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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 122

कुछ मजदूर एक कतार में बैठ गए थे तो कुछ पत्तल बिछाकर उनमे खाना परोस रहे थे| अरुण ये देखकर दंग था कि कितनी एकता थी उनमे| उन्हें ऐसे देखकर कोई भी कह देता कि वे सभी एक ही परिवार से है| पर क्या वाकई ऐसा है !!

तभी उनमे से एक मजदूर दो अलग अलग हाथ में पत्तल हाथ में लिए उनकी ओर आता हुआ कहता है –

“भाई बहुत दूर से आए हुए मालूम पड़ते हो – लो जो हम रुखा सूखा खा रहे है वो तुम भी कहा लो |”

कहते हुए वह दोनों पत्तल उन दोनों की ओर बढ़ा देता है पर ये देखते ब्रिज एकदम से चिहुंक पड़ते है| उनका तो उसे ये कहने का मन हो आया कि जो मालिक तुम्हे खाने को देता है तुम उसे ही अपना रुखा सूखा दे रहे हो !! ब्रिज अपनी सोच में गुम रह गए और अरुण ख़ुशी से उसके हाथ से पत्तल लेता हुआ कहता है –

“आपका शुक्रिया |”

अरुण एक पत्तल पकड़ लेता है पर मजदूर ब्रिज को शांत देखता कह उठता है – “लगता है तुम्हारे पिता हिचकिचा रहे है – अरे भाई अतिथि देवो भवा – हमारे द्वार बैठे अतिथि को भोजन कराए बिना हम भोजन कैसे कर सकते है – हाँ बस अपनी सामर्थ के अनुसार दाल बाटी दे सकते है |”

अरुण मुस्कराते हुए दूसरा पत्तल ब्रिज की ओर बढ़ाते हुए कहता है – “हाँ पिता जी लीजिए |”

अरुण जिस सहजता से उनकी ओर देख रहा था उससे कही ज्यादा उनमे हिचकिचाहट भर गई थी| उनके लिए ये दृश्य सबसे अविश्वास था| एक अरबपति उनके बगल में बैठा मजदूरों का दिया भोजन चाव से खा रहा था| ये देखते उसे लगा आज राम उतरे है शबरी की अनुग्रह स्वीकारने| ऊपर से शायद उसकी उम्र की वजह से वे मजदूर उसे अरुण का पिता समझ रहे थे| ये सोचते ब्रिज मुस्करा देते है|

“अरे पिता जी – आप मुस्कराते रहेंगे तो खाना ठंडा हो जाएगा |”

अरुण की बात पर वे अपनी पत्तल को भी अरुण की तरह अपनी गोद में रख लेते है| उस भोजन को देखते उनके पेट में से गुडगुड की आवाज आने लगी |आज उस साधारण सी दाल में डूबी बाटी उनके लिए किसी अमृत से कम नहीं थी| उनके लिए पत्तल में भोजन करना कोई मुश्किल नहीं था पर अरुण बडी मुश्किल से पत्तल पकड़े हाथ से बाटी तोड़ रहा था| ये देखते ब्रिज उसके सामने अपनी पत्तल करते अपने हाथ से खाते इशारे से उसे हाथ से खाने का तरीका समझा रहे थे|

खाने के बाद वे उसे पत्तल सही से मोड़कर फेकने का भी बता देते है| उसके बाद वे साथ में मटके के पास पहुंचकर उससे चुल्लू से कैसे पानी पिए ये भी संकेत में सिखा देते है| जैसा जैसा ब्रिज करते जा रहे थे अरुण भी वैसा ही करता जा रहा था| ये देखते वे संकोच मिश्रित मुस्कान से मुस्करा देते है|

अब अरुण उन मजदूरो के पास आता कृतज्ञता से कहता है – “आप सबका शुक्रिया जो आपने हमे अपना खाना दिया |”

“अरे भाई शुक्रिया कैसा – हम कौन होते है देने वाले – खाने खाने में लिखा है खाने वाले का नाम -|”

इसपर अरुण मुस्कराते हुए उनसे और निकटतम की वार्ता करने लगता है – “वैसे क्या आप सब यही रहते है ? ये तो कोई फैक्ट्री लगती है !”

