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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 139

देर रात रंजीत वापस अपने मेंशन आता है| आते ही वह आउटर लिविंग एरिया मे अपने पसंदीदा आरामदायक सोफे पर बैठकर जाम लिए स्विमिंग पूल पर गिरता हुआ चाँद निहारता और उसी वक़्त रानी का काम होता था कि वह वर्तिका के पूरे दिन का ब्योरा दे|

“साहब – मैं बहुत मनाई मेमसाहब को – पर आज दोपहर से ही खाना नही खाई – रात को भी उनके पसंद का बनाया – उसे तो देखा भी नही |”

रानी अपनी बात कहने के बाद कुछ देर युही खड़ी रही कि शायद रंजीत उसके लिए कोई हुकुम जारी करे| रंजीत अपने हाथ का गिलास खत्म करके उसकी तरफ बिना देखे ही कहता है –

“खाना लेकर आओ |”

वह हामी मे सर हिलाती चली जाती है| जब तक रंजीत उठकर वर्तिका के कमरे तक पहुंचता है रानी हाथ मे बडी सी ट्रे के साथ उसके सामने खड़ी होती है| रंजीत उस ट्रे से परोसी हुई प्लेट उठाकर वर्तिका के कमरे मे चला जाता है|

कमरे मे नाममात्र के जलते लैम्पोस्ट की रौशनी मे वर्तिका मोबाईल मे बिजी थी| रंजीत जानकर उसे अनदेखा करता हुआ प्लेट लिए उसके पास ही बैठ जाता है और कहने लगता है –

“वाओ – आज लगता है सब्जी कुछ ख़ास बनी है – अरे ये तो तुम्हारी पसंद की है – मुझे तो भई बड़ी जोरो की भूख लगी है – सॉरी पूछ नहीं पाउँगा |”

कहते हुए चाव से एक एक कौर तोड़ तोड़ कर धीरे धीरे खाते हुए कनखनी से वर्तिका को देखने लगता है जो अब मोबाईल किनारे सरकाकर उसकी ओर देखती हुई कहने लगी –

“इतनी भी क्या जल्दी थी आने की अभी तो बस दस ही बजे है और दस बजे कोई रात थोड़े होती है –|”

इसपर रंजीत जबरन भोला सा चेहरा बनाते हुए कहता है –

“अच्छा दस बज गए !! पता ही नहीं चला |”

रंजीत के भोले चेहरे के विपरीत वर्तिका अपने हाव भाव मे गुस्सा भरती हुई कहने लगी – “पता कैसे चलेगा ? आपको न घर से निकलते घड़ी देखने की जरुरत है और न घर आने पर !! कब आते है कब जाते है कुछ पता ही नही चलता – कितने दिन से यही देख रही हूँ और मैं तो देख भी लूँ पर भाभी के साथ ये सब नहीं चलेगा – वो क्या कहेगी ? उन्हें कैसा लगेगा ? मैं तो बस यही सोच सोचकर परेशान हूँ पर आपको तो कुछ मतलब ही नहीं – |”

वर्तिका जो भावावेश मे कह गई उसपर रंजीत आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछने लगा – “कौन सी भाभी ?”

“क्यों आपको शादी नही करनी क्या ? और हो भी तो कैसे आपके पास तो टाइम ही नहीं है – मेरे लिए भी समय नही है – और ये मेरे पास बैठकर जो आप खाना खाने का नाटक कर रहे है – इसे करने की कोई जरुरत नही है – मैं फिर भी नहीं खाने वाली – आज कल परसों – कभी नही खाऊँगी |”

“वैसे जब मुझे अपनी बहन के पसंद के कपड़े पसंद आते है तो भाभी भी चलेगी |”

“वो भाभी है कोई कपड़ा नहीं – और क्या मैं जिससे भी कह दूंगी तो आप उससे कर लेंगे शादी ?”

“हाँ बोलो – अभी करनी है – चलो उठो – कहाँ है लड़की? अभी चलते है |”

“भईया प्लीज़ – आज मैं आपके किसी भी झांसे मे नहीं आने वाली – आपको जब मेरी विश से कोई मतलब नही तो छोड़ दीजिए मुझे अकेला |”

“वर्तिका – मेरा बच्चा – तुम ऐसा कहोगी तो सच मे मैं अभी इसी वक़्त जो लड़की पहली दिखेगी उसी से शादी कर लूँगा –|”

“अच्छा !!”

