Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 13

अरुण क्षितिज के स्कूल से बाहर आकर कुछ देर तक खड़ा बच्चो को स्कूल जाते हुए देखता रहा| वह शहर का सबसे नामी स्कूल था तो जाहिर सी बात है बच्चो के आने के साथ शानदार गाड़ियों की कतार, सजे धजे चमकते चेहरे ज्यादातर नज़र आ रहे थे| पर अरुण को तो उन मासूम बच्चो की स्वछन्द खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी| वह उन्ही के भोलेपन को निहारता हुआ कुछ सोच रहा था| अरुण अपनी कार का टेक लिए सीने पर हाथ बांधे खड़ा था|
तभी मोबाईल की रिंग से उसकी तन्द्रा टूटती है और वह पलटकर आवाज की ओर देखता है| अब ठीक उसके बगल में उसे राजवीर दिखता है जिसके हाथ का मोबाईल अभी भी बज रहा था|
वह अरुण की ओर मोबाइल बढ़ा देता है जिसे उठाते ही उस पार से आकाश की आवाज गूंजती है जो उसे तुरंत ऑफिस आने का बोल रहा था|
पर अरुण उसकी बात का विरोध करते हुए कह रहा था – “भईया मैं थोड़ी देर में ऑफिस आता हूँ – अभी मैं जीएस कालोनी जाना चाहता हूँ |”
जीएस कालोनी का नाम सुनते निश्चित रूप से आकाश भड़क उठा था|
“आप चाहते है तो मैं यही बात डैड से भी पूछ लेता हूँ पर मुझे वही जाना ही है|”
फोन शायद काट दिया गया उसके बाद उसी मोबाईल से वह अपने डैड को कॉल लगाने लगता है, कुछ देर उनका निजी नंबर बिजी जाता रहा फिर उसके द्वारा फोन उठाते ही वे कहते है – “तुम कही भी जाना चाहते हो बाद में जाना – अभी तुरंत ऑफिस आओ |”
उनके हुक्म के बाद अरुण अब मोबाईल राजवीर को पकड़ाते हुए कहता है – “तुम यहाँ कैसे आए राजवीर ?”
“वो बड़े साहब ने आपके साथ रहने को कहा है – आपका मोबाईल भी नही था आपके पास इसलिए आपको ढूँढता यहाँ चला आया |”
“ओह तो डैड तुम्हे मेरा मोबाईल बनाकर मुझे ट्रैक करना चाहते है – |” अरुण समझ चुका था कि उसका अकेले कही भी खुद ड्राइव करके चले जाना उसके पिता को कभी नही सुहाता था| न ही वह मोबाईल रखता और न ड्राईवर यहाँ तक कि किसी भी सुरक्षा मानक का पालन भी नही करता| शायद इसी कारण वे किसी भरोसे वाले आदमी को उसके साथ हमेशा रखते थे|
“तो चलो पालन करो बड़े साहब का हुक्म |” फीकी हंसी से कहता हुआ अरुण पीछे जाकर बैठ जाता है और राजवीर ड्राइविंग सीट संभाल लेता है|
राजवीर के कार स्टार्ट करते ही अरुण कहता है – “राजवीर मैं जीएस कालोनी जाना चाहता हूँ |”
राजवीर ब्रेक पर पैर लगाए लगाए ही धीरे से हिचकते हुए कहता है – “वो बड़े साहब का हुक्म था कि आपको सीधे ऑफिस लाया जाए |”
इस पर खुद पर ही हँसता हुआ अरुण सिगरेट सुलगाते एक गहरा कश भीतर से लेकर बाहर छोड़ते हुए कहता है – “ले चलो जहाँ – हम भी तुम्हारी तरह हुक्म के गुलाम ही है|” कहते हुए अरुण ठसक भरी हंसी लेता जल्दी जल्दी कश लेता रहा क्योंकि स्कूल के सामने खड़े होने से वह बहुत देर तक सिगरेट भी नही निकाल पाया था|
राजवीर सच में बड़े साहब के हुक्म का गुलाम था इसलिए वह इस वक़्त चाहकर भी अरुण के मनचाहे गंतव्य नही ले जा सका| अब वह ऑफिस की ओर कार मोड़ लेता है|
“और राजवीर तुम्हारी बहन की मंगनी ठीक से हो गई ?”
