Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 134

सेल्विन और विवेक को साथ मे बाहर जाते हुए रंजीत अपने केबिन के कांच की खिड़की के पार से देख रहा था| ऐसा करते उसके हाव भाव बेहद कसे हुए थे| उसी वक़्त उसके मोबाईल मे कोई नंबर चमकता है जिसे उठाते ही वह तुरन्त बोलता है –

“अपनी बकवास बंद करके जो मैं कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो और जितना कह रहा हूँ उतना ही करना न उससे ज्यादा और न उससे कम – विवेक के पहुँचने से पहले ही तुम्हे ये करना है |” ये कहते हुए रंजीत अपनी पूरी योजना उस पार केकड़ा को बताता हुआ कहता है – “बस तुम्हे यही करना है लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि उस लड़की को हाथ भी मत लगाना क्योंकि बहन किसी की भी हो उसपर गन्दा हाथ मैं रत्तीभर बर्दाश्त नही कर सकता – बस उसके मन मे डर बना होना चाहिए -|”

“जी बॉस |”

रंजीत अपनी बात कहकर तुरंत कॉल डिस्कनेक्ट करता हुआ खुद से बुदबुदाता है – ‘मुझे इस विवेक पर बिलकुल भरोसा नही है – मुझे जो करना है जल्दी ही करना होगा |’

***
देर से अपनी तन्द्रा मे खोई मेनका को जैसे ही होश आता है वह चौंककर अपने चारो ओर देखती है| वह एक छोटा सा कमरा था जहाँ सामान के नाम पर एक सिंगल बेड और एक मेज कुर्सी के अलावा कुछ नही था| उसके अगले ही पल वह अपनी स्थिति देखती है, उसने अभी भी गहरी गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी| उस साड़ी के स्पर्श के साथ पिछला सारा उसके दिमाग मे घूम जाता है| विवेक के साथ शादी फिर उसका उसी के घर ले जाना और उसके पिता का उसपर नाराज़ होना लेकिन इसके बाद का उसे कुछ याद ही नहीं था| सब कुछ इतना जल्दी जल्दी हो गया कि वह समझ ही नहीं पाई कि आखिर वह क्या प्रतिक्रिया करे ?

वह सारी बातो को एक एक करके सोचती उनका सिरा तलाशने लगी कि क्यों हुआ ऐसा ? और विवेक उसे ऐसे छोड़कर गया कहाँ ? अभी वह सोच ही रही थी कि तभी तेज आवाज के साथ कमरे का दरवाजा खुल जाता है और उसके अगले ही पल उसकी नज़रो के सामने कई गुंडे टाइप लोग आकर खड़े हो जाते है|

एकदम से उन जैसे लोगो को देखते मेनका डर कर सहम जाती है और बिस्तर पर दो कदम पीछे हो जाती है|

वो केकड़ा भाई के आदमी थे और सबसे आगे खड़ा केकड़ा मेनका को दिलचस्प नज़र से देखता हुआ कह रहा था – “माल तो एक दम मस्त लाया है|”

“क कौन – कौन हो – तुम लोग ?”

“तेरे को नाम जानकर क्या करना – बस ये जान ले कि आज के हम है तेरे कस्टमर |” कहता हुआ केकड़ा भद्दी हँसी से हँसता है|

उसके इस तरह कहते मेनका कि साँसे जैसे हलक मे अटकी रह जाती है| वह लगातार पीछे सरकती हुई कहती है –

“तुम जो भी हो – चले जाओ यहाँ से – मेरा पति आ गए तो वो तुम्हे छोड़ेगा नहीं|”

“किसकी बात कर रही है तू – अच्छा इस बार पति बनकर लाया – अरे वो अपना ही आदमी है – जिसका काम है ऐसा मस्त मस्त माल अपन के लिए लाना और अपन उसको चखने के बाद खालिस धंधे मे लगाता है -|”

कहता कहता केकड़ा मेनका की ओर बढ़ने लगता है तो मेनका के हाथ मे जो आता है उसे उसकी ओर फेकती हुई चीखती है –

“मेरे पास मत आना |”

केकड़ा उसकी ओर धीरे धीरे बढ़ने का उपक्रम करता रहा और मेनका इसे मौका समझती बेड के उस पार उतरती हुई उसपर चीखने लगी –

“तुम झूठ बोल रहे हो – विवेक मेरे साथ ऐसा नही कर सकता – उसने मुझसे शादी की है !” अपना आखिरी शब्द मेनका इस तरह से बोलती है जैसे वह ये बात अब खुद से भी पूछ रही हो|

