बेइंतहा सफ़र इश्क का – 135
टूटा हुआ ताला और कमरे का हर तरफ बिखरा सामान जो कहानी कह रहा था उससे विवेक का मन मेनका को लेकर बुरी तरह से डर गया| मेनका का मासूम चेहरा जैसे हर घड़ी उसके दिल मे दर्द उत्पन्न कर दे रहा था फिर उसे लगा शायद वह वापस अपने घर चली गई होगी| ये सोचकर विवेक मेंशन जाने वाले रास्ते की ओर चल दिया| लेकिन उसे नहीं पता था कि आकाश के आदमी विवेक को हर जगह ढूंढ रहे थे| जग्गा जैसे ही विवेक को देखता है तुरंत ही उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता है|
अचानक उसे सामने देख विवेक की आँखों मे जैसे कोई ज्वालामुखी सा विस्फोट कर गया, वह उसे अपनी अग्निय नेत्रों से बुरी तरह घूरने लगा|
“ये देख पंटर – ये साला तो अपुन को देखते ही पहचान गया – अपन को लगा था इसको पुराना सब याद दिलाना पड़ेगा |” कहते हुए जग्गा मुंह फाड़े भद्दी हँसी हँसने लगा |
“अभी तो मैंने बस अतीत को कुरेदा है तो तुम बाहर आ गए – अभी तो बुरी दफन लाश बाहर निकलनी बाकी है फिर तुम्हारा सो कॉल बॉस भी नाक रगड़ता आएगा|”
“अबे कौन सी लाश ? कैसी लाश ? अच्छा तेरी वो बहन ? वो तो कबकी मर गई और उसकी लाश निकालने की बात कर रहा है क्या ?”
जग्गा के इतना कहते विवेक का जैसे खून खौल उठा और वह सीधा उसकी ओर बढ़ता एक तेज मुक्का उसके थोबड़े पर जमा देता है| अचानक के तेज वार से जग्गा एक ओर तेजी से गिर जाता है| उसे गिरते देख बाकी के खड़े चार पांच आदमी तुरंत ही उसकी ओर लपकते है| दिखने मे इकहरे शरीर वाला विवेक एक मजबूत देह रखता था| उसकी गुस्से मे तनी बाजु किसी हथियार की तरह उनपर ताबड़तोड़ वार कर रही थी| वे कुल जमा छह लोग थे और उनमे विवेक अकेला| कुछ देर तक उनमे यूँही घमासान छिड़ी रही| कभी विवेक एक साथ तीन लोगो को हाथो तो बाकी को एक पैर के वार से पीछे धकेल देता और उतनी ही फुर्ती से फिर उनसे लड़ने को तैयार हो जाता|
जल्दी ही वह जग्गा की गर्दन अपनी पकड़ मे करता उसपर चीख उठा – “कही तुम लोग तो मेनका को नहीं ले गए ?”
“क्या बात करता है ? अपन के बॉस ने उसे खोजने ही तो भेजा है ? देख उसका पता बता देगा तो तो सकता है अपना बॉस तुझे माफ़ कर दे |”
ये सुनते विवेक आक्रोश मे उसे पीछे की ओर धकेलता हुआ चीखता है -“अपने बॉस को बोल देना अभी तो उससे छीनने की मैंने शुरुवात ही की है – एक एक करके उसकी जिंदगी की हर ख़ुशी, सुकून, चैन सब उससे छीन लूँगा|”
कहते हुए एक बार फिर विवेक उन गुंडों पर एकसाथ टूट पड़ता है|
“कहाँ ले गए हो मेनका को – बताओ ?”
“अबे हमे उल्लू बना रहा है क्या – तू बता तूने कहाँ छिपाया है ? नहीं तो तू जानता नही है – मुझे मुर्दों से भी बुलवाना आता है |”
ये सुनते विवेक एकपल को ठहर गया| वह खुद मे ही बुदबुदा उठा – ‘अगर मेनका अपने घर भी नही पहुंची तो गई कहाँ ? कही वह किसी मुश्किल मे तो नहीं ?’