“अरे सर आपको याद रहा – हाँ सर – सब आपकी वजह से ठीक से हो गया – आपने तो मुझे छुट्टी देने के साथ पैसो से ही इतनी मदद कर दी कि किस मुंह से आपको धन्यवाद् कहूँ वो भी कम है |”
“वो सब छोड़ो – अब शादी की तैयारी करो – उसमे कोई कमी नही रहनी चाहिए -|”
राजवीर स्टेरिंग घुमाता घुमाता मुस्काते हुए हामी भरता है|
***
इस वक़्त आकाश अपने पिता के केबिन में मौजूद था और मौजूदा कोई मुश्किल उन्हें बता रहा था|
“डैड उसका नाम कुबेर है और नाईट शिफ्ट के वक़्त उसके भाई का एक हाथ मशीन में आने से वह घायल हो गया – शायद उसकी उँगलियाँ काटनी पड़ी – हमने भी तुरंत कम्पेंशेसन ग्राउंड पर उसका इलाज कराया और उसे बीमा के रूपए भी दिलाए पर बात अब कुछ और हो चुकी है – इससे पिछली बार भी उसी मशीन में किसी अन्य मजदूर का हाथ आया था और सेम उसकी उंगलियाँ काटनी पड़ी थी ताकि जहर उसके जिस्म में न फैले – अब ये सब उस मशीन को ही अभिशप्त मानने लगे है और कोई भी उस मशीन पर काम नही करना चाहता – कुछ उसे बदलने का मेनेजमेंट पर जोर दे रहे है जबकि वह मशीन हमने योरोप से माँगा कर लगवाई हुई है और कुबेर इसी बात पर सबसे ज्यादा हंगामा मचा रहा है|”
आकाश की बात बहुत ध्यान से सुनने के बाद सेठ धनश्याम बेहद शुष्क भाव से कहते है – “तो क्या चाहता है वो ?”
“हम उस मशीन को बदल दे |”
“हूँ ! कौड़ियों में जीने वाला मजदूर चाहता है कि हम उसके लिए करोडो की मशीन बदल दे – मुर्ख है सब – आकाश उसका इंतजाम कर दो क्योंकि मजदूर एक के बदले चार मिल जाएंगे और उस मशीन पर नई भर्ती लगाओ |”
“डैड मैंने सोचा है अगर मेनेजमेंट की ओर से उसे छटनी में निकाल दिया जाए तो वह कुछ कर भी नही पाएगा |”
“हाँ तो कर दो मुश्किल क्या है ?”
“मेनेजिंग कमिटी में अरुण भी है और वह किसी भी हाल में इसपर साइन नही करेगा |” बेहद सख्त भाव से आकाश अपनी बात खत्म करता है|
इस पर शांत होते वे कुछ सोचते रहे तभी फिर आकाश अपनी बात आगे कहता है – “और ऊपर से इस वक़्त जीएस कालोनी जाने की जिद्द लगाए बैठा है – वो तो मुझे सही समय पर पता चल गया और मैंने उसे तुरंत यहाँ बुलवा लिया – इसके लिए तो वो आपको भी फोन कर रहा था पर उससे पहले ही मैंने आपको बता दिया|”
इस बात पर सेठ घनश्याम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए और जल्दी से कह उठे – “नही नही आकाश उसे वहां जाने से रोको – बड़ी मुश्किल से चार साल अब्रोड रखकर उसकी मानसिकता बदलने की कोशिश की पर लगता है सब बेकार रहा – अब अगर वहां गया तो जरुर कुछ न कुछ बुरा होगा |”
“पर आपको लगता है डैड हम उसे रोक पाएँगे ?” आकाश प्रश्न करता अपने पिता की ओर देखता रहा और वे अजीब भाव से इधर उधर देखते खुद को सयंत करते रहे|
जब सेठ घनश्याम असहज हो जाते तब तुरंत ही वे सिगार सुलगाकर उसके कश से अपने भीतर के इन्सान को काबू करने की कोशिश करने लगते और इस वक़्त भी उनका यही हाल था| अरुण की जिद्द और उसका स्वभाव उन्हें ऐसे ही कई बार असहज कर जाता|
इस बार वह जीएस कालोनी जाना चाहता था जो वे बिलकुल नही चाहते थे| जीएस कालोनी असल में घनश्याम कालोनी थी जिसे उन्होंने ही मजदूरों के लिए बसाया था| वहां उनके लिए हेल्थ सेंटर से लेकर प्राथमिक विद्यालय तक था पर फिर भी थी तो वह गरीबी और लाचारी की बस्ती जहाँ वे अरुण जैसे संवेदनशील लड़के को कतई नही जाने देना चाहते थे| उन्हें अच्छे से आभास था कि वहां का माहौल कही फिर से अरुण के अंदर के भावात्मक इन्सान को पूरी तरह से न जगा दे जिसे बड़ी मुश्किल से वे हमेशा दबा कर रखते थे| उनकी नज़र में गरीबी, लाचारी, मज़बूरी सब किसी लाईलाज बीमारी की तरह थी जिसे उसे उसके हाल पर ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि आज तक किसी ने भी इसे बदलने की कोशिश नही की| उनका निजी अनुभव कहता था कि ये सब बस वक़्त में फायदा उठाने की चीज है और अगर ऐसा न होता तो आज तक नेताओ की वोटो की राजनीती हो या उद्योगों की भरमार सब इनसे फायदा ही उठती आ रही है पर किसी ने इसे बदलने या खत्म करने की असलकोशिश कभी की ही कहाँ पर अरुण अलग था इसलिए कभी कभी उसको लेकर वे डर जाते कि उसकी मानसिक अवस्था पर ये सब असर न डाल दे कही !!
