Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 121

“क्या कर रही हो ?”

“भाभी आप !!” मेनका अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी थी| भूमि की आवाज सुनकर वह पीछे पलटकर देखती है|

“सुबह तुम कुछ कहना चाह रही थी – अब बताओ कि क्या कहना चाहती थी तुम ?”

“भाभी उस समय कहना तो था पर अब समझ नही आ रहा कि कैसे कहूँ ?”

अपने मन की घबराहट छिपाने के लिए अपने होठ चबाती हुई कहती है|

“मुझसे कहने में क्या झिझक – बोलो न |” भूमि मेनका के पास आती उसके सर पर हाथ फिराती हुई कहती है|

“भाभी |” मेनका भूमि की गोद में सर रखती हुई कहती है – “मैंने आपको विवेक के बारे में बताया था न !”

“कौन विवेक ? अच्छा जो पंचगनी में तुम्हारा क्लासमेट था वही न !”

“हाँ वही |”

“तो क्या हुआ है उसे ?”

“उसे कुछ नही हुआ – भाभी आप ये भी जानती है न कि हम एकदूसरे को कितना चाहते है|”

“मेनका ये बचपना छोड़ो – जिस प्रेम की कोई मंजिल न हो उसे दिल में बसाने का क्या फायदा !”

“मंजिल हमने तलाश ली है – हम शादी कर रहे है |” झटके से उठती हुई मेनका बोलती है|

“क्या !! तुम जानती भी हो कि तुम क्या कह रही हो ?”

“बहुत अच्छे से जानती हूँ इसलिए हर कठनाई से लड़ने को तैयार भी हूँ |”

मेनका की बात से भूमि के होश उड़े जा रहे थे वह उसे कंधे से पकड़कर अपनी ओर करती हुई कहने लगी – “मेनका होश में आओ और अपनी इस सपनो की दुनिया से बाहर निकलो – तुम्हे पता भी है कि तुम क्या करने जा रही हो !”

“मैंने आपकी राय जानने के लिए आपको ये नहीं बताया – मैं तो सोच रही थी कि इस शादी में कम से कम मुझे आपका आशीर्वाद तो मिलेगा|”

“ये कोरी नादानी है मेनका – तुम अभी समझ नही पा रही कि तुम्हारी ये नादानी विवेक पर कितनी भारी गुजर सकती है – तुम समझ रही हो न कि मैं क्या कह रही हूँ – न डैडी जी और न तुम्हारे आकाश भईया ये किसी भी हाल में होने देंगे – तुम देख चुकी हो न – यहाँ तो अरुण की शादी भी हो चुकी थी फिर भी उसका बस न चला और वो रिश्ता उनका ऊँचा अहम खा गया और तुमने मुझे बताया था कि विवेक भी मामूली घर से है तो तुम्हे क्या लगता है वे किसी भी हाल में उसके साथ तुम्हारा रिश्ता स्वीकारेंगे !”

“पर आप तो मेरे साथ हो न भाभी |”

“मेरे होने से क्या होगा मेनका – मेरी कौन सुनता है – जब खुद के लिए भी मैं कुछ नही कर पाई तो तुम्हारे लिए मैं क्या कर सकुंगी – तुमसे क्या कहूँ कि यहाँ रिश्ते किस कीमत पर ढोए जा रहे है |” भूमि भारी मन से बैठ जाती है|

“भाभी !!” मेनका भी आद्र मन से उसके पास बैठती अपना सर झुका लेती है|

कुछ पल तक कमरे में शांति छाई रही फिर उसकी तन्द्रा तोडती हुई भूमि कहती है – “सुन मेनका – क्या सच में विवेक तुम्हे अपना सच्चा जीवन साथी लगता है – क्या सच में वो तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा ?”

“हाँ भाभी –|”

“तो मेरी बात मान शादी करके तुम कुछ समय के लिए यहाँ से दूर चली जाना – तब तक मैं और अरुण कोशिश करेंगे कि यहाँ सब तुम्हारे इस रिश्ते को स्वीकृति दे सके |”

“भाभी ये आप क्या कह रही है ?”