“हाँ बिलकुल |”

अभी ये रंजीत कहता ही है कि रानी उस कमरे मे ट्रे मे खाना लेकर आती उनके सामने खड़ी हो जाती है और रंजीत की बात सुनने के बाद दोनों अब रानी को देखते और ठसककर हँस पड़ते है| उन दोनों को इस तरह हँसते देख रानी थोड़ा झेप जाती है फिर जल्दी से खाना मेज पर लगाकर कमरे से चली जाती है|

वर्तिका को इस तरह हँसते देख रंजीत अब उसे अपनी पास लाता हुआ उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहता है –

“चलो अब साथ मे खाना खाते है |”

“और मेरी विश !!”

“सब मंजूर है पर पहले खाना खा लिया जाए नही तो खाली पेट के चूहे भी अपनी हड़ताल पर निकल जाएँगे |”

रंजीत अपनी बात कुछ इस तरह से कहता है कि वर्तिका खिलखिला कर हँस पड़ती है| अब दोनों साथ मे खाना खाते है| खाने के साथ साथ ही वर्तिका कल के समय के लिए रंजीत से प्रोमिस ले लेती है और रंजीत भी इसपर कुछ नही कर पाता|

खाने के बाद उसके सोने जाने के बाद ही रंजीत उसके कमरे से जाता है| रंजीत के जाते ही वर्तिका झट से मोबाईल ऑन करके फिर से चैट मे लग जाती है| उस पार आदित्य था|

“मैंने अपने हिस्से का काम कर दिया – कल भईया को डिनर के लिए भी मना ही लुंगी |”

“गुड जॉब |”

“अब तुम्हारे हिस्से का काम है कि कैसे भी डॉक्टर ऊष्मा को डिनर के लिए मनाकर लेकर आओ |”

“बस तुमने अपने खूंखार भाई को मना लिया न बाकि तुम मेरा कमाल देखना कैसे मनाता हूँ दी को |”

“मेरे भईया को ऐसे क्यों बोला ?”

“ओह सॉरी खूंखार तो उनकी आंखे है – बस ये सोचता हूँ वो इसी नजर से दी को देखेंगे तो कही मेरी बकरी सी दी को हार्ट अटैक ही न आ जाए |”

कहते हुए आदित्य ढेर सारी स्माइली इमोजी डालता रहा और बदले मे वर्तिका गुस्से वाली| कुछ देर तक वे इमोजी इमोजी खेलते रहे उसके बाद कब वर्तिका की आँखों मे नींद समां गई और आखिर मे आदित्य लव की इमोजी भेजकर गुड नाईट बोलकर मोबाईल ऑफ़ कर देता है|

***
कही रातो मे बेहिसाब प्यार था तो कही की राते बेचैनी भरी थी| जाने कितनी देर अरुण मेनका का हाथ पकड़े उसे देखता रहा| वह उसकी इस हालत को देख पाने का कैसे हौसला कर पा रहा था ये उसका दिल ही जानता था| अभी उसे होश नहीं आया था|

योगेश अरुण के पास आता उसे अपने साथ बगल के केबिन मे जाता हुआ कहता है – “कब तक ऐसे बैठा रहेगा – बोला न – मैं हूँ यहाँ पर – और वो आउट ऑफ़ डेंजर है – कभी भी उसे होश आ सकता है और ऐसे मे तुझे सामने देखेंगी तो कही इम्बैरिस्मेंट मे स्ट्रेस मे न आ जाए |”

इस पर अरुण योगेश का हाथ पकड़ते हुए कहता है –

“यार संभाल लेना – मैं तो इस वक़्त इतना कन्फ्यूज हूँ कि समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ क्या न करूँ – बस जैसे तैसे मेनका को यहाँ ले आया – लगा हॉस्पिटल ले जाते कही फिर से सब इसे खबर न बना डाले |”

योगेश भी अरुण का हाथ थपथपाते हुए कहता है –

“हाँ डर तो इसी बात का है – लगता है बस मिडिया वाले दिवान्स के ही पीछे पड़े है – वैसे तू मुझे कॉल कर देता तो मैं ही झट से आ जाता – अभी भी कुछ लोग देख चुके है पर डोंट वरी मैंने अपने ज्यादातर स्टाफ को मेनका के आस पास से हटा दिया है और मैं खुद पर्सनली उसे वाच कर रहा हूँ |”

तभी आवाज के साथ योगेश देखता है भूमि और साथ मे आकाश वहां आते है| योगेश उन्हें भी मेनका की सिचुवेशन बताता हुआ कहता है –

“आई थिंक आप सब अभी उसके समाने ना आए तो बेहतर होगा – उसे कुछ समय दे मेंटली स्टेबल होने का – मैं हूँ उसके पास |”

इस पर आकाश धीरे से पूछता है – “क्या दूर से देख सकते है ?”

