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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 130

एक ऐसा प्रश्न जिसे किया तो उस वक़्त एक ही व्यक्ति ने था पर उस पल सभा के मौन ने जैसे तय कर दिया कि ये सवाल बहुतो के मन को द्रवित कर रहे है| बहुत सी ऑंखें महंत जी को इस विश्वास से ताकने लगी कि कुछ तो कहे इस परम सत्य पर जिसने स्त्रीत्व की जाने कैसी अजीब परिभाषा मंडित कर दी|

“बताईए न महंत जी आखिर श्री राम ने अपनी सीता का त्याग क्यों किया जबकि वे अग्नि परीक्षा दे चुकी थी – सिर्फ एक धोबी के कहने पर उन्होंने अपनी पत्नी का त्याग क्या एक कुशल राजा का उदहारण देने के नाते कर दिया ?”

प्रश्न एक व्यक्ति कर रहा था पर उन प्रश्न की अग्नि मानो सभा के ज्यादातर की आँखों मे दहक रही थी|

महंत जी हलके से मुस्कराते हुए कहने लगे – “आज मैं सुनाने तो राम कथा आया था पर तुम्हारे प्रश्न ने मुझे अहसास कराया कि बिना सीता परित्याग के दारुण सत्य को प्रमाणित किए राम कथा अधूरी है |” सभा मे मौन छा गया और महंत जी आगे कहते रहे –

“राजन दशासहस्राणि प्राप्य वर्षानि राघव: |
शतश्वमेधानाजहरे सदाश्वनभूरीदक्षिणा॥ अर्थात दस हजार वर्षो तक राज़ करने के बाद एक सौ अश्वमेघ यज्ञ करने के उपरांत सम्पूर्ण शान्ति के साथ राम ने राज किया|” फिर वे आगे कहते है – 

“ब्राह्मणा: क्षत्रिय वैश्य: शूद्र लोभविवर्जिता: |
स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्टाः स्वैरेव कर्मभिः || 

आसन प्रजा धर्मपारा रामे सासति नामृता: |

अर्थात ब्राम्हण, वैश्य, क्षत्रिय, शुद्र सब अपने अपने कार्य को बिना लोभ अपने कर्तव्यों का पालन करते थे –

आसंवर्षसहस्राणि तथा पुत्रसहस्रिणः |
निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशस्ति || अर्थात जब राम राज्य पर शासन कर रहे थे, लोग हजारों वर्षों तक अपनी संतानों के साथ जीवित रहे, सभी बीमारी और शोक से मुक्त थे।

ये तीनो श्लोक 128 सर्ग से अवतरित है और इस बात के प्रमाण है कि जिस राजा ने हजारो वर्षो तक बिना किसी शोक, दुःख और संताप के राज किया हो वह पत्नी विहीन होकर दुखी कैसे रहा ? जिसकी सारी प्रजा संतुष्ट और कर्तव्यनिष्ठ थी तब पत्नी पर आक्षेप लगाने वाला वो कौन था ? जिस राम को वाल्मीकि ने महाविष्णु माना जिसने एक वचन के लिए समस्त राजपाट त्याग दिया क्या वह अपना सीता को अग्नि के सामने दिया वचन कि मैं सदा तुम्हारा वरण करूँगा और कभी तुम्हारा त्याग नही करूँगा तब वे कैसे सीता परित्याग कर सकते थे – हाँ सीता ने अग्नि परीक्षा दी इसलिए नहीं कि राम को उन पर संदेह था – वे तो कभी अपनी सीता से दूर हुए ही नहीं – सीता ने तो निष्कलंकित सतीत्व का उदहारण प्रस्तुत करने अग्नि परीक्षा दी थी जिसे समस्त ब्रह्माण्ड ने देखा तब सीता पर प्रश्न उठाने वाला वो कौन हो सकता है जिसने ये नहीं देखा – ऐसे ही तमाम तरह के उदाहरण उत्तर कांड मे है जो राम के चरित्र की अलग ही परिभाषा प्रस्तुत करते है – तब क्या सुयोग्य मन ये कैसे स्वीकार कर ले कि सम्पूर्ण रामायण के राम उत्तर रामायण मे सहसा कैसे बदल गए – कैसे शम्भुक वध के उत्तरदायी हो गए जबकि वे तो प्रेम की पराकाष्ठा को छूते शबरी के झूठे बेर खाते नहीं हिचकते और न परम राजा होते हुए भी अहीरों संग बैठते हिचकते है – अब अगर मैं ये कहूँगा कि ये सब मिथ्या है – उत्तर रामायण वाल्मीकि की भाषा है ही नहीं – जब वाल्मीकि स्वयं युद्द्य के 128 वे सर्ग श्लोक मे कहते है कथा समाप्त हुई और राम ने हजारो वर्षो तक सुख के साथ राज किया तब वे कैसे पुनः अपनी रचना को विस्तार दे सकते है? – तब सिर्फ मैंने ये कहा इसलिए मत मान लेना – बस मैं तो उपलब्ध साक्ष्यो को आपके समक्ष खंगाल रहा हूँ अब आगे खुद ही मंथन कर लेना और जब जब सीता परित्याग पर कोई बोले तब इन्ही साक्ष्यो को उसके आगे रख देना – जय सिया राम..|”

