में रहते है लेकिन वे मजदूर उनकी सुरक्षा कौन करेगा ? और कब तक पुलिस उन्हें प्रोटेक्ट कर पाएगी ?”

“तो क्या आप उनके खिलाफ कुछ नहीं करेगे |”

“क्यों नही करूँगा – मैं समस्या के खिलाफ करूँगा न कि किसी व्यक्ति के खिलाफ – और अगर मुझे यही जोर अजमाइश करनी होती तो उसके लिए मैं साढ़े तीन सौ किलोमीटर नही आता – बल्कि ये काम तो एक फोन कॉल से भी हो जाता |”

“फिर फैक्ट्री का काम कैसे शुरू होगा ? वो गुंडे ऐसे ही आतंक मचाते रहेंगे और मजदूर वो तो इस हालात में कतई काम नही कर पाएँगे |”

“इसी समस्या का तो मुझे परमानेंट सेलुशन निकालना है – |”

“वो कैसे सर ?”

“अगर ट्रेन के डिब्बे गिनने है तो हमे ट्रे से उतरकर प्लेटफोर्म में आना ही पड़ेगा |”

अरुण अपने पैर पर पैर चढ़ाते हुए जिस इत्मिनान से अपनी बात कह रहा था उससे मिस्टर ब्रिज के होश पूरी तरह से उड़े हुए थे| वे कन्फ्यूज से उसे देखने लगे|

….क्रमशः…..

आप पाठको से बड़ा मित्र, समीक्षक और सहायक कौन होगा…तो ये रिक्वेस्ट आपसे है…यूँ तो मैं पार्ट को कई बार पढ़कर अच्छे से एडिट करके ही पोस्ट करती हूँ चाहे जितना वक़्त लग जाए फिर भी कभी कुछ गलती आपकी नज़र में आती है जैसे डबल पार्ट लोड होना, वर्तनी भूल, किसी नाम का गलत होना, ज्यादा स्पेस होना या कुछ जो आपको लगता है एडिटिंग में रह गया आप वो सब बेहिचक मुझे बता सकते है , मुझे सही करके ख़ुशी होगी क्योंकि मुझे कहानी में इस तरह की भूले कतई नापसंद है….

6 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 119

  1. Stella to lg gyi h apne kaam p…Aakash ka pardafaash krne bt lgta h usme ye baat ko badha Chadha k dikhaygi…Jo shi nhi h….bt usne Jo kha h wo to such hi h na aajkl news wale yhi to krte h sachaai koi nhi batata sb ek dusre ki taang kheechne me lge h

  2. Awesome part… Mind blowing 😎😎😎, esa kyu lg rha h ki Kiran pr koi musibat aane wali h… Baki aapka koi jwab nhi h mam… Bhat achaa likti h aap…

  3. Stella se kuch yad aya,
    Aapne humnavan me ek part k last me likha tha Stella murder case me arun ko fasaya gya….🙄 Baap re kha jayegi kahani

    1. वाह क्या गज़ब है याददास्त, तुसी कमाल हो और धमाल हम कर लेंगे

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