विवेक से लड़ते वे गुंडे आपस मे आँखों का संकेत करते उसे घेरने ला प्लान करते है और उनमे से एक पीछे से आकर विवेक के सर पर तेजी से वार करता है| जब तक विवेक खुद को संभाल पाता वे दुबारा उसपर वार करते है और वह लहराता हुआ जमीन पर गिर पड़ता है|
उसे बेहोश देख जग्गा अपने अपने आदमी को निर्देश देता हुआ कहता है – “इसे अपने अड्डे पर ले चलो – वही इसकी खातिर करते है क्योंकि जब तक ये लड़की का पता नही बता देता इसका गेम भी नहीं बजा सकते|”
जग्गा के निर्देश पर वे सभी विवेक को घसिटते हुए उठाकर गाड़ी के पीछे डाल देते है| उसके तुरंत बाद वह आकाश को फोन करके इस बात की खबर देने लगता है|
***
उदास आँखों से अपने आस पास का मंजर देखती मेनका अभी अपनी स्थिति समझने की कोशिश कर रही थी कि तभी तेज धक्के से उसका पूरा जिस्म हिल जाता है और वह बेड से गिरती गिरती बचती है|
“ए चल उठ – ये तेरा घर और ये तेरा बेड नही है – पट्टी हो गई – अब उधर बैठ जा कर|” वह कोई नर्स थी जो जर्नल वार्ड मे आते सभी को इधर उधर से हटा रही थी|
वह सरकारी हॉस्पिटल का एक जर्नल वार्ड था जहाँ कुछ समय पहले मेनका बेहोश पड़ी थी और होश आते वह देखती है कि वह जगह अब लोगो से खचाखच भरी हुई थी| एक ही बेड पर कई मरीज पड़े थे तो कुछ दीवार से लगे पड़े हुए थे, कितना सारा शोर और आवाज वहां ठसी पड़ी हुई थी| उसपर दो तीन नर्स सबको इधर उधर सेट कर रही थी|
अब मेनका को भी वही किनारे दीवार की ओर धकेल देती है| वह चुपचाप भीड़ के साथ खड़ी हो जाती है|
“ए चल उधर सरक |’ कोई लड़की मेनका को थोड़ा और पीछे धकेलती हुई आराम से जमीन पर यूँ पसर कर बैठ जाती है जैसे वो उसका निजी बिस्तर हो| उसकी देखा देखी एक दो और लड़कियां जो उसके बगल मे खड़ी थी वो भी उसके साथ जमीन पर आराम से पसरती गई|
अचानक जहाँ मेनका को सरकाया गया था वो जर्नल वाशरूम था जिसके खुले मुहाने से बेहद बुरी तरह की बदबू बाहर फ़ैल रही थी| उस गंध के जरा भी घेरे मे आती मेनका की बुरी हालत हो जाती है और मुंह पकड़े वह उससे पीछे सरक जाती है| इतनी गन्दी जगह और उस पर इतना बदबूदार माहौल उसे लग रहा था जैसे अभी उसकी उबकाई छूट जाएगी पर किसी तरह से अपनी साड़ी का आंचल मुंह मे दबाए वह उससे पीछे सरकती उन लडकियो के पास खड़ी हो जाती है|
वे बैठी हुई लड़कियां आपस मे बात करते करते मेनका की ओर देखती हुई कहती है – “अब हमारे सर पर यूँही खड़ी रहेगी क्या – यहाँ से निकल या नीचे बैठ |”
मेनका कि उस वक़्त इतनी बुरी हालत थी कि सर पर चोट लगने से उसका सर अभी भी चकरा रहा था और न चाहते हुए भी उसे उनके संग जमींन पर बैठना पड़ा|
मेनका के बैठते वे लड़कियाँ जो उम्र से पच्चीस के आस पास की रही होंगी मेनका को ऊपर से नीचे घूरती हुई वे आपस मे बोलने लगी – “ज्यादा महारानी बनती है – बैठी ऐसे है जैसे बहुत बड़ी रानी हो – चल ठीक से बैठ – ये जगह तेरे बाप की नहीं है – समझी|”
मेनका इस समय वही गहरी गुलाबी साड़ी पहने थी और उसके सर पर पट्टी बंधी थी| उस वक़्त जितनी उसकी साड़ी चमक रही थी उससे कही ज्यादा गहरी उदासी उसके चेहरे पर मौजूद थी| उसके उजास रंग को ऊपर से नीचे देखती हुई फिर वे लड़कियां फिर आपस मे बोलती है –
“बड़ा चिकना रंग है – दूध से नहाती है क्या – ?”
“हाँ लगता तो यही है !” इस पर वे फुसफुसाती हुई हँसने लगी|
“इसका तो धंधा भी बढ़िया चलता होगा – कस्टमर रंग देखकर पहले आता है न !”