“हाँ सही कह रही हूँ मैं – आखिर किसी एक को तो अपनी जिद्द छोड़नी पड़ेगी – या तुम इस सच को स्वीकार कर लो कि विवेक के साथ तुम्हारा रिश्ता नही चल सकता या डैडी जी अपना अहम छोड़ दे पर ऐसा होगा मुझे इसकी गुंजाईश नही लगती|”

“तो क्या आप चाहती है कि मैं पीछे हट जाऊं ?”

“मेनका मैं तो बस तुम्हारी ख़ुशी चाहती हूँ पर ये अब तुम्हे सोचना होगा कि तुम अपनी ख़ुशी किस कीमत पर लोगी क्योंकि किरन का हाल तुम देख ही चुकी हो – उसने भी जाने क्या सोचकर अपनी मनमर्जी की और आज तुम उसके पिता का हश्र देख रही हो तो बस तुम्हे चेता रही हूँ बाकि तेरी मर्जी मेनका – मैं तो हर हाल में तुम्हारे साथ हूँ |”

भूमि की बात सुन मेनका के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे| अभी तक जिस चेहरे पर जोश और आत्मविश्वास था अब वही किसी अनजाने में बदल चुके थे|

***
शाम का वक़्त था और भावनगर के उस रास्ते पर इस वक़्त अरुण मिस्टर ब्रिज के साथ खड़ा था जहाँ से जाती एक ही सड़क फैक्ट्री तक जाती थी तो साथ वाली उस खाली प्लाट तक जहाँ कुछ गुंडों ने अपना अवैध कब्ज़ा जमा रखा था|  

“तो मिस्टर पीएम हमे पहले कहाँ जाना चाहिए ? मजदूरो की तरफ या गुंडों की तरफ ?”

“पीएम !!”

“हाँ अब प्रधानमंत्री का शॉट यही होता है न !”

अरुण की बात पर ब्रिज हलके से मुस्करा देते है फिर आगे बढ़ने वाले प्रश्न को सोचते हुए थोड़ा परेशान स्वर में बोलते है –

“वैसे अरुण मुझे दोनों ही आइडिया सही नही लग रहा – दोनों जगह जान का खतरा है |”

“मेरी जान की आप फ़िक्र न करे वो तो घर पर है |”

बेख्याली में जो अरुण कह गया उसपर प्रश्नात्मक भाव से वे अरुण को देखते रहे जिससे अरुण थोड़ा संभलते हुए कहता है – “मेरा मतलब अरुण दीवान को जान का खतरा हो सकता है अरुण को नही – तो आप बेफिक्र होकर चलिए क्योंकि बिना इनमे शरीक हुए हम इनकी समस्या नही जान सकते |”

मिस्टर ब्रिज के लिए ये सब अनोखा और अद्भुत था, वे तो दीवान साहब को कुर्सी पर जमे हर फैसले को सब पर थोबते हुए देखते थे| कभी आज तक ऐसा कुछ उनकी नजरो से नही गुजरा जब दीवान साहब ने सामने वाले की निजी जिंदगी को समझने की जरा भी कोशिश की हो| लेकिन यहाँ सब अलग ही दृश्य बन रहा था|

“आप यही रुकिए मैं बस अभी आता हूँ |”

जब तक वे अपनी सोचने की प्रक्रिया से बाहर आते तब तक अरुण अपनी बात कहता झट से उस तरफ बढ़ गया जहाँ गुंडे थे| वह पीछे की दीवार को फलांग कर प्लाट के अंदर प्रवेश कर जाता है| वह जहाँ कूदा था वहां बहुत तरह का कबाड़ पड़ा था, खाली ड्रम, टायर, डब्बो का ढेर जिनके पीछे छिपा हुआ अरुण आगे का जायजा ले रहा था| वह ऐसे एकांत में खड़ा था जहां से वह आसानी से उस जगह का जायजा ले सकता था पर उसको कोई नही देख पाता, वह वही किसी खाली ड्रम के पीछे आड़ लिए खड़ा था। तभी कोई कड़क आवाज उसे सुनाई पड़ी और अंधेरे में से दो लोग उसकी ओर आते हुए उसे दिखे|

दोनों गुंडे टाइप के ही दिख रहे थे जिसमे से एक जो ज्यादा तगड़ा दिख रहा था वो दूसरे वाले को हड़काते हुए बोल रहा था

“अबे घसीटे – क्या मै रोटी दारू में डुबोकर खाऊंगा – हम शराब बेचते हैं पर खाने के वक़्त तो रोटी से ही भूख मिटेगी |”

“पर भाई बहुत ढूंढा पर साला आज एक दुकान नही मिली|”

“और कल तक जो तू खाना लाता था वो किधर से आता था ?”