महंत जी कुछ पल मौन हुए तो सभा भी मौन अपने अपने मन मे मंथन करने लगी|

महंत जी फिर कहते है – “अब तो शंका दूर हो गई न !!”

भीड़ से फिर कोई पूछता है – “जी – पर ये समझ नहीं आता कि इतने समय से हम सब यही सुनते पढ़ते आ रहे है तब इसे क्या कहे ?”

तब से ये सब सुनते अरुण तभी भीड़ से उठते हुए कहता है – “महंत जी क्षमा कीजिए मैं कुछ कहना चाहूँगा – आज आपने बहुत बड़ा सत्य कह दिया जिसे मेरे दादा जी मुझे पहले ही बता चुके थे और तब मैंने भी ठीक यही प्रश्न उनसे किया था |”

“तब वे क्या बोले थे ?”

“तब उन्होंने मुझसे कहा था कि किसी को अगर समझना हो तो उसे उसके व्यक्तित्व से समझो – और जिस राम को हमने बाल कांड से लेकर युध्य अद्ध्याय तक पढ़ा है जाना है वे राम उत्तर रामायण तक आते परिवर्तित नही हो जाएंगे – वे वचन का पालन करते है – किसी मे कोई भेद नही करते – अपनी मर्यादा का पालन करने हर कष्ट सहते है – वे एक आदर्श पुरुष, पति, पुत्र, राजा, मित्र, भाई है – ऐसे है राम – असल मे जब किसी और शासन ने सनातन पर अपना कब्ज़ा करना चाहा तब सबसे पहले उसकी संस्कृति को बदला और भ्रष्ट किया इसलिए इस सत्य को आप सभी अब जान ले और अब तक जिस गलत बात को सत्य मानते रहे आज उसे बदल ले क्योंकि राम एक नाम नही बल्कि सभी के लिए एक विशाल चरित्र का उदहारण है इसलिए तो मेरे लिए तो वे एक रोल मॉडल कि तरह है |”

“सही कहा |” साथ मे ब्रिज जी भी खड़े होते उसके कंधे पर हाथ रखकर अपना आश्वासन व्यक्त करते है|

***

मेनका का हाथ पकड़े विवेक उसकी कार तक आता ड्राइविंग सीट की ओर जाता हुआ कहता है – “आज तुम बगल मे बैठो – मैं ड्राइव करूँगा |”

मेनका भी बगल की सीट पर बैठती हुई मुस्करा देती है| दोनों अभी भी गले मे फूलो की माला डाले थे पर मेनका बैठते ही माला अपने गले से उतारने लगती है तो विवेक उसे टोकते हुए कहता है –

“रहने दो न अभी – अच्छा लग रहा है देखकर |” विवेक एक भरपूर नज़र से मेनका को देखता हुआ उसकी हथेली चूम लेता है जिससे पल भर को मेनका के सारे जिस्म मे एक थरथराहट सी पसर जाती है|  उस वक़्त उसके दिलोदिमाग मे सिवाय विवेक के कुछ नहीं गूंज रहा था इससे जब विवेक ने कार स्टार्ट की तो वह बेहद सुकून से सीट पर सर टिकाकर ऑंखें मूँद लेती है| वह अपनी बंद पलकों से भी यूँ मुस्करा रही थी मानो जागती आँखों से कोई दिवास्पन देख रही हो|

