
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 120
मिस्टर ब्रिज अरुण के ठीक सामने के सोफे पर बैठे थे और पूरी तरह से ताज्जुब होते अरुण को देख रहे थे| वे ये बात बिलकुल नहीं समझ पा रहे थे कि बिना कारवाही के आखिर उन गुंडों से वह कैसे निपटेगा ?
“मैं आपकी बात बिलकुल समझा ही नहीं |”
“सीधी सी बात है बिना समस्या की जड़ तक जाए उसका उपचार करना कतई संभव नही – उसके लिए मैं खुद वहां जाऊंगा और बात की जड़ तक पहुँचूँगा और तभी डिसाइड करूँगा कि मुझे आगे करना क्या है लेकिन उससे पहले आप मेरा एक काम करिए |”
“हाँ कहिए सर ?”
“प्लीज़ आप मुझे ये बार बार सर कह कहकर सर पर उठाना बंद करिए – ब्रिज जी आप डैड के साथ लम्बे समय से काम कर रहे है – आप की नजरो के सामने मैं पलकर बड़ा हुआ हूँ – आप मेरे लिए पितातुल्य है – इनफैक्ट मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है इसलिए प्लीज़ आप मुझे मेरे नाम से ही पुकारिए |”
अरुण की बात पर मिस्टर ब्रिज अचम्भे से उसे देखते रह गए| ये बात सही थी कि उन्होंने अरुण और आकाश को बचपन से देखा था और पिछले तीस सालों से वे दीवान साहब के दाएं हाथ की तरह वे काम कर रहे थे लेकिन ऐसा पल पहली बार हुआ जब उन्हें उनकी उम्र के अनुसार तवज्जो दी गई| वे सहज भाव से हामी में सर हिलाते हुए कहने लगे –
“ठीक है जैसा तुम चाहो लेकिन करना क्या चाहते हो अरुण ?”
“ये तो मुझे भी नहीं पता इसलिए तो मैं उनके बीच जाकर पता करना चाहता हूँ |”
“ये क्या कह रहे हो ? अकेले कैसे जाओगे ?”
अब अरुण खड़ा होता टहलता हुआ अपनी बात कहने लगा था – “आपको पता है जब ऊपर से हम किसी को देखते है तब बस हमे उसके सिर ही नज़र आते है पर जब हम किसी के बराबर सामने खड़े होते है तो उसकी आँखों और दिल को भी हम बराबर से देख सकते है और बस मैं यही करना चाहता हूँ – मैं उनके बीच अरुण की तरह जाऊंगा नाकि अरुण दीवान की तरह तब मैं उनकी परेशानी को अच्छे से समझ सकूँगा |”
अरुण की बात सुनते वे उसकी बात के कायल होते नज़र आते सहज भाव से कहते है – “बिलकुल वैसे ही जैसे अपनी प्रजा के बीच उनका राजा आम इन्सान की तरह जाता है और उनके दुःख दर्द को नजदीक से समझने की कोशिश करता है |” मिस्टर ब्रिज भी अब चलते हुए अरुण के ठीक सामने खड़े होते हुए कह रहे थे – “पता नही क्यों आज मुझे ऐसा लग रहा है जैसे सच में मैं कोई काम को दिल से होते देख रहा हूँ – अब फैसला गलत हो या सही पर मैं तुम्हारे हर फैसले में साथ हूँ |”
इस पर अरुण सहजता से हामी में सर हिला देता है|
“तो फिर राजा बिना प्रधानमंत्री के कैसे जाएगा ?”
“क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब जहाँ राजा वही उसका प्रधानमंत्री भी साथ रहेगा और वो मैं हूँ न |”
कहते हुए वे बड़े विश्वास से अरुण को देखते है जिसपर वह अपनी सहज मुस्कान से मुस्कराता हुआ कहता है – “तो आज रात निकलते है फिर !”
“बिलकुल |”
दोनों समवेत भाव से मुस्करा देते है|
***
उजला बाहर जाने का मन बनाती हुई बस निकलने ही वाली थी कि सहसा कोई पीछे से उसका आंचल पकड़ लेता है| वह झट से हैरानगी से पीछे पलटती कह उठती है –
“तुम हो !”
उजला का आंचल अपने मुंह में दबाए बडी उसके ठीक पीछे खड़ा था|
“छोड़ो न – मुझे जाना है न|”
कहती हुई उजला उसके मुंह से अपना आँचल छुड़ाने लगती है पर बडी उसका आंचल नही छोड़ता बल्कि उसे वापस अपनी ओर खींचने लगता है| ये देखते उजला थोड़ी नाराजगी से कह उठती है –
“देखो बडी अभी मेरा मन तुम्हारे साथ खेलने का बिलकुल नहीं है – छोड़ो न – देखो ये कोई मस्ती का समय नहीं है – मुझे जाने दो न – देखो अपने बाबू जी से मिले बिना मुझसे रहा नहीं जाता तो जाने दे न – आह |”
एक दम से आंचल को खींचने से उसका आंचल का एक टुकड़ा बडी में मुंह में ही रह जाता है| ये देखते उजला का चेहरा रुआंसा हो उठता है| वह अपने फटे हुए आंचल को बेबसी से देखती हुई बिफर पड़ती है –
“तू कितना बुरा है – बस अपने खेलने की ही तुझे पड़ी रहती है – देखो फाड़ दिया न मेरा आंचल – अब बोलो कैसे जाउंगी मैं बाहर ?”
