
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 129
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥ |
भावनगर की फैक्ट्री मे ज्योंहि वे चौपाई गूंजी मानो राम उसी क्षण सबके रोम रोम मे समां गए|
कुछ ऊँचे बने स्टेज पर फूलो की साज सज्जा के बीच रामचरितमानस लिए बैठे महंत जी आ गए थे साथ ही उनके आस पास उनके चेले भी अपने साजो संगीत के साथ वहां मौजूद थे| वही सामने दरी पर उन मजदूरो के साथ आम व्यक्ति की तरह अरुण और उसके पीछे ब्रिज बैठे थे|
मानो उस कथा को सुनते सब राममय हो गए थे| देखकर लग रहा था अहिरो बीच बैठे जैसे राम सहज थे वैसे ही आज अरुण भी उन मजदूरो के बीच सजह ही बैठा था|
कथा अपने बहाव मे थी…..महंत सुना रहे थे – “चारो ओर खलबली मची हुई है राम का जन्म होने वाला है पर माता कौशल्या का मन सहमा हुआ है – वे पूरब से पश्चिम की ओर सरकते सूरज को आद्र मन से देख रही है – वे जानती थी उस भविष्यवाणी को जिसके अनुसार अगर राम का जन्म दिन के पहले पहर मे हुआ था जो सारी कीर्ति ,यश, वैभव उसके कदमो मे होगा और अगर दूसरे पहर मे हुआ तो उसको जीवन भर कष्ट और संघर्ष संग रहना होगा – माता कौशल्या बार बार मन ही मन पुकारती है जल्दी आओ मेरे राम….पर भाग्य का लेखा कौन बदल सका और राम उस पहले और दूसरे पहर के बीच मे जन्म लेते है – इसी के साथ भाग्य ने तय कर दिया कि महलो मे जन्मे राम को अपार सम्प्रदा के साथ अपार कष्ट भी भोगने होंगे – पर राम का ये रूप हमे कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर करता है – हमे सिखाता है अपनी जमीन से जुड़े रहना और अपने कर्तव्यपथ की ओर सर उठाकर चलना क्योंकि राम सिर्फ नाम नही बल्कि नाम है विश्वास और मर्यादा का है ऐसा विश्वास जो रावण जैसे अपराजेय के समक्ष भी देवी सीता के मन को इस विश्वास से भर देता है कि उसका पति राम कैसे भी आएँगे उसके पास और उसे पूरे मान सम्मान से अपने साथ ले जाएंगे -|”
महंत जी के कुछ पल के मौन होते ही पीछे से अब सगीत चलने लगता है……
“राम सिया राम सिया राम
जय जय राम,
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी,
राम सिया राम सिया राम….
दीन दयाल बिरिदु संभारी
हरो नाथ मम संकट भारी,
राम सिया राम सिया राम…..
जा पर किरपा राम की होई,
ता पर किरपा सबकी होई,
राम सिया राम सिया राम….|”
संगीत के बंद होते महंत जी फिर आगे कि कथा कहने ज्योंकि शुरू करते है तभी उन मजदूरो मे से कोई उठता हुआ अचानक से उन्हें टोकता है –
“महंत जी अगर राम को अपनी सीता पर इतना विश्वास था तो फिर उन्होंने उनका त्याग क्यों किया ?”
ये सुनते कुछ पल तक माहौल मे सन्नाटा छा गया| जैसे सभी अपने अपने मन मे इस सवाल का उत्तर खोजने लगे| अरुण भी अपना सारा ध्यान इस प्रश्न पर लगा देता है|
***
रजिस्ट्रार ऑफिस के बाहर इस वक़्त विवेक मेनका के साथ मौजूद था| जहाँ विवेक के चेहरे पर गहरी मुस्कान छाई थी वही मेनका पूरी तरह से कन्फ्यूज दिख रही थी| वह खुद को समझा नही पा रही थी कि आखिर वह यही तो चाहती थी फिर क्यों ये सब इस तरह होना उसे ठीक नही लग रहा !! बहुत तरह के विचार उसके मन मे चढ़ उतर रहे थे जिससे उसका मन खुद के भंवर मे उलझ सा गया था|
“तुम यहाँ बस दो मिनट रुको मैं ऑफिस से पूछकर आता हूँ |” मेनका के गालो को अहिस्ता से छूते हुए विवेक मुस्कराते हुए कहता है तो मेनका भी आंख झपकाकर हामी भरती है|
वह एक खाली बैंच के पास खड़ी थी जहाँ विवेक उसे छोड़कर गया था| उसके जाते फिर से मेनका का मन ढेरो सवालों से भर उठा और वह घबराकर इधर उधर देखने लगी|
विवेक ऑफिस की ओर बढ़ा तो था पर भीड़ का फायदा उठाते वह एक खम्बे के कोने मे खड़े आदमी की ओर अब बढ़ गया था जो काला कोट पहने उसी को देखकर मुस्करा रहा था|
उसके बेहद पास आते विवेक दांत पीसते हुए पूछता है – “यहाँ क्यों खड़े हो – ऑफिस मे मिलना तय था न ?”