केबिन में दस्तक के साथ अरुण वहां दाखिल होता है|
“आओ – हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे|” उसके पिता जबरन अपने चेहरे के भाव सहज करते उसे बैठने का संकेत करते है|
“हम बस तुम्हारी ही बात कर रहे थे – एक करोड़ो का प्रोजेक्ट है और हम चाहते है कि तुम उसे पूरी तरह से लीड करो – आखिर सिडनी से हाईली मेनेजमेंट की डिग्री लेकर लौटे हो तुम – तो करोडो को अरबो में बदलना बखूबी सीखा होगा तुमने |” उसके पिता बेहद दिलचस्पी से अपनी बात रखते है|
आकाश भी अपने पिता की हाँ में हाँ मिलाता हुआ कहता है – “हाँ अरुण – बहुत बेहतरीन प्रोजेक्ट है – देखना एक बार शुरू करोगे तो खो जाओगे उसमे |”
“मैं खुद को खोना ही तो नही चाहता हूँ पाना चाहता हूँ |” अरुण बेहद गंभीर भाव से कहता हुआ बारी बारी से अपने पिता और भाई की ओर देखता हुआ आगे कहता है – “मैं चाहता हूँ कि इस करोड़ को अरबो में बदलने के बजाये हम इस पैसो को ह्यूमन वेल फेयर के लिए लगाए तो ज्यादा बेहतर होगा |”
“ह्युमन वेल फेयर !! क्या मतलब ?” आकाश मुड़कर उसे घूरता हुआ कहता है जबकि उसके पिता सिगार का धुँआ उगलते हुए कही सोच में गुम हो गए थे|
“हाँ ह्युमन वेल फेयर – और इसकी शुरुवात मैं जीएस कालोनी के अपने मजदूरो के लिए करना चाहता हूँ – ताकि उनके बच्चो को हाईली एडुकेशन के लिए भटकना न पड़े – ये उन्हें किसी अधिकार की तरह मिले – उसका स्वास्थ बेहतर हो – अगर किसी मजदूर का परिवार इस तरह खुशहाल होगा तो उसका मानसिक स्तर अपने आप बेहतर हो जाएगा – मैं उनके लिए कुछ करना चाहता हूँ |”
“तो क्या कमी है वहां पर – सब कुछ तो दिया हुआ है उन्हें |”
आकाश की बात का विरोध करता हुआ कहता है – “मैं प्राथमिक जरूरतों की नही बल्कि उनकी अंतरिम जरूरतों की कर रहा हूँ|”
अब अरुण की बात से आकाश अपने पिता की ओर देखता है जो अभी भी सिगार के धुए में कुछ सोचने में लगे थे|
“ये सब ब…|”
आकाश की बात अधूरी काटते हुए अब उनके पिता बीच में जल्दी से बोल उठते है – “हाँ आकाश ये सब बहुत बेहतर है – तो क्यों न हम इसकी शुरुवात के लिए इस प्रोजेक्ट डील को यही केंसिल कर दे – लो तुम इस पेपर पर साइन कर दो – इससे ये प्रोजेक्ट कैंसिल हो जाएगा फिर तुम उसके बाद अपने मन की कर सकते हो अरुण |”
आकाश को अपने पिता द्वारा इस तरह अरुण की बात मान लेने पर बेहद आश्चर्य हो रहा था पर वह कहता भी क्या| वह देखता है कि उनकी बात से अरुण के चेहरे पर एक शांत मुस्कान आ गई थी जिससे वह अपने पिता द्वारा दीए किसी पेपर पर चुपचाप साइन भी कर देता है|
“थैंक्स डैड – मुझे लगा नही था कि आप इतनी जल्दी मेरी बात मान जाएँगे |”
अरुण की बात पर उसके पिता सिगार बुझाते हुए कहते है – “क्यों नही – बहुत अच्छी सोच है – |”
“इसलिए डैड मैं एकबार जीएस कालोनी जाना चाहता था ताकि उनकी जरूरतों को मैं नजदीक से समझ सकूँ तभी उसके लिए मैं कुछ बेहतर कर पाउँगा |”
“ठीक है – चले जाओ बल्कि साथ में आकाश भी जाएगा तुम्हारे – क्यों आकाश ?