उजला रुआंसी होती वही गार्डन में बैठी धीरे धीरे सुबकने लगती है| ये देखते बडी अब उसके पास आता अपने मुंह को उसकी गोद में छिपाने लगता है| पर उजला उसे अपने से परे धकेलती हुई कहने लगी –
“जाओ – अब मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी – वैसे भी कौन है जो मेरा मन समझता है – उन्हें भी मेरी कोई परवाह नहीं – कितनी आसानी से अपनी पत्नी किरन को उजला के आगे भूल गए – ये भी नहीं सोचते कि किरन कहाँ होगी ? बस शिकायत है उससे जिसे उन्होंने कभी जानना भी नहीं चाहा और तू भी बस मतलबी निकला – अपने खेल के चक्कर में मेरी साड़ी फाड़ दी – अब अगर अंदर साड़ी बदलने गई तो शर्तिया फिर नहीं निकल पाउंगी पर तुझे कहाँ कोई बात समझ आती है – जानवर कही का !”
बडी उसकी ओर जितना झुकता उजला उसे और अपने से परे दूर धकेल देती| उसका मन और दुखी हो उठा था| एक तो अरुण का जाना उसे बुरा लगा था तो वही अपने बाबू जी से मिलने वह नहीं जा सका थी| इससे वह उदास होती काफी देर वही बैठी रही|
***
मिस्टर ब्रिज इतना तो समझ गए थे कि अरुण कुछ अलग करने जा रहा है जो दीवान साहब कभी नहीं करते| वह उस लोगो के बारे में सोच रहा था जिनका आज तक सबने प्रयोग किया था पर कभी उन्हें इन्सान की तरह तवज्जो कभी नही दिया था| वे मानते थे कि भावनाओ से बिजनेस नही चलता लेकिन बिना भावना के लिए चलाना खुद को भी एक मशीन मान लेना था| वे अरुण को अचरच से देख रहे थे जो अपना ब्लेजर उतारता हुआ अपनी शर्ट को रफ्ली कोहनी तक आधा मोड़ कर छोड़ता हुआ उनसे कह रहा था –
“तो चले !”
इस पर अपनी मुस्कान से सहमती देते वह भी अपना ब्लेजर उतारकर अपनी शर्ट को तितर बितर करते हुए हामी भरते है| लेकिन अचानक ये देख चौंक जाते है कि दरवाजे की बजाये बालकनी की ओर से निकल रहा था|
“अरुण इसकी क्या जरुरत है – हम दरवाजे से क्यों नही जा रहे ?”
“क्योंकि मैं कितना भी मना करूँ ये सिक्योरटी हमारा पीछा नही छोड़ने वाली – अब घी निकालने के लिए थोड़ा उंगली को तो टेड़ा करना पड़ेगा न |”
“तो क्या इसके लिए बालकनी से कूदना पड़ेगा ?”
वे दोनों अब साथ में बालकनी की ओर खड़े थे और मिस्टर ब्रिज बालकनी को देखते हुए थोड़ा हिचकिचा गए तब अरुण खुद भी बालकनी से कूदकर बाहर निकलता है और ब्रिज को भी वैसे ही निकलने में सहायता करता है|
वे साथ में बालकनी से निकलकर बैकयार्ड तक आते पिछले दरवाजे से होते हुए बाहर निकल आए| मिस्टर ब्रिज अरुण के साथ निकलते हुए हैरान बने हुए थे कि पहली बार आने पर भी वह उस जगह को कितनी आसानी से जानता था| या ये सिक्योरटी का ही लूप होल था|
अरुण सिक्योरिटी वालो की नज़रो में आए बिना ही आसानी से बाहर निकल कर एक ऑटो को रोकता हुआ फैक्ट्री की ओर निकल गया और ब्रिज आश्चर्य से उसे देखते रहे|
उनका लगातार उसे इस तरह अचम्भे से देखने पर अरुण मुस्कराता हुआ कहता है – “अब इतना सब करने के लिए तैयारी तो करनी ही थी – मैंने पहले ही मेंशन के मैप और फैक्ट्री जाने वाले रास्ते की स्टडी कर ली थी|”
“ओह |” वे सहजता से मुस्करा उठे|
अगले ही कुछ समय में वे भावनगर की फैक्ट्री के रास्ते पर थे| वहां वे पहले से ही ऑटो से उतरकर कर पैदल ही उसकी ओर बढ़ने लगे|
.क्रमशः……….
Wow yhi to baat h Arun me….kese kisi ki najro me aane se bacha jay or apna kaam bhi nikl jay…or udhr badi bhi Kiran ko Usk papa se milne se rok rha nhi to use bhi pta chl jayga ki Usk Papa ka illaz Arun krwa rha…
Nice Part. Ab To Arun Jaldi Se UJLA Ko Bata De? Ki Wo KIRAN Hi Hai, Aur Arun Ko Pata Hai
Awesome part.apki sabhi kahaniya real life lagti h .padte padte lagta h kisi ki jindagi ko jiya ja raha h .lagta h ki film ki taraha sab chal raha h aur hum b uska part h
Arun sabhi ki ijjajat karta h yhi baat to use baki deewans se alag karti h