“हाँ वहां तो मिलना ही है पर ये देना था तुम्हे – रंजीत साहब ने कहा है आज ये काम हो जाना चाहिए |”
कहते हुए वह कुछ पेपर्स उसकी तरफ बढ़ा देता है जिसे बिना देखे ही झटके के साथ वह उसके हाथ से ले लेता है|
“मुझे याद है सब – अभी तुम ऑफिस मे मिलो मैं मेनका को लेकर वही आ रहा हूँ |”
वह भी हामी मे सर हिलाते दूसरी ओर चल देता है तो विवेक उन पेपर्स को अपने साथ लिए बैग मे डालते हुए मेनका की ओर बढ़ जाता है|
वह अपनी उधेड़बुन मे अभी तक खड़ी थी| विवेक को अपनी ओर आते वह तुरंत उसकी बांह पकड़ती हुई कहती है –
“विवेक मुझे बहुत घबराहट हो रही है – देखो सब जैसे मुझे ही घूर रहे है |” वह घबराकर आस पास खड़े लोगो को देखने लगती है|
इस पर विवेक उसके चेहरे को अपनी हथेली मे लेता हुआ कहता है – “आज मेरा चाँद जमीन मे जो उतर आया है|”
विवेक की प्रेम भरी बातों पर भी मेनका यूँही घबराई हुई ज्योंकि कहने को हुई विवेक उसे रोकता हुआ कहता है – “
“अब मेरी आँखों की तरफ देखो – देखो इन आँखों मे किसका अक्ष दिख रहा है तो बस अब इसके अलावा तुम्हे किसी और को देखने की जरुरत नहीं है और तुम्हे पता है हम कितने लकी है – हमसे पहले जो सारे कैंडिडेट थे वह आए ही नहीं जिससे हमारी शादी तुरंत ही हो जाएगी – चलो |” कहते हुए विवेक मेनका का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ऑफिस की ओर ले जाता है|
ऑफिस में उन दोनों के अलावा एक रजिस्ट्रार और वही वकील कोने मे बैठा था जिसे अनदेखा करता हुआ विवेक मेनका का हाथ पकड़े खड़ा कहता है –
“जी हमारा नंबर है अब |”
वह रजिस्ट्रार एक सरसरी नज़र उन दोनों पर डालते हुए सपाट भाव से कहता है – “सारे डॉक्यूमेंट पर साइन करा लिए तो अपने दो गवाह बुला लो |”
“साइन तो अभी हो जाएँगे पर गवाह !! आपने कहा था यही से हो जाएगा |”
“हाँ हो जाएगा – मिश्रा जी अपने दो साथी को बुला लाओ |” रजिस्ट्रार उसी वकील को देखता हुआ कहता है|
जिससे वह वकील मौन ही हामी भरता हुआ उठकर बाहर निकल जाता है| उसके जाते विवेक मेनका को वही कुर्सी पर बैठने को कहकर अपने साथ लिए बैग को दूसरे कोने मे लेजाकर उसमे से कुछ निकालने का उपक्रम करने लगता है|
उस दो पल तक कमरे मे निशब्दता सी छाई रहती है जिसमे मेनका अपनी उफनती हुई सांसो को साफ़ साफ़ सुन पा रही थी| वह बैठने के बजाये तुरंत विवेक के पास आती हुई उसका हाथ पकड़ती हुई धीरे से कहती है –
“विवेक मुझे ये सब ठीक नही लग रहा – मैं तो यूँही घर से निकली थी अब अचानक ये सब होगा तो जाने आगे क्या इसका परिणाम होगा – मेरा मन तो बहुत घबरा रहा है|”
विवेक रूककर उसकी आँखों मे देखने लगता है|
मेनका अभी भी कह रही थी – “विवेक क्या एक और दिन के लिए ये शादी नही रुक सकती ? मतलब मैं तुम्ही से शादी करना चाहती हूँ पर अभी नहीं |”
विवेक मेनका के हाथ पर हाथ रखता हुआ कहता है – “मेनका तुम्हारी सारी घबराहट और सवालो का एक ही उत्तर है मेरे पास – तुम अभी मेरे एक सवाल का जवाब दे दो तो तुम्हारे भी सारे सवालों का जवाब तुम्हे अपने आप मिल जाएगा |”
“क्या !!”
“इस वक़्त तुम्हे सबसे ज्यादा किस पर भरोसा है – खुद पर या मुझ पर – बोलो ?”
मेनका अचकचाई सी दो क्षण तक विवेक को देखती रही|
“बोलो जवाब दो ?”