“वही तो भाई – वो एक दुकान थी पर कमीना पूरे दिनभर से दूकान बंद करके  फरार है |”

“देख बे अपन को नहीं पता वो कहाँ मर गया लेकिन अपन तो टाइम पर रोटी और बोटी दोनों का इंतजाम चाहिए नहीं तो अपन तेरे को भूनकर तेरा कबाब बनाकर ही खा जाएगा – समझा बे |” वह कड़कते हुए उसका गिरेबान पकड़कर उसे पीछे की ओर धकेल देता है इससे वह जमीन में लड़खड़ाते हुए गिर जाता है|

उसे पीछे की ओर धकेलकर वह ज्यादा तगड़ा आदमी वापस अँधेरे की ओर चला जाता है जबकि दूसरा जो जमीन पर गिरा पड़ा था तुरंत ही उठता हुआ अपने गले में फसे रूमाल को बुरी तरह खींचता हुआ हाथ के बीच मरोड़ता हुआ बड़बड़ाता है – ‘भाई कुछ समझता ही नही – कहां से खाना लाऊं ? साला दारु का इंतजाम करना आसान है पर खाना मिलता ही नही – यहाँ से बस्ती कितना दूर दूर है – अब किसके पास जाकर खाने की भीख मांगू – फिर से जाता हूँ कहीं कुछ मिल जाए नही तो रसाला सच में मुझे ही भूनकर क्या कच्चा ही खा जाएगा |’

अपने में ही बडबडाते हुए वह आदमी भी दूसरी ओर चला गया| उन दोनों को जाते देख अरुण भी मौका देखकर दुबारा उस दीवार को फलांग कर उस पार पहुँच गया जहाँ ब्रिज अभी भी खड़े थे| उसे इस तरह आते देख वह अपने होश में वापस आते तुरन्त उसकी ओर लपकते हुए दबी आवाज में कहते है –

“बाते बाते करते करते कहा चले गए थे ? मुझे तो तुम्हे लेकर फ़िक्र होने लगी थी|”

अभी दीवार से उतरकर अरुण सीधा ही खड़ा हुआ था कि दो कुत्ते एकदूसरे का पीछा करते उन दोनों के बीच से इतनी तेजी से निकले कि वे साथ में पीछे की ओर गिर गए| वहां रेत का ढेर था जिसपर गिरे वे अब साथ में उठते हुए अपने अपने कपड़े झाड़ने लगे –

“अब यही होना बचा था – मुझे लगता है अरुण अब हमे यहाँ से निकलना चाहिए – देखो हमदोनों गंदे हो गए |”

“रुकिए पीएम – अभी हमारा काम पूरा नहीं हुआ और जो होता है अच्छे के लिए होता है – चलिए अब फैक्ट्री तक चलते है|”

जितना ब्रिज हड़बड़ाहट में थे अरुण उतना ही रिलैक्स नज़र आ रहा था| अरुण अब फैक्ट्री की ओर चल दिया था और वे चाहकर भी उसे रोक नही पाए|

फैक्ट्री बंद पड़ी थी और सारे मजदूर इधर उधर बिखरे हुए नज़र आ रहे थे| उस जगह पर कुछ दो चार मद्धिम वाट के बल्ब जल रहे थे जिसकी पीली रौशनी में वे दोनों साथ में आगे बढ़ रहे थे तभी कोई उन्हें टोकता हुआ ठीक उनके सामने खड़ा हो जाता है|

“कौन हो भाई – यहाँ कैसे आए ?”

ब्रिज अरुण की ओर देखते है तो अरुण बड़े शांत स्वर में कहता है –

“हम यहाँ पास ही किसी मंडली में आए थे पर शायद रास्ता भटक गए – क्या थोड़ी देर यहाँ बैठ सकते है ?”