इसपर योगेश हामी मे सर हिलाता उसे अपने साथ ले जाकर वार्ड के कांच के परे से मेनका को दिखाता है जो अभी भी अचेत लेटी थी| उसे इस तरह देख आकाश अपना चेहरा सबसे फेर लेता है| उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी बहन मौत को छूने चली थी और अगर जरा भी देर हो जाती तो क्या सच मे वह उसे खो देता| ये सोचकर ही उसका कठोर सा दिखने वाला चेहरा कुछ पल के नर्म पड़ गया और वह किसी तरह से अपनी आंखे भींचे अपने दर्द को समेट लेता है|  

आकाश वहां नही रुकता और मेनका को देखकर ही चला जाता है जबकि योगेश के केबिन मे भूमि और अरुण बैठे थे| अरुण अपनी हथेली मे सर टिकाए शून्य मे ताक रहा था| योगेश धीरे से भूमि को कहता है –

“भाभी मेरे ख्याल से आप इसे ले जाइए – अरुण बडी की डेथ से उबरा भी नहीं अहि और अब ये हादसा !! यहाँ रहेगा तो और परेशान बना रहेगा -|”

इस पर भूमि एक नज़र अरुण की ओर दौड़ाती हुई अपनी नज़रे झुका लेती है|

योगेश फिर आगे कहता है – “भाभी क्षितिज की भी तबियत ठीक नहीं है न !! आपको इस वक़्त उसके पास होना चाहिए – प्लीज़ आप बेफिक्र होकर जाइए |”

“नहीं योगेश तुम यहाँ हो तो सच मे मुझे मेनका की ओर से कोई चिंता नहीं पर यहाँ से जाने भर से इस बेरहम वक़्त से हम दूर नहीं हो जाएँगे – मुझे तो समझ नही आ रहा कि डैडी जी की खबर मेनका से छिपाऊ या मेनका की खबर डैडी जी से – सब तरफ से जैसे आफत आ रखी है – बडी का जाना तो खैर कैसा हमारे दिलो पर गुजरा है ये शब्दों मे नहीं कह सकती – |”

“मैं समझता हूँ – क्षितिज को भी उससे बहुत लगाव था |”

“हाँ कल से ही बडी के बारे मे पूछ रहा है इसलिए उसे बहलाने मैं संस्था ले गई और वहां जाने से उसकी तबियत खराब हो गई – समझ नहीं आता कब तक उससे भी ये बात छिपा पाएँगे |”

“मेरी बात मानिए भाभी तो कुछ दिन के लिए क्षितिज को आप फार्म हाउस ले जाइए – कुछ चेंज होगा तो उसे अच्छा लगेगा और हो सके तो मेनका को भी ले जाइएगा – दोनों कुछ समय के लिए इस तरह के माहौल से दूर रहेंगे तो अपने आप को संभाल पाएंगे |”

“हाँ शायद यही करना पड़ेगा |”

आखिर योगेश किसी तरह से मनाकर अरुण को भूमि के साथ भेज देता है| अरुण को इस तरह टूटा हुआ देखते उसका दिल भी ज़ार ज़ार हुआ जा रहा था| पर वक़्त ओ हालत कब किसके बस मे रहते है| बस उम्मीद और दुआ ही उसे संभाल सकती थी|

क्रमशः……………

15 thoughts on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 139

  1. Yeah waqt deewans ke liye bahut mushkil hai
    Dekhte hain vartika Aditya kya kar paate hain Ranjeet ki shaadi ushma ke saath ya phir kuch aur hota hai

  2. दिवान्स में चारो तरफ से परेशानी आ गयी है भूमि भी किस किस को संभाले उधर आश्रम में भी परेशानी हो गयी है चारो तरफ से ही प्रोब्लम हो रही है👌👌👌👌👌👌👌

  3. Hy bhagwan….Arun ko Shakti dena or baaki sb ko bhi Himmat dena…bcoz jese jese sare Sach samne aayge wese wese bahut tutenge bhi or dard bhi bahut hona h…bt hm sb jante h end me sb accha hi hoga…..

  4. Sach me deewans ke liye ye bahut hi muskil vakt h….But ye achcha h sab ek dusre ka sahara bane huye h ….or ab to aakash ka b soft corner dikhayi de rha h….Arun bilkul tut hi gya h …ab sayad ujala hi uska sahara bane

  5. Har baar ye waqt hass k mile jaruri to nhi…. par Tera saath hota to ye bura waqt bhi kaanto sa na chubhta…
    Arun ki taraf se kiran ke liye..
    Arun fass gya har taraf se dukh me aur kiran chah kar bhi kuch nhi kar sakti… 🥺🥺

  6. Har baar ye waqt hass ke mile jaruri to nahi…
    Gar Tera saath hota to ye bura waqt bhi kaanto sa na chubhta…
    Arun ki taraf se kiran ke liye..
    Arun fass gya hai chaaro taraf se dukh me.. aur kiran chah kar bhi kuch nhi kar sakti..🥺

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