“हाँ भईया फैक्टी ही है लेकिन दस दिन से काम बंद कर रखा है – अभी तो कारखाना ठीक से शुरू भी नहीं हुआ और इसके मालिक ने काम ही बंद करा दिया |”

“ऐसा क्यों ?”

“बड़े साहब लोग है न – उनके लिए क्या फर्क पड़ेगा – दो चार महीना भी बंद रहे पर हम दस दिन से कैसे कैसे गुजारा कर रहे है ये बस हम ही जानते है – अब दो चार दिन का राशन बचा है इसलिए एक बार ही बनाकर खाते है – और उसके बाद क्या होगा राम ही जाने |” एक गहरा थका श्वांस छोड़ते हुए वह मजदूर कहता है|

“लेकिन ऐसा हुआ क्यों – फैक्ट्री बंद होने से तो उन्हें भी नुक्सान होता होगा न !”

“अब क्या बताए |” कहते हुए वह मजदूर शांत होता अन्यत्र देखने लगता है|

लेकिन अरुण सब जानना चाहता था इससे वह फिर पूछता है – “अगर बताना चाहो तो बता दो – मुझे बडी जिज्ञासा हो रही है |”

“छुपाने जैसा कुछ नही है – बस बार बार जख्म कुरेदने का मन नही होता |” काका जो उन्हें बात करते देख उनकी तरफ आगे आते हुए कहते है – “हमारा काम बड़ा शान्ति पूर्वक चल रहा था – यही काम करते और पास ही सड़क पर छप्पर डाले रात काट लेते – वहां से यहाँ आने के लिए हम जिस सड़क से गुजरते वही कोने में एक प्लाट है जहाँ कुछ मवाली गुंडों ने जगह घेर रखी है – अब हमको क्या करना  भईया जिसको जहां रहना हो पर एक दिन रात में लौटती हमारे समूह की एक औरत को एक गुंडे से छेड़ दिया – पहले तो हम सबने मना किया पर उन गुंडों के कौन मुंह लगता तब हमने बड़े साहब को सन्देश भिजवाया कि वही कुछ करे पर कोई हमारी सुनने नही आया इससे उन गुंडों को शह मिलती गई और फिर रात होते वे सभी सड़क पर अपना जमघट लगाने लगे इससे हमारी माँ बहनों को निकलने में बडी दिक्कत आती – उसी में बस एक दिन झडप हो गई – अब आखिर कैसे अपनी बहनों की रक्षा हम नही करते पर उसमे हम सभी ही ज्यादा घायल हो गए – अब उन गुंडों से कैसे हम मामूली लोग निपट पाते इसी लिए हम अड़ गए कि जब तक ये गुंडा लोग यहाँ से नहीं हटेंगे तब तक काम नही होगा पर इसकी गाज भी हम पर ही गिरी – इतना सब होने पर भी हमारी मदद को कोई नहीं आया – हाँ बड़े साहब ने हमारी जगह दूसरे और मजदूरो को भिजवा दिया |”

“फिर तो तुम दोनों में झडप हो गई होगी ?”

“नहीं भाई – हम सब गरीब पैसे के खातिर एकदूसरे का काम जरुर कर लेते है पर आपस में लड़ते नही – ये सब उन गुंडों ने किया और मामला हम पर डाल दिया गया – सुना था कि यहाँ के थाने का पुलिस वाला उन गुंडों से पैसा खाया था तभी सब कुछ हम पर डाल दिया – हम सब गरीब मजूर आदमी है रोज कुआं खोदकर पीने वाले – हम सब उन सबसे कैसे लड़ते – बस तब से यही शरण लिए समय काट करे है |”

ये सब सुनते अरुण की आँखों के अंदर गुस्सा भरने लगा| पर किसी तरह से अपने मनोभाव पर नियंत्रण करता हुआ वह आगे पूछता है –

“तो तुम सबने खुद फैक्ट्री के मालिक से संपर्क करने की कोशिश क्यों नही की ?”