“ये तो अपन लोगो का धंधा है – वो अच्छी अच्छी छोकरी फसाकर लाता है और अपना मिल बांटकर उसका स्वाद लेते है और इस बार तो कुछ ज्यादा ही नर्म मछली लाया है – चल ज्यादा नखरा करके समय खोटी मत कर – चल आ जा |”

“नहीं,,,मेरे पास मत आना |” कहती हुई मेनका हर वो चीज उनकी ओर फेकने लगी जो उसके हाथ मे आती गई पर उसके विपरीत वे सारे गुंडे मेनका की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगे| मेनका डर और दहशत से बुरी तरह से चीखने लगी| उसका चेहरा आंसुओ से भीग रहा था| उन गुंडों को अपनी ओर आते देख वह उनसे बचने बस उस कमरे से बाहर निकलने का प्रयास करने लगी|

ये बात उसे लगी पर केकड़ा को पता था कि उसे क्या करना है| उसने जानबूझकर उसे एक तरफ से जाने का रास्ता दे दिया जिसे मौका पाकर वह फुर्ती से बाहर कि ओर भागती है| उसे तेजी से बाहर निकलते देख केकड़ा अपने गुंडों को जोर से आवाज लगाते हुए कहता है –

“पकड़ो उसे जाने मत देना |”

वह कहता तो है पर कोई एक गुंडा उसकी ओर नही जाता| ये सब देखते दूसरा गुंडा मुंह बनाते हुए कहता है –

“भाई अब तो सच मे हम सबको नाटक मे शामिल हो जाना चाहिए – साला एक कांड ढंग से नही किया और जहाँ भरपूर मौका था वहां खड़े नाटक कर रहे है – ये क्या बात हुई भाई ?”

“करे क्या बे – ये बड़े बॉस का हुकुम है – बोला था लड़की को डराना पर छूना नहीं है – अब साला अपन को समझ नही आता जब दुश्मनी ही निकालनी है तो उसमे साला नियम क्या – एक ही बार मे लड़की का काम कर देते और दुश्मनी पूरी हो जाती|”

“हाँ भाई – अपन को ये सेठ समझ नहीं आया – साला कुछ करने को बोलता ही नहीं – बस खड़े खड़े नौटंकी देखो – हम साला गुंडा है या घंटा !”

“अबे अब चलकर देखते है – वो लड़की किधर गई |”

कहते हुए केकड़ा और उसके पीछे पीछे बाकी के गुंडे भी निकलते है|

ये सब मेनका को क्या पता था वह तो घबराई सी उनसे भरसक दूर भागने कि कोशिश करने लगी| उस वक़्त साड़ी पहने होने कि वजह से उससे तेजी से भागा भी नहीं जा रहा था| वह उस कमरे से निकलती सीधे सड़क पार करने लगी और ऐसा करते वह बार बार पीछे पलट पलट कर देखती| इसी हडबडाहट मे वह विपरीत दिशा से आ रही एक कार को आखिरी मे देखती है और उससे बचने के चक्कर मे वह अन्यत्र वाहन से टकरा कर वही गिर पड़ती है|

उसकी गाड़ी से टक्कर होते देख केकड़ा और उसके आदमी सड़क के दूसरी ओर रुक जाते है| केकड़ा अपने आदमी को चलने का इशारा करता हुआ कहता है –

“चल निकलते है अपन |”

“पर भाई वो लड़की तो !!”

“अपने को क्या करना – चाहे मरे या जिए – अपन को बॉस ने जो बोला वही किया – न ज्यादा और न कम – समझा – चल निकलते है|”

वे सारे गुंडे तुंरत ही वहां से निकल जाते है| मेनका सड़क पर गिरी पड़ी थी| कुछ देर मे ट्रेफिक पुलिस उसे उठाकर किसी सरकारी हॉस्पिटल की ओर ले जाते है|

यही वक़्त था जब विवेक वहां आता है और अपने घर का टूटा ताला देखते तुरंत अंदर की ओर जाता है| उसके पीछे पीछे सेल्विन भी था| दोनों साथ मे कमरे मे खड़े देखते है, कमरा पूरी तरह से तहस नहस था और मेनका वहां नही थी|

“मेनका कहाँ गई ? क्या तुमने कही और उसे रखा है |”

पीछे खड़ा सेल्विन ये कह रहा था जबकि ये सब देखते विवेक के जबड़े गुस्से मे तने जा रहे थे| वह एकदम से सेल्विन की ओर पलटता हुआ उसका गिरेबान पकड़ता हुआ कहता है –

“ये तुम बताओ कि कहाँ है मेनका ?”

