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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 124

विवेक मेंशन के अंदर था और मेनका के पीछे पीछे चलता हुआ अपनी वक्र दृष्टि से उस मेंशन को देख रहा था| ऐसा करते उसके हाव भाव काफी कसे हुए थे जिन्हें मेनका देख भी नहीं पाई थी|

वह उसे स्टडी रूम की ओर लेकर आती है| उसने विवेक को लिविंग रूम मे नहीं बैठाया क्योंकि एक अजनबी सा डर उसे इतना भी हौसला नही करने दे रहा था जबकि उसे पता था कि उसके पिता अभी वहां नही थे|

उस वक़्त जब मेनका विवेक के साथ थी तभी उजला पीछे से उन्हें देखती है| अब तक उसने मेनका को किसी अजनबी के साथ कभी इस तरह नही देखा कि जिसका हाथ पकड़कर वह उसे अपने साथ ले जा रही हो| ये देखते वह उस शख्स को देखने उसकी ओर आती है|

उस रूम मे आते मेनका विवेक को बैठाती है कि तभी उजला भी वही आ जाती है और उस पल दो बातें एक साथ होती है| उजला बनी किरन और विवेक एकदूसरे को हैरानगी से देखते पल भर को असहज हो जाते है जबकि मेनका उजला को देखती हुई कहने लगी –

“उजला दो कप कॉफ़ी ले आना हमारे लिए |”

जहाँ किरन को देखते विवेक के होंठ हलके से विस्तारित हो चुके थे वही उजला के हाव भाव मे तनाव नज़र आने लगा था| उसने कभी कल्पना भी नही की थी कि जिस शख्स ने उसकी अच्छी खासी जिंदगी को एक क्षण मे तबाह कर दिया और जिसे अब तक वह मरा हुआ समझ रही थी उसी को वह इस मेंशन मे और वो भी मेनका के साथ देखेगी ?? ये देखते उसके दिलोदिमाग मे जैसे हजारो चिंगारियां सी फूटने लगी|

“मेनका !” उजला जहाँ बुत बनी खड़ी रही तो वही विवेक मेनका का हाथ पकड़ते हुए कहने लगा – “हमने दूसरो के हाथ की कॉफ़ी तो बहुत पी है – आज मैं तुम्हारे हाथ की कॉफ़ी पीना चाहता हूँ 

“ठीक है – बस कुछ देर बैठो – मैं अभी बनाकर लाती हूँ |”

कहती हुई मेनका प्यारी सी मुस्कान विवेक के चेहरे पर छोड़ती हुई उस रूम से बाहर निकल जाती है| उसके निकलने का जैसे विवेक और उजला भी इंतज़ार कर रहे थे| मेनका के वहां से जाने की तसल्ली होते विवेक अब बिना आवाज के हँसता हुआ उजला के ठीक सामने खड़ा होता हुआ कहता है –

“उजला ….वैसे पुराने नाम से ये नाम भी कुछ बुरा नही है |”

“नीच..!” उजला एकदम से बिफरती हुई उसका कॉलर पकड़ती हुई बोलती है – “मुझे लगा तुम मर गए हो और ये समझते हुए कि अब मेरा सच कोई नहीं जानता मैं अब तक सब कुछ सहती रही पर अब नहीं – आज ही मैं तुम्हारा भांडा सबके आगे खोलकर रख दूंगी कि कैसे तुमने अचानक से आकर मेरा अपहरण किया और कैसे मुझे जबरन बंदी बनाकर रखा लेकिन तुम बचे कैसे ? उस वक़्त कार के एक्सीडेंट से तो नर्स ने बाताया था कि तुम मर गए – मैंने तो कपड़ो से लाश की पहचान भी की थी – फिर ?”

“कुछ मुश्किल नही था जैसे तुम्हारे कमरे तक चुपचाप पहुंचना और न तुम्हे बेहोश करके तुम्हे अपने साथ ले जाना और फिर अपनी जगह किसी दूसरे की लाश को बदलना – सबके लिए जिगर मे आग चाहिए तो मुझसे ज्यादा किसी मे नहीं |” कहता हुआ वह उजला का हाथ अपने कॉलर से पीछे धकेल देता है|

“अच्छा है जो तुम बच गए – आखिर ईश्वर चाहते है कि मेरा सच सबकी नजरो के सामने आए और तुम्हारे पाप का अंत हो और तुम मेनका के साथ कौन सा खेल खेल रहे हो – जो भी हो – अब और मैं तुम्हे मेरे परिवार के साथ बुरा नहीं करने दूंगी |”

“ओह ग्रेट – मेरा परिवार !! जिसने एक घटना से ही तुम्हे दूध से मक्खी सा निकाल फेंका और जहाँ तुम खुद अपने नकली अस्तित्व के साथ खड़ी हो – उस परिवार पर इतना विश्वास कि वो तुम्हारी बात सुनते ही सब कुछ सच मान लेंगे ?”