“तुमपर है – मुझे तुमपर खुद पर से ज्यादा भरोसा है विवेक |”
मेनका का जवाब सुनते विवेक के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वह उसका हाथ कसकर थामते हुए कहता है –
“बस यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है – मुझपर इतना भरोसा है तो मैं जो कहता जा रहा हूँ उसे बस आंख मूंदे करती जाओ – हूँ !”
मेनका भी जैसे अपने प्रेम मे सारी सुधबुध खोती हामी मे सर हिला देती है|
अब कमरे मे उस वकील के साथ दो लोग और आ जाते है| उनके आते विवेक मेनका को लिए रजिस्ट्रार के सामने बैठता हुआ अपने साथ लाई एक फ़ाइल मेनका के सामने रखता हुआ उसके हाथ मे पेन पकड़ा देता है| विवेक उस फ़ाइल का एक एक पेपर उसकी नज़रो के सामने खोलता संकेत करता और मेनका बस विवेक की आँखों कि ओर देखती उन पेपर को बिन देखे उनपर साइन करती जाती है|
सारे पेपर्स के साइन होते वह फ़ाइल उस वकील की ओर बढ़ा कर रजिस्ट्रार की बताई जगह पर दोनों बारी बारी से साइन करते है उसके बाद उनके पीछे खड़े वे वकील भी अपना अपना साइन करते है|
“लीजिए आज से आप दोनों लीगली पति पत्नी है – आप दोनों को बधाई |” रजिस्ट्रार के कहते विवेक एक भरपूर नज़र से मेनका की ओर देखता है जिसके चेहरे पर भी अब हलकी सी मुस्कान आ गई थी|
उसके बाद वो वकील दो फूलो की माला उन दोनों की ओर बढ़ा देता है जिसे बारी बारी से वे एकदूसरे को पहना देते है|
अगले ही पल वह फ़ाइल उस वकील के पास छोड़कर विवेक मेनका का हाथ पकड़े उस कक्ष से बाहर आता है| मेनका अब विवेक की ओर देखती हुई कहती है –
“विवेक अब हम यहाँ से कही दूर चले जाएँगे जिससे कोई अब हमे जुदा न कर सके |”
मेनका भरपूर निगाह से विवेक की ओर देख रही थी जबकि विवेक की नज़रो मे प्रेम के अलावा अब एक और भाव था जिसे मेनका देख भी नहीं पाई थी|
“हमने छुपकर जरुर शादी की है मेनका पर इसे छिपाना नहीं है – हमारा प्रेम सच्चा है तो हम अपने इस सच पर शर्मिंदा नही होंगे बल्कि लोगो का सामना करेंगे |”
कहते हुए विवेक मेनका का हाथ कसकर पकड़ लेता है जबकि मेनका का मन एक बार फिर घबराहट से भर जाता है|
क्या करने जा रहा है विवेक ? क्या होगा अंजाम उसके इस जूनून का ? करे इंतज़ार अगले भाग का….और क्यों सीता का निर्वासन हुआ इस पर अपना मत दे और अगले भाग मे इसका सच जाने..
क्रमशः……………………..
Bahut hi sundar bhavnatmak part
Ramkatha bahut sunder vardan hai
Bechari Menka . Bahut hi sundar Ramkaktha .
Nice 👍👍
Nice👌👌👌👌
Vivek ne menka se jarur deewans ke share bechnewale papaer sign karvaye h…..ab menka ka kya hoga
Vivek ne dhokhe se kuch aur papers bhi sign karwaye hai aur ab vo menka ko diwaans ke sahmane le jayega.. jab menka ko sach pta chalega to kya hoga bechari ka…
Menka Ne Bahut Galat Kiya Hai.
Usne Ye Kadam Uthane Se Pehley 1 Bar Arun Ko Vivek Ke Bare Me Bata Dena Chahiye Tha? To Arun, Vivek Ka Sach Pata Kar Leta? Aur Menka Ko Bachha Leta
Nice👌👌👌👌👌
आखिर मेनका ने विवेक की बातों में आकर बिना पढ़े साइन करती गयी आगे पता चलेगा कितना बड़ा अनर्थ कर दिया प्रेम करना और प्रेम में अंधा होने में बहुत बड़ा फर्क है 😢😢
विवेक, मेनका के साथ धोखा कर रहा है?????
Amazing part ❤️
Seeta maa ka nirvasan q hua, jabki shre ram to sab kuchh jante the, unhe pura vishwas tha fir bhi sirf ek dhobi ke khne Par unhone seeta maa ko tyaag diya vo bhi tab jb vo garbhwati thi…
Kya sirf apne aapko prajapalak kehlane ke liye?????
Seeta maa bhi to usi praja ka hissa hui fir, q unki Agni pariksha li…..
Ase bhaut se sawaal hai jinke jwab m bhi sochti hu but milte nhi….
Part bhaut achha tha, ab jaldi hi Vivek ka maksad aur uski behan ki sachchai bhi samne aayegi…
Well done Archana ji 👍👍
Menka aisi bewkufi kaise kar di
Nice part
Very very😊👍👍😊