“जी जी बिलकुल |” आकाश एकदम से अपने पिता के बदले रूप से आश्चर्य चकित हो रहा था उसे यकीन नही आ रहा था कि उसके पिता अरुण की इस बकवास पर कैसे इतनी आसानी से हामी भर सकते है ?
“पर उससे पहले मैं चाहता हूँ कि तुम अपना नया केबिन देखो – मैंने बहुत मन से उसे तुम्हारे लिए तैयार करवाया है – आकाश तुम दीपांकर को बुलवा कर पहले उसे उसका केबिन दिखवा दो और वहां एक घंटा तो लग ही जाएगा फिर उसके बाद तुम जीएस कालोनी अरुण में साथ चले जाना – क्यों अरुण – अब ठीक है ?”
अपने पिता के सहज भाव से हर्षित होता अरुण हाँ में सर हिलाता हुआ उठ जाता है| आकाश तब तक दीपांकर को बुलाकर अरुण को उसके साथ भेज देता है|
उनके जाते अब फिर से पिता पुत्र अकेले थे उस केबिन में | पर अब जहाँ आकाश के चेहरे पर ढेरो प्रश्नात्मक प्रश्न चिन्ह तैर रहे थे वही उसके पिता अब कुछ सामान्य नज़र आ रहे थे|
आखिर मन का गुबार निकालता हुआ वह कह ही देता है – “मुझे बिलकुल उम्मीद नही थी कि डैड आप !! आप अरुण की बेतुकी बात मान जाएँगे ?”
इस पर वे इत्मिनान से कुर्सी से पीठ टिकाते हुए एक पेपर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहते है – “पहले ये देखो |”
आकाश उस पेपर को देखता है जिसपर अभी अभी अरुण का साइन उन्होंने लिया था|
“ये तो डैड..!”
“हाँ जो काम हम अरुण से आसानी से करवा सकते है उससे जिद्द करके नही करवा सकते – अब जब वो खुद इस पेपर पर अपना साइन कर चुका है तो अब आसानी से उस मजदूर को निकाल बाहर कर सकते हो – और रही बात जीएस कालोनी जाने की तो मैं आज रोक सकता हूँ पर कल तो नहीं – वह कभी भी वहां जा सकता है और अगर मैं इसमें अपनी परमिशन जोड़ दूँ तो कम से वह जो कुछ भी करेगा उसकी हमे खबर तो होगी – इसलिए मैंने उसे केबिन देखने में इंगेज किया ताकि तब तक तुम वहां कुछ भी ऐसा न रहने दो जो उसके संवेदनशील मन पर अपना फर्क डाल सके – तुम समझ रहे हो न मैं क्या कह रहा हूँ |”
“यस डैड – बिलकुल समझ गया अच्छे से – इसलिए तो मैं मानता हूँ कि मेनेजिंग की असल पढाई तो मैंने आप से ही सीखी है जिसमे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे – और फिर कल को अगर अरुण तक वह मजदूर पहुँच भी गया तो हम उसी का साइन किया पेपर उसे दिखा देंगे कि सब कुछ उसकी मर्जी से भी हुआ है -|”
इस बात पर दोनों एकदूसरे को मुस्करा कर देख लेते है|
……..नायक ऐसा है तो नायिका भी कुछ खास होगी कुछ के दिल टूटेंगे कुछ के सर फूटेंगे तभी तो एंट्री होगी उसकी…
…….क्रमशः………

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