सामने खड़ा आदमी उन दोनों को ऊपर से नीचे देखता है| उस वक़्त उनके कपड़े धूल से सने नज़र आ रहे थे जिससे उसे उनपर विश्वास करने में देर नहीं लगी तभी उसके पीछे से कोई अधेढ़ व्यक्ति आता हुआ कहता है –

“मदन किससे बात कर रहे हो – कौन है ये ?”

“काका ये दो कोई भटके हुए लोग जान पड़ते है – थोड़ी देर यहाँ सुस्ताने को पूछ रहे है |”

उसके पीछे से चलता हुआ आता वह अधेढ़ भी उन दोनों का नज़रो से निरिक्षण करता हुआ कहता है –

“तो बैठने दो मदन – अरे भाई जाओ वहां बैठ जाओ –|”

“आपका धन्यवाद काका |” आगे बढ़कर बोलता हुआ अरुण उनके दिखाए स्थान पर जाकर बैठ जाता है|

“चलो मदन खाना खा लेते है |” काका अब मदन को अपने साथ चलने को कहते दूसरी ओर बढ़ जाते है|

अरुण और ब्रिज उन सबको देखने लगे थे| वे मजदूर अब धीरे धीरे करके एक स्थान पर आकर जमा हो गए थे| वे देखते है कि एक कोने में मजदूर औरते खाना पकाने में लगी हुई थी| वे सभी साथ में सारा काम कर रहे थे|

ब्रिज अरुण के कानो के पास आते हुए धीरे से कहते है – ‘अब देख लिया हो तो चले यहाँ से !’

पर अरुण उनकी बात सुन ही नहीं पाता उसका सारा ध्यान उन मजदूरों की ओर था| वहां का दृश्य उसके मन को उदोलित कर रहा था| वे औरते साथ में खाना बना रही थी तो मजदूर के बच्चे जहाँ कुछ ज्यादा रौशनी थी वहां खेलते नज़र आ रहे थे| कितनी बेफिक्री से बनी हुई थी उनकी दुनिया जहाँ बस एकदूसरे का साथ था न कोई झूठा अहम न तकरार फिर आखिर वे कैसे किसी दूसरे मजदूरो पर आक्रमण कर सकते है !!

क्या अरुण को उसके सवालो का जवाब मिलेगा ? क्या करेगा अरुण अब आगे? बस अगले पार्ट में..

.क्रमशः…….

12 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 121

  1. Badhiya bahut hi Badhiya….Esa hi hona chahiy jb tk logo ki Asli problem pta na ho koi decision nhi lena chahiy Arun shi kr rha h…phle bhi yo raja Esa hi krte the..
    Aaj Asli baat bhumi k dil se bhi nikl gyi.. ki wo apne rishte ko kese nibha rhi h….wo menka ko bhi shi baat samjha rhi h bt wo smjhe tb na.
    Aaj kafi din baat part mila bt accha tha

  2. Wah.. Arun ek sacha insaan hai.. jo dusro ke dukh aur khushiyan ache se samjhta hai.. 😍😍
    Menka ab kya karegi.. agar na karegi to Vivek kya karega.. mehka ko kaise pta chalega ke Vivek uska istemal kar rha hai..🥺🥺

  3. Superb part ❤❤❤❤!!! Bhumi ne samjhane ki koshish ki hai menka ko.. Par pyar andha hota sahi ya galat nahi dekh pata.. Jab menka college mein thi.. Tab vivek uska jeevansaathi banne layak tha… Par ab vo sirf use istemal kar raha hai… Agar aankhein khol kar dekhegi tab dekhega use… Kahin inki baatein ujala na sun rahi hoo ye darr lag raha hai… Aur use galat insan par shak ho jaye.. Kyoki use kidnap to vivek ne kiya tha.
    Ye gunde roti ke piche maar peet kar rahe hain… Jaisa dekh kar laga… Arun ne step sahi liya hai… Dekhtein hain aage kya hota hai

  4. wonderful part har bar ki tarah.
    shayad menka ab koi thos faisla le paye. Bhumi bhi kuch khoyi hui lagi menka ko sab samjhate hue.
    Arun ka to andaz hi nirala hai.

  5. Payaar andha hota h menka abhi kuch b nhi samjhegi..vakt ke sath thokar khakar hi samjhegi…..Arun ne majduro ki samsya ka pta lagane ka bahut hi achcha tarika dundha h

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