“पागल हो क्या – मुझे क्या पता ?” सेल्विन विवेक का हाथ झटकता हुआ कहता है|

“तुम सब मिले हुए हो – मेरी बहन का पता सिर्फ तुम्हे था फिर उस रंजीत को ये सब कैसे पता चला – अब तो मुझे लगता है जैसे तुम मेरे साथ ही कोई डबल गेम खेल रहे हो – झूठी हमदर्दी दिखाकर मेरे राज़ पता करते हो |”

“क्या कह रहे हो – मैं सच मे तुम्हारे साथ हूँ विवेक |”

“झूठे हो – मेनका को कुछ हुआ न तो मैं तुम सबको छोडूंगा नही |”

“देखो तुम इस समय अपने होश मे नहीं हो – हम मिलकर मेनका को खोजेंगे |”

“नहीं – मुझे किसी की मदद नही चाहिए – मैं तुम मे से किसी पर विश्वास नही करता |”

“ओह विश्वास नही करते – तुम्हारे लिए मैंने रंजीत साहब से बैर मोल लिया क्योंकि मैं सच मे तुमसे हमदर्दी रखता था और तुम मुझपर ही अविश्वास कर रहे हो – बल्कि मुझे तो अब लगता है कि तुम्हे खुद पर भी विश्वास है या नहीं – एक तरफ बदला लेने की बात करते हो और दूसरी तरफ उसी की फ़िक्र करते हो – है क्या तुम्हारे मन मे ?”

कहते हुए सेल्विन बुरी तरह से विवेक को घूर रहा था जिससे विवेक उसे सीने से धक्का देते हुए चीखता है –

“जो भी है तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुमने कभी किसी को टूट कर नहीं चाहा – तुमने कभी किसी से प्यार मे साथ जीने मरने के वादे नही किए – मुझपर इस वक़्त क्या बीत रही है ये बस मुझे पता है – दुनिया से लड़ना आसान है पर उतना ही मुश्किल है खुद से लड़ना – एक तरफ मेरा वो प्यार है जो मेरी सारी दुनिया है तो दूसरी तरफ उन कच्चे धागों की कसमे है जिनके लिए अपनी दुनिया मे भी मैं आग लगा सकता हूँ |” कहते हुए विवेक गहरे आक्रोश से लम्बे लम्बे लम्बे डग भरता हुआ बाहर निकल जाता है और सेल्विन अपने स्थान पर खड़ा खड़ा उसे जाता हुआ देखता रहा|

***
दीवान मेंशन का इस वक़्त ऐसा नीरव सन्नाटा छाया था कि जैसे कोई वहां हो ही न| दीवान साहब कि तबियत के कारण आकाश और अरुण हॉस्पिटल मे ही थे जबकि भूमि क्षितिज के पास थी| उस बिखरे हालात मे वह उसके बाल मन को किसी तरह से समझाती हुई शांत किए थी|

वही दादाजी जेट से सफ़र नही करते और देर शाम तक वे सड़क मार्ग से मेंशन पहुँच जाते है| वे इन सब हालातो से काफी चिंतित थे| पर अरुण ने उन्हें अभी हॉस्पिटल आने के मना कर रखा था जिससे वे उदासी मे अपने राम को लिए मंदिर मे स्थापित करने जाते है|

मन ही मन ईश्वर से किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए वे मंदिर मे मौजूद थे कि तभी किसी आहट पर उनका ध्यान वहां गया जहाँ मंदिर मे आती हुई उजला एकदम से उन्हें देख द्वार मे ही ठिठक गई थी|

क्रमशः……………….

17 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 134

  1. Dadaji to kiran ko pahchante h…ab unka kya reaction hoga…….ab kiran ki kismat kya mod legi……achcha laga ye jankar ki vivek Menka se payar karta h….ab vo uske sath kuch galat nhi karega

  2. Ab shayad Kiran ki jeevan mein kuch sahi ho jaaye dadaji ke aane se
    Menka bechari pta nhi kaha jayegi

  3. Chalo ye to sahi hai k Vivek menka se pyar karta hai .. par menka ab na Ghar ki Rahi na ghat ki.. na Ghar ja sakti hai aur na hi ab vo Vivek pe vishwas karegi..
    Dada ji kiran ko dekh kar kya kahenge aur ab Kiran a jayegi sab k sahmane ya kya hoga.. jaldi next part layiye plz

  4. इंसान कितना भी बुरा बन जाए लेकिन जिस इंसान में इंसानियत होती है वह कभी खतम नहीं होती. Ranjit4 को यही लगा कि विवेक मेनका के साथ कुछ गलत करेगा इसलिए उसने वापिस भेजने का प्रयास किया. विवेक पता नहीं क्या करता पर उतना नुकसान नहीं करता शायद जितना रंजीत ने सोचा. जिस तरह से वो आज चिंतित हुआ मेनका के न होने पर.
    Next part ka intazar rahega

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