ये सुनते मदन कुछ ज्यादा ही जोश में आगे आता बोल पड़ा – “उन अमीरजादो को इससे कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार संदेसा भिजवाया – मिलने की कोशिश भी की पर हमसे न कोई मिला न कोई हमारी खबर लेने आया – यहाँ हमारी औरते बच्चे किस हाल में है किसी को कोई फर्क नही पड़ता – कितनी बार बच्चे दिन में दो बार खाने को मांगते है तो पानी पिला पिला कर हम बहलाते रहते है पर उन बड़े साहब के कानो तक जू भी नहीं रेंगती – अब तो लगता है हम जब मर जाएँगे तो हमारी लाश ही फिकवाने आएँगे |”

ये सब सुनते अरुण अपना माथा मसलते सोचने लगता है उसे इस तरह देख काका कहने लगे –

“अरे बेटा तुम हमारे मामले में क्यों पड़ते हो – वैसे भी गरीब की क्या जिंदगी और क्या मौत – जब तक साँसे है तो बस शरीर चल रहा है – चलो चलो – बहुत रात हो गई सो जाते है |” थकी हुई आवाज में कहते वे विपरीत दिशा में मुड़कर चल देते है|

उन सबको जाते देख ब्रिज अब अरुण की ओर देखते है लेकिन अरुण काका को आवाज लगाते हुए कह रहा था –

“काका अब हम भी चलेंगे |”

“ठीक है बेटा |”

“पर एक गुजारिश थी मेरी – वैसे सही अर्थ में कहूँ तो एक मदद चाहिए थी मुझे |”

“मदद !! हमसे कैसी मदद ?”

“असल में हम कुल बीस लोग ठहरे है तो उनके खाने पीने की बहुत दिक्कत हो रही है और यहाँ आस पास कोई ढाबा भी नहीं है तो क्या आप हम बीस लोगो के लिए खाना बनवा देंगे |”

“है !!”

“आपको ज्यादा परेशानी नही होगी – असल में हमारे पास कच्चा माल है पर खाना बनाने के लिए कोई महिला नही है तो अगर हम वो सब आपको दे दे तो हमारी बहुत मदद हो जाएगी |”

ये सुनते वहां खड़े कुछ मजदूर एक दूसरे का मुंह देखते रहे जैसे बात समझ न पाए हो| ये देखते अरुण जल्दी से फिर कहने लगा –

“हमारे लिए मदद कर देते तो हम बहुत शुक्रगुजार होते |”

“ठीक है – अब फैक्ट्री का काम तो है नही दिन भर खाली ही रहते है – ठीक है |”

अरुण सहज मुस्कान छोड़ता हुआ वहां से निकल जाता है पर इन सबके बीच जो सबसे अजीब हालत थी वो ब्रिज जी की थी उन्हें अब तक कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अरुण आखिर करने क्या वाला है|

कुछ रास्ता पैदल जाकर वे आगे से ऑटो लेकर मेंशन की ओर चल देते है|

“इतना सब हो गया लेकिन आपने सारी सिचुवेशन को खुद क्यों नही हैंडिल किया ?”

“हाँ मुझे भी बहुत बुरा लगा – असल में लोकल मेनेजर ने जो बताया वो ही मुझे पता था – आज मैं खुद पहली बार यहाँ आया और सच में आज आकर लगा कि नहीं आता तो सही बात का कभी पता नही चलती |”

वे अपनी बात कहते कहते अरुण के चेहरे की ओर देखते है जो बेहद तना हुआ मालूम पड़ रहा था| इससे वे आगे कुछ नही कहते|

वे मेंशन से कुछ दूरी पर ही ऑटो रुकवा कर उसी तरह से मेंशन में जाने लगे जैसे वे बाहर गए थे| ब्रिज जी को बड़ा आश्चर्य लग रहा था कि इतनी सिक्योरटी के वाबजूद उनका बाहर जाना आखिर कैसे वे सभी जान नहीं पाए| ये सिक्योरटी का लूप होल था या अरुण की मुस्तैदी !!

***
एक अँधेरे शराब के अड्डे में विवेक और सेल्विन आमने सामने बैठे थे| दोनों के बीच एक आधी भरी बोतक रखी थी जिसका अर्थ था वे सिर्फ बात करने वहां बैठे थे और समय काटने के लिए शराब को धीरे धीरे चुसक रहे थे|

“विवेक जब तुम्हारा और रंजीत साहब का मकसद एक है तो तुम उनसे दुश्मनी क्यों ले रहे हो – क्यों नही उनके अनुसार काम करते |”

“तो तुम क्या अपने रंजीत साहब की सिफारिश लेकर आए हो ?”