“सही बोली तू – आज भी न यही लफड़ा हो गया – वो चिकना अपने को पहले देखकर मुस्कराया और हाथ दूसरी का पकड़ लिया – बस इसी बात पर मार पीट हो गई और अपन सबको फालतू मे धंधा खोटी करके हॉस्पिटल आना पड़ा|”
ये सब सुनते मेनका का मन काँप गया, उसे समझते देर नही लगी कि वह किनके बीच बैठी थी| वह तुरंत वहां से उठकर जाने को हुई पर पल भर को सर पकड़े बुरी तरह लहरहा गई जिससे वे लड़कियाँ उसे पकडती हुई बोलती है –
“अरे तुझे हुआ क्या है – चल अच्छा बैठ जा ठीक से |”
मानसिक और शारीरिक दोनों दर्द से उसका मन डूबा जा रहा था| उसमे उठने तक की ताकत नही बची थी| वह दोनों हाथो से अपना सर पकड़े वही बैठी रही|
वे लड़कियां कभी उसके गालो को छूती तो कोई उसकी साड़ी देखती हुई आपस मे बोलती रही –
“तू साड़ी पहनकर धंधा करती है ? तेरा गाल कितना सॉफ्ट है – कौन सी क्रीम लगाती है ?”
“बोलती ही नहीं – |”
“अपने को कोई और ही लफड़ा लगता है – कही लड़के वडके के साथ भागने वाला चक्कर तो नहीं – कही लड़का तुझे छोड़कर भाग तो नहीं गया !!”
ये सुनते मेनका झटके से सर उठकर उनकी ओर देखती रह गई जिसे वे उनकी मंजूरी मान लेती है|
“मेरे को लगा ही था – जरुर ऐसा ही कुछ सीन होगा – बोल क्या लड़के ने तुझे मारा पीटा क्या !”
मेनका के कुछ न कहते दूसरी लड़की बोल पडती है – “क्या फर्क पड़ता है – जब एक बार अपना घर छोड़ दिया तब नही सोचा तो अब क्या सोचना – मारे पीटे रखे निकाले – सब अपना ही तो करम है – |” वह लड़की दर्द की तरह एक एक शब्द कहती रही मानो किसी ने उसके दबे जख्मो को कुरेद दिया हो| वह दर्दीले भाव मे कहती रही – “मई भी अपने प्रेमी संग भाग कर उसके साथ अपने सपनो का संसार सजाने निकली थी पर मिला गया ये धंधा और चार बाय चार का कोना !! सच्ची कहता था मेरा प्रेमी – साला बोलता था जब तू जिस घर मे बीस साल रह कर उनके बारे मे नहीं सोची तो अब काय को सोचना – बेच दिया मेरे को उसने और अपने ने भी अपना लिया सब – सच्ची किया – यही होना चाहिए था मेरे साथ जिसने अपने माता पिता को जीते जी मार दिया उसे कोई नहीं माफ़ करना चाहिए – अब अपन साला रोज मरती है और रोज उस पल को कोसती है जब अपना घर को छोड़ा था किसी अजनबी के लिए |”
ये सुनते मेनका के हलक से दबी चीख निकल गई| लगा आँखों से आँसू नहीं सैलाब बह निकलेगा| अपने होठ कसकर दाबे वह सर दीवार पर टिकाए अंदर ही अंदर बिलख उठती है|
शायद कांच टूट कर फिर जुड़ जाए पर विश्वास का टूटना क्या होता है वो उसे भुगतने वाला मन ही जानता है, जिसपर आंख मूंदकर विश्वास करके अपना सब छोड़ दिया उसी से आज उसे ऐसे दोराहे पर अकेला छोड़ दिया कि जीने की चाह रही न मरने का हौसला ! मन करता है उसका गिरेबान पकड़कर उससे पूछूँ कि क्यों किया ऐसा ? जितना प्यार तुम्हारी बातो मे था काश तुम्हारे दिल मे भी होता !!
क्रमशः……………..
Sahi baat h ladkiya apne saal 6 mahine ke payaar ke liye 20 saal ke payaar ko b bhul jati h……menka bahut galat logo ke bich h uske sath kuch galat na ho
Kaha fass gyi menka.. jin logo ke beech fassi hai pta nhi kya hoga.. Ranjit kyu massom logo ka galt kar raha hai.. galti to akash aur diwaan sahib ki hai🥺🥺
Amazing part ❤️