उजला स्तब्ध उसे देखती रही|

“तुम्हे पता नही क्या कि सच को भी सच साबित होने के लिए हकीकत का जामा पहनाना पड़ता है और मैं झूठ को इतना जामा पहनाऊंगा कि तुम्हारा सच कोई सच नही मान पाएगा |”

अपनी बात कहते हुए विवेक के हाव भाव एकदम से शैतानी हो चुके थे और वह उजला की ओर झुकते हुए कह रहा था – “वैसे खुद सामने आकर तुमने मुझे बहुत अच्छा आइडिया दिया है – अब मैं कहता हूँ कि जाकर सबको मेरे बारे मे बता दो फिर कहोगी तो मेनका के रस्ते से भी हट जाऊंगा मैं – बस तुम मेरा पूरा साथ देना |”

उजला कुछ समझ नही पा रही थी वह आश्चर्य से उसकी ओर देखे जा रही थी|

जबकि विवेक जूनून से अपनी बात कहता जा रहा था – “तब बस मुझे ये साबित करना होगा कि हमारा कितना ख़ास रिश्ता है – तभी तो हमने साथ मे भागकर ये प्लान किया था कि तुम दीवान परिवार के बेटे को फसाओ और मैं उनकी बेटी को अपने जाल मे फसाता हूँ और बस एक बार मेरे ये कहने की देर है क्योंकि जिन लोगो ने तुम्हे जाने बिना ही तुम्हारे बारे मे ये यकीन कर लिया तो इस बार भी आसानी से यकीन कर लेंगे कि हम दोनों ने मिलकर ये सब किया और एक पल मे अरुण दीवान की नज़रो से तुम सदा के लिए सररर से नीचे गिर जाओगी |”

“तुम कितने कमीने हो !”

दांत पीसते हुए विवेक कहता है – “जब कीचड़ को साफ़ करना हो तो खुद कीचड़ मे उतरना पड़ता है – इस वक़्त मेरे सर पर जूनून की आंधी सवार है जिसके सामने जो भी आएगा वो बचेगा नही |”

“तुम्हारा इरादा क्या है ? तुम आखिर चाहते क्या हो ?” उजला कांपते हुए स्वर मे पूछती है|

“जो भी इरादा है बस मेरे सामने से हट जाओ और जो मैं कर रहा हूँ उसमे लेशमात्र भी अडचन डालने की सोचना भी नहीं – अभी जो हो वही बनकर रहो – न मैं तुम्हे पहचानता हूँ न तुम मुझे – बस यही याद रखना |”

उस पल उजला के मन मे क्या कुछ गुजर कर रह गया ये बस उसका मन ही जानता था|

तभी दरवाजे के खुलने की आहट होते उजला झट से परदे के पीछे छिप जाती है| अब मेनका ट्रौली के साथ कमरे मे प्रवेश करती है|

उसे देखते अपने हाव भाव तुरंत बदलता हुआ विवेक उसका हाथ पकड़कर झट से उसे अपने पास खीच लेता है –

“इतनी देर के लिए अकेला क्यों छोड़ कर गई ? पता है न तुम्हारे बिना एक पल भी अब मेरा नही कटता |”

मेनका भी अपनी देह ढीली छोडती हुई उसके सीने से लगी थी और विवेक उसके बालो पर हौले हौले उंगलियाँ फेरता हुआ कह रहा था – “बस इतने ही करीब मैं तुम्हे हमेशा देखना चाहता हूँ |”

“अच्छा अब बोलो न क्या सरप्राइज था ?” वह उसकी उदोलित बाहों में समाती हुई कहती रही – “तुमने कहा था कोई सरप्राइज है और अब मुझे बता नही रहे – क्यों सता रहे हो मुझे |”

“अब वो सरप्राइज कह रहा है कि कल आऊंगा तो कल सुबह पक्का |”

“झूठे हो तुम – मुझसे कॉफ़ी भी बनवा ली और कुछ बताया भी नहीं |” मेनका रूठी हुई आवाज मे कहती उसके सीने पर हौले से मुक्का मारती हुई कहती है|

“तभी तो इस बुद्दू से प्यार है – कितना साफ़ इंडिकेशन दिया और तुम समझी ही नहीं |” कहता हुआ विवेक अब मेनका का चेहरा अपनी हथेली मे भरता उसका चेहरा अपनी नज़रो के सामने करता हुआ कह रहा था – “कौन कम्बख्त उन प्यालो से कॉफ़ी पीता है – हम तो तलबगार है इन अधखुले गुलाबी अधरों के…|” लहकती आवाज मे कहता हुआ विवेक उसके होंठो पर अपने गर्म होंठ रख देता है और पल मे दोनों मदहोश होते एकदूसरे को कसकर थामे एकदूसरे के अंतर्मन मे समाने लगते है| विवेक मेनका की कमर को अपनी दोनों बाजुओ से अपनी ओर लगातार कस रहा था तो वही मेनका की ढीली पड़ती देह पूरी तरह से विवेक की बाँहों के बीच थी| मेनका ऑंखें बंद किए उन प्रेम की अंध गलियों मे भटक गई थी|