***
कथा समाप्त होते प्रसाद के लिए जब काका उठते है तो दंग रह जाते है| कितने सारे फल, मेवे सामान लिए लोकल मेनेजर वही आ रहा था| महंत जी इस तरह से भेंट दे पाना उन मजदूरो के हद से बाहर की बात थी|

तब वे मेनेजर का आभार प्रकट करते हुए कहते है –

“मेनेजर साहब आपका बहुत बहुर धन्यवाद् – आपने हम मजूरो की इज्जत रख ली |”

“अरे मैंने कुछ नही किया – ये बड़े साहब ने भिजवाया है |”

“ओह – बड़े साहब – वो कब आएँगे ?”

“कब आएँगे – अरे कब से तो तुम लोगो के बीच बैठे है |” कहता हुए वह अरुण की ओर इशारा करता है जो अपने हाथ से सभी को प्रसाद बाँट रहा था और साथ मे खड़े ब्रिज इसमें उसकी सहायता कर रहे थे|

ये सुनते मजदूरो के मुंह से कोई शब्द ही नहीं फूटा, वे अवाक् अरुण को देखते रहे|

“यही तो है बड़े साहब अरुण दीवान जो दो दिन पहले ही सूरत से आ गए – कैसे हो अपने साहब तक को नहीं पहचानते |” कहता हुआ वह सारे सामान को सही से रखने लगता है और काका के साथ खड़ा मदन और बाकी के मजदूर हतप्रभता से उसे देखने लगते है|

….मेरे लिए कहानी सिर्फ किस्सागोई या मनोरंजन का साधन भर नहीं है मेरे लिए कहानी एक समाजीकरण का जरिया भी है इसलिए हमेशा कहानी के जरिए मैं अक्सर बहुत कुछ ऐसा लिखती हूँ जिसे देखा जाए तो कहानी के लिए इतना जरुरी नही होता लेकिन मुझे लगता है कि कहना चाहिए उस विषय पर…धर्म, योग, संस्कृति पर…इसलिए कन्यादान पर और अब सीता परित्याग पर लिखा….बस ये कुछ उदहारण रखने की चेष्टा करती हूँ जो साक्ष्य के साथ है अब आगे आप मंथन करे….

क्रमशः…………

22 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 130

  1. Bahut hi badhiya…..isk alawa kuch khne k liy koi word nhi h …..dil ko chuuu gya ye part

  2. सच मे अर्चना जी आपने विस्त्रत तरीके सीता व राम का। प्रसंग लिखा बहुत अच्छा लिखा है ऐसे ही पहले भी कुछ प्रसंग पर विस्तृत तरीके से शायद कोई और न लिख पाए राज वाली कहानी में भी आपकी कलम का आभार माना है 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌💐💐💐💐

  3. रामायण प्रसंग विस्तार से लिखा आप सच ही में बहुत मेहनत करती है एक राज के तो सारे ही सीरीज में दंग रह जाते है पाठक ऐसी जानकारी शायद ही किसी की कलम दे पाए तभी तो आप प्रिय लेखिका हो हमारी 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

  4. Wah ji aaj to aapki kalam aur aapke hath chumne ka man kar aya.. bas ek shanka hai mann main shayad is liye ki sanatan ko maine pda nhi hai bas tv serial me hi dekha aur suna hai.. uttar ramayan kya ramayan ka aage ka bhag hai ?? Aur kya seeta parityag uttar ramayan me hai?? Ramayan me nahi?? Plz mujhe bataye thoda detail me.. mere mann me hamesha se hi yahi question hota tha ki ram ne seeta ka tyag kyu kiya?

    1. Ha….uttar Ramayan Ramayan ka hi aage ka part h….jb sita van me gyi or Asavmedh yagaya hua tha….

  5. Aapne bahut mehnat ki h jo dikhayi b de rhi h….Ramayan ka bahut satik vhitran kiya h

  6. Bahut sundar bhavnatmak part
    Ramayan ka itna sunder vivran aap ne kiya iss part ko likhne mein aap ne kaafi mehnat ki hai yahi proove hota hai thanks mam hamare liye itni important information Dene ke liye

  7. रामायण का सुन्दर वर्णन
    उत्कृष्ट लेखन
    👏👏👏👏👌👌👌👌

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