“सिफारिश नही सच्चाई बोल रहा हूँ – अकेले क्या कर सकोगे ?”

“मुझे जो करना है वो मैं खुद कर लूँगा – मुझे उसकी जरुरत नही है और बात एक मकसद की करते हो तो तुम क्या जानो मैं किस आग में जल रहा हूँ – तुमने अपनी आँखों के सामने अपनों को मरते नही देखा – तुम्हारी बहन जिसने बच्चे की तरह पाला हो उसे मौत से भी बद्दतर जिंदगी जीते नही देखा इसलिए तुम मेरी हालत नही समझ सकते – उसे बदला चाहिए और मुझे इन्साफ |”

कहते कहते विवेक की आँखों में जैसे कोई आग सी दहकने लगी थी|

“मैं समझ सकता हूँ इसलिए तो आज तुम्हारे सामने बैठा हूँ |” कहते कहते सेल्विन की आँखों में कोई अनजाना सा दुःख उभर आया लेकिन उस पर जल्दी ही काबू करता हुआ कहता है –

“मैं आज तुम्हे एक बात और बताता हूँ जिससे तुम आकाश दीवान को काबू में कर सकते हो – उसका कोई सीक्रेट स्टैला नाम की पत्रकार के पास है – वो क्या है मुझे नही पता पर कुछ ऐसा जरुर है जिससे तुम उसकी नींव हिला सकते हो और ये बात मैं पहले तुम्हे बता रहा हूँ – रंजीत साहब को भी नही पता  |”

व्यंगातमक हँसी से विवेक पूछता है – “तो मुझपर इतनी महरबानी क्यों ?”

“अब बता रहा हूँ तो सुन लो – हर एक पर शक क्यों करते हो ?”

“क्योंकि विश्वास मेरी जिंदगी की किताब में नहीं – फिर भी यकीन कर लेता हूँ पर उससे भी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है जिसका शुभारम्भ मैं कल करने वाला हूँ – उसके बाद से ये सारे दीवान मेरे आगे नाक रगड़ेगे और इस दिलचस्प नज़ारे का मजा सिर्फ मैं लूँगा |”

कहते कहते विवेक झटके से बोतल को उठाकर अपने हलक में उतारने लगता है ऐसा करते उसकी आँखों में कोई ज्वाला सी दहक रही थी जबकि सेल्विन चुपचाप उसके सामने बैठा रहा|

उस वक़्त उन दोनों की बाते कोई और भी था जो वहां सुन रहा था| ये संयोग था या साजिश !!

क्रमशः……..

12 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 122

  1. Ohhh kya part tha aaj ka gajab….jesa Arun ne Kiya wese hipahle raja bhi krte the bahut hi badhiya……bt ye Vivek or selvin Jo kr rhe h wo bhi shi nhi h sbko ek jesa nhi hona chahiy…..bt unhone bhi to kafi kuch sha hoga isliy hi Esa kr rhe bt Vivek Jo krne ja rha wo galat h wo usse pyar krta tha or ab usi ko use krne ja rha

  2. Bahut hi sundar bhavnatmak part
    Gareeb ka dukh unke beech kaa kar hi samajh sakte hain ab Arun ko sab sach pta chal gya hai ab gunde logo ki khai nhi

  3. Amazing part.. emotional… Arun ne bohot samajhdaari se baat ka pta laga liya.. ab iska solution bhi kar dega . .. 🤗
    Vivek sach me menka ko dhokha de rha hai .. chahe insaaf ke liye par menka to bekasoor hai.. 🥺🥺
    Aur kaun un dono ki baat sun rha hai.. ab aur kaun a gya..🤔

  4. Ranjeet apna badla lega thik h pr Vivek ka tarika galat lga, pr hmare mam esa hone b nhi degi shayad tbi koi unki baate koun sun rha h.. wait for next…

  5. Arun factory ki problem ko bahut hi achche se hendle kr rha h….vivek menka ko use karke bahut galat kr rha h

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