मेनका जिस बात से बेखबर थी पर विवेक अच्छे से जानता था कि उस वक़्त कमरे मे उजला भी मौजूद है जो परदे के पीछे थी और उजला की उस वक़्त ये हालत थी कि वह चाहकर भी अब अपनी जगह से हिल नहीं सकती थी| वह कसकर ऑंखें बन किए अपनी मुट्ठियाँ भींचे अपने बेहिसाब आंसुओं को रोकने की कोशिश मे लगी थी|

***
ब्रिज समझ नही पा रहे थे कि अरुण करना क्या चाह रहा है वह तो बस आंख मूंदे उसकी बात का अक्षरशः पालन कर रहे थे| वह सुबह जो कर के आया था ठीक वही शाम को भी किया और उन गुंडों को पल मे अपने विश्वास मे ले लिया| ब्रिज हैरानगी से उसे देख रहे थे| अरुण उस मवाली से गुंडे के कंधे पर हाथ रखे कह रहा था –

“भाई बस एक लफड़ा है – वे मजदूर डरते बहुत है |”

“हाँ तो !!”

“मतलब डरते डरते लगता नही रोज आप सबके लिए खाना बना पाएँगे |”

“क्यों नही ?” अरुण कि बात पर अकड़ता हुआ वह गुंडा अपनी बाजू कि मज़बूरी उसके आगे लहराता हुआ कहने लगा – “बोलो तो एक को मार दूँ ?”

“फिर वही मार पीट – जब प्यार से वो सब खाना बना दे रहे थे फिर आप के कसरती बदन को फालतू मे पसीना बहाने की क्या जरुरत है – बस एक काम करने से वे डरेंगे नहीं और खाना भी रोज बना देंगे |”

“कौन सा काम ?”

अरुण उनके आगे थोड़ी मासूमियत से कहने लगा – “बस अगर अपने निकलने का गेट इस तरफ की जगह दूसरी तरफ कर लो तो बस सब काम हो जाएगा |”

“बस इतनी सी बात – अरे ओ कालू चल आज से इधर का गेट परमानेंट बंद करके दूसरी तरफ का खोल दो |”

“क्या बात है भाई – क्या पल मे फैसला सुनाया – सच मे इतनी जल्दी तो कोई मिनिस्टर भी अपना काम नही कर सकता |”

अरुण जिस तरह से उन्हें चने के झाड मे चढ़ा रहा था उससे उसके पीछे खड़े ब्रिज कुछ कुछ बात समझने लगे थे पर अरुण के दिमाग मे तो अभी और अभी आगे की प्लानिग थी| वह मुस्कराते हुए उस जगह से जाने लगा तो गुंडे उस रास्ते को बंद करने मे लग गए जो मजदूरो के आने जाने वाले रास्ते की ओर खुलता था|

ब्रिज थोडा अभी भी हैरान थे क्योंकि अब तक वे अरुण को इतना तो समझ चुके थे कि उसका गेम अभी खत्म नहीं हुआ है| वे भी उसी तरह मुस्कराते हुए उसके पीछे पीछे चलने लगे| …………….आपके कमेन्ट का हमे है इंतजार तो जरुर बताए कैसी चल रही है कहानी क्योंकि अभी बहुत कुछ होना शेष है..

..क्रमशः…..

22 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 124

  1. Arun ka koi jawab nahi.. kya idea nikala hai.. 😂😊

    Ye Vivek to apna badla lene me itna selfish ho gya ki pehle Arun aur kiran ki zindagi barbad kar di aur ab menka ki ..🥺🥺

    1. Shi kha Arun jesa koi nhi par ky Arun ar ujla ar apni bhn ko bacha payega us Vivek se Vivek to sach m bda kamina निकला
      Ar mem ye selvin ka ky Raj h
      Very very very nice parts

  2. Bhut acha part tha ab ujla kya kregi kya wo chup ho kr sub dekhegi ya kuch kregi waise lgta to nhi wo chup baithegi

  3. Bhut badiya… Arun ne apna kaam b kr diya or ladai jhagra b nhi hua… Gr8
    Or ye Vivek to bhut hi satir h… Muje lga kiran ko dekhkr dr jyega magar😯😯
    Or kiran ki ye sach Arun ko to btana hi chahiye……

  4. Very interesting part
    Arun ne dheere se sab problem suljha di hai aise hi Kiran ki bhi uljhan suljha dega

  5. ओह प्रतिलिपि पर 134 तक पढ़े थे पर इसमें नंबर कुछ चेंज हो गए है सो पहले 126 पढ़ा अब ये पढ़ा so good

  6. Vovek to bàhut kamina h….pahle mujhe lga vo halat ka mara h lekin vo to bechari begunah kiran ko b nhi chod rha h…..uski life kharab karne me uska hi hath h or ab b use damki de rha h…….Arun bahut